भारत में मनमोहन देसाई के निर्देशन में साल 1977 में एक फिल्म बनी थी जिसका नाम था परवरिश। ये फिल्म इस बात को केंद्र में रखकर बनाई गई थी कि किस तरह से अमित (अमिताभ बच्चन) एक डाकू “मंगल सिंह” का बेटा होने के वावजूद एक ईमानदार पुलिस वाला बन जाता है क्यूंकि उसकी परवरिश एक पुलिस वाले शमशेर सिंह (शम्मी कपूर) के घर में हुई थी।
दूसरी ओर शमशेर सिंह का अपना बेटा किशन (विनोद खन्ना) ये समझता है कि वो मंगल सिंह (अमजद खान) की संतान है और वो एक डाकू बन जाता है मतलब एक बच्चे के बनने और बिगड़ने में परवरिश का बहुत बड़ा हाथ होता है।
ऐसा माना जाता है कि महाभारत का युद्ध, द्रोपदी के दुर्योधन पर हंसने का नहीं बल्कि गलत परवरिश का परिणाम था। धृतराष्ट्र अंधे थे और गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी बांध रखी थी इसलिए वो अपने बच्चों की गलत हरकतों पर कभी उनको थप्पड़ नहीं मार पाए। उन्होंने वही सीखा जो शकुनि ने उन्हें सिखाया।
तो बात करते हैं कोरिया राष्ट्र की, जो पहले केवल एक एकीकृत राष्ट्र हुआ करता था परन्तु आज वो ऐसी जगह बना हुआ है जिसकी सीमा पर दुनिया के सबसे अधिक सैनिक तैनात हैं। कोरिया 1910 से लेकर 1945 तक, उस समय के सबसे क्रूर जापानी शासन के नियंत्रण में था।

जापान का आत्मसमर्पण करवाने के इरादे से कोरिया के भूगोल पर एक अस्थाई रेखा खींची गई जो कुछ समय बाद एक स्थाई रेखा में तब्दील हो गई जिससे निर्माण हुआ 2 राष्ट्रों, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया का।
जो हिस्सा जापानी आत्मसमर्पण के समय “संयुक्त राज्य अमेरिका” के नियंत्रण में रहा वो बना दक्षिण कोरिया एक लोकतंत्र और जो हिस्सा जापानी आत्मसमर्पण के समय “सोवियत संघ” के नियंत्रण में रहा वो बना उत्तर कोरिया एक तानाशाह। इनका इतिहास समझने के लिए चलिए शुरू से शुरू करते हैं।
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Toggleकोरिया का विभाजन क्यों हुआ था
सदियों तक, कोरिया एक ही सांस्कृतिक और राजनीतिक इकाई के रूप में अस्तित्व में रहा। कोरिया 1910 से लेकर 1945 तक जापानी उपनिवेशवाद के शासन में रहा।
परन्तु 15 अगस्त 1945 को जब जापान ने आधिकारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध से सरेंडर कर दिया तो जापान की इस हार ने कोरिया के लिए सवतंत्रता के द्वार खोल दिए। 15 अगस्त का दिन आज भी उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया में राष्ट्रीय मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है।
परन्तु जापान से मिली ये सवतंत्रता अल्पकालिक साबित होती है। जल्द ही, मित्र राष्ट्रों ने कोरियाई प्रायद्वीप को 38वीं समानांतर रेखा पर विभाजित करने का फैसला किया।
शुरू में यह विभाजन केवल 5 सालों का एक अस्थायी विभाजन था जिसका उद्देश्य केवल जापानी सेना के आत्मसमर्पण को सुविधाजनक बनाना था – उत्तर में सोवियत सेना और दक्षिण में अमेरिकी सेना ने जिम्मेदारी संभाली।
लेकिन अस्थायी विभाजन जल्द ही स्थायी हो गया। शीत युद्ध की बढ़ती शत्रुता ने दोनों महाशक्तियों को अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करने के लिए प्रेरित किया।

उत्तर में, सोवियत संघ ने एक साम्यवादी शासन स्थापित करने में मदद की, जबकि दक्षिण में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक पश्चिमी-शैली की सरकार का समर्थन किया।
1948 तक, दो अलग-अलग राष्ट्र अस्तित्व में आ गए। उत्तर में कोरियाई जनवादी लोकतांत्रिक गणराज्य (Democratic People’s Republic of Korea) और दक्षिण में कोरिया गणराज्य (Republic of Korea)।
दोनों ही कोरियाई प्रायद्वीप पर अपना एकमात्र वैध शासन होने का दावा करते थे। प्रायद्वीप वो जगह होती है जो तीन तरफ से पानी से घिरी होती है और एक तरफ से भूमि से जुडी होती है।
नोट
- उपनिवेशवाद: -उपनिवेशवाद (Colonialism) का अर्थ है किसी देश का दूसरे देश या क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना और उसके संसाधनों का शोषण करना
- 38वीं समानांतर रेखा:- 38वीं समानांतर रेखा से मतलब , 38° उत्तरी अक्षांश है, जो कि पूर्वी एशिया में उत्तर और दक्षिण कोरिया को मोटे तौर पर विभाजित करने वाली रेखा है। यह रेखा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच प्रशासनिक क्षेत्रों की सीमा के रूप में निर्धारित की गई थी।
- शीत युद्ध :- शीत युद्ध का मतलब 1947 से 1991 के बीच का ऐसा समय, जब दुनिया के 2 शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ आपस में सीधे तौर पर सैनिक कार्यवाही तो नहीं कर रहे थे परन्तु अपने अपने हथियारों को बढ़ा रहे थे। दुनिया में अपना दबदबा बनाने की होड़ जिसमे विचारों की लड़ाई और जासूसी आदि गतिविधियाँ शामिल हैं।
- दूसरे विश्व युद्ध के मित्र राष्ट्र :- द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्र (Allied Powers) वे देश थे जो धुरी शक्तियों (Axis Powers) के खिलाफ लड़े। मुख्य मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्रांस, सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन शामिल थे। इसके अलावा और भी बहुत सारे छोटे बड़े देश जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, ग्रीस, युगोस्लाविया, अर्जेंटीना, ब्राजील, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, भारत (ब्रिटिश उपनिवेशवाद के रूप में) भी मित्र राष्ट्रों में शामिल थे।
- धुरी शक्तियाँ :- धुरी शक्तियाँ वो सैन्य गठबंधन था जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की थी और मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी । इसके प्रमुख सदस्य नाजी जर्मनी , इटली और जापान थे।
विभाजन के बाद, दोनों कोरिया ने बिल्कुल विपरीत राजनीतिक रास्ते चुने
दक्षिण कोरिया की लोकतंत्र की तरफ एक संघर्षपूर्ण यात्रा
संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभाव में, दक्षिण कोरिया ने औपचारिक रूप से एक लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई। हालांकि, शुरुआती दशकों में दक्षिण कोरिया में राजनीतिक अस्थिरता रही।
सेना ने कई बार सैन्य तख्तापलट कर देश का शासन अपने हाथों में लिया और अधिनायकवादी शासनों का भी बोलबाला रहा जिससे दक्षिण कोरिया उस समय के सबसे गरीब देशों में शामिल हो गया।
सिग्मन री से लेकर पार्क चुंग-ही और फिर चुन डू-ह्वान तक, कई सैन्य शासकों ने देश पर कठोर नियंत्रण रखा। इस दौरान नागरिक स्वतंत्रताएं सीमित थीं, विरोध के स्वरों को दबाया जाता था और सरकार के खिलाफ बोलने वालों को कठोर दमन का सामना करना पड़ता था।
लेकिन दमन के बावजूद छात्रों, बुद्धिजीवियों और आम नागरिकों ने लगातार तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई। अप्रैल क्रांति (1960), ग्वांगजू विद्रोह (1980) और जून लोकतंत्र आंदोलन (1987) जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों ने लोकतंत्र की स्थापना की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन आंदोलनों में लोगों ने सड़कों पर उतरकर अपनी जान की परवाह किए बिना लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग की।
1980 के दशक के अंत में लगभग 1987-1988 के दौरान, एक व्यापक छात्र विरोध और नागरिक आंदोलनों के बाद दक्षिण कोरिया ने सफलतापूर्वक एक स्थिर और जीवंत लोकतंत्र की स्थापना की।
1987 के जून लोकतंत्र आंदोलन में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के दबाव में सरकार को झुकना पड़ा और नए लोकतांत्रिक संविधान को स्वीकार करना पड़ा। इसके तहत राष्ट्रपति चुनाव प्रत्यक्ष मतदान द्वारा कराने का प्रावधान किया गया।
लेकिन ये इतना आसान नहीं था इसमें अनगिनत कुर्बानियाँ, छात्रों, नेताओं और आम नागरिकों के संघर्ष और बलिदान शामिल थे। कोई भी बड़ा बदलाब कुर्बानी तो मांगता ही है। आज, दक्षिण कोरिया एक समृद्ध अर्थव्यवस्था, एक मजबूत नागरिक समाज और एक बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली वाला देश है।
उत्तर कोरिया बना एक तानाशाही देश
सोवियत संघ के समर्थन से, 1948 में उत्तर कोरिया में किम इल-सुंग के नेतृत्व में एक कठोर साम्यवादी शासन स्थापित हुआ। उन्होंने एक व्यक्ति-केंद्रित विचारधारा, जुचे (Juche), को बढ़ावा दिया, जो आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता पर जोर देती है। जैसे बौद्ध दर्शन होता है, जैन दर्शन होता है, हिन्दू दर्शन होता है वैसे ही इनका दर्शन जूचे है।
किम इल-सुंग ने डीपीआरके (Democratic People’s Republic of Korea) के पहले नेता के रूप में सत्ता संभाली । उन्होंने अपने एक अलग पंथ जुचे का निर्माण किया जिसमें उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और देशभक्ति की कहानियों को खूब प्रचारित किया गया और नागरिकों को उन्हें लगभग भगवान की तरह मानने के लिए प्रेरित किया गया।
1994 में उनकी मृत्यु के बाद, उनके बेटे किम जोंग-इल ने सत्ता संभाली। किम जोंग-इल ने अपने पिता की नीतियों को जारी रखा और देश पर अपनी पकड़ और मजबूत की।
2011 में किम जोंग-इल की मृत्यु के बाद, उनके बेटे किम जोंग-उन वर्तमान नेता बने। उन्होंने भी अपने पिता और दादा की तरह ही शासन की कठोर शैली को बनाए रखा है।

आज, उत्तर कोरिया दुनिया के सबसे दमनकारी और रहस्यवादी देशो में से एक है जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता लगभग न के बराबर है और सरकार का पूर्ण नियंत्रण हर पहलू पर मौजूद है।
उत्तर कोरियाई की तानाशाही के कुछ उदाहरण
सत्ता का हस्तांतरण एक परिवार के भीतर पीढ़ी दर पीढ़ी होता है। किम राजवंश को देवता का दर्जा प्राप्त है और उन्हें देश का सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान नेता मान लिया गया है।
किम इल-सुंग, किम जोंग-इल और किम जोंग-उन की बड़ी बड़ी मूर्तियां पुरे देश में बनाई गई हैं जिनकी देशभर में पूजा होती है । उनके चित्र हर घर और सार्वजनिक भवन में प्रदर्शित किए जाते हैं और उनके जीवन और उपलब्धियों का झूठा प्रचार किया जाता है । नागरिकों को इन नेताओं के प्रति पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा दिखाना जरुरी होता है ।
जुचे विचारधारा को देश के प्रत्येक नागरिक के लिए मानना जरुरी है । सरकार सूचनाओं और व्यक्तिगत विचारों तक पर पूरा नियंत्रण रखती है। बाहरी दुनिया से संपर्क लगभग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। लोगो को केवल वही दिखाया जाता है जो किम जोंग-उन दिखाना चाहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन लगातार उत्तर कोरिया में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन की रिपोर्ट करते हैं। इनमें मनमानी गिरफ्तारियां, यातनाएं, राजनीतिक कैदियों के लिए श्रम शिविर (क्वान्लिसो), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन, धर्म की स्वतंत्रता का अभाव और भोजन की कमी शामिल हैं।
सरकार नागरिकों के जीवन के हर पहलू को नियंत्रित करती है, जिसमें वे कहाँ रहते हैं, क्या काम करते हैं, किससे शादी करते हैं और यहाँ तक की वो क्या सोचते हैं, ये भी शामिल है।
आर्थिक बदहाली के बावजूद, उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियार विकसित कर लिया है यह न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा है बल्कि देश के सीमित संसाधनों पर भी भारी दबाव डालता है।
निष्कर्ष
उत्तर और दक्षिण कोरिया का विभाजन एक दुखद कहानी है जो शीत युद्ध की विरासत और दो अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के टकराव को दर्शाती है।
दक्षिण कोरिया ने लोकतंत्र और समृद्धि की राह पर महत्वपूर्ण प्रगति की है जबकि उत्तर कोरिया एक वंशवादी तानाशाही के चंगुल में फंसा हुआ है, जहां नागरिकों को बुनियादी मानवाधिकारों से भी वंचित रखा जाता है।
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