युद्ध की प्रकृति का वर्णन करते हुए वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) ने लिखा था कि “एक युद्ध दूसरे युद्ध का जनक है।” विजेता राष्ट्र पराजित राष्ट्र पर हमेशा अपमानजनक संधि लादने का प्रयास करते हैं।

हारे हुए राष्ट्र की जनता में विजेता के प्रति रहने वाली विरोध और घृणा की भावना नष्ट नहीं होती। इस कारण पराजित राष्ट्र शदैव युद्ध की बात सोचता रहता है।

अपने साथ किये गये अन्याय का वह बदला लेना चाहता है।” यही सब वर्साय की संधि में भी हुआ क्योंकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद फ्रांस ने अपना बदला लेने के लिए जर्मनी के समक्ष ऐसी शर्तें रख दी थीं, जिनका पालन करना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी था।

इस संबंध में सीमैन (Seaman) का कथन ठीक है कि, “वास्तव में देखा जाए तो वर्साय की संधि शान्ति सन्धि नहीं थी। यह तो क्लेमांशों की शक्ति संधि थी, जिसने यूरोप को एक बार पुनः दूसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल दिया था।

बदला लेने की भावना से मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के साथ एक ऐसी संधि की थी, जो संधि कहलाने योग्य नहीं थी। उन्होंने जर्मनी पर ऐसी कठोर शर्ते लादी थीं, जिनका पालन करना उसके लिए सर्वथा असम्भव था। यह जर्मनी का घोर अपमान था और इसमें भावी युद्ध के बीज विद्यमान थे।

जर्मनी को इस संधि में घोर अपमान का घूँट पीना पड़ा था। फलतः जर्मन जनता को अपने देश को अन्य राष्ट्रों के समान शक्तिशाली और सम्मानित बनाने के लिए घोर प्रयास करना पड़ा और हिटलर के नेतृत्व में उनकी आकांक्षा पूर्ण भी हुई।

हिटलर के नाज़ी दल ने शक्ति सम्पन्न होकर वर्साय संधि की धाराओं को चुनौती देते हुए इसे खण्ड-खण्ड कर दिया और जर्मनी को फिर से गौरवशाली राष्ट्र बनाया और इसी का दूरगामी परिणाम द्वितीय विश्व युद्ध हुआ।

वर्साय की संधि क्या थी?

संधि की शर्तें निश्चित करने के लिए नौ सदस्यों की एक समिति बनाई गईं। समिति के सदस्य पहले आपस में गुप्त रूप से निर्णय लेते थे।

इसके पश्चात् सभा के सामने प्रस्तुत किया जाता था। समिति द्वारा 1 मई 1919 ई0 को सन्धि का प्रारूप अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं में तैयार किया गया।

इस प्रारूप में 80,000 शब्द 15 अध्याय एवं 439 धारायें लिखी गईं।

वर्साय की संधि कब और कहां हुई?

लिखित संधि को देखने के बाद जर्मनी ने उसमें कुछ संशोधन करने की मांग की और उनमें से कुछ बातें स्वीकार कर लीं।

अतः 28 जून, 1919 ई0 को जर्मनी के प्रतिनिधियों मूलर और वेल को वर्साय के महल में सन्धि पर हस्ताक्षर करने पड़े।

यह वही महल था जिसमें बिस्मार्क ने फ्रांस को पराजित कर प्रशिया के सम्राट के नेतृत्व में जर्मन साम्राज्य की स्थापना की थी। अब फ्रांस ने अपनी पुरानी हार का बदला ले लिया था।

उसके पश्चात अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी इस पर हस्ताक्षर किए। सितम्बर 1919 में आस्ट्रिया, नवम्बर 1919 में बलगारिया, जून 1920 में हंगरी के साथ, अगस्त 1920 ई0 में टर्की के साथ सन्धियां की गई।

इन सभी सन्धियों को मिलाकर वर्साय की सन्धि अथवा 1919-20 की शांति-व्यवस्था संधि कहा गया।

वर्साय की संधि की प्रमुख शर्तें क्या थी?

  • जर्मनी के सम्राट कैंसर विलियम को युद्ध के लिए उत्तरदायी माना गया और उन पर मुकदमा चलाने का निर्णय लिया गया। परन्तु वह जर्मनी से भाग कर हॉलैंड चला गया। अतः इसके पश्चात इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया।
  • जर्मनी के पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा तथा निःशस्त्रीकरण की प्रवृत्ति को बढ़ाने हेतु सन्धि में जर्मनी सेना जल, थल और वायु में भारी कटौती की गई। कहा गया कि जर्मनी 31 मार्च 1920 ई0 के पश्चात् स्थल सेना एक लाख से अधिक नहीं रख सकता। उसकी अनिवार्य सैनिक शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। वह शस्त्र न मंगा सकता था और न बाहर भेज सकता था । उसे पनडुब्बियों रखने की मनाही कर दी गई। केवल यह 6 सड़ाकू जहाज, 6 हल्के और 12 टारपीडो किस्तियां रख सकता था।
  • युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए उसे 5,00,000,000 डालर की धनराशि मित्र राष्ट्रों को देने के लिए विवश किया गया।
  • जर्मनी ने 10 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष फ्रांस को और 80 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष वैल्जियम और इटली को देना स्वीकार किया।
  • चीन, थाईलैंड, मिस्र, मोरक्को और लाइबेरिया में जर्मनी ने अपने विशेषाधिकार छोड़ दिये।
  • जर्मनी से उसका औपनिवेशक साम्राज्य छीन लिया गया और लीग ऑफ नेशन्स के अधीन इसका शासन विभिन्न मित्र राष्ट्रों को सौंपा गया। पश्चिमी अफ्रीका में जर्मन के उपनिवेश इंग्लैण्ड को दिये गए।
  • सार की घाटी को कोयले की खानों का अधिकार फ्रांस को दिया गया। सार का शासन प्रबंध 15 वर्ष के लिए लीग आफ नेशन्स की अधीनता में एक अन्तराष्ट्रीय कमीशन को सौंपा गया। 1935 ई0 में वहां जनमत हुआ और उसके आधार पर सार की घाटी को जर्मन के साथ मिला दिया गया।
  • राइनलैंड को सेना रहित कर दिया गया।
  • हैलिगेलैंड और इयून के बन्दरगाहों की किलेबंदी समाप्त कर दी गई।
  • बेल्जियम, पोलैंड और चैकोस्लोवाकिया के स्वतन्त्र राज्यों की मान्यता जर्मनी को देनी पड़ी। पोलैंड को समुद्र तक पहुंचने का रास्ता जर्मन प्रदेशों में से दिया गया।

संक्षेपण

इस संधि में जर्मनी से ऐसी ऐसी शर्तें मनवाई गई जिसने द्वितीय विश्व युद्ध की रुपरेखा तयैर कर दी।

जर्मनी को बर्साय की अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए विवश किया गया। इस संधि के द्वारा उसके कई प्रदेश और उपनिवेश छीन लिए गए।

उसकी सेना का संख्या घटा दी गई। इस संधि की शर्तें बहुत कठोर थीं

उसे बहुत बड़ी धनराशि युद्ध क्षतिपूर्ति के लिए देनी पड़ी। इस संधि से जर्मनी को अंतरास्ट्रीय गौरव को बहुत बड़ा धक्का लगा और जर्मन प्रजा में असंतोष फ़ैल गया।

अडोल्फ हिटलर ने इस बात का फायदा उठाया उसने जनता को उसका प्राचीन गौरव दिलवाने का बचन दिया।

लोग उसके साथ हो गए और उसने नाज़ी दल की स्थापना की। और द्वितीय विश्व युद्ध का रोडमैप तयैर हो गया।

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