भारत के कश्मीर का एक लम्बा इतिहास रहा है। इसका इतिहास पिछले 1500 सालों तक आसानी से खोजा जा सकता है। ये स्थान 3 धर्मों के लिए महत्वपूर्ण रहा है। और इसलिए इन तीनो धर्मों हिन्दुओ, बौद्धों और मुसलमानो के कश्मीर को लेकर अपने अपने आख्यान हैं। और इसलिए तीनो धर्मों ने अपने मुख्य स्त्रोतों में कश्मीर को अलग अलग तरीके से परिभाषित किया है।

कश्मीर को लेकर हिन्दू समाज की मान्यताएं

हिन्दू समाज में आम तौर पर जो मिथकिय कथा मिलती है उसका उसका स्त्रोत है नीलमत पुराणकल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगनी में भी इसी को आधार बनाया है। इस कथा के अनुसार, समय के आरम्भ से ही यहाँ पर सतीसर नाम की एक बड़ी झील थी। जिसमे जलोद्भव नाम का एक राक्षस रहता था। जिसने झील के रक्षक नागों को आतंकित किया हुआ था।

ब्रह्मा के पौत्र और मारीच के पुत्र कश्यप ऋषि जब हिमालय की तीर्थ यात्रा पर आये तो नागों के प्रमुख नील ने ऋषि कश्यप से राक्षस जलोद्भव के अत्याचारों से मुफ्त करने की प्रार्थना की। तब कश्यप ऋषि ने ब्रह्मा, बिष्णु और महेश से सहायता मांगी और उन्होंने झील को घेर लिया।

लेकिन जलोद्भव को ब्रह्मा से ये बरदान प्राप्त था कि जब तक वो पानी में है उसे कोई मार नहीं सकता तो भगवान बिष्णु ने सहायता के लिए अनन्त को बुलाया जिसने झील के चारों ओर स्थित पहाड़ में छेद कर दिया। और इस तरह सतीसर का सारा पानी बह गया।

और फिर अपने चक्र से जलोद्भव का गला काट दिया। कश्यप ऋषि ने नागों से इस हरी भरी धरती पर मानवों को भी साथ रहने की अनुमति देने को कहा। नागों ने मनु के पुत्र मानवों को यहाँ रहने की अनुमति देने से साफ़ इंकार कर दिया।

क्रोधित ऋषि कश्यप ने उन्हें पिशाचों के साथ रहने का श्राप दिया। नील के क्षमा मांगने पर उन्होंने अपना श्राप कम कर दिया। और कहा हर साल 6 महीने के लिए पिशाच बालू के समुद्र में चले जायेंगे और इस अवधि में मानव यहाँ रहेंगे। भगवान बिष्णु ने ये आशीर्वाद किया कि घाटी में पिशाचों का निवास केवल चार युगो तक ही चलेगा।

चार युग बीतने के बाद जब सभी मानव 6 महीने के लिए बाहर गए तो एक ब्राह्मण चंद्रदेव उनके साथ नहीं गया। उसने पिशाचों के अत्याचारों की शिकायत नागों के राजा नील से की और कहा कि मानवों को वहां विस्थापन के भय से मुफ्त होकर रहने की अनुमति दी जाये।

राजा नील ने ये प्रार्थना मानते हुए शर्त रखी कि उन्हें केशव(भगवान् बिष्णु) द्वारा दिए सभी निर्देश मानने पड़ेंगे। अगले 6 महीने चंद्रदेव नील के साथ महल में रहा और नील से यहाँ के सभी रीति रिवाज सीखे। जब चैत्र में मानव लौटे तो उसने मानवो के राजा वीरोदय को पूरी घटना बताई जिसे फिर नील ने सभी रीति रिवाज सिखाये।

इन रीति रिवाजों में कुछ वैदिक रीति रिवाजों के अनुरूप थे और कुछ कश्मीर के लिए अलग से। नीलमत पुराण नील द्वारा दी गई यही शिक्षाएं और उसके द्वारा सुनाया गया इतिहास है। इस किस्से का एक रूप दुर्गा के एक अवतार देवी शारिका के माहात्म्य में आता है। जहाँ जलोद्भव के अत्याचारों से देवता शिव की पत्नी से प्रार्थना करते हैं।

उनकी पुकार सुनकर सती एक पक्षी का रूप धारण करके आती हैं और अपनी चोंच से एक पत्थर वहां गिरा देती हैं जहाँ राक्षस रहते थे। वो पत्थर एक विशाल पर्वत में तब्दील हो जाता है जिससे दबकर राक्षस की मृत्यु हो जाती है। यही पर्वत हरि पर्वत के नाम से जाना जाता है।

इस पहाड़ी के शिखर पर उत्तरपश्चिम दिशा में देवी शारिका का प्रसिद्ध मंदिर है। और एक विशाल पाषाण स्तम्भ है जिस पर श्रीचक्र बना है।

कश्मीर को लेकर मुस्लिम समाज की मान्यताएं

कश्मीर समाज को लेकर मुस्लिम समाज की भी अपनी मान्यताएं है। इनकी कहानी के लेखक बेदियाउद्दीन हैं। बिल्सन उन्हें शेख निरुद्दीन मानते हैं। इस कहानी के अनुसार आदम सरनदीप से कश्मीर आया और अगले एक हजार एक सौ साल वहां मुसलमानों का शासन रहा। आदम को मुस्लिम समाज में मानव जाति के प्रथम पुरुष के रूप में माना जाता है।

उस शासन का अंत हरिनन्द राज द्वारा मुस्लिम शासक को हराने के साथ हुआ। जिसके वंशजों ने प्रलय तक राज्य किया। पानी घटने के बाद वहां तुर्किस्तान के एक कबीले ने राज किया। जिसके हजरत मूसा ने वहां के निवासियों को एक ईश्वर की आराधना करनी सिखाई।

इस मान्यता के अनुसार हजरत मूसा की मृत्यु कश्मीर में हुई थी और उनकी कब्र अब भी कश्मीर में है। इस किस्से में झील को सुखाने का उपक्रम करने वाला कश्यप नहीं अपितु शेब या काशेब नामक एक मुस्लिम जिन्न था जो सुलेमान का गुलाम था। सुलेमान के कहने पर उसने बारामुला के पहाड़ों से पानी निकलने की राह बना दी।

कश्मीर को लेकर बौद्ध समाज की मान्यताएं

बौद्ध लोग कश्मीर की कथा को एक अलग तरीके से सुनाते हैं और उनकी कथा का स्त्रोत प्रसिद्ध चीनी यात्री हुन सांग है। इसके अनुसार कश्मीर मुलत: एक झील थी जिसमे नाग रहते थे। जब बुद्ध उदयन के कुटिल नाग को वश में करके हवाई मार्ग से उड़ते हुए मध्य भारत की तरफ जा रहे थे।

कश्मीर के ऊपर से उड़ते हुए उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा कि मेरी मृत्यु के बाद एक अर्हत जिसका नाम मध्यान्तिक होगा यहाँ लोगों को बसाकर एक देश की स्थापना करेगा और फिर इस इलाके में बौद्ध धर्म का प्रसार करेगा। बौद्ध धर्म में अर्हत वो व्यक्ति होता है जिसे निर्वाण प्राप्त हो चूका होता है।

बुद्ध की मृत्यु के 50 बर्ष के बाद आनंद के शिष्य मध्यान्तिक ने ये बात सुनी और प्रसन्न हुआ तब तक वो अर्हत हो चूका था। बुद्ध के कहे अनुसार वो कश्मीर गया और वहां एक जंगल में अपनी पीठ बना ली। उसके चमत्कारों से प्रभावित होकर नाग प्रमुख ने उस से उसकी इच्छा पूछी।

मध्यान्तिक ने झील में अपने लिए घुटनो भर जगह मांगी अर्थात ऐसी सूखी जगह जिसमे वो समाधी लगा सके। नाग ने उसकी इच्छा मान ली। मध्यान्तिक ने चमत्कार से अपनी देह बड़ी कर ली और नाग ने झील का पूरा सूखा दिया।

उसके बाद नाग और उसके परिवार को उसने पुरानी झील के ऊपर पश्चिम में एक छोटी झील में बसा दिया। नाग ने मध्यान्तिक से यहाँ सदा सर्वदा रहने की प्रार्थना की लेकिन मध्यान्तिक ने कहा कि यह असम्भव है क्यूंकि उसे जल्द ही परिनिर्वाण प्राप्त करना है।

नाग के बार बार प्रार्थना करने पर मध्यान्तिक ने कहा कि जब तक ये देश बौद्ध धर्म के असर में रहेगा यहाँ 500 अर्हत रहेंगे। और जब यहाँ बौद्ध धर्म का असर ख़त्म हो जायेगा ये इलाका फिर से झील बन जायेगा।

इसके बाद उसने अपनी चमत्कारी शक्ति से 500 बौद्ध मठ बना दिए। और फिर अपने लोगो की सेवा के लिए विदेशों से गुलाम ले आया। उसके जाने के कुछ समय के बाद उन गुलामों ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया लेकिन आसपास के राज्य के लोग उन्हें कोई सम्मान नहीं देते थे। और उन्हें खरीदा हुआ कहते थे।

कश्मीर का ऐतिहासिक और बैज्ञानिक पहलु

1961 में आरम्भ हुई बुर्ज होम की खुदाई से प्राप्त चीज़ें कश्मीर के प्रागैतिहासिक काल की सबसे विश्वसनीय जानकारी का स्त्रोत है। प्रागैतिहासिक काल उस काल को कहते हैं जब मानव ने अभी लिखना नहीं सीखा था। टी एन खजांची कश्मीर में 1960 से 1970 के बीच में भारतीय पुरातत्व सर्बेक्षण की उस टीम के निर्देशक थे जिसने कश्मीर में बुर्ज होम में पुरातत्व सर्बेक्षण का काम शुरू किया।

MK कॉल द्वारा संपादित किताब कश्मीर एंड इट्स पीपल में वह कश्मीर के प्रागैतिहासिक काल के बारे में विस्तार से बात करते हैं। वह बताते हैं कि 1935 में येल कैंब्रिज ( Yale Cambridge) द्वारा कराये गए सयुंक्त अध्य्यन में De Terra and Paterson ने कश्मीर में करेवा फार्मेशन को लेकर रोचक निष्कर्ष निकाले।

करेवा फार्मेशन कई मानव सभ्यताओं और उनकी बस्तियों की गवाह होती है। जिसमे पाषाण कालीन मनुष्य की छोड़ी गई बहुत सी चीज़ें मिलती हैं। ये रेत,मिट्टी, शेल, बजरी और लोएस तलछट से बनी होती है

प्रातिनूतन युग जिसमें चट्टानों का निर्माण हुआ के आरम्भिक काल में जहाँ हिमालय जैसे पर्वतों का निर्माण हुआ। वही कश्मीर में नदियों झीलों और गलेशियरों के मूवमेंट से जो सरंचनाएं बनी उनमे आधुनिक जेहलम के आसपास बने करेवा सबसे महत्वपूर्ण हैं।

कश्मीर घाटी का आधे से अधिक हिस्सा इसी करेवा से बना हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि लाखों बर्ष पहले गलेशियरों के निर्माण की प्रक्रिया में इन झीलों का निर्माण हुआ जिससे ये करेवा निर्मित हुए।

बाद के दौर में झेलम नदी उभरी और ये लगातार और गहरी होती गई। फलस्वरूप कटाव आदि के कारण झीलों का पानी बह गया तथा वह स्थान मनुष्यों के रहने योग्य बन गया।

बाद के भूगर्भशास्त्रियों की ये मान्यता है कि वुलर, मानसबल, डल और अंचर जैसी झीलें उसी पुरानी झील की अवशेष हैं। श्रीनगर से 8 किलोमीटर दूर बुर्ज होम कश्मीर में प्राप्त पहला नवपाषाण अवशेष हैं।

ये भी पाया गया कि यहाँ के निवासियों को जंगलों और पहाड़ियों से काफी मात्रा में भोजन और जल मिल जाता था। यहाँ पत्थरों पर शिकार के चित्र भी पाए गए हैं। ये गॉव ऊंचाई पर बसा हुआ था और ऐसा लगता है कि इसी वजह से ये सुरक्षित बचा रहा।

इस खुदाई में प्राप्त अवशेषों से ये निष्कर्ष निकलता है कि इस काल में लोग जमीन के नीचे मिटटी और टहनियों के घर बना के रहते थे और दीवारों पर मिटटी का प्लास्टर होता था जो ठण्ड और गर्मी से बचाव करने में सहायक था।

आटा पीसने की चक्की और हड्डियों तथा पत्थरों के औजारों आदि से निष्कर्ष निकलता है कि कश्मीर में पहली मानव बस्तियाँ ईसा से 3000 साल से 1000 साल पहले बनी होंगी। इस काल का मनुष्य भोजन एकत्रित करने वाला तथा शिकारी था।

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परन्तु इन मानव बस्तियों से उस समय के निवासियों के धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।

कश्मीर में नाग प्रजाति थी भी या नहीं

कश्मीर की कथाओं के एक अन्य पात्र नाग थे। टी एन खजांची नागों को प्राचीन भारत में रहने वाले अनार्य कबीले कहते हैं। मिथकों में नागों की उपस्थिति और भारत जैसे देश में उनकी अनेक प्रजातियों की उपस्थिति आकार तथा मारक क्षमता के कारण सहज है।

अन्य जानवरों के बिपरीत सांपो को वश में करना आसान नहीं रहा होगा और सर्पदंश से होने वाली मृत्यु ने उनके प्रति एक विशिष्ट भय पैदा किया होगा। उनका पूजा पाठ और कुछ कबीलों का तांत्रिक बन जाना ही नहीं बल्कि उसे चमत्कारों से जोड़ना स्वाभाविक ही रहा होगा।

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