जब इतिहास पढ़ने की बात आती है तो सब जानते हैं कि औरंगजेव का बाप कौन था। अकबर का दादा कौन था । परन्तु क्या हम अपने परिवार को भी इतनी गहराई से जानते हैं।
बहुत लोगो का जबाब होता है कि ये लोग तो राजे महाराजे थे इन्होने काफी समय तक यहाँ पर राज किया है और भारत की राजनीति और इतिहास को सीधे तौर पर प्रभावित किया है
और इतिहास ऐसे लोगो के बारे में ही लिखा जाता है आम जनता का इतिहास न कभी लिखा जाता है और न कोई उनका इतिहास जानने का इच्छुक होता है।
परन्तु क्या हो अगर हमें पता चले हमारे पुरखो का इतिहास भी इसी तरह से लिखा गया है तो क्या हम जानना चाहेंगे कि हमारे परदादा कौन थे या हमारे परदादा के परदादा कौन थे या फिर हमारे परदादा के परदादा के परदादा कौन थे।
वो पढ़े लिखे थे या नहीं। वो कहाँ रहते थे और वो कितने समृद्ध थे। तो छोड़ो बाबर, हुमायूँ और अकबर को और आइये जाने अपने परिवार वृक्ष( family tree) के बारे में ।
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Toggleहरिद्वार में कहाँ पर होता है अस्थि विसर्जन
हरिद्वार टूरिज्म की एक टैग लाइन है।
इससे पहले कि कोई आपको लाये किसी मटके या जार में
कुछ दिन तो जिन्दा गुजारिये हरिद्वार में।
ये टैग लाइन अपने आप में एक पूरा पैराग्राफ है। ऐसा माना जाता है कि हरिद्वार की हर की पौड़ी का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई भरथरी जो कि एक प्रसिद्ध नाथ थे की याद में करवाया था।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद के समय जब देवताओं और राक्षसों में संघर्ष हुआ था तो अमृत के कलश से कुछ बुँदे यहाँ हर की पौड़ी पर गिर गई थीं। हर की पौड़ी पर ही हर 12 बर्ष के बाद कुम्भ का मेला लगता है।
हरिद्वार में जब भी आप अपने किसी प्रियजन की मृत्य के पश्चात अस्थि विसर्जन करने के लिए जाते हैं तो यहाँ पर आपको अस्थि विसर्जन के लिए कई घाट मिल जायेंगे। लेकिन अस्थि विसर्जन के लिए सबसे मुख्य घाट अस्थि प्रवाह घाट है।
नाम से ही स्पष्ट है कि ये घाट मुख्य तौर पर अस्थि विसर्जन के लिए बनाया गया है। ये घाट ब्रह्म कुंड “जिसे हरकीपौड़ी भी कहा जाता है” और नाई घाट के बीच, संजय पुल के ठीक नीचे स्थित है।
संजय पुल के ऊपर से ही इस घाट पर नीचे आने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं । यहाँ पर प्रतिदिन काफी संख्या में लोग अस्थि विसर्जन के लिए आते हैं।
अस्थि प्रवाह घाट के अलावा सती घाट पर भी अस्थि विसर्जन होता है ये घाट हर की पौड़ी से लगभग 6 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है और हरिद्वार के कनखल में स्थित है। सती-घाट कनखल के झंडा चौंक से लगभग 300 मीटर की दुरी पर स्थित है।
ये घाट भारत की एक पुरानी कुरीति सती-प्रथा से जुड़ा हुआ है। यहाँ पर आपको अपने पति के साथ सती हुई औरतों के कई छोटे छोटे मंदिर देखने को मिल जायेंगे।
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास ने सती प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई थी और लगभग 22 बार अमृतसर से यहाँ की यात्रा की थी।
इसके अलावा कनखल को भगवान शिव का ससुराल भी माना जाता है। कनखल में सती कुंड है जहाँ पर माँ सती ने अग्नि कुंड में प्रवेश किया था । इसी स्थान पर दक्ष प्रजापति का मंदिर भी है।
कुशावर्त घाट पर भी अस्थि विसर्जन होता है और ये माना जाता है कि भगवान राम ने अपने पितरों का पिंड दान यही पर किया था।
नोट:- कुछ चीज़ें जिनका यहाँ पर बार बार जिक्र होगा वो इस प्रकार हैं
- पंडा : पंडित पुरोहितो को ही पंडा कहा जाता है।
- बही : जिन रेजिस्टरों में पारिवारिक जानकारी लिखी होती है उन्हें बही कहा जाता है।
- यजमान: पंडित जिन लोगो को अपनी सेवाएं देते हैं उनको यजमान कहा जाता है।
हरिद्वार में पुरखों का इतिहास लिखना कब शुरू हुआ
वैसे तो हरिद्वार के पंडे ये क्लेम करते हैं कि उनके पास भगवान राम के वंशजो का लेखा जोखा उनके हस्ताक्षरों के साथ उपस्थित है।
परन्तु आमतौर पर ये माना जाता है कि हरिद्वार का हिन्दू धर्म में एक पौराणिक महत्व है इसलिए पहले समय में हर कोई अपने प्रियजनों के अस्थि विसर्जन के लिए यहीं पर आता था।
और मृत्यु को हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में अंतिम संस्कार माना गया है तो अपने पूर्वजों की शांति के लिए जब कोई यहाँ पर पूजा, हवन आदि करवाता था तो पंडे उसके सम्पूर्ण कुल का नाम और उसके द्वारा दान की गई राशि, उसका जन्म स्थान,उसके राज्य के नाम आदि जो भी जानकारी मिलती थी उसको भोज पत्रों पर देवनागरी लिपि में लिख लिया करते थे।
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उन भोज पत्रों पर जिस व्यक्ति से ये सब जानकारी ली जाती थी उसके हस्ताक्षर करवा लिए जाते थे। बस इसी कड़ी में इन बही को लिखने की परम्परा शुरू हुई।
बाद में इन भोज पत्रों की जगह कागजों ने ले ली और देवनागरी लिपि की जगह हिंदी भाषा ने ले ली।अभी भी यहाँ अगर आपको पुरानी पीडियों का इतिहास देखना हो तो वो आपको देवनागरी में ही मिलेगा।
इन बही का इस्तेमाल पहले समय में न्यायालय में झगडे निपटाने के लिए भी होता रहा है।
इन बही के पूरी तरह से भर जाने के बाद इनको संभाल के रख दिया जाता है और थोड़ा ख़राब होने की दशा में इनको दूसरी बही में कोपी कर के रख लिया जाता है परन्तु जिन पन्नो पर पुरखों के हस्ताक्षर रहते हैं
उनको बड़ी सावधानी के साथ बही में जोड़ दिया जाता है क्यूंकि पुरखों के हस्ताक्षरों के बिना यजमानो को यकीन दिलाना मुश्किल होता है।
नोट :- देवनागरी एक लिपि है और हिंदी भाषा है। हिन्दी, नेपाली, पालि, संस्कृत, खस, मराठी, गढ़वाली, सिन्धी, कश्मीरी, डोगरी, भोजपुरी आदि कई भाषाएं देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती हैं। हिन्दी भाषा का अपना व्याकरण और अपना शब्दकोश है.
हरिद्वार में रखा हुआ है सम्पूर्ण उत्तर भारत का इतिहास
हरिद्वार में लगभग पूरे के पूरे उत्तर भारत के लोगो के परिवार का इतिहास इनकी बही (बही खाता) में मिल जायेगा। इन बही को यहाँ के पंडे बड़े सहेजकर रखते हैं।
यहाँ पर आपको अपनी पुरानी 10 पीडियों और 500 साल से भी अधिक की जानकारी इनके दस्तावेजों में मिल जाएगी।
आपको इनको अपने शहर का नाम बताना है अपनी जाति, अपना गोत्र और अपने दादा का नाम बताना है। बस ये आपके सामने आपकी पिछली 10 पीडियों से भी अधिक की जानकारी आपके पुरखो के हस्ताक्षर सहित दे देंगे ।
यहाँ पर आकर आपको पता चल जायेगा कि 10 पीड़ी पहले आपके पूर्वज कितने समृद्ध थे और उस कड़ी में आप कहाँ तक पहुंच पाए हैं।
अपने पूर्वजों के हस्ताक्षर देखकर लोग इमोशनल हो जाते हैं और उन हस्ताक्षरों को माथे से लगा लेते हैं।
हरिद्वार में अपने पंडे को कैसे खोजें
हरिद्वार में इस समय 2500 के लगभग पंडे हैं जो ये पूजा पाठ करवाते हैं तथा बहियों को संजोकर रखने का काम करते हैं। पहले कुछ परिवार ही ये सब करते थे
परन्तु बाद में धीरे धीरे ये परिवार बड़े होते गए और इस तरह अगर घर में 5 बेटे हुए तो बहियों को 5 हिस्सों में बाँट दिया गया जिसके हिस्से में आपकी बही आई वो पंडा ही आपका पारिवारिक पंडा हुआ
और आपके पूजा पाठ का अधिकार उसी के पास सुरक्षित है। जब भी कोई व्यक्ति अपने प्रियजन की मृत्यु के उपरांत अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार आता है तो केवल आपके कुल का पंडा ही आपके पूर्वजों के कर्मकांड करवाने का अधिकार रखता है।
अपने पंडे को ढूंढने के लिए या तो आप पंडितों की सभा गंगा सभा से संपर्क कर सकते हैं परन्तु अगर आप यहाँ पहली बार आये हैं तो अपने पंडे को ढूंढ़ने के लिए आपको आपके दादा के नाम और गोत्र की जानकारी होनी चाहिए।
जब आप हरकीपौड़ी पर पहुँच जाते हैं तो आपको अस्थि प्रवाह घाट जहाँ पर आमतौर पर लोग अस्थि विसर्जन और पूजा पाठ करते हैं वहां पर बहुत से छोटे छोटे पंडाल देखने को मिल जायेंगे।
वहाँ पर आप अगर किसी भी पंडित को बोलोगे कि मैं अपने परिवार के बारे में जानना चाहता हूँ वो आपसे पूरी जानकारी लेकर आपके कुल पंडित के घर या उसकी दुकान पर ले जायेगा। इन पंडो के भवन अलग से बने हुए हैं जहाँ पर रिक्शा ले कर पहुंचा जा सकता है।
हाँ इन लोगो से बात करते समय आपको थोड़ा चालाक होना आवश्यक होता है क्यूंकि कोई भी आपके पारिवारिक जड़ का पता लगाने के एवज में आपसे मोटी रकम ऐंठ सकता है या कोई नकली पंडित आपको लूट भी सकता है।
अनुसूचित जाति के लोगो के लिए हरिद्वार में अलग से पंडा – गंगा राम
अनुसूचित जाति के लोगों के बही खातों को पंडित गंगा राम के वंशज रखते हैं। हुआ कुछ यूँ था कि बहुत समय पहले जब संत रविदास हरिद्वार आये थे तो उनके दलित होने के कारण पंडितों ने उनसे दान लेने और उनके कर्मकांड करवाने से मना कर दिया।
तो पंडित गंगा राम ने संत रविदास से दान लेकर उनके कर्मकांड करवाए। इसलिए पंडित विरादरी ने गंगा राम को अपनी विरादरी से बहिष्कृत कर दिया।
अब गंगा राम के परिवार के किसी भी सदस्य की शादी यहाँ के पंडितों के साथ नहीं होती। इनको शादी के लिए दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता है। पंडो की आम सभा गंगा सभा में भी गंगा राम परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं किया जाता।
दलितों के इतिहास लिखने की शुरुआत भी इसी घटना के बाद हुई थी। क्यूंकि एक तो दलितों के पास इतना पैसा होता नहीं था कि वो हरिद्वार की यात्रा करके कर्मकांड करवा सकें दूसरा पंडित लोग इनका कर्मकांड करने से इनकार कर देते थे।
अब इस समय गंगा राम के परिवार के लगभग 400 पंडे इस व्यवस्याय में हैं और आरक्षण का लाभ लेकर दलित समुदाय ने अपने आपको मजबूत किया है और वो इन कर्मकांडो में खूब खर्च करते हैं। इसी कारण गंगा राम के वंशज भी काफी समृद्ध हो चुके हैं।
हरिद्वार के अलावा इन जगहों पर भी लिखा जाता है पारिवारिक इतिहास
हरिद्वार के अलावा बिहार राज्य के “गया” में भी पुरखो की जानकारी को सरंक्षित किया जाता है। इसके अलावा ओडिसा का पूरी मंदिर, उत्तराखंड का केदारनाथ, हरियाणा के पिहोवा और झारखण्ड का बाबा बैद्यनाथ धाम में भी पिछली कई पुस्तों का रिकॉर्ड मिल जायेगा।
उत्तर प्रदेश के लोगो का पारिवारिक रिकॉर्ड कौशाम्बी, मणिकर्णिका घाट, बाराणसी, प्रयाग नौमुखी मंदिर आदि जगहों पर पाया जाता है।
वास्तव में भारत में जहाँ जहाँ पुराने समय में अस्थि विसर्जन और कर्म कांड होते थे वहां के पंडे उन जानकारियों को अपने पास सरंक्षित कर लिया करते थे।
केदारनाथ में 2013 में आई जल आपदा में बहा पारिवारिक रिकॉर्ड
2013 में केदारनाथ में आई जल आपदा में यहाँ पर आने वाले लोगो के पिछली कई पुस्तों के रिकॉर्ड नष्ट हो चुके हैं। अब पंडो ने अपनी इन बाहियों को फिर से अपने जजमानो से जानकारी लेकर लिखना शुरू किया है
परन्तु यहाँ पर आने वाली नई पीड़ी को अपने दादा का नाम तक पता नहीं होता क्यूंकि अब एकल परिवार का चलन हो गया है। इसलिए एक पीड़ी से जयादा का रिकॉर्ड नहीं बन पाता और पुरखों के हस्ताक्षर दिखाए बिना लोग बहियों पर यकीन भी नहीं करते हैं।
अब बहियों को सरंक्षित करना हुआ मुश्किल
अब बहियों को सरंक्षित करना काफी मुश्किल हो गया है। क्यूंकि एक तो अब बहुत लोगो ने ऐतिहासिक स्थलों पर अस्थि विसर्जन करने से किनारा कर लिया है
जैसे पंजाब की ही बात की जाये तो लोग अस्थि विसर्जन के लिए कीरतपुर साहिब जाते हैं क्यूंकि 1644 में गुरु हरगोबिंद और 1661 में गुरु हर राय का अंतिम संस्कार यहीं पर किया गया था तथा 1664 में गुरु हरकृष्ण की अस्थियाँ यहाँ विसर्जित की गई थीं।
साथ में जो लोग डेरों जैसे डेरा व्यास आदि से जुड़े हुए हैं वो अस्थि विसर्जन के रूप में अपने डेरों को प्राथमिकता देते हैं। इसके अलावा कई लोग अपने पुरखों की अस्थियों का विसर्जन नहर में भी कर देते हैं क्यूंकि ये सस्ता पड़ता है और इससे समय की भी बचत होती है।
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FAQ
हरिद्वार में अपने पंडे को कैसे ढूंढे
हरिद्वार में पंडितों की सभा गंगा सभा से सम्पर्क किया जा सकता है। या फिर जब भी आप अस्थि विसर्जन के लिए जाते हैं वहां पर आपको बहुत से पंडे मिल जायेंगे जो पूछते रहते हैं कि क्या आप अपने वंश वृक्ष के बारे में जानना चाहते हो। ये एक तरह से पंडो के एजेंट के रूप में कार्य करते हैं। हाँ यहाँ पर आपको थोड़ा सावधान रहना होगा क्यूंकि कई बार आप किसी नकली पंडित के द्वारा लुटे जा सकते हो..https://anshhimachali.com/haridwar-mein-milega-aapko-apna-family-tree/
5 responses
मैं अपने पूर्वजों के बारे में जानना चाहता हूं।
कृपया मुझे जानकारी प्रदान करें।
Brother, aap jahan bhi asthi visarjan ke liye jaate ho aapko wahan par Jana padega. Agr aap north india se ho to ye record aapko haridwar mein milega