नागालैंड भारत का ही एक राज्य है। नार्थ ईस्ट का यह राज्य 7 सिस्टर में से एक है। नार्थ ईस्ट के 7 राज्य जिन्हे हम 7 सिस्टर के नाम से भी जानते हैं पहले केवल असम का ही हिस्सा थे।
इस तरह से नागालैंड भी असम का ही हिस्सा था। 1 दिसंबर 1963 में नागालैंड को एक अलग राज्य का दर्जा दे दिया गया। नागालैंड भारत का एक ऐसा राज्य है जहाँ की इंसर्जेन्सी जम्मू कश्मीर से भी बड़ी है।
यहाँ पर खोनोमा गॉंव (“जो कि नागालैंड के मोकोकचुंग जिले में स्थित है”) में एक मेमोरियल पर बड़े बड़े अक्षरों में अंकित हैं कि
“Nagas are not Indians; Their territory is not a part of the indian union. We shall uphold and defend this unique truth at all costs and always.”
KHRISANISA SEYEI– first president – federal government of nagaland
अक्टूबर 2019 में नेशनल सोशल कौंसिल ऑफ़ नागालैंड – Isak Muivah(NSCN-IM) ने मोदी सरकार के सामने 3 मांगे रखीं।
- नागालैंड की संस्कृति की रक्षा की जाये।
- नागालैंड आदिवासी समुदाय को राजनीति में आने दिया जाये।
- नागालैंड का झंडा और उसका संबिधान भारत से अलग हो।
1967 में नागालैंड ने अंग्रेजी को अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में अपना लिया था। यहाँ की लगभग 88% आबादी ईसाई धर्म को मानती है। परन्तु भारत के ही एक राज्य में इस तरह के आंकड़े क्यूँ हैं | नागालैंड में ईसाइयों की अधिकता का क्या कारण हैं ये सब जानने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे चलना होगा।
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Toggleनार्थ ईस्ट 7 सिस्टर का समूह
आज हम जिस नार्थ ईस्ट को 7 सिस्टर के नाम से जानते हैं वो पुरे का पूरा असम ही था।
7 सिस्टर इस प्रकार हैं
- अरुणाचल प्रदेश
- असम
- मेघालय
- मणिपुर
- मिजोरम
- नागालैंड
- त्रिपुरा
अंग्रेजो का नागालैंड पर कब्जा |नागालैंड की राजभाषा इंग्लिश क्यों है
बात 18बी सदी की है लगभग 1824 ईस्वी की। उस समय अंग्रेज भारत के मैदानी इलाकों को जीत चुके थे। और वो नार्थ ईस्ट के पहाड़ियों की तरफ बढ़ रहे थे।
उस समय नागालैंड को नागा हिल्स के नाम से जाना जाता था। नागा हिल्स एक पहाड़ है जिसकी ऊंचाई 3825 मीटर है। ये भारत और म्यांमार की सीमा पर स्थित है।
उस समय नागा और उसके आस पास की अन्य जनजातियां अपनी सरकार खुद चलती थीं। ये सरकार गॉंव के स्तर की होती थी।
अंग्रेजो के लिए इन जनजातियों पर अधिकार इसलिए जरुरी था ताकि वे चीन और एशिया के दूसरे देशों के साथ व्यपार कर सकें। एशिया में फ्रेंच भी आ चुके थे इसलिए उनके साथ व्यापार करने के लिए भी इन क्षेत्रों को जीतना जरुरी था।
बर्मा ने असम पर कब्जा कर रखा था और लगातार नागा हिल्स पर कब्जे की कोशिश कर रहा था। परिणामस्वरूप इन परिस्थियों ने पहले आंग्ल बर्मी युद्ध को जन्म दिया। यह युद्ध 5 मार्च 1824 से 24 फरबरी 1826 तक चला।
इस युद्ध में बर्मा की हार हुई और बर्मा और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच एक संधि हुई जिसे याण्डबू की संधि के नाम से भी जाना जाता है।
इस समझौते के अंतर्गत बर्मा ने असम, कछार और जयंतिया पर अपने दावे के त्याग किया और अराकान , मेरगुई और तेनासरीम को अंग्रेजो को सौंप दिया।
परन्तु अंग्रेज इससे भी खुश नहीं थे वो नागा हिल्स को पूरी तरह से जीतना चाहते थे। ताकि पहाड़ो पर भी उनका कब्ज़ा हो सके। नागा हिल्स के आस पास जो जनजातियाँ थी उनमे अक्सर लड़ाइयां होती रहती थीं।
क्यूंकि वो अपनी संस्कृति को एक दूसरे से बड़ा दिखाने में लगी रहती थीं। अंग्रेजो को ये समझ में आ चूका था कि अगर इसी प्रकार से इन जनजातियों के बीच में लड़ाइयों होती रहीं तो अंग्रेजो के लिए इन जनजातिओं को संभालना आसान नहीं होगा।
दूसरी तरफ अंग्रेज आंग्ल बर्मी युद्ध तो जीत चुके थे परन्तु ये जनजातियां अंग्रेजो को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर पाई थी। अंग्रेज व्यापार द्वारा प्राप्त धन को जब इंग्लैंड भेजते थे तो इन जनजातियों द्वारा उस धन को रास्ते में ही लूट लिया जाता था। इस तरह से अंग्रेज बहुत परेशान हो चुके थे।
इस प्रकार अंग्रेजो ने सब जनजातियों को एक धागे में पिरोने की योजना बनाई। अंग्रेजो का ये भी विचार था कि अगर इन जनजातियों को ईसाई धर्म में परवर्तित कर दिया जाये तो ये हम ईसाईयों पर आक्रमण भी नही करेंगे।
इस प्रकार अंग्रेजो ने इन जनजातियों के बीच ईसाइयत के महत्ब का प्रचार करना शुरू कर दिया। उनको ईसाइयत के फायदे बताने शुरू कर दिए। अंग्रेजो के गवर्नर जरनल ने यहाँ के लोगो को शिक्षा, स्वास्थ्य,इकॉनमी और धर्म इन सबको ईसाइयत से जोड़कर इसके फायदे बताये।
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उनको ये बताया गया कि अगर आप लोग ईसाइयत को अपनाते हैं तो आपके बच्चे अच्छे स्कूलों में पड़ेंगे और शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनको नौकरियों में भी ऊँचे पदों पर बैठाया जायेगा।
व्यापार के भी नए नए रस्ते खुलेंगे परन्तु इन सबके लिए उनको ईसाई धर्म अपनाना पड़ेगा। कहा जाता है पहले स्कूलों में 10 से 15 बच्चे हुआ करते थे।
परन्तु धीरे धीरे माता पिता ने शिक्षा के महत्व को समझा और ईसाई धर्म अपना कर बच्चों को अंग्रेजो के स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया। और इस तरह से ये बच्चे अंग्रेजी माध्यम से शिक्षित हुए।
नागालैंड में ईसाई धर्म के बिकास में प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका | नागालैंड में ईसाइयों की अधिकता का क्या कारण है
अंग्रेजी शासन में बर्मा और नार्थ ईस्ट आराम से रह रहे थे। तब जून 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। इसमें फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान, जर्मनी, तुर्की , अफ्रीका, एशिया लगभग सभी देशो ने भाग लिया।
नागालैंड की पहाड़ियां और जनजातियाँ भी इस युद्ध के प्रभाव से नहीं बच सकीं। ईस्ट इंडिया कंपनी उस समय फ्रांस के साथ लड़ाई लड़ रही थी।
बर्मा के गवर्नर जरनल उस समय सर स्पेंसर हरकोर्ट बटलर थे। सर स्पेंसर हरकोर्ट बटलर ने प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस से लड़ाई करने के लिए लगभग 2000 नागा सैनिको को फ्रांस भेजा।
ये सैनिक जो द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने गए थे जब वापस नागालैंड पहुंचे तो इन्होने यहाँ ईसाई धर्म का प्रचार शुरू कर दिया। इन सैनिको ने फ्रांस में एक समान संस्कृति, एक जैसी भाषा , एक जैसा पहनावा और एक जैसा खान पान देखा।
इन्होने यहाँ पर आकर लोगो को बताया कि कैसे फ्रांस में एक समान परम्परा को देखकर सीमाएं तय की जाती हैं। और उसी से एक राष्ट्र और एक देश तय होता है। और इन्होने अपने आपको भारतीय सवतंत्रता संग्राम से अलग कर लिया। इनके मन में अपने लिए एक अलग राष्ट्र की भावना घर कर गई।
1918 में नागा सैनिकों ने अलग अलग जनजातियों के मिलकर नागा क्लब की शुरुआत की। और ईसाइयत ने इनको आपस में जोड़ने का काम किया। इस तरह से नागा क्लब के बनने में ईसाइयत और ब्रिटिश सरकार का महत्वपूर्ण योगदान है।
बहुत से भारतीय क्रांतिकारियों ने नागा जनजाति को सवतंत्रता संग्राम से जोड़ने की बहुत कोशिश की जिनमे से महात्मा गाँधी भी एक थे परन्तु नागा जनजाति के लोग तयैर नहीं हुए और 2 फरबरी 1946 को नागा क्लब आगे चलकर नागा नेशनल कौंसिल में बदल गया। जो नागा हिल्स का पहला राजनीतिक दल था।
नागालैंड की राजधानी क्या है ?
कोहिमा।
नागालैंड में कुल कितने जिले हैं ?
नागालैंड में कुल 16 जिले हैं। जिनके नाम हैं :- चुमौकेदिमा, किफिरे, कोहिमा, मोकोकचुंग, मोन, न्यूलैंड,लोंगलेंग, पेरेन, फेक, शामतोर, तुएनसांग, त्सेमिन्यु, नोकलाक,दीमापुर, वोखा और जुन्हेबोटो।
नागालैंड का मुख्य भोजन क्या है ?
चावल
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