पंजाब को लेकर हमारी बहुत सारी धारणाएं बनी हुई हैं। जब हम पंजाब की बात करते हैं तो सबसे पहले ध्यान में आता है सिखों द्वारा शासित एक कृषि प्रधान राज्य और सारी पंजाबी फिल्में , पंजाबी गाने सभी इसी के इर्द गिर्द घूमते हैं।
इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सारा पंजाब जट्टों के इर्द गिर्द घूमता है। बॉलीवुड की फिल्मो में भी पंजाबियों को बहुत अमीर, समृद्ध और खुशमिजाज दिखाया जाता है। ऐसे लोग जिनके पास बहुत सारी जमीन है।
पंजाब के बारे में एक और आम धारणा है कि ऐसे लोग जो कैनेडा, अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम जाने के हमेशा उत्सुक रहते हैं वो काम के लिए अपनी मातृ भूमि छोड़कर विदेशों में सेटल हो जाते हैं।
परन्तु पंजाब का एक और चेहरा भी है जो हमेशा छुपा रहता है वो हैं दलित सिख। जिनके पास जमीन तो छोड़ो अपने खुद के मकान भी नहीं हैं।
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Toggleपंजाब में दलित सिखों की सँख्या
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में दलित सिखों की आबादी 33% है जो भारत के किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे अधिक दलित जनसंख्या है। परन्तु केवल 2.3% दलित सिखों के पास ही अपनी जमीन है। इनमे से बहुत दलित सिखों के पास अपने मकान तक नहीं हैं।
सिख धर्म की उत्पति और स्थापना
सिख धर्म की शुरुआत गुरुनानक जी ने 15बी शताब्दी में की। इनके पिता का नाम कालू राम और माता का नाम तृप्ता देवी था। सिखों के 5बे गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने 1604 ईस्वी में अमृतसर में सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया।
सिखों के 10बें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पहले श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी को सिखों के 11बें गुरु की उपाधि दी और तब से सिख समाज गुरु ग्रन्थ साहिब को ही अपना गुरु मानता है।
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974 पद हैं। इसके अलावा गुरु ग्रन्थ साहिब में शेख फरीद, भगत रविदास, भगत कबीर, भगत नामदेव, 11 भट्ट और 4 सिख गुरुओं के भजन हैं।
गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा को लेकर कहा था।
“अविल अल्लाह नूर उपाए, कुदरत दे सब बंदे
एक नूर ते सब जग ऊपजया कौन भले कौन मंदे”बाबा नानक जी के अनुसार जन्म से किसी की जाति निर्धारित नहीं होती। जाति अच्छे और बुरे कर्मो से निर्धारित होती है। मानस एक जात जो सबकी पहचान।
परन्तु गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु के बाद सिख समाज अपनी इन बातों से भटकता हुआ नज़र आता है।
सिखों में कौन कौन सी जातियां होती हैं
दलित सिख समाज में मजहवी सिख (सफाई कर्मचारी) सबसे निचले पायदान पर हैं। रंगरेटा सिख जो मजहवी सिखों से ऊपर आते हैं। इसके ऊपर आते हैं रामदासिया और रविदासिया, ये मुख्यत: चमड़े का काम करते हैं और चमार कहलाते हैं।
इसके अलावा स्वर्ण सिखों में खत्री (सहगल, भल्ला, कपूर, चड्ढा, बहल, कोहली, मारवाह, मेहरा, सोनी, सोढ़ी, पुरी आदि ) आते हैं। सभी 10 सिख गुरु खत्री थे और उन्होंने शादियाँ भी खत्री समाज में ही की हैं।
इसके साथ OBC में जाट ( रंधावा , ढिल्लों और पन्नू आदि ) आते हैं।
सब सिख जातियों के अपने अपने गुरूद्वारे
मोहाली के गॉव दाऊँ की बात करें तो यहाँ पर एक ही गॉव में 4 गुरूद्वारे हैं। सभी सिख जातियों के अपने अपने गुरूद्वारे हैं और स्वर्ण सिख दलित सिखों को अपने गुरद्वारों से दूर ही रखते हैं और न ही इनके गुरुद्वारों में जाना पसंद करते हैं।
गॉव मानसिंहवाला जिला संगरूर में 21 जनवरी 2018 को एक दलित बृद्ध महिला मोहिंदर कौर की मृत्यु हो जाती है। परन्तु गॉव के एक बड़े गुरूद्वारे में उसके परिवारजनो को अरदास करने और भोग लगाने से मना कर दिया जाता है और साथ में गुरूद्वारे के बर्तन देने से भी इंकार कर दिया जाता है। उनको अरदास अपने गुरूद्वारे में करने को कहा जाता है।
दलित सिख होते हैं भयंकर सामाजिक शोषण का शिकार
आबादी की बात करें तो सिख समुदाय में दलित सिखों की आबादी 33% है परन्तु केवल 2.3% दलित सिखों के पास ही अपनी भूमि है। भूमि के अभाव में इन दलित सिखों के स्वर्ण सिखों की भूमि पर मजदूरी करनी पड़ती है।
ये स्वर्ण सिखों के मवेशियों को पालते हैं उनका गोवर उठाते हैं और उनके लिए चारा ले कर आते हैं। इन सब के वावजूद भी ये गरीबी रेखा के ऊपर नहीं आ पाते क्यूंकि इनको बहुत कम मेहनताना दिया जाता है।
इनके खेतों में काम करते हुए इन दलित सिखों और इनकी औरतों को तरह तरह के शोषण का सामना करना है। शोषण के कुछ ही मामले सामने आ पाते हैं और बहुत से मामलों को दवा दिया जाता है। क्यूंकि दलित समुदाय के अधिकतर लोग अनपढ़ होते हैं इसलिए इनमे जागरूकता की कमी होती है।
स्यामलाट भूमि पर भी रहता है जाट सिखों का कब्जा
गुरबिंदर सिंह गॉव बुरान कलां जिला पटियाला के एक दलित समुदाय से सबंध रखते हैं वो बताते हैं कि पंचायत में जो स्यामलाट भूमि होती है उसका एक तिहाई दलित सिखों के लिए आरक्षित होती है। और उसके लिए हर साल बोली लगती है और जो सबसे अधिक बोली लगाता है उसे ये भूमि एक साल के लिए दे दी जाती है
परन्तु इस भूमि पर बोली लगाने से पहले 10000/- रूपये सिक्योरिटी के रूप में जमा करने पड़ते हैं परन्तु क्यूंकि उनके पास इतना पैसा होता नहीं है इसलिए बड़े सिख हम में से किसी एक के नाम से बोली लगा के असंबैधानिक तरीके से उस भूमि को भी अपने अधिकार में रख लेते हैं।
बॉर्डर की जगह पर दलित सिखों को अधिक दिक्क्तों का सामना करना पड़ता है
सामाजिक कार्यकर्ता परविंदर कौर बतातीं हैं कि रविदासिया और मजहबी सिखों की दिक्क्तें बॉर्डर एरिया में और गहरी हो जाती है क्यूंकि इन लोगो के पास अपनी जमीन तो होती नहीं है और साथ में जिस प्रकार की सामाजिक प्रताड़ना से ये लोग गुजरते हैं इनका जीना दूभर हो जाता है।
साथ ही अशिक्षा और बेरोजगारी के कारण से शीघ्र ही बॉर्डर एरिया मैं फैले नशे के कारोबार की चपेट में आ जाते हैं
दलित सिखों का इतिहास
दलित सिखों में अधिकतर वो हिन्दू हैं जो दलित समुदाय से संबंध रखते थे और एक सम्मान एवं गरिमापूर्ण जीवन की आस में सिख धर्म में शामिल हुए थे। परन्तु यहाँ आकर भी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई और उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
डॉक्टर भीम राव आंबेडकर के शव्दों में, दलित की कोई मातृ भूमि नहीं होती। एक दलित, एक हिन्दू के लिए भी दलित है तथा मुस्लिम, पारसी और सिख के लिए भी दलित है।
डॉक्टर भीम राव आंबेडकर भी सिख धर्म अपनाना चाहते थे। परन्तु जब उन्होंने यहाँ भी जातिप्रथा का वही रूप देखा तो उन्होंने 14 अक्टूबर 1956 को लाखों दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।
सिख जातिप्रथा से तंग होकर 30 जनवरी 2010 बना एक नया धर्म रविदासिया धर्म
24 मई 2009 को ऑस्ट्रिया के वियना में संत गुरु रविदास गुरुद्वारे डेरा सच खंड के प्रमुख निरंजन दास और रामानंद दास की कुछ लोगो ने गोली मारकर हत्या कर दी क्यूंकि वो रविदास जी के बचनों का प्रचार कर रहे थे।
इसके बाद भारत में जगह जगह दंगे शुरू हो गए। पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गए और पंजाब लगभग 15 दिनों के लिए बंद रहा। लुधियाना, जालंधर और अमृतसर में इसका बहुत अधिक प्रभाव देखने को मिला।
इसी कड़ी में 30 जनवरी 2010 को बनारस में सिखों के बहुत बड़े बर्ग ने एक नए धर्म रविदासिया धर्म की शुरुआत की और अपना अलग ग्रन्थ श्री अमृतबाणि घोषित किया।
चरणजीत सिंह चन्नी बने पहले दलित सिख मुख्यमंत्री
एक नए धर्म की शुरुआत के साथ ही पंजाब की राजनीति में भी बदलाब हुए और सिख धर्म के इन 33% वोटर पर राजनीतिक दलों ने ध्यान देना शुरू किया इसी कड़ी में 2021 में श्री चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के पहले दलित सिख मुख्यमंत्री बने।
सिख समुदाय के इस भेदभाव का पता क्यों नहीं चल पाता
भेदभाव पता न चल पाने की एक बड़ी वजह दलित सिखों का आगे अलग अलग जातियों में विभाजित होना है। दलित सिख समुदाय आगे कई जातियों में विभाजित है। जैसे रविदासिया सिख अपने आपको मजहवी सिखों से ऊपर मानते हैं।
कई जगह पर रविदासिया सिखों और मजहवी सिखों के गुरूद्वारे भी अलग अलग हैं। रविदासिया सिख अपने आपको मजहवी सिखों से श्रेष्ठ मानते हैं और उनसे विवाह संबंध भी नहीं रखते हैं।
भेदभाव पता न चल पाने का दूसरा बड़ा कारण शिक्षा है। दलित सिख समुदाय में शिक्षा का स्तर काफी नीचे है जिस कारण ये अधिकतर गुमनामी में ही रह जाते हैं। यहाँ तक कि पंजाबी गानों और पंजाबी फिल्मो में भी इनका कोई जिक्र नहीं होता।
जातिप्रथा की डेरों की कामयाबी में भूमिका
पंजाब में कम से कम 1000 के लगभग डेरे हैं जिनमे से 15 मुख्य बड़े डेरे हैं इन डेरों में राधा स्वामी डेरा व्यास, निरंकारी, नूरमहल डेरा दिव्य ज्योति और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख हैं। इन डेरों के अनुयायी लाखों की संख्या में हैं।
इन डेरों की कामयाबी का मुख्य कारण जातिप्रथा ही है और अधिकतर दलित समाज ही इन डेरों का रुख करता है क्यूंकि जिस सम्मान की आस वो अपने भाई बंधुयों से करते हैं वो सम्मान और गरिमापूर्ण जीवन इन्हे यहाँ मिल जाता है और यहाँ पर किसी की जाति नहीं पूछी जाती।
दलित सिख समुदाय में बढ़ता ईसाइयत का प्रभाव
दलित सिख समुदाय के साथ हो रहे इस अन्याय ने उन्हें ईसाइयत की तरफ जाने के लिए मजबूर किया है। पंजाब में ईसाई मशीनरियां पूरी तरह से एक्टिव हैं और वो दलित समुदाय को नौकरी और आवास जैसी सुविधाएं उपलब्ध करवा के उनका धर्म परिवर्तन करते हैं।
पंजाब के जिला मोहाली के कुराली में ये काम काफी समय से चल रहा है। जहाँ बड़ी सँख्या में लोगो का धर्म परिवर्तन किया जाता है।
दलित सिख समुदाय को अधिकार दिलाने के लिए आगे आई विश्व सत्संग सभा और सिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी
विश्व सत्संग सभा की एक सदस्य अमृतसर निवासी भूपिंदर कौर कहती हैं कि अगर कोई हमारे भाई बहन धर्म छोड़कर जा रहे हैं तो इसमें हमारी ही गलती है क्यूंकि उनको हमने साथ रखा ही नहीं। अगर उनकी छोटी छोटी मजबूरियों और जरूरतों की तरफ हम ध्यान देते तो उनको किसी दूसरे धर्म में जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
सिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने अपने 150 समूह पंजाब के गॉव गॉव में भेजे थे ताकि इस तरह के धर्म परिवर्तन को रोका जा सके। ये समूह बच्चों को सिख धर्म के बारे में जागरूक कर रहे हैं ।
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