हिन्दू धर्म में यदि विवाह, किसी दो अलग अलग जातियों के लड़का लड़की के बीच में होता है या लड़का-लड़की भाग के शादी कर लेते हैं और बाद में उनको परिवार द्वारा अपना लिया जाता है तो वर पक्ष की तरफ से एक स्वागत समारोह आयोजित किया जाता है जिसे कुल में मिलाना कहते हैं।
इसमें सारे रिश्तेदारों, सगे संबधियों, जानकारों और आस- पड़ोस के लोगों को खाना खिलाया जाता है और विधि पूर्वक अपने देवी देवताओं की, अपने कुल के लोगों के साथ पूजा की जाती है।
वास्तव में ये प्रथा समाज को ये बताने के लिए होती है कि जो न्या सदस्य उनके परिवार में शामिल हुआ है उसको सारा समाज पहचान जाये और देवी देवता जिस तरह से अपना आशीर्वाद घर के बाकि सदस्यों को देते हैं उस नए सदस्य को भी अपना आशीर्वाद दें और उसकी मनोकामना पूरी करें।
वैसे तो अगर घर में सामान्य शादी हो तो भी ये प्रथाएं जरूरी होती है और बड़े चाव के साथ निभाई जाती हैं परन्तु अगर शादी किसी अलग जाति, धर्म या सम्प्रदाय में होती है तो इन प्रथाओं का महत्व बढ़ जाता है और अलग कुल, जाति, सम्प्रदाय के लोगों को इस तरह से अपने समुदाय में शामिल किया जाता है।
इसी तरह की प्रथाएं अलग अलग समाजों में अलग अलग नामो से जानी जाती हैं और अलग-अलग तरीकों से निभाई जाती हैं। ईसाई धर्म इसी तरह की प्रथा को बपतिस्मा, डेरा समुदाय में नाम-दान तथा सिख समाज में पाहुल प्रथा या अमृत छकना कहा जाता है।
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Toggleकब शुरू हुई थी पाहुल प्रथा या अमृत छकने की शुरुआत । खालसा साजना दिवस
पाहुल प्रथा की शुरुआत आधिकारिक तौर पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने अप्रैल 1699 में वैसाखी वाले दिन की थी। हालाँकि बंसवालीनमा किताब जो केसर सिंह छिब्बर ने लिखी है उनके अनुसार ये प्रथा सिख समुदाय में बहुत पहले से एक अलग रूप में विद्यमान थी।
केसर सिंह छिब्बर के अनुसार 1699 से पहले, अमृत पाहुल की जगह चरण पाहुल की प्रथा थी। जो भी व्यक्ति सिख धर्म अपनाना चाहता था या कोई सिख अमृत -छकना चाहता था उसको गुरु के चरणों से छुहाकर पाहुल पिलाई जाती थी और उसे चरण पाहुल के नाम से जाना जाता था।
अप्रैल 1699 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने कैसे पाहुल प्रथा की शुरुआत की पढ़ने के लिए क्लिक करें
अप्रैल 1699 को वैसाखी वाले दिन गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पाहुल प्रथा की शुरुआत की गई जिसे खालसा साजना दिवस के नाम से भी जाना जाता है इसलिए वैसाखी का दिन सिख समुदाय में एक विशेष महत्व रखता है।
क्या होती है पाहुल प्रथा
पाहुल प्रथा में पंज (पाँच) प्यारों द्वारा एक सर्बलोहे के बाटे (कड़ाहे) में पानी डालकर उसमे बतासे घोले जाते हैं और सर्बलोहे के खंडे (दो धारी तलबार का एक रूप) को पानी में डालकर उसको हिलाया जाता है। खंडे और बाटे को एक चौंकड़ी पर सजाया जाता है।
नोट :- सर्बलोहा, लोहे का ही एक रूप है इसको बनाने वाले बताते हैं कि इस लोहे में कोई मिलाबट नहीं होती और ये भट्टी में अच्छी तरह पका कर तैयार किया जाता है और इन सबके अलावा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा सबसे पहले इस लोहे को सर्बलोहा कह कर पुकारा गया था।
पाहुल बनाते समय पाँच तरह की बाणियों का पाठ होता है वो बाणियाँ है
- जपजी साहिब
- जाप साहिब
- त्व प्रसाद सवैये
- चौपाई साहिब
- आनंद साहिब
पंज (पाँचो) प्यारे सर्बलोहे के बाटे के चारों ओर बैठ जाते हैं। पाँचो प्यारों में से पहला , बाटे को बाएं हाथ से पकड़ेगा और दाएं हाथ से खंडे को हिलाता जायेगा और साथ में जपजी साहिब का पाठ करता जायेगा। बाकि चारों प्यारे अपने दोनों हाथों से बाटे को पकड़ेंगे।
फिर जब दूसरे प्यारे की बारी आयेगी तो दूसरा प्यारा, बाएं हाथ से बाटे को पकड़ेगा और दाएं हाथ से खंडे को हिलाता जायेगा और साथ में दूसरी बाणी, जाप साहिब का पाठ करता जायेगा और बाकि प्यारे दोनों हाथों से बाटे को पकड़ेंगे।
बाकि बचे तीनो प्यारे भी त्व प्रसाद सवैये, चौपाई साहिब और आनंद साहिब का पाठ करेंगे और इसी क्रम को दोहराएंगे।
इस प्रकार पाँचो बाणियों का पाठ करने के बाद अरदास की जाती है और गुरु ग्रन्थ साहिब से अमृत छकाने (अमृत पान) की आज्ञा ली जाती है। फिर पांचो प्यारे बाटा लेकर सारी संगत को अमृत छकाते हैं।
कैसे दी जाती है अमृत पाहुल (अमृत छकना)
पाँच प्यारों में से एक, अमृत छकने वाले के हाथों में अमृत (पाहुल) डालता है और उसे पिलाता है साथ में कहता है वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह। अमृत पीने वाला भी अमृत पीकर इसी लाइन को दोहराता है।
ये प्रक्रिया पाँच बार, पाँच प्यारों द्वारा दोहराई जाती है।
फिर पाँचों प्यारों में से एक प्यारा, अमृत छकने वाले की आँखों में अमृत छिड़कता है और कहता है वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह। अमृत पीने वाला भी इसी लाइन को दोहराता है।
ये प्रक्रिया भी पाँच बार, पाँचों प्यारों द्वारा दोहराई जाती है।
फिर पाँचों प्यारों में से एक प्यारा, अमृत छकने वाले के जूड़े (केसों) में अमृत डालता है। सिर के ऊपर की पगड़ी का हल्का सा हिस्सा खोलकर उसमे अमृत डाला जाता है। और वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह कहा जाता है। अमृत पीने वाला भी ऐसे ही कहता है।
ये प्रक्रिया भी पाँच बार, पाँचों प्यारों द्वारा दोहराई जाती है।
अब इस प्रक्रिया में जब अमृत पिलाया जा रहा होता है, आँखों में डाला जा रहा होता है या बालों में डाला जा रहा होता है तो अमृत रिसते-रिसते धीरे धीरे नीचे बाटे में इक्कठा हो रहा होता है (जैसे जब हम हाथों से पानी पीते हैं और पानी नीचे गिरता है ) ।
तब पाँच प्यारे सभी अमृत छकने वालों को एक लाइन में खड़ा कर लेते हैं और उस इक्क्ठे हुए अमृत को सब दीक्षा लेने वालों को पिला देते हैं। बाटे को एक तरफ से पकड़कर, दूसरी तरफ से मुँह लगाकर बारी बारी सभी अमृत-पाहुल पीते हैं।
ये प्रथा इस बात को पक्का करने के लिए होती है कि अब सब सिंह एक समान हो गए हैं । न कोई ऊँचा रहा न कोई नीचा। कोई किसी भी धर्म का हो किसी भी जाति या किसी भी समुदाय का हो वो एक ही जगह से मुँह लगाकर अमृत पीता है।
इसके प्रकार अमृत पान की प्रक्रिया सम्पन्न होती है। उसके साथ ही अमृत पान करने वाले व्यक्ति को उपनाम दिए जाते हैं।
सिख धर्म अपनाने वाला अगर पुरुष है तो उसके नाम के साथ सिंह और अगर कोई स्त्री है तो उसके नाम के साथ कौर लगा दिया जाता है। उनकी रजिस्टर में एंट्री होती है और बकायदा उनको एक पहचान पत्र उपलब्ध करवाया जाता है।
इसके साथ ही सिख धर्म के 5 कंकार( केश, कंघा, कड़ा, कृपाण और कछेरा ) धारण करवाए जाते हैं। सिख धर्म की मर्यादाएं बताई जाती हैं।
क्या हैं सिख पंथ की मर्यादाएं
अमृत पान करवाने से पहले सिख धर्म की मर्यादाएं बताई जाती हैं वो इस प्रकार हैं।
आपके धार्मिक पिता गुरु गोबिंद सिंह जी हैं और धार्मिक माता साहिब कौर जी हैं। आपका जन्म केसगढ़ साहिब में हुआ है और आप आनंदपुर साहिब के निबासी हैं। एक पिता के पुत्र होने के नाते आप सभी के बीच आपसी भाईचारा है।
आप अपने पूर्व कुल, कर्म, धर्म, जाति, जन्म, देश का त्याग करके पूर्ण खालसा बन गए हैं। एक अकाल पुरख को छोड़कर किसी भी देवता, पीर या पैगम्बर की पूजा नहीं करनी है। दस गुरुओं और उनकी बाणी के अलावा किसी को भी अपना मुक्ति दाता न समझें।
आपको गुरुमुखी आनी जरुरी हैं, अगर नहीं आती है तो सीखें
तम्बाकू का सेवन न करें
माँस- मदिरा का सेवन नहीं करना है
पराई स्त्री या पराये पुरुष का व्यभिचार न करें
गुरु ग्रन्थ साहिब और दसम ग्रन्थ की बाणियाँ का पाठ
रहत मर्यादा के अनुसार एक विशेष ड्रेस कोड में रहना होता है।
नोट :- गुरु ग्रन्थ साहिब जी (आदि ग्रन्थ) के साथ-साथ दसम ग्रन्थ का भी सिख समाज में काफी सत्कार किया जाता है। दसम ग्रन्थ गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखी रचनाओं का संग्रह है ये रचनायें गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने जीवन काल में लिखी थीं। और उनकी मृत्यु के पश्चात इन रचनाओं को संकलित किया गया था।)
रहत मर्यादा पुस्तक में सिखों के लिए और भी बहुत सारी अच्छी और शानदार मर्यादायों का उल्लेख है जिनमे कमजोर और दुखियारों की सेवा का भी वर्णन मिलता है।
पंज प्यारों का चुनाव कैसे किया जाता है।
जहाँ पर तखत हैं वहाँ पर 5 प्यारे पक्के तौर पर होते हैं और वहाँ पर साप्ताहिक तौर पर अमृत पान करवाया जाता है जैसे आनंदपुर साहिब में बुधबार और रविवार को अमृत पान करवाया जाता है। अमृतसर में सप्ताह में एक बार अमृत पान करवाया जाता है। बाकि कई अन्य गुरुद्वारों में महीने में एक बार अमृत पान करवाया जाता है।
परन्तु किसी प्यारे के बाहर चले जाने, मृत्यु अथवा तनखाह लगने की स्थिति में उसके रिक्त स्थान के लिए चुनाव किया जाता है ये चुनाव , संगत (कमेटी) के सदस्यों के बीच आपसी सहमति से किया जाता है ।
नोट :- तनखाह का मतलब अगर कोई सिख धर्म की मर्यादाओं की अवहेलना करता है, समुदाय के नियमो को तोड़ता है तो उसे अकाल तखत के द्वारा सज़ा सुनाई जाती है उस सजा को तनखाह लगना कहते हैं जिसको भी एक बार तनखाह लग जाती है वो 5 प्यारों में शामिल नहीं हो सकता। ये तनखाह सिख धर्म के किसी भी लोकप्रिय व्यक्ति को अकाल तखत की तरफ से लगाई जा सकती है। अभी हाल ही में 3 दिसंबर 2024 को सिरोमणि अकाली दल के नेता सुखवीर सिंह बादल पर तनखाह लगाई गई थी।
चुने हुए लोग गुरु ग्रन्थ साहिब के सामने पांच कंकार (कंघा, कड़ा, कृपाण, कछेरा और केस) धारण करते हैं और फिर इन्ही पाँच प्यारों के द्वारा पाहुल तैयार की जाती है।
गुरु गोबिंद जी के द्वारा चुने गए पहले पंज प्यारे कौन थे पढ़ने के लिए क्लिक करें
भारत में कितने तखत हैं
भारत में कुल 5 तखत हैं जिनके नाम हैं
- अकाल तख़्त साहिब – अमृतसर
- श्री दमदमा साहिब, साबो की तलवंडी – भटिंडा
- श्री केशगढ़ साहिब – श्री आनंदपुर साहिब जी
- श्री पटना साहिब – बिहार
- श्री हुजूर साहिब – नांदेड
पाँच प्यारों में शामिल होने के लिए जरुरी गुण
कोई भी सिख जिसने अमृत छका (अमृत पान किया ) हो उसका चयन पाँच प्यारों में हो सकता है।
उसमे सेवा भाव का होना जरुरी है।
उसको गुरु ग्रन्थ साहिब, दसम ग्रन्थ और सिख धर्म का गहरा ज्ञान होना चाहिए
वो शरीर से पूरी तरह से हष्ट- पुष्ट होना चाहिए। मतलब उसके शरीर का पूरी तरह से ठीक होना आवश्यक है।
उसको जीवन में कभी तनखाह नहीं लगी होनी चाहिए।
और सबसे आवश्यक वो संगत में अपने ज्ञान और सेवा भाव को लेकर लोकप्रिय होना चाहिए क्यूंकि अंतिम चयन संगत के द्वारा ही किया जाता है।
सिख धर्म में कौन कौन दीक्षित हो सकता है
सिख धर्म में कोई भी व्यक्ति दीक्षित हो सकता है। चाहे वो किसी भी धर्म, जाति, सम्प्रदाय या लिंग का हो। परन्तु पहले उसे कुछ समय तक अपने केस रखकर ये सुनिश्चित करना होता है कि केस धारण करने से उसे कोई परेशानी तो नहीं हो रही।
और साथ में ये भी सुनिश्चित करना होता है कि वो सिख धर्म की मर्यादायों का पालन कर सकने में सक्षम है या नहीं।
फिर उसे नियमित रूप से गुरु ग्रन्थ साहिब और दसम ग्रन्थ का पाठ करना होता है और बाणियों को कंठस्थ करना होता है और साथ में ये निर्णय भी लेना होता है कि वो पूरी तरह से सिख धर्म में समर्पित होने को तयैर है।
सिख पंथ में उपनाम सिंह और कौर की शुरुआत कब हुई पढ़ने के लिए क्लिक करें