अभी हाल ही में 14 मई 2025 को बलूचिस्तान के राष्ट्रवादी नेताओं ने पाकिस्तान से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । बलूचिस्तान लम्बे समय से पाकिस्तान से अलग होने की मांग कर रहा था ।
क्यूंकि बलूचिस्तान के लोगो के अनुसार, पाकिस्तान बलूचिस्तान में, मानवाधिकार का उल्लंघन करता आया है बलूच नेताओं ने पाकिस्तान पर, जबरन गायब करना और आर्थिक शोषण जैसे कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
इसके अलावा बलूच लोगों के अनुसार, CPEC (China-Pakistan Economic Corridor) की वजह से पाकिस्तान में जो खरबों डॉलर का चीनी निवेश आया है उसका लाभ वहां के स्थानीय लोगों को नहीं मिला है।
ग्वादर बंदरगाह जो कि CPEC ( चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है वो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर शहर में अरब सागर के तट पर स्थित है। इस समय ये बंदरगाह चीनी सरकारी कंपनी के द्वारा मैनेज किया जा रहा है।

आर्थिक गलियारा (Economic Corridor) एक ऐसा क्षेत्र है जो कई शहरों, औद्योगिक क्षेत्रों और बंदरगाहों को एक साथ जोड़ता है, जिससे व्यापार, निवेश और विकास को बढ़ावा मिलता है।
बलूचिस्तान से अलग होने की घोषणा के वावजूद पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रान्त, बलूचिस्तान अभी भी पाकिस्तान का ही हिस्सा है। तो बात ये आती है कि क्या कोई भी क्षेत्र खुद को स्वतंत्र घोषित कर सकता है और अगर नहीं तो नया देश बनाने के लिए क्या क्या शर्तें होती हैं।
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Toggleनया देश बनाने के लिए जरुरी शर्तें कौन सी होती हैं।
एक नया देश बनाना एक जटिल प्रक्रिया है क्यूंकि नया देश बनाने के लिए, किसी पुराने स्थापित देश को, अपने क्षेत्रफल का एक बहुत बड़ा हिस्सा अलग करना होता है और कोई भी स्वतंत्र देश इसके लिए कभी तयैर नहीं होता।
और संयुक्त राष्ट्र जैसा कोई भी अंतरास्ट्रीय संगठन “मेजबान” देश की अनुमति के बिना किसी भी देश के क्षेत्र को नहीं छीन सकता। ऐसा करना राज्यों की प्रणाली के परिभाषित नियमों में से एक का उल्लंघन होगा।
कोसोवो ने 2008 में सर्बिया से स्वतंत्रता की घोषणा की थी इसे 100 से अधिक संयुक्त राष्ट्र सदस्यों द्वारा मान्यता प्राप्त है लेकिन सर्बिया ने इसे मान्यता नहीं दी है।
लेकिन नए देश तो काफी बने हैं। 1945 से अब तक लगभग 40 नए देश बन चुके हैं। जिनमे पाकिस्तान, घाना, इंडोनेशिया, वियतनाम, केन्या, इजराइल, बांग्लादेश आदि प्रमुख हैं अकेले सोवियत संघ के 26 दिसंबर 1991 में विघटन ने 15 नए देशों को जन्म दिया था।
देश | स्वतंत्रता |
इंडोनेशिया | 17 अगस्त 1945 |
फिलीपींस | 12 जून 1946 |
भारत | 15 अगस्त 1947 |
पाकिस्तान | 14 अगस्त 1947 |
इजराइल | 14 मई 1948 |
वियतनाम | 2 सितंबर 1945 |
बांग्लादेश | 26 मार्च 1971 |
जर्मनी | 3 अक्टूबर 1990 |
तो जो पहले नए देश बने हैं वो किस तरह से बने थे इसका अध्ययन करके भी नया देश कैसे बनता है इसको नहीं समझा जा सकता। जैसे जब भारत और पाकिस्तान बने थे तब परिस्थितियां अलग थीं। भारत और पाकिस्तान बनने के अलावा यहाँ पर 565 रियासतें थीं।
और भारत तथा पाकिस्तान को इस तरह से आजाद किया था कि प्रत्येक रियासत को 3 ऑप्शन दिए गए थे।
- वो अंग्रेजी शासन से पहले की तरह खुद को स्वतंत्र रख सकती हैं
- वो भारत के साथ मिल सकती थी
- वो पाकिस्तान के साथ मिल सकती थी
सरदार बल्लभ भाई पटेल जी ने भारत में इन रियासतों को मिलाया था।

लेकिन जो अधिकतर देश आजाद हुए हैं उन्होंने मुख्य रूप से कौन कौन सी शर्तें पूरी की हैं उनको देखते हैं
नए देश की स्वतंत्रता की घोषणा
किसी क्षेत्र को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, पहले वहां के लोगों को स्वतंत्रता की घोषणा करनी पड़ती है । यह घोषणा सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई या राजनीतिक आधार पर की जा सकती है।
परन्तु केवल घोषणा से एक देश नहीं बन सकता क्यूंकि कुर्दिस्तान ने 2017 में इराक से स्वतंत्रता की घोषणा की थी लेकिन वो अभी भी इराक के अंतर्गत एक अर्ध-स्वायत्त संघीय क्षेत्र है। इसे आधिकारिक तौर पर किसी भी देश ने मान्यता नहीं दी है।
निश्चित क्षेत्र और सीमाएं
स्वतंत्रता की घोषणा करने वाले देश के पास एक निश्चित क्षेत्र होना चाहिए, उसकी सीमाएं निश्चित होनी चाहिए और उस देश के पास एक निश्चित जनसँख्या होनी चाहिए।
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा को रेडक्लिफ रेखा कहते हैं। इसे सर सिरिल रेडक्लिफ के नाम पर रखा गया था जिन्होंने भारत के विभाजन के बाद इस रेखा का निर्धारण किया था।
भारत और चीन के बीच सीमा रेखा को “मैकमोहन रेखा” कहा जाता है। 1914 में शिमला सम्मेलन में ब्रिटिश सरकार के विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन द्वारा इस रेखा का सुझाव दिया गया था । इसका नाम सर मैकमोहन के नाम पर रखा गया है।
बड़े देशों तथा सयुंक्त राष्ट्र से मान्यता
ये न्या देश बनने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सोमालीलैंड ने 1991 में सोमालिया से स्वतंत्रता की घोषणा की थी लेकिन उसे अब तक किसी देश से मान्यता नहीं मिली है।
ताइवान को बहुत सारे देश मान्यता दे चुके हैं परन्तु चीन के विरोध के कारण उसे सयुंक्त राष्ट्र से मान्यता नहीं मिली है क्यूंकि वो पहले चीनी गणराज्य का हिस्सा था। ताइवान इस समय एक अलग इकाई के रूप में जाना जाता है।
जब इजराइल बना था तो तो स्वतंत्रता की घोषणा के 11 मिनट के अंदर ही उसे सयुंक्त राज्य अमेरिका ने मान्यता दे दी थी। पाकिस्तान ने इजराइल को अभी भी मान्यता नहीं दी है उसके पासपोर्ट पर साफ़ लिखा होता है “यह सभी देशों के लिए वैध है, सिवाय इजराइल के“
पाकिस्तान बना था तो भारत ने भी उसे मान्यता दी थी। बांग्लादेश 26 मार्च 1971 में बना था तो पहले भूटान ने 6 दिसंबर 1971 तथा उसी दिन भारत ने भी उसे मान्यता दी थी।
भारत को एक स्वतंत्र देश के रूप में सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता दी थी। इसलिए बलूचिस्तान ने भी भारत और सयुंक्त राष्ट्र से उसे देश के रूप में मान्यता देने का आग्रह किया है। साथ ही बलूचिस्तान ने भारत में अपना दूतावास खोलने की भी प्रार्थना की है।
नए देश को सयुंक्त राष्ट्र की मान्यता मिलने के फायदे
- UN मान्यता से किसी नए देश को अंतरराष्ट्रीय कानून की सुरक्षा मिलती है, जो किसी भी अन्य देश को उसे मान्यता न देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
- नए देश को विश्व बैंक और आईएमएफ से ऋण और वित्तीय सहायता मिल सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय वातावरण बनता है।
- संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से नए देश को अन्य सदस्य देशों के साथ सहयोग करने का मौका मिलता है, जिससे शांति, सुरक्षा, विकास, और मानव अधिकार जैसे मुद्दे हल किये जा सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से नए देश की अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्थिति मजबूत होती है जिससे वह अन्य देशों के साथ संबंधों को बेहतर बना सकता है और अपनी बात रख सकता है।
- संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से नए देश को अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी मिलती है जो किसी भी अन्य देश को उसके खिलाफ हमला करने से रोकता है।
- संयुक्त राष्ट्र की मान्यता से नए देश को शांति और स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है जिससे वह विकास और समृद्धि के लिए एक स्थिर वातावरण बना सकता है।
मोंटाविडियो कन्वेंशन (Montevideo Convention) को माना जाता है न्या देश बनने का आधार
वर्तमान में न्या राष्ट्र बनने का आधार 1933 के “राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों पर कन्वेंशन” (Convention on Rights and Duties of States) को माना जाता है , जिसे मोंटाविडियो कन्वेंशन (Montevideo Convention) के नाम से भी जाना जाता है।
मोंटेवीडियो कन्वेंशन, 26 दिसंबर 1933 को मोंटेवीडियो, उरुग्वे में हुआ था। यह कन्वेंशन अमेरिकी राज्यों के सातवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान हुआ था।
मोंटेवीडियो कन्वेंशन, औपनिवेशिक देशों के लिए औपनिवेशिक स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसके कारण औपनिवेशिक देशों के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त करना आसान हो गया।
इसका मुख्य उद्देश्य एक राज्य की परिभाषा स्थापित करना और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत राज्यों के अधिकारों और कर्तव्यों को परिभाषित करना था। । इस कन्वेंशन में बताया गया है कि किसी राष्ट्र के होने के लिए कम से कम 4 बातें अवश्य हों
- एक परिभाषित सीमा
- स्थाई जनसंख्या
- एक सरकार
- अन्य राष्ट्रों से सम्बन्ध बनाने की उसकी क्षमता
ये कन्वेक्शन ये भी बताता है कि न तो किसी राजनीतिक इकाई को राज्य बनने के लिए मान्यता की आवश्यकता होती है, न ही किसी राज्य पर किसी अन्य को मान्यता देने का दायित्व होता है। साथ ही, न तो मान्यता किसी राज्य को बनाने के लिए पर्याप्त है, न ही इसकी अनुपस्थिति इसे समाप्त करती है।
संक्षेपण
सक्षेप में एक न्या देश बनना एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। अगर कोई देश किसी अन्य देश का गुलाम है तो वो उसे गुलामी से आजाद करके एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे सकता है।
परन्तु कोई क्षेत्र किसी देश से अलग हो रहा है तो ये प्रक्रिया थोड़ी जटिल हो जाती है। और न्या देश बनने की शर्तों को निश्चित रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता।
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