“जो क्विर्क” द्वारा लिखी किताब “इट्स नॉट यू, इट्स बायोलॉजी” में ये बताया गया है कि हमारे द्वारा किये हर कार्य के लिए हमारे हार्मोन्स जिम्मेबार होते हैं ये हार्मोंस ही होते हैं जो हमसे हर चीज़ करवाते हैं।
अगर हम मच्छर के जन्म, उसके विकास, उसके जीवनकाल के बारे में पढ़ें तो इस किताब में लिखी हुई सारी बातों से हम कनेक्ट कर पाएंगे। इस दुनिया में इंसानो को मच्छरों ने किसी भी अन्य जीव की तुलना में अधिक प्रभावित किया है।
सबसे ज्यादा इंसानों की मौतें मच्छरों के काटने से होती हैं। मच्छर मलेरिया, डेंगू और पीले बुखार जैसी बीमारियों को फैलाते हैं जिनसे सालाना लाखों लोगों की मौत होती है। दुनिया भर में, मच्छरों से हर साल औसतन 10,00,000 से अधिक लोगों की मौत होती है।

मच्छरों ने कई सभ्यताओं को सीधे तौर पर प्रभावित किया है। मच्छरों ने कई युद्धों में निर्णायक भूमिका निभाई है। तो चलिए मच्छरों के बारे में शुरू से शुरू करते हैं।
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Toggleमच्छर का जन्म कैसे होता है
नर मच्छर और मादा मच्छर, दोनों पौधों के रस, फूलों और फलों के रस जैसे मीठे तरल पदार्थों पर अपने भोजन के लिए आश्रित रहते हैं। नर मच्छर, मादा मच्छरों की भिनभिनाहट सुनकर उन्हें ढूंढते हैं फिर नर मच्छर, मादा मच्छरों को आकर्षित करने के लिए झुंड बनाते हैं।
इनके सम्भोग की प्रक्रिया ज्यादातर हवा में होती है लेकिन कभी-कभी ये जमीन पर भी सम्भोग करते हैं । मादा मच्छर के गर्भवती होने के बाद उसको अंडे देने के लिए, प्रोटीन और दूसरे पोषक तत्वों की अवस्य्क्ता होती है।
इन पोषक तत्वों को वो जानवरों या इंसानो के खून से प्राप्त करती है क्यूंकि खून, आयरन, प्रोटीन और अमीनो एसिड का एक अच्छा स्रोत है इस प्रकार केवल मादा मच्छर ही खून पीते हैं जबकि नर मच्छर भोजन के लिए पौधों के रस पर निर्भर रहते हैं। अब अगर अगली बार कोई मच्छर आपको काटे तो ध्यान रखें कि वो मादा मच्छर हैं और साथ में प्रेग्नेंट भी है।

खून चूसने के बाद जब मादा मच्छर के शरीर में प्रोटीन की पूर्ति हो जाती है तो ये अंडे देते हैं। मच्छर अपने अंडे पानी में देते हैं। किसी भी स्थान पर 3 दिन से अधिक समय तक ठहरे हुए पानी को ये अंडे देने के लिए सुरक्षित मानते हैं और वहां अंडे देते हैं। एक मादा मच्छर एक बार में 100 से लेकर 500 के लगभग अंडे देती है।
मच्छर का जन्म कितने चरणों में होता है
मच्छर के जन्म की प्रक्रिया 4 चरणों से होकर गुजरती है
- अंडे
- लार्वा
- प्यूपा
- वयस्क मच्छर
क्यूंकि अंडे को सूखने से बचाने और लार्वा के विकास के लिए नमी की आवश्यकता होती है। यदि अंडा किसी सूखे स्थान पर होगा तो लार्वा विकसित नहीं हो पाएगा। अत: अंडे को एक नम वातावरण में रखा जाना जरुरी होता है। इसलिए ये अंडे हमेशा ठहरे हुए गंदे पानी में दिए जाते हैं।
पानी की सतह पर अंडे देने के बाद अंडे के अंदर, भ्रूण विकसित होता है और जब यह पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो वह अंडे के छिलके को तोड़कर, लार्वा के रूप में बाहर निकलता है। मच्छरों के लार्वा को हिमाचली भाषा में बदरोक कहते हैं।
रुके हुए गंदे पानी में जो हिलने बाले कीड़े होते हैं, उन्हीं को पहाड़ी मे बदरोकेऺऺंं और विज्ञान की भाषा में लार्वा कहते हैं।

अंडे से जो लार्वा निकलते हैं वो पानी में रहते हैं और पानी के सूक्ष्म जीवों को अपना भोजन बनाते हैं। ये पानी की सतह पर आकर साँस लेते हैं। और अपने आपको विकसित करते हैं।
इस समय अगर पानी में पेट्रोल डाल दिया जाये तो लार्वा के लिए साँस लेना मुश्किल हो जायेगा और वो मर जायेगा क्यूंकि पेट्रोल पानी में घुलता नहीं और इसके ऊपर तैरता रहता है।
लार्वा से व्यस्क मच्छर में बदलने की प्रक्रिया प्यूपा कहलाती है। प्यूपा भी पानी में ही रहता है लेकिन कुछ खाता नहीं। इस प्रक्रिया में लार्वा वयस्क मच्छर में बदल रहा होता है। इस प्रक्रिया के बाद मच्छर वयस्क होकर पानी से बाहर निकलते हैं।
मच्छर इंसानो का खून कैसे चूसते हैं
जब मादा मच्छर गर्भवती होती है तो उसे प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों के लिए खून की अवस्य्क्ता होती है और क्यूंकि मच्छरों के सूंघने की क्षमता इंसानो की अपेक्षा 10,000 गुना अधिक होती है।
इस प्रकार मच्छर, इंसानो के द्वारा छोड़ी गई कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) को 75 फुट दूर से अनुभव कर सकते हैं। इसके अलावा इंसानो के शरीर की गर्मी, पसीना और गंध जैसी कई चीज़ें मच्छरों को इंसानो की उपस्थिति का एहसास करवाती हैं। बीयर पीने वाले लोग , बीयर न पीने वालों की अपेक्षा, मच्छरों को अधिक तेजी से अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
मच्छर खून चूसने के लिए अपने सिर से निकली हुई एक लंबी, सुई जैसी संरचना, जिसे प्रोबोसिस कहते हैं, का उपयोग करते हैं। जब एक मच्छर इंसान को काटता है तो इंसानी शरीर एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया शुरू कर देता है जिससे हिस्टामाइन रसायन रिलीज़ होता है जो खुजली तथा सूजन का कारण बनता है।

मच्छर की सूंड के अंदर दो प्रकार की नली होती हैं। एक नली से मच्छर लार छोड़ता है जो काटने की जगह को सुन्न कर देती है और खून के थक्के को जमने से रोकती है ताकि खून पतला होकर आसानी से बह सके। दूसरी नली खून चूसने का काम करती है।
खून चूसने के बाद जब मादा मच्छर इसको पचाती है तो खून में शामिल जिन तत्वों को ये पचा नहीं पाती उसको ये मल के रूप में बाहर निकाल देती है। ये मल ठोस और तरल दोनों तरह का हो सकता है।
मच्छर कितने दिन तक जीवित रहता है
नर मच्छर और मादा मच्छर दोनों का जीवनकाल अलग अलग होता है। जहाँ नर मच्छर का जीवनकाल 6 से लेकर 10 दिन तक का होता है वहीं मादा मच्छर 1 महीने तक जीवित रहती है। कुछ विशेष प्रजातियों में ये जीवनकाल 5 महीने तक का हो सकता है।
मच्छर की कितनी प्रजातियां होती है
मच्छर की अब तक 3500 के लगभग ज्ञात प्रजातियों हैं जिनमे से कुछ ही इंसानो के लिए घातक है जिनमे से एनोफिलीज (Anopheles), एडिस (Aedes) और क्यूलेक्स (Culex) प्रमुख हैं।
एनोफिलीज (Anopheles) प्रजाति, मलेरिया का कारण बनती है, एडिस (Aedes) से डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैलाती है और क्यूलेक्स (Culex) वेस्ट नाइल वायरस जैसी घातक बिमारियों की बाहक है।
मच्छर धरती पर कब से हैं
वैज्ञानिकों को मच्छर के 79 मिलियन वर्ष पुराने जीवाश्म मिले हैं जिससे ये साबित होता है कि मच्छर इस धरती पर डायनासोर के समय से हैं। इस प्रकार मच्छर इस धरती पर मनुष्य के सबसे पुराने पडोसी हैं।
मच्छरों ने सभ्यताओं को किस तरह से प्रभावित किया है।
मच्छरों ने इस धरती पर कई सभ्यताओं और युद्धों पर सीधे तौर पर प्रभाव डाला है। मच्छर, मलेरिया, डेंगू, और पीला बुखार जैसी बिमारियों के बाहक बने हैं और इन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं, जैसे कि रोमन साम्राज्य के पतन और द्वितीय विश्व युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
रोमन साम्राज्य के पतन में योगदान
रोमन साम्राज्य के दौरान, विशेष रूप से दक्षिणी इटली और दलदली क्षेत्रों में, मलेरिया जैसी बीमारियाँ आम थीं। इन बिमारियों से मृत्यु दर बढ़ गई परिणामस्वरूप सैन्य अभियानों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। जो बाद में रोमन साम्राज्य के पतन का एक बड़ा कारण बना।
पनामा नहर के निर्माण के दौरान पीले बुखार ने 22,000 से अधिक मजदूरों की जान ले ली थी।
कुछ इतिहासकारों का मानना है की सिकंदर की भारत विजय इसलिए पूरी नहीं हो सकी थी क्यूंकि उसके सैनिक मलेरिया से पीड़ित थे और उसे सिंधु नदी से ही वापस मुड़ना पड़ा था। कुछ इतिहासकार तो ये भी मानते हैं कि सिकंदर की मृत्यु भी मलेरिया के कारण ही हुई थी।
महमूद गजनवी, जिसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था, उसकी मृत्यु भी मलेरिया से ही हुई थी। उसे मलेरिया हुआ था जो बाद में तपेदिक में बदल गया था।
मच्छरों द्वारा फैलाई गई बीमारियों ने दूसरे विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों की सेनाओं को समान रूप से प्रभावित किया जिससे रणनीतिक विराम और पीछे हटने पर असर पड़ा।
अकेले साल 2022 में, दुनिया भर में मलेरिया से लगभग 608,000 मौतें हुईं थी। बाढ़ प्रभावित इलाकों में सबसे बड़ी चुनौती मच्छरों से होने वाली बिमारियों से पार पाना ही होती है। इस प्रकार एक कीट के रूप में मच्छर, इंसान के लिए सांप से भी ज्यादा खतरनाक है।
मच्छरों को जन्म लेने से कैसे रोका जा सकता है
साफ पानी में मच्छर अंडे नहीं देते क्यूंकि साफ पानी में मच्छर के अण्डों से निकलने वाले लार्वा, बिना भोजन के मर जाएंगे इसलिए अपने गली – मोहल्ले में कभी भी पानी जमा नहीं होने दें।
कूलर का पानी नियमित रूप से बदलें और अगर कूलर का पानी बदलना संभव नहीं हो तो पानी में 1 या 2 चमच पेट्रोल डालते रहे ताकि लार्वा को जीवित रहने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन न मिले।
मच्छरों को क्या खाता है
मच्छरों को बहुत से जीव अपना शिकार बनाते हैं जिनमे से ड्रैगनफ़्लाइज़ प्रमुख हैं इन्हे हिमाचल प्रदेश में पताजु कहा जाता है। जब भी ये पताजु हवा में उड़ते हैं उस दिन अक्सर मच्छर नहीं देखे जाते हैं। इनको पालना भी मच्छरों को ख़तम करने का एक तरीका हो सकता है।
इसके अलावा पक्षी जैसे स्वैलोज़ और मार्टिंस, चमगादड़ , मकड़ियाँ, मेंढक भी मच्छरों को खाते हैं। मछलियाँ तो मच्छरों के साथ साथ उनके लार्वा को भी भोजन के रूप में ग्रहण करती हैं।
मच्छरों से मलेरिया कैसे फैलता है
मलेरिया, मादा एनाफ्लीज़ मच्छर से फैलता है। मादा एनाफ्लीज़ मच्छर जब किसी मलेरिया संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो वो मच्छर, उस व्यक्ति के शरीर में उपस्थित प्लाज्मोडियम नामक परजीवी को अपने अंदर लेकर संक्रमित हो जाता है। परजीवी वो जीव होते हैं जो दूसरे के शरीर पर आश्रित रहते हैं जैसे जुएं, पिशु इत्यादि।
फिर जब मादा एनाफ्लीज़ मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वो प्लाज्मोडियम नामक परजीवी को स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में छोड़ देता है फिर ये परजीवी यकृत में जाते हैं और बढ़ते हैं जिसके बाद वे लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं जिससे वो व्यक्ति मलेरिया संक्रमित हो सकता है।
प्लाज्मोडियम का जीवनकाल कैसा होता है
प्लाज्मोडियम नामक परजीवी, 2 शरीरों के माध्यम से जीवित रहता है जिनमे से एक मच्छर और दूसरा कशेरुकी होता है। कशेरुकी वो जीव होते हैं जिनमे रीढ़ की हड्डी होती है जैसे मनुष्य तथा अन्य जानवर।
प्लाज्मोडियम नामक परजीवी, मच्छर की आंत में सम्भोग करता है। इस संभोग से ओओकाइनेट्स बनते हैं जो स्पोरोजोइट्स में विकसित होते हैं। इन्ही स्पोरोजोइट्स को मादा एनाफ्लीज़ मच्छर स्वस्थ व्यक्ति में पहुंचा देता है जिससे मलेरिया फैलता है।
निष्कर्ष
एक मनुष्य के जीवनकाल और एक मच्छर या किसी भी परजीवी के जीवनकाल में बहुत सी समानताएं हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पानी में ऑक्सीजन की कमी से लार्वा मर जाते हैं और हवा में ऑक्सीजन की कमी से इंसान मर जाते हैं।
लेकिन हम मनुष्यों ने बिना मतलब के अपने आपको श्रेष्ठ मान लिया है। अपने विकास करने के मामले में, कई परजीवी इंसानो से भी बेहतर पाए गए हैं।
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