द्वितीय विश्व युद्ध की भयानकता ने दुनिया को हिला कर रख दिया था। लाखों लोगों की जान गई, बुनियादी ढांचे तबाह हो गए और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था चरमरा गई थी। इस विनाशकारी अनुभव ने विश्व के नेताओं को एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस कराई जो भविष्य में ऐसे संघर्षों को रोक सके और अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग को बढ़ावा दे सके।

इसी सोच के परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1945 को द्वितीय महायुद्ध में विजयी देश सानफ्रांसिस्को में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना करने के लिए एकत्र हुए। संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य “आनेवाली पीढ़ियों को युद्ध से बचाना” तथा विश्व में शांति और सुरक्षा स्थापित करना था।

अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों के निपटारे के लिए शक्ति का प्रयोग अवैध घोषित कर दिया गया। शक्ति का प्रयोग केवल आत्म-सुरक्षा और सामूहिक उपायों के लिए ही किया जा सकता था।

संयुक्त राष्ट्र की सफलता की आशा अधिक थी न केवल इसलिए कि इसका चार्टर, राष्ट्र संघ से बेहतर था बल्कि इसलिए भी कि विश्व की सभी बड़ी शक्तियां इसमें सम्मिलित थीं। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के 193 सदस्य देश हैं। 

चार्टर:- चार्टर एक लिखित दस्तावेज है, जो किसी संस्था या व्यक्ति को कुछ अधिकार, विशेषाधिकार या कार्य प्रदान करता है। यह एक औपचारिक समझौता या अनुबंध हो सकता है

राष्ट्र संघ :- राष्ट्र संघ (League of Nations) की स्थापना 10 जनवरी, 1920 को प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई थी और वो भी उन्ही कारणों से हुई थी जिनके कारण सयुंक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई थी परन्तु राष्ट्र संघ, 1930 के दशक में मंचूरिया पर जापान का आक्रमण, इथियोपिया पर इटली का आक्रमण और जर्मनी के विस्तारवादी कदमों जैसी प्रमुख घटनाओं को रोकने में बिफल रहा था जिसके कारण राष्ट्र संघ को 19 अप्रैल, 1946 को औपचारिक रूप से भंग कर दिया गया और इसके कार्यों और इसकी संपत्तियों को नए बने हुए संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) में मिला दिया गया।

संयुक्त राष्ट्र का जन्म (Birth of United Nations)

51 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किये जो 24 अक्टूबर 1945 को लागू हुआ। इसका जन्म लोगों द्वारा महसूस की जा रही उस आवश्यकता की पूर्ति थी जो “आगामी पीढ़ियों को युद्ध की भयानक और विनाशकारी स्थिति से बचाना चाहती थी।

लेकिन विश्व को युद्ध से बचाना सयुंक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का एकमात्र उदेस्य नहीं था बल्कि इसके माध्यम से मानव अधिकारों, व्यक्ति के गौरव तथा स्त्रियों और पुरुषों के समान अधिकारों पर बल दिया।

इस तरह संयुक्त राष्ट्र के चार मुख्य उद्देश्य हैं।

  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की स्थापना
  • राष्ट्रों में मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करना
  • अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के लिये सहयोग देना
  • और इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये राष्ट्रों की विभिन्न गतिविधियों में तालमेल लाने के लिये एक केन्द्र के रूप में कार्य करना।

इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के छः मुख्य अंग हैं

  • महासभा
  • सुरक्षा परिषद
  • आर्थिक तथा सामाजिक परिषद
  • ट्रस्टीशिप परिषद
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
  • तथा सचिवालय

इनके अतिरिक्त कुछ विशेषीकृत अधिकरण भी हैं जैसे L.O, F.A.O., UNESCO, IBRD, IMP WHO आदि।

बड़ी शक्तियों को निषेधाधिकार (Veto Power) दी गई

संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में राष्ट्र संघ के कोवनेन्ट की त्रुटियों को दूर किया गया। इसमें बड़े राज्यों को विशेष अधिकार दिये गये, उनको किसी निर्णय या कार्यवाही को रोकने, स्थगित करने या निरस्त करने का अधिकार (Veto) दिया गया।

सुरक्षा परिषद् का अब कोई भी निर्णय तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि पांच बड़ी शक्तियां उससे सहमत न हों। इसके चार्टर में अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की उन बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया गया जिनके कारण राष्ट्र संघ असफल हो गया था।

सयुंक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए क्या करना होता है

संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए, किसी भी राज्य को पहले संयुक्त राष्ट्र चार्टर में उल्लेखित दायित्वों को स्वीकार करने और उन्हें पूरा करने में सक्षम होने का औपचारिक घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र महासचिव को देना होता है।

उसके बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा राज्य को सदस्यता में शामिल करने का निर्णय लिया जाता है।

एक बार जब किसी राज्य को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बना दिया जाता है, तो वह संयुक्त राष्ट्र की सभी गतिविधियों में भाग लेने और वोट देने का हकदार होता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता

संयुक्त राष्ट्र संघ को द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् कई जटिल और भयंकर समस्याओं का सामना करना पड़ा। उसके सामने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रश्न उपस्थित हुए और उसने उन्हें बड़ी सतर्कता और विचारशीलता के साथ सुलझाने की कोशिश की।

1946 में ईरान विवाद में मध्यस्थ बनकर रूस की सेनायें वापस बुलवायीं। हिंदेशिया को सहायता पहुंचाकर उसे स्वतन्त्रता दिलाने में सहायता की और उसे संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाया।

इजराइल और अरब राज्यों के आपसी विरोध को रोककर विराम संधि पर हस्ताक्षर करवाये। यूनान की सीमा पर आयोग भेजकर शांति स्थापित की। 20 जून, 1950 को जब उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण करने लगा तब अन्तर्राष्ट्रीय सेना की व्यवस्था के लिए कार्यवाही कर शांति बनाये रखी।

1956 में इंगलैण्ड व फ्रांस ने जब मिस्र पर आक्रमण किया तो संयुक्त राष्ट्र संघ की सेना ने ही विदेशी सेनाओं से वह प्रदेश खाली करवाया और अब भी वहां संघर्ष को रोकने के लिए कुछ संयुक्त राष्ट्र संघ की सेना नियुक्त कर रखी है।

सीरिया और लेबनान तथा हिन्द चीन भी संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता के प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त साम्राज्यवाद की समाप्ति की दशा में भी संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयत्न प्रशंसनीय हैं।

अबीसीनिया की स्वतन्त्रता तथा इरीट्रिया का अबीसीनिया के साथ योग द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इटालियन, सोमालीलैंड, बेल्जियन कांगो, यूगाण्डा तथा अन्य अफ्रीकी देश अभी कुछ समय पहले ही स्वतन्त्र हुए हैं।

लीबिया जो अभी तक  फ्रेंको-ब्रिटिश साम्राज्य का अंग था, इस संगठन के अन्तर्गत स्वतन्त्र बना दिया गया। मोरक्को एवं ट्यूनिशिया जिसे फ्रांस नहीं छोड़ना चाहता था और संयुक्त राष्ट्र संघ के समक्ष कई बार विवाद का विषय रहा, अन्त में स्वतन्त्र हो गये।

इसी प्रकार घाना, मलाया, जिम्बाबे आदि देश भी स्वतंत्र हुए। इसके अलावा, यह भी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वेज, पुर्तगाल, क्यूबा, साइप्रस का भी हल किया है।

सयुंक्त राष्ट्र की विफलता

अभावों की दृष्टि से देखा जाये तो ऐसे कई स्थल हैं जहां यह संघ असफल रहा है। ईरान का तेल विवाद, दक्षिणी अफ्रीका संघ तथा कश्मीर मुख्य ऐसे स्थल गिनाये जा सकते हैं। रूस और उक्रेन विवाद में सयुंक्त राष्ट्र बुरी तरह विफल रहा है।

तेल विवाद में यह संस्था इंग्लैंड और अमेरिका के हितों को सुरक्षित बनाये रख सकी परन्तु वहां की जनता के हितों की रक्षा नहीं कर सकी। दक्षिणी अफ्रीका संघ ने भारत और पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार का समझौता करने से इस आधार पर इन्कार कर दिया कि यह उनका घरेलू प्रश्न है और संयुक्त राष्ट्र संघ भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

इसी प्रकार हंगरी और चेकोस्लोवाकिया पर साम्यवादी आक्रमण के समय भी यह संगठन कुछ न कर सका। हंगरी पर आक्रमण के समय जब विश्व लोकमंच जांच के लिए उत्सुक हुआ तो यह प्रस्ताव किया गया कि महामन्त्री हेमरशोल्ड उसी स्थान पर जाकर जाँच करे किन्तु रूस द्वारा प्रेरित हंगरी ने आवश्यक अनुमति नहीं दी (अर्थात् रूस ज्यादा जिम्मेवार था?)।

इसी प्रकार लाल चीन की सदस्यता का मामला था। अमेरिका के षड्यन्त्र के कारण विशाल शक्तिशाली साम्यवादी चीन काफी लम्बे समय तक संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त नहीं कर सका था।

इसके अलावा लाओस की समस्या पूर्णतः नहीं सुलझी है, कोरिया का एकीकरण नहीं हो सका, वियतनाम समस्या भी खत्म नहीं हो पायी। तिब्बत की स्वतन्त्रता को चीन ने समाप्त कर दिया। भारत की उत्तरी सीमाओं पर जब चीन ने आक्रमण किया तब संयुक्त राष्ट्र संघ कोई ठोस कदम उठा पाया हो ऐसी बात नहीं है।

निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में कोई भी निर्णय नहीं हो पाया है। परमाणु शक्ति से अणु बम और उद्जन बम तथा कृत्रिम उपग्रहों के बनाने के प्रयास जारी हैं और उनके परीक्षण जारी हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ अणुशस्त्रों के नियन्त्रण और उनके विनाशकारी परीक्षण रोकने में अभी तक कुछ नहीं कर सका है, बल्कि संरक्षण परिषद् के अन्तर्गत प्रशान्त महासागर स्थित मार्शल द्वीपों के निवासियों की प्रार्थना को ठुकरा कर अमेरिका को उन द्वीपों मे अणुशस्त्रों के परीक्षण की छूट दे दी गई है।

निष्कर्ष

दोनों पक्षों (सफलताओं और असफलताओं) का गहराई से अध्ययन करने पर यह कहा जा सकता है कि अब संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति कैसी है। बड़ी शक्तियाँ किसी भी विवाद को सत्यता के आधार पर न देखकर राजनीतिक दृष्टि से देखती हैं।

अपनी राष्ट्रीय भावनाओं के प्रसार के लिए यत्न करती हैं। इसलिए ये बड़ी शक्तियां स्वयं ही आदेश पत्र का उल्लंघन करती हैं और विश्व शांति को क्षति पहुंचाती हैं।

दलबन्दी विशेष हो गई है, और ‘नाटो’, ‘सीटो’, ‘बगदाद पैक्ट’ द्वारा शीत युद्ध को विकसित कर रही है। फिर भी, इन सब बुराइयों को दबाते हुए यह संगठन बराबर आगे बढ़ रहा है।

इसमें संदेह नहीं कि कश्मीर तथा फिलिस्तीन जैसे कई मामलों को सुलझाने में यह सफल नहीं हो सका किन्तु कांगो, यूनान तथा इण्डोनेशिया जैसी कई समस्याओं का सफलतापूर्ण समाधान भी किया है।

विश्व बैंक क्या है इसकी स्थापना की अवस्य्क्ता क्यों पड़ी