हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि भी माना जाता है। इसका मुख्य कारण यहाँ पर पांडवों द्वारा बनाये गए बहुत से मंदिर हैं जो कि उन्होंने अपने बनबास के दौरान बनाये थे।
ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने बनबास का बहुत सा समय यहाँ पर व्यतीत किया था। इसके अतिरिक्त यहाँ पर ऐसे कई पर्वत भी मिल जायेंगे जिनका रामायण में उल्लेख मिलता है।
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Toggleबैदिक काल का हिमाचल प्रदेश
आर्यों के भारत आने के बाद वेदों की रचना हुई। ऋग्वेद के अनुसार हिमाचल प्रदेश के मूल निवासियों को दास, दस्यु, निषाद, किन्नर, नाग, यक्ष आदि के नाम से जाना जाता है।
इनका प्रमुख शासक शाम्बर था। कुछ इतिहासकारों ने इसे जालंधर दैत्य भी बताया है।
आर्यों के राजा दिवोदास ने जालंधर दैत्य से 40 वर्षों तक युद्ध किया और अन्त में दिवोदास ने उदब्रज नामक स्थान पर शाम्बर का वध कर दिया।
वैदिक काल में पहाड़ों पर आक्रमण करने वाला दूसरा आर्य राजा सहस्रार्जुन था, जिसने जमदग्नि ऋषि की गायें छीन लीं थी। जमदग्नि के पुत्र परशुराम ने सहस्रार्जुन का वध कर दिया
और सारे क्षत्रियों को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की। क्षत्रियों को खश के नाम से भी जाना जाता था।
परशुराम के डर से क्षत्रिय खश ऊपरी भू-भागों में आकर बस गए और मवाणा राज्यों की स्थापना की।
हिमाचल प्रदेश का महाभारत काल से संबंध
महाभारत काल के समय त्रिगर्त के राजा सुशर्मा ने महाभारत युद्ध में कौरवों की सहायता की थी।
पाण्डवों का संबंध भी इस क्षेत्र से रहा है। महाभारत काल में हिमाचल में त्रिगर्त, कुल्लूत, औडुम्बर, कुलिन्द, गब्दिका आदि प्राचीन राज्य थे।
पाण्डवों ने अज्ञातवास का समय इन्हीं पहाड़ों में व्यतीत किया। कुल्लू की राक्षसी देवी हिडिम्बा का भीम से विवाह हुआ था।
कांगड़ा में भीमकोट मंदिर है। कुलिन्द रियासत ने पाण्डवों की अधीनता स्वीकार की थी। कश्मीर, औडुम्बर तथा त्रिगर्त के शासक धर्मराज युधिष्ठिर को कर देते थे।
हिमाचल प्रदेश का रामायण काल से सम्बन्ध
भगवान राम के जन्म के लिए राजा जनक ने ऋषि वशिष्ठ व श्रृंगी ऋषि के साथ यज्ञ का आयोजन किया था जो कि कुल्लूत के निवासी थे।
हनुमान जी ने संजीवनी बूटी की खोज चूड़धार पर्वत से की थी तथा शिमला जाखू पर्वत पर कुछ समय तक विश्राम किया था।
हिमाचल प्रदेश के विषय में जानकारी
हिमाचल के इतिहास की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें वेदों, पुराणों के प्रसंगों, महाभारत, रामायण जैसे महाकाव्यों, विभिन्न चीनी यात्रियों के संस्मरणों का सहारा लेना पड़ता है।
मध्यकाल में विभिन्न राजाओं के संदर्भों, मुगल बादशाहों के संस्मरणों, यूरोपीय लेखकों के लेखों के अतिरिक्त अनेक प्राचीन अभिलेखों व सिक्कों का सहारा लेना पड़ता है।
हिमाचल में प्राप्त हुए अभिलेख/शिलालेख
शिलालेख चट्टानों पर लिखे जाते थे और अभिलेख ताम्बे लोहा लकड़ी आदि पर लिखे जाते थे ।
चम्बा के विभिन्न मंदिरों व चट्टानों के लेख जिसमें लक्षणा देवी भरमौर शिलालेख, शक्ति देवी छतराड़ी के लेख (मारु वर्मन के समय के) प्रमुख हैं।
युगांकर वर्मन द्वारा लिखित भरमौर का ताम्रपत्र लेख, कुल्लू के निर्मण्ड मंदिर के ताम्रलेख, आदि प्रमुख हैं।
मंडी के सलोणु शिलालेख में हमें हिमाचल प्रदेश के प्राचीन समय की सामाजिक और आर्थिक जानकारी मिलती है।
हिमाचल में प्राप्त हुए सिक्के
चम्बा के भूरी सिंह संग्रहालय और शिमला के राज्य संग्रहालय में हिमाचल प्रदेश में पाए गए पुराने सिक्कों का संग्रह है,
जिससे हिमाचल प्रदेश के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। कुल्लू से प्राप्त सिक्कों पर राजा विर्यास का नाम खुदा हुआ था जो कि पहली शताब्दी के आस-पास के बताए गए हैं।
अर्की, हमीरपुर, ज्वालामुखी में भी सिक्के पाए गए हैं।
हिमाचल प्रदेश का धर्म, लोकगीत, लोकनृत्य, लोकनाट्य
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