1947 में धर्म के आधार पर भारत के 2 टुकड़े हुए । एक हिस्से का नाम भारत और एक का नाम पकिस्तान। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश बना अर्थात भारत में सभी धर्म के लोगों को बराबर स्थान दिया गया।

परन्तु पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र बना इसलिए पाकिस्तान में धीरे धीरे बाकि धर्मो का लोप होता गया।

इस समय पाकिस्तान में मुस्लिम आबादी लगभग 97.6% है। और बाकि सभी धर्म यहाँ पर दयनीय हालत में हैं।

केवल इस्लाम करते करते पाकिस्तान में अब एक नया विवाद सामने आया है “असली मुसलमान कौन” , “शिया मुसलमान या सुन्नी मुसलमान “।

एक देश को जोड़े रखने के लिए अल्पसंख्यक बहुत जरुरी हैं क्यूंकि अल्पसंख्यक आबादी ख़त्म होते ही अपने ही धर्म में फूट पड़ जाती है। पाकिस्तान में आये दिन शियाओं पर हमले होते रहते हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में 2001 से लेकर 2015 तक लगभग 5000 शिया मुसलमानो को मारा गया है ।

इस्लाम मानने वाले अलग अलग बर्गों में विभाजित हैं। जिनमे सुन्नी, शिया और अहमदिया समुदाय प्रमुख हैं। हालाँकि शिया और सुन्नी भी आगे कई मतो में विभाजित हैं

लेकिन आज हम बात करने वाले हैं शिया और सुन्नी समुदाय के बारे में, शिया और सुन्नी मुसलमानों में लड़ाइयाँ क्यों होती हैं,आइये शुरू से शुरू करते हैं।

शिया और सुन्नी कैसे बने

इस्लाम में माना जाता है कि मुहम्मद साहब, अल्लाह के आखिरी पैगम्बर थे उनके बाद जो भी हुए वो केवल मुहम्मद साहब के अनुयायी थे।

मुहम्मद साहब की मृत्यु 8 जून 632 को हुई। और क्यूंकि करिश्माई नेता की मृत्यु के बाद निरंतरता बनाना अक्सर मुश्किल होता है।

कई समाजों या आंदोलनों ने किसी की मृत्यु के बाद पतन या बड़े पैमाने पर उथल-पुथल का अनुभव किया है करिश्माई नेता- जैसे नेपोलियन के बाद फ्रांस और सिकंदर महान के बाद प्राचीन दुनिया।

मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद भी ऐसा ही हुआ। मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी पद (जिन्हे खलीफा कहा गया) के अधिकार के लिए मुसलिम समुदाय दो गुटों में बंट गया।

शुरू में ये एक राजनीतिक विभाजन था जिसने बाद में एक धार्मिक विभाजन का रूप ले लिया।

मुहम्मद साहब के बाद के 4 खलीफा( खलीफा मतलब हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी)

  1. अबू बकर अस-सिद्दीक (632-634 ईसवी) ( मुहम्मद साहब के ससुर)
  2. उमर इब्र अल-खताब (634-644 ईसवी)
  3. उस्मान इब्र अफ्फान (644-656 ईसवी)
  4. अली इब्र अबू तालिब (मुहम्मद साहब के चचेरे भाई और बाद में उनके दामाद) (656-661)

मुहम्मद साहब की मृत्यु के बाद के पहले चारों खलीफाओं को मानने वाले सुन्नी कहलाये

परन्तु कुछ लोग केवल चौथे खलीफा अली इब्र अबू तालिब को ही मुहम्मद साहब का उत्तराधिकारी मानते थे वो शिया मुसलमान कहलाये।

शिया लोगो का मानना था कि अली इब्र अबू तालिब जो कि मुहम्मद साहब के चचेरे भाई थे और बाद में मुहम्मद साहब की बेटी फातिमा से शादी कर के उनके दामाद बने वो ही सच्चे खलीफा थे

उसके पहले के 3 खलीफाओं को वो अपना नेता नहीं मानते और उनको ग़ासिब कहते हैं

जिसका मतलब होता है हड़पने वाला। शिया लोगो के अनुसार, पहले के तीन खलीफाओं ने खलीफा के पद पर जबरन अधिकार किया था।

शिया और सुन्नी में समानताएं – क्या शिया लोग हज़ करते हैं- क्या शिया पैगम्बर मोहम्मद को मानते हैं

  • शिया और सुन्नी दोनों ही मुस्लिम समुदाय से संबंध रखते हैं।
  • दोनों ही नमाज पढ़ते हैं।
  • दोनों ही हजरत मुहम्मद को अपना पैगम्बर मानते हैं।
  • दोनों ही कुरान को मानते हैं।
  • दोनों ही हज की यात्रा करते हैं।

शिया और सुन्नी में अंतर – शिया लोग नमाज़ कैसे पढ़ते हैं।

  • सुन्नी शब्द अहल-अल-सुन्ना से लिया गया है जिसका मतलब होता है परम्पराओ को मानने वाले लोग। सुन्नी लोग पूरी तरह से हजरत मुहम्मद साहब का अनुशरण करते हैं अर्थात वो किस तरह का लिबाज पहनते थे, किस तरह की उनकी दिनचर्या होती थी।
  • शिया नाम शियत अली से लिया गया है शिया मानते हैं कि इस्लाम एक राजनीतिक दल के रूप में शुरू हुआ जिस दल का नाम था शियत अली, जो कि चौथे खलीफा अली इब्र अबू तालिब का राजनीतिक दल था।
  • सुन्नी मुहम्मद साहब के बाद के चारों खलीफाओं को मानते हैं परन्तु शिया केवल चौथे खलीफा अली इब्र अबू तालिब को ही खलीफा मानते हैं।
  • दोनों समुदाय की अपनी अपनी मस्जिदें हैं और कट्टर शिया और कट्टर सुन्नी एक दूसरे की मस्जिदों में नहीं जाते। हालाँकि कुछ मुसलमान शिया और सुन्नी की भिन्ताओं को छोड़कर दोनों मस्जिदों में जाते हैं
  • दोनों समुदाओं के लोग, मुस्लिम होने के वाबजूद एक दूसरे के परिवार में विवाह नहीं करते हैं।
  • सुन्नी हाथ जोड़कर नमाज अदा करते हैं जबकि शिया हाथ खोलकर नमाज अदा करते हैं।
  • सुन्नी दिन में 5 बार नमाज पढ़ते हैं जबकि शिया दिन में 3 बार नमाज पढ़ते हैं।
  • दुनिया में सुन्नी मुस्लिम आबादी लगभग 80% से 90% है जबकि शिया आबादी केवल 10% से 15% के आस पास है।
  • अकबर और औरंगजेव दोनों ही सुन्नी समुदाय से संबंध रखते थे जबकि औरंगजेव का भाई दारा शिकोह शिया समुदाय से संबंध रखता था।
  • शिया ईरान, इराक, बहरीन,अजरबैजान और लेबनान में बहुसंख्यक हैं जबकि सुन्नी अन्य सभी देशों में बहुसंख्यक हैं।

शिया मातम क्यों करते हैं। मुहर्रम में शिया शोक क्यों करते हैं

शिया समुदाय अली इब्र अबू तालिब जो कि “मोहम्मद साहब के चचेरे भाई भी थे और उनकी बेटी फातिमा के पति भी थे अर्थात उनके दामाद भी थे” को खलीफा मानते हैं।

अली इब्र अबू तालिब की शादी हजरत मुहम्मद की बेटी फातिमा से हुई थी। इन दोनों के 2 बेटे हुए हुसैन और हसन

हुसैन, कर्बला (जो कि इराक की राजधानी बग़दाद के पास स्थित है) के युद्ध में धर्म की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे जबकि हसन को जहर देकर मारा गया था।

इसलिए हुसैन के शहादत पर शिया समुदाय शोक मनाता है जिसमे वे खुद को लहूलुहान करते हैं

और या हुसैन हम न हुए लाइन का सम्बोधन करते हैं। मतलब अगर हम होते तो कर्बला में जो हुआ वो न होता। और शिया समुदाय अपने आपको इस बात की सजा देते हैं।

कर्बला का युद्ध क्यों हुआ था

चौथे खलीफा अली इब्र अबू तालिब की मृत्यु के लगभग 50 साल बाद सीरिया के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया।

परन्तु अली इब्र अबू तालिब के बेटे इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा(खलीफा मतलब हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी) मानने से इंकार कर दिया।

गवर्नर यजीद ने इससे नाराज होकर अपने राज्यपाल अतूबा को आदेश दिया कि हुसैन को उसके आदेश का पालन करने के लिए मनाओ अगर वो न माने तो उसका सर कलम कर दो।

battle of karbala

राज्यपाल, हुसैन को राजभवन में बुलाता है और उसको यजीद को खलीफा मानने के लिए कहता है। परन्तु हुसैन, यजीद को खलीफा मानने से इंकार कर देते हैं।

इसके बाद इमाम हुसैन मक्का सरीफ में हज की यात्रा पर चले जाते हैं। यजीद ने यहाँ पर यात्रियों के भेष में सैनिक भेजे और हुसैन की हत्या की कोशिश की।

जब हुसैन को इस बात का पता चला तो उन्होंने हज यात्रा न करके उमरा किया (उमरा हज यात्रा की एक छोटी प्रथा होती है जो यात्री हज यात्रा नहीं कर पाते वो उमरा करते हैं) और वहां से ईराक चले गए।

Imam husain sharine in karbala

मुहर्रम महीने की 2 तारीख तक हुसैन अपने पुरे परिवार के साथ कर्बला (जो की ईराक के बग़दाद के पास स्थित है ) में थे

और वो 9 तारीख तक यजीद को सही रास्ते पर आने के लिए समझाते रहे परन्तु यजीद पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

जब युद्ध होना जरुरी हो गया तब 10 तारीख को हुसैन ने यजीद से गुजारिश की कि वो एक रात के लिए अल्लाह की इबादत करना चाहते हैं।

इस रात को असुर की रात कहा जाता है। और उसके अगले दिन कर्बला के युद्ध में हुसैन के 72 अनुयायी मारे गए।

जब ये युद्ध चल रहा था तो हुसैन का 6 महीने का बेटा (जिसका नाम अली असगर था)प्यास से बेहाल था। हुसैन ने यजीद की फ़ौज से अपने बेटे को पानी पिलाने के लिए कहा।

लेकिन फ़ौज ने उसको पानी पिलाने से इंकार कर दिया और हुसैन के 6 महीने के बच्चे ने उसके हाथों में ही दम तोड़ दिया उसके बाद हजरत इमाम हुसैन का भी कत्ल कर दिया गया।

इस प्रकार हुसैन अपने 6 महीने के बच्चे को भी नहीं बचा पाए। जिस दिन हुसैन की सहादत हुई उसी दिन को मुहर्रम के दिन के रूप में मनाया जाता है। और उसे असुर का दिन कहा जाता है।

शिया और सुन्नी में कट्टर कौन हैं।

शिया और सुन्नी में कट्टर कौन है ये कहा नहीं जा सकता क्यूंकि सब धर्मो में कुछ लोग कट्टर होते हैं और कुछ को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता।

सुन्नियों में भी औरंगजेव कट्टर था परन्तु अकबर कट्टरपंथी में विश्वास नहीं रखता था। कुछ लोगो के कारण पुरे समुदाय को कट्टर घोषित नहीं किया जा सकता।

कट्टरपंथी लोग अपने बचपन में अपने आस पास के माहौल और अपनी शिक्षा के कारण अस्तित्व में आते हैं।

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