हमने आज तक पढ़ा था कि हिन्दू और सिख लोग अपने मृतको का अंतिम संस्कार जला कर करते हैं तथा मुस्लमान और ईसाई लोग अपने मृतकों को दफनाते हैं।
परन्तु अगर ध्यान से देखा जाये तो अल्वर्ट आइंस्टीन ,रावर्ट ओपेनहाइमर ,रुडयार्ड किपलिंग ,जॉर्ज हैरिसन और गोट्फ्रैड केलर का अंतिम संस्कार जला कर किया गया था।
तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री ऍम करुणानिधि, प्रसिद्ध अभिनेत्री जयललिता और अच्युतानंद जी के मृतक शरीर को दफनाया गया था जबकि ये हिन्दू थे।
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Toggleक्या हिन्दू धर्म में मृतक को केवल जलाने की ही प्रथा है
मृतकों का अंतिम संस्कार उस जगह भौगोलिक परिस्थितयों पर निर्भर करता है। जैसे उत्तर भारत में हिन्दुओं का दाह संस्कार किया जाता है क्यूंकि वहां पर पेड़ो की संख्या बहुत अधिक हैं
इसलिए वहां पर अंतिम संस्कार में लकड़ी इस्तेमाल करने को पुण्य का काम माना जाता है जबकि राजस्थान में लकड़ी बहुत कम मात्रा में या न के बराबर पाई जाती है और इसके अलावा वहां के 40 से 45 डिग्री तापमान में शव को जलाना अपने आप में एक चुनौती का काम है
इस प्रकार पहले शव को जगह और बाताबरण की सहूलियत के हिसाब से जलाते थे , लेकिन धीरे धीरे ये प्रथाएं इतनी कठोर हो गई कि इन्हे धर्म से जोड़ कर देखा जाने लगा।
और इन समाजों के लोग जब अपने स्थानों को छोड़कर दूसरे स्थानों पर भी पहुंचे तो इन्होने अपनी इन प्रथाओं को नहीं छोड़ा। भारत में ही हिन्दू लोगों का अंतिम संस्कार तीन तरह से किया जाता है।
हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के कितने प्रकार हैं?
भारत में ही हिन्दू लोगों का अंतिम संस्कार तीन तरह से किया जाता है
- अग्नि दाग
- जमीन दाग
- जल दाग
हिन्दुओ में अग्नि दाग
सबसे पहले अग्नि दाग की बात करें तो इसमें शव का अंतिम संस्कार मृतक को अग्नि देकर किया जाता है। मृत्यु के बाद दाह संस्कार से पहले मृतक को स्नान कराया जाता है.
इसके बाद उसके शरीर पर चंदन, घी और तेल का लेप लगाकर नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। ये सब इसलिए किया जाता है ताकि मृतक के पार्थिव शरीर को जलाने के बाद बायु प्रदूषित न हो।
क्यूंकि जब किसी की मृत्यु होती है तो बॉडी डिकंपोज होना शुरू हो जाती है और हवा में कीटाणु, बैक्टीरिया और अन्य रसायन फ़ैल सकते हैं।
क्या हिन्दू धर्म में शव को जमीन में दफनाने की भी कहीं परंपरा है।जमीन दाग ।कौन सी हिंदू जाति मृतकों को दफनाती है
हिन्दू गोस्वामी समाज में मृतकों को निजी जमीन पर दी जाती है बैठक समाधि
हिन्दू समाज में मृतक का अंतिम संस्कार दफना कर किया जाता है। हिन्दू गोस्वामी समाज के लोग अपने मृतकों को निजी जमीन पर समाधि देते हैं। इन समाजों के लोग अपने मृतकों को बैठा कर दफनाते हैं जिसे बैठक समाधी कहा जाता है। समाधि के ऊपर शिवलिंग के आकार की प्रतिमा स्थापित की जाती है
विश्नोई समाज में है जमीन दाग की प्रथा
बिश्नोई बाकी हिन्दूओं कि तरह शव को जलाते नहीं हैं । बिश्नोई जिस तरह से अंतिम संस्कार करते हैं उसे जमीन दाग देना कहा जाता है
बिश्नोई लोग खुद को प्रकृति के सरंक्षक के रूप में देखते हैं। और पेड़ काटने को पाप समझते हैं। इसके अलावा विश्नोई आबादी भारत के राजस्थान के उस हिस्से में है जहाँ पर पेड़ों की लकड़ी बहुत कम या न के बराबर पाई जाती है।
राजस्थान के जोधपुर जिले में खेजड़ी(पेड़ का नाम ) के हरे वृक्षों की रक्षा करने के लिए अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे।
12 सितंबर सन् -1730 में जोधपुर के निकट खेजड़ली ग्राम में अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में खेजड़ी के हरे वृक्षों को काटने से बचाने के लिए बिश्नोई धर्म के के 363 लोगों ने यहाँ पर पेड़ों से चिपक कर अपने प्राणों का बलिदान दिया।
इस प्रकार हिन्दू बिश्नोई लोग प्रकृति की रक्षा को अपना धर्म मानते हैं और मृतक को दफनाते हैं
मेघवाल हिन्दू समाज में भी है शव को दफ़नाने की परम्परा
राजस्थान के जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर जिलों में रह रहे पाकिस्तान से आये दलित हिन्दु लोगो के मेघवाल समाज में शव को दफ़नाने की प्रथा सदियों पुरानी है।
मेघवाल जाति के लोग भी प्रमुख तौर पर राजस्थान के निवासी है। इसलिए यहाँ हिन्दुओ में मृतकों को दफनाया जाता है
हिन्दुओ में गोसाईं, नाथ और बैरागी समाज के लोग भी अपने मृतकों को दफनाते है
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इसके अलावा हिन्दू समाज में बच्चों को भी दफनाया जाता है।
जल दाग
हिंदुओं में अंतिम संस्कार मृतकों को जल में बहा कर भी किया जाता है। लोग अपने मृतकों को बड़े पत्थर से बांधकर या यमुना के गहरे पानी में ले जाकर डुबो देते हैं।
ऐसा माना जाता है कि पंडो द्वारा अंतिम संस्कार के रूप में अत्यधिक धन लेने से निर्धन लोगो द्वारा 500 से 600 साल पहले इस प्रथा को जन्म दिया गया।
वायु दाग
पारसी लोग जिनमे रतन टाटा जी शामिल है इनके समशान को ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ कहा जाता है . यह एक गोलाकार और अंदर से खोखली आकृति के जैसी इमारत होती है जोकि बहुत ही ऊंचाई पर बनाई जाती है ।
पारसी लोग शव को ले जाकर इसी इमारत के ऊपर रख देते हैं। और गिद्ध इस शव को आहार की तरह खा लेते हैं।
लेकिन चूँकि अभी गिद्धों की संख्या में कमी आयी है इसलिए पारसी समाज ने ऐसी व्यवस्था कर ली है या इस तरह का कब्रिस्तान बना लिया है जहाँ पर सौर ऊर्जा की बड़ी बड़ी प्लेटें लगी होती हैं जिनके प्रभाव से शव को जलाकर ख़त्म कर दिया जाता है।
पारसियों रतन टाटा जी का धर्म त्यौहार और उनके अद्भुत अग्नि मंदिर पढ़ने के लिए क्लिक करें
बढ़ रहा है मृतकों को जलाने का प्रचलन
हाल ही के आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका में 35%,ब्रिटेन में 72%, कनाडा में 68%, दक्षिण कोरिया में 92%,जापान में 99 % ताइबान में 92%,नेपाल में 95% और चीन में 49% लोग दाह संस्कार को चुन रहे हैं और ये आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।
जर्मनी में अब बढ़ रहा है मृतक को जलाने का प्रचलन
जर्मनी यूरोप का ऐसा देश है जहाँ पर मरना सबसे महंगा माना जाता है। अधिकांश लोग जीवन यापन की बढ़ती लागत के बारे में चिंतित होते हैं,
लेकिन जर्मन लोग मृत्यु के बाद होने वाले खर्च के बारे में भी चिंतित होते हैं। जर्मनी में मरने की लागत यूरोप और दुनिया में सबसे अधिक है। यहाँ पर मरने के बाद मृतक को दफ़नाने का 5,000 और 10,000 यूरो ($5,500-11,000) या इससे भी अधिक होता है।
जबकि मृतक को जलाने में केवल 200 से 500 यूरो तक का ही खर्च आता है। इस कारण जर्मन लोगो का रुझान दाह संस्कार की तरफ बढ़ रहा है।
पूर्वी जर्मनी में तो दाह संस्कार औसतन 80% तक पहुँच गया है। अंतिम संस्कार के अवशेषों को जमीन पर या समुद्र में बिखेरना आमतौर पर जर्मनी में प्रचलित है। और अंतिम संस्कार के बाद लेक कॉन्स्टेंस के स्विस किनारे पर झील के पानी में मृतक की अस्थिओं को विसर्जित कर दिया जाता है।
जब यह किया जाता है, तो यह लगभग हमेशा अवैध रूप से किया जाता है। इस प्रकार जर्मनी में अस्थियों की अवैध रूप से समगलिंग होती है। लेक कॉन्स्टेंस (डेर बोडेंसी) के पास रहने वाले स्विस निवासियों ने लंबे समय से कई जर्मनों के बारे में शिकायत की है जो लेक कॉन्स्टेंस के स्विस किनारे पर झील के पानी में मृतक की राख फैलाने आते हैं
क्योंकि जर्मनी में ऐसा करना अवैध है। उन्हें इस बात पर आपत्ति है कि झील, पीने के पानी का एक स्रोत, शवों द्वारा “दूषित” हो चुकी है और “मृतकों की झील” में बदल गई।
स्विट्ज़रलैंड में बढ़ रहा मृतकों के दाह संस्कार का प्रचलन
इन दिनों स्विट्जरलैंड में 90% मृतकों का अंतिम संस्कार मृतक को जला कर किया जाता है। स्विट्जरलैंड में पहले दो शव दाह गृह(cremation ground ) सिहलफील्ड के कब्रिस्तान में स्थापित किए गए थे।
1890 में, कवि गॉटफ्राइड केलर वहां जला कर अंतिम संस्कार किए जाने वाले पहले प्रमुख लोगों में से एक थे। 1992 से यहाँ श्मशान घाट का उपयोग नहीं किया जा रहा है और अब अंतिम संस्कार सेवाओं के लिए कमरे उपयोग किए जाते हैं।
ताइबान में 92% मृतकों का दाह संस्कार किया जाता है
ताइवान में, दफनाने के लिए आवश्यक अचल संपत्ति बेहद सीमित है – इतनी कि अधिकांश लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं की परवाह किए बिना दाह संस्कार करते हैं।
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