सम्पूर्ण भारतवर्ष में चाहे वो कोई भी धर्म हो, कोई भी जाति हो या कोई भी सम्प्रदाय हो सब लोग एक उपनाम का उपयोग करते हैं। यहाँ तक कि एक ही जाति में कई कई उपनाम हो सकते हैं क्यूंकि उपनाम गोत्र पर भी बहुत अधिक निर्भर करना है।
परन्तु सिख पंत एक ऐसा धर्म है जिसमे मर्द के नाम के साथ सिंह और औरत के नाम के साथ केवल कौर का ही इस्तेमाल होता है।
पुरे के पुरे सिख पंत की पहचान केवल सिंह और कौर से होती है। सिख धर्म में इसके अलावा कोई भी नाम उपयोग नहीं होता।
परन्तु ऐसा शुरू से नहीं था क्यूंकि सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी एक हिन्दू थे और उनके नाम के साथ सिंह नहीं लगता था। उनकी पत्नी का नाम माता सुखमणि था और उनके नाम के साथ भी कौर नहीं लगता था।
तथा उनके बेटे बाबा लखमी दास और बाबा श्री चंद थे, उनके नाम के साथ भी सिंह नहीं लगता था।
पहले 9 गुरुओं के नाम के साथ सिंह उपनाम का उपयोग नहीं किया जाता था।
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सँख्या | नाम | जन्मदिन | मृत्यु | जन्मस्थान | पिता का नाम | माता का नाम | पत्नी का नाम | बच्चों के नाम |
1 | गुरु नानक देव जी | 15 अप्रैल, 1469 | 1539 | तलवंडी | कल्यानचंद या मेहता कालू | तृप्ता | नानक सुलक्खनी | श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द |
2 | गुरु अंगद देव जी या लहिणा जी | 31 मार्च, 1504 | 1552 | फिरोजपुर, पंजाब | फेरू जी | रामो जी | खीवी | दासू व दातू, अमरो व अनोखी |
3 | अमर दास | 23 मई, 1479 | 1 सितंबर, 1574 | अमृतसर | तेजभान | लखमी | मंसा देवी | मोहरी, मोहन, दानी और भानी |
4 | राम दास (जेठा जी) | 24 सितम्बर, 1534 | 1528 | चूना मण्डी, लाहौर | बाबा हरि दास | दया कौर(अनूप कौर) | माता भानी | पृथी चन्द, महादेव एवं गुरु अर्जन देव जी |
5 | गुरु अर्जन देव जी | 1563 | 30 मई 1606 | गोइदवाल,पंजाब | गुरु राम दास देव | माता भानी | माता राम देई और माता गंगा | हरगोविंद सिंह |
6 | हरगोविंद जी | 19 जून 1595 | 1644 | बडाली ,अमृतसर, पंजाब | गुरु अर्जन देव जी | माता गंगा | दामोदरी, नानकी और मरवाही | बाबा गुरदिता, बाबा सूरजमल, बाबा अनि राय, बाबा अटल राय,गुरु तेग बहादुर और बीबी बीरो |
7 | गुरु हरराय जी, गुरु हरगोबिंद जी के पोते | 16 जनवरी 1630 | 6 अक्टूबर, 1661 | कीरतपुर साहिब, रूपनगर, पंजाब | बाबा गुरदित्ता जी | माता निहाल कौर जी | किशन कौर (माता सुलखनी) | राम राय और हरकिशन |
8 | गुरु हरकिशन साहिब जी | 17 जुलाई, 1656 | 09 अप्रैल 1664 | कीरतपुर साहिब, रूपनगर, पंजाब | गुरु हरराय जी | किशन कौर (माता सुलखनी) | ||
9 | गुरु तेग बहादुर जी | 18 अप्रैल, 1621 | 24 नवंवर, 1675 | अमृतसर | गुरु हरगोबिंद सिंह | नानकी जी | माता गुजरी | गुरु गोबिन्द सिंह जी |
10 | गोविंदराय ,गुरु गोबिन्द सिंह जी | 22 दिसम्बर 1666 | 7 अक्टूबर 1708 | पटना साहिब(बिहार) | गुरु तेग बहादुर सिंह जी | गुजरी जी | जीतो जी, सुंदरी जी, साहिब देवन जी | जुझार सिंह, जोरावर सिंह ,फ़तेह सिंह, अजित सिंह |
इस प्रकार हम देखते हैं कि सिख गुरुओं में पहले किसी के भी नाम के साथ सिंह उपनाम का उपयोग नहीं होता था।
यहाँ ये भी ध्यान देने योग्य बात है की गुरु अर्जुन देव जी से पहले किसी भी सिख गुरु ने अपने बच्चों को अपनी पदवी नहीं दी थी।
सिखों के उपनाम के रूप में सिंह और कौर लगाने के शुरुआत कब हुई आइये समझते हैं।
मुगलों की धर्मान्धता
औरंगजेब एक धर्मांध सम्राट् था। उसने अकबर की तरह सहिष्णुता तथा धर्मनिरपेक्षता की नीति को छोड़कर हिंदुओं और सिखों के प्रति कठोर नीति अपनाई ।
सिख पंत की स्थापना गुरु नानक जी ने 15वीं शताब्दी में रखी थी । पहले पांच गुरुओं (गुरु नानक, गुरु अंगद देव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुन देव) के अधीन सिख मत बिलकुल शांतिप्रिय वर्ग के रूप में कार्य करता रहा।
जहांगीर के द्वारा गुरु अर्जुन देव जी की निर्मम हत्या
जहांगीर के काल में 1606 ई. में गुरु अर्जुन देव को अनेक यातनाएं देने के बाद उनकी हत्या कर दी गई। मसलन उनको गर्म गर्म तवे पर बैठाया गया और ऊपर से गर्म गर्म रेत उन पर डाली गई।
तब अगले गुरु हरगोविंद ने सिखों को सैनिक शिक्षा देनी शुरू कर दी। उन्होंने अमृतसर में भाई गुरदास और बाबा बुड्ढा की सहायता से ‘अकाल तख्त’ नाम से एक भवन का निर्माण करवाया।
जहांगीर को जब इस बात की सुचना मिली तो उसने गुरु हरगोविंद को ग्वालियर के किले में कैद कर लिया । हालाँकि अपने अंतिम समय में जहांगीर ने उनको छोड़ दिया था ।
शाहजहाँ के शासनकाल में मुग़ल सिख संघर्ष
शाहजहां के शासनकाल में भी मुगलों और सिखों के बीच संघर्ष हुआ था, परन्तु वो संघर्ष धार्मिक से अधिक राजनैतिक था।
औरंगजेब के शासनकाल में मुग़ल सिख संघर्ष
औरंगजेब के शासनकाल के दौरान सिख धर्म के अनुयायियों में काफी वृद्धि हो चुकी थी। सिख गुरुओं ने ‘पीरी और मीरी’, को एक साथ धारण कर लिया था।
अर्थात वो एक साथ सैनिक योग्य योद्धा और गुरु दोनों ही थे। सम्राट् बनने के बाद औरंगजेब ने गुरु हरराय को दिल्ली दरबार में बुलाया। गुरु हरराय जी ने अपने बड़े बेटे रामराय को दिल्ली दरबार में भेजा ।
रामराय ने औरंगजेब को अपने पिता की निर्दोषता का विश्वास दिलाने की कोशिश की । 1661 ई. में गुरु हरराय की मृत्यु हो गई। उनके पांच वर्षीय पुत्र हरकिशन जी सिखों के आठवें गुरु बने।
गुरु हरकिशन को भी सम्राट् औरंगजेब ने दिल्ली बुलाया। वह गांव रायसीना में राजा जयसिंह के घर जाकर ठहरे, जहां आज वर्तमान गुरुद्वारा बंगला साहिब है।
1664 ई. में चेचक की बीमारी के कारण गुरु हरकिशन की मृत्यु हो गई। उस समय वो मात्र 8 बर्ष के थे। मृत्यु से पहले उन्होंने गुरु तेगबहादुर को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
इसलिए 1664 ई. में तेगबहादुर जी सिखों के नौवें गुरु बने। गुरु तेगबहादुर ने बिलासपुर के राजा के राज्य-क्षेत्र में मखोवाल के निकट एक गांव को अपना केंद्र बनाया। यह स्थान आज ‘आनंदपुर’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
पटना में 22 दिसंबर, 1666 ई. में उनके पुत्र गोविंदराय-गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ, जो सिखों के अंतिम (दसवें) गुरु बने। 1675 ई. में कश्मीरी ब्राह्मणों का एक जत्था गुरु तेगबहादुर से आकर मिला।
उन्होंने गुरु को घाटी में हिंदुओं पर किए जाने वाले अत्याचारों के बारे में बताया। गुरु ने इन अत्याचारों का विरोध किया। औरंगजेब गुरु की दिन-प्रतिदिन बढ़ती हुई लोकप्रियता से पहले ही परेशान था।
परिणामस्वरूप गुरु को बंदी बनाकर दिल्ली बुलाया गया। औरंगजेब ने उन्हें चमत्कार दिखाने अथवा इस्लाम स्वीकार कर लेने को कहा, जिसे गुरु ने स्वीकार नहीं किया।
परिणामस्वरूप 11 नवंबर, 1675 ई. को चांदनी चौक में, जहां आजकल सीसगंज गुरुद्वारा है, गुरु को कत्ल कर दिया गया। औरंगजेब के इस क्रूर कार्य के परिणामस्वरूप सिखों में क्रोध की प्रबल लहर दौड़ गई।
गुरु गोबिंद राय सिखों के दसवें गुरु बने
गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु बने। गोविंद सिंह का व्यक्तित्व अंत्यंत प्रभावशाली था। वह संस्कृत और फारसी के महान विद्वान थे तथा काव्य और युद्धकला के भी महारथी थे।
बिलासपुर के शासक भीमचंद, जिसके सिख गुरु अतिथि बने थे, ने पहाड़ों के मुगल फौजदारों के विरुद्ध पहाड़ी प्रमुखों की तरफ से गोविंद सिंह से सहायता मांगी।
पहाड़ी राजाओं ने मुगलों को कर देने से मना कर दिया था, परिणामस्वरूप उन्हें सबक सिखाने के लिए एक शाही सेना भेजी गई। पहाड़ी राजाओं और गुरु की संयुक्त सेनाओं ने मुगलों के साथ युद्ध लड़ा।
ये युद्ध नादौन में लड़ा गया। और इसमें मुगलों की पराजय हुई । किंतु इसके कुछ समय बाद ही भीमचंद ने मुगल प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया और नियमित रूप से कर भुगतान करने का वचन दिया।
इस समय तक गुरु गोविंद सिंह के अनुयायियों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई थी। औरंगजेब ने दक्खन से आनंदपुर में किसी प्रकार की भीड़ जमा न होने देने के निर्देश भेजे।
आनंदपुर पर आक्रमण करने के लिए एक मुगल सेना भेजी गई। किंतु सिखों ने उसे पीछे हटने के लिए विवश कर दिया। एक दूसरी सेना को गुरु तथा पहाड़ी प्रमुखों की संयुक्त सेना ने पराजित कर दिया। तीसरी सेना को भी असफलता का सामना करना पड़ा।
सभी सिख अपने उपनाम के रूप में सिंह का उपयोग क्यों करते हैं
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में वैशाखी के दिन आनंदपुर में सिखों की सभा बुलाई जिसमे सारे पंजाब प्रान्त के समस्त लोगो को बुलाया गया , इसमें लगभग 80000 से 85000 लोगो ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई ।
यहाँ पर पहली बार 5 प्यारों का चुनाव हुआ और उन्हें दीक्षा दी गई। इसी दिन उन्होंने ‘खालसा’ पंत की स्थापना की। गुरु ने एक नया दीक्षा “पाहुल संस्कार प्रारंभ किया। खालसा का सदस्य बनने वाले सिखों को ‘पांच ककार’—केश, कृपाण, कच्छा, कंघी और कड़ा धारण करने थे।
उन्हें अपने नाम के साथ ‘सिंह’ लगाना था। गुरु साहब ने स्वयं भी अपना नाम गोविंद राय के स्थान पर ‘गोविंद सिंह’ रख लिया।
क्या होती है पाहुल प्रथा
पाहुल प्रथा में, एक लोहे के बर्तन में पानी लेकर उसे खंडे(तलवार) से मिलाकर पाहुल तैयार की जाती है फिर 5 तरह की गुरवाणी का पाठ किया जाता है
इसके बाद जो भी सिख धर्म अपनाना चाहता है उसे पाहूल दी जाती है और इसके साथ ही पुरूषों के नाम के साथ सिंह तथा लड़कियों के नाम के साथ कौर लगा दिया जाता है।
सिखों ने अपने नाम के साथ सिंह लगाना कब और क्यों शुरू किया ?
इस तरह हम देखते हैं की सिंह उपनाम की शुरुआत तब हुई जब 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंत की नीव रखी थी। उन्होंने अपना नाम गोविंद राय से बदलकर ‘गोविंद सिंह’ रख लिया।
सिंह नाम शेर का प्रतीक है और इतिहासकार बताते हैं कि अमृत छकने वाले तथा खालसा पंत के हर व्यक्ति को सिंह का उपनाम दिया गया था और जात-पात के सभी मतभेदों को मिटा दिया गया था।
कौर का वास्तविक अर्थ होता है राजकुमारी और महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर दर्जा देने के इरादे से महिलाओं को कौर का उपनाम दिया गया था।
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