धर्म का नाम | ज़ोरोस्ट्रियनिस्म (पारसी) |
ईस्वर का नाम | अहुरा मज़्दा |
धार्मिक ग्रन्थ | अवेस्ता |
पारसी धर्म के संस्थापक | ज़रथुष्ट्र |
पूजा स्थल | अग्नि मंदिर |
अग्नि मंदिर में अग्नि की जगह का नाम | अगियारी, आतिश बेहराम, दार-ए मेहर |
पारसी समुदाय के कब्रिस्तान का नाम | दख्मा या टावर ऑफ़ साइलेन्स |
भारत में पारसी समुदाय के महत्वपूर्ण व्यक्ति | दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, जमशेदजी टाटा, हमीर लाल और रतन टाटा |
पारसियों के लिए साल में 3 मौके सबसे महत्वपूर्ण होते हैं जब सब पारसी मिलकर पारसी धर्मशाला में पूजा करते हैं।
- खौरदाद साल,
- प्रॉफिट जरस्थ्रू का जन्मदिवस, 24 अगस्त
- 31 मार्च
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Toggleनवरोज़ और 31 मार्च , नवबर्ष का दिन
ईरान के पड़ोसी देश ईराक में अब भी सालों पहले आये पारसी लोग मार्च में नवबर्ष मनाते हैं।
मार्च पारसी लोगो के लिए किसी बड़े त्यौहार से कम नहीं होता। पारसी लोग नवबर्ष के 6 दिन बाद पैगम्बर जरस्थ्रू का जन्मदिवस मनाते हैं और उसे ख़ोरदाद साल कहते हैं।
पारसी लोग एक साल में 360 दिन मानते हैं और बचे हुए 5 दिन गाथा के रूप में रखते हैं। गाथा यानि अपने पूर्वजों को याद करने का दिन।
इन 5 दिनों में हर पारसी अपने पूर्वजों की शांति के लिए प्रार्थना करता है। ये साल के अंतिम दिन होते हैं।
कहा जाता है कि इस पूजा अर्चना के लिए एक विशेष समय तय होता है। और रात के 3:30 बजे से ये खास पूजा शुरू हो जाती है
इस दौरान लोग चांदी या स्टील के बर्तन में फूल रखकर पूजा करते हैं। और अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
भारत में रहने वाले पारसी लोग अगस्त में मनाते हैं नवबर्ष। अग्नि मंदिर किस धर्म का पूजा स्थल है
भारत में रहने वाले पारसी लोग अगस्त में नवबर्ष मनाते हैं जिसे नवरोज कहा जाता है। कहा जाता है कि पारसी समुदाय के लिए नवबर्ष एक आस्था और उत्साह का संगम होता है।
इस प्रकार पारसी लोग साल में 2 बार नवबर्ष मनाते हैं एक बार मार्च में और एक बार अगस्त में।
वास्तव में पैगम्बर जरस्थ्रू का जन्मदिवस कब होता है ये पक्के तौर पर किसी को पता नहीं है। परन्तु पारसियों के अनुसार ये नवबर्ष के 6 दिन बाद होता है। और उसे ही ख़ोरदाद साल कहा जाता है।
पारसी समाज में अग्नि का एक बिशेष स्थान हैं और आग की पूजा एक बिशेष तरीके से की जाती है। भारत के कई शहरों में कई सालों से पारसियों की अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है।
उनमे नागपुर, दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं। इस जोत में बिजली,लकड़ी और मुर्दो की आग के अलावा 8 और जगहों से आग ली गई है।
इस जोत को रखने के लिए एक बिशेष कमरा होता है। जिसे अगियारी कहा जाता है। अगियारी में अग्नि निरंतर जलती रहती है जिसे कभी भुझने नहीं दिया जाता।
इसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की तथा दक्षिण में दीवार होती है। ईरान, पाकिस्तान ,इराक, बेहरीन, तजाकिस्तान और भारत में पारसी नवबर्ष की धूम देखी जा सकती है।
पारसी किस ईस्वर की पूजा करते हैं
सब धर्मो के अपने अपने ईस्वर होते हैं जो उनकी संस्कृति और उनके रहन सहन को प्रदर्शित करते हैं। पारसी लोग अपने ईस्वर अहुरा मजदा की पूजा करते हैं
उनके अनुसार ब्रह्माण्ड प्रत्येक चीज़, ये सारे ग्रह आदि ईस्वर अहुरा मजदा ने ही बनाये हैं। पारसी धर्म विश्व के सबसे पुराने एकेश्वरवाद धर्मो में से एक हैं और वो केवल एक ईस्वर को ही मानते हैं।
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पारसियों के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल
उदवाड़ा
उदवाड़ा गुजरात का एक छोटा से शहर है परन्तु पारसियों के लिए ये शहर बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ पर पारसियों की सबसे महत्वपूर्ण जगह उदवाड़ा आतश बेहराम मंदिर है
जो कि एक आग का मंदिर है। इसे ईरान शाह भी कहा जाता है। जिसका मतलब होता है ईरान का राजा।
ये लोग ईरान से आये थे इसलिए इन्होने इसे ईरानशाह का नाम दिया। ये पारसी धर्म के आठ अग्नि मंदिरों में से पहला है ये मंदिर आठवीं शताब्दी में बनाया गया था।
यहाँ पर भारत के पारसी ही नहीं बल्कि दुनिया भर के जोरास्ट्रियन यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं।
मंदिर के अंदर अखंड अग्नि कुंड हैं जो बर्षों से जल रहा है। बेहराम पश्चिमी शब्द वारहरन से बना है
जिसका मतलब है विजयी और आतश का मतलब होता है अग्नि। इस आतश बेहराम का मतलब होता है विजयी अग्नि।
पारसियों की आतश बेहराम की अग्नि का इतिहास
दुनियाभर में कुल मिलाकर 9 आतश बेहराम हैं। इनमे से आठ पश्चिमी भारत में हैं।
- 4 आतश बेहराम मुंबई में हैं
- 2 आतश बेहराम सूरत (गुजरात) में है
- 1 आतश बेहराम नवसारी (गुजरात) में है
- 1 आतश बेहराम उदवाड़ा (गुजरात) में है
- केवल एक आतश बेहराम भारत के बाहर ईरान में है
ये आतश बेहराम शुरू में पारसियों के भारत में स्थापित होने की यात्रा को भी दर्शाते हैं। जब पारसी ईरान से आये थे तो उन उन्होंने संजान के पास आतश की स्थापना की थी।
उसके बाद वो नवसारी गए, नवसारी से वासदा, वासदा से सूरत, सूरत से वापस नवसारी, नवसारी से वलसाद और वलसाद से उदवाड़ा आये थे और ये उड़वाड़ा आतश तभी से जल रहा है।
कैसे बनाई गई है आतश बेहराम की अग्नि
आतश बेहराम की अग्नि के पीछे की कहानी काफी अनोखी है। पारसी लोग मानते हैं कि जब वो ईरान से निकले थे तो वो अपने साथ पवित्र अग्नि की राख को लेकर निकले थे।
और जब रास्ते में उनका जहाज तूफान में फंस गया तो पारसियों ने अपने फरिस्ते बेहराम से प्रार्थना की वो जिस भी भूमि पर उतरेंगे वहाँ पर उनके नाम की अताश(अग्नि) बनाएंगे। इसलिए इसे आतश बेहराम का नाम दिया गया।
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आतश बेहराम की अग्नि कोई मामूली आग नहीं है पारसी लोक कथाओं के अनुसार ये अग्नि 16 तरह से बनाई जाती है
जिनमे मुख्य तौर पर गाज़ से लगी आग, अंतिम संस्कार की आग, चरवाहे के घर की आग, सुनार की दुकान की आग, और कुम्हार की दुकान की आग शामिल होती है।
कब बनवाया गया था उदवाड़ा का पारसी मंदिर
शुरू में भारत आने पर पारसी एक से दूसरी जगह बसने की कोशिश में थे। अपने साथ वो आतश बेहराम को भी लेकर घूमते थे। आखिर में इसे 1742 ईस्वी में इसे उदवाड़ा में मंदिर बनबाकर स्थापित कर दिया गया।
हर साल उदवाड़ा आतश बेहराम मंदिर में समारोह आयोजित किया जाता है। ये जोरास्ट्रियन कैलेंडर के हिसाब से साल के 9बें महीने की 9 तारीख को होता है। दुनिया भर से जोरास्ट्रियन इस समारोह में शामिल होने आते हैं।
गुजरात का जोरास्ट्रियन हेरिटेज म्यूजियम
उदवाड़ा आतश बेहराम मंदिर के अलावा गुजरात के इस शहर में जोरास्ट्रियन हेरिटेज म्यूजियम भी है ये गुजरात सरकार के द्वारा प्रायोजित म्यूजियम है।
यहाँ पर पारसी इतिहास और उनके भगवान अहुरा मजदा की शिक्षाएं देखने को मिलती हैं। म्यूजियम में प्रसिद्ध पारसी लोगो की जीवनी और उनके इतिहास के बारे में भी बताया गया है।
संक्षेपण
पारसी अपने धर्म को लेकर बहुत ही जुनूनी होते हैं। इसकी कई वजह हैं। जैसे जब पारसी यहाँ पर आये थे तो वो विदेशी थे तो उन्होंने हर वो कोशिश की जिससे वो अपने धर्म को अपने देश ईरान से दूर भी सुरक्षित रख पाएं।
आजादी के बाद उनमे इस तरह की भावनाएं और भी मजबूत हो गईं। उन्होंने हर वो कोशिश की जिससे उनके धर्म में मिलाबट न आये।
बहुत से लोग आजादी के बाद भारत छोड़कर नए अवसरों की तलाश में दूसरे देशों में जा बसे। जो भारत में रह गए उन्होंने अपने धर्म और रीति रिवाजों को सहेजकर रखने की कोशिश की।
अपने धर्म को सहेजने के साथ साथ वो हर भारतीय धर्म से मिलजुलकर रह रहे हैं। मुंबई जैसे शहर में सबसे ज्यादा पारसी रहते हैं ये भारतीयों के साथ पूरी तरह से घुल मिल गए हैं।
क्यों घट रही है पारसियों की जनसँख्या। पारसी समुदाय बिलुप्त होने की कगार पर।
FAQ
अग्नि मंदिर किस धर्म का पूजा स्थल है
अग्नि मंदिर पारसी( ज़ोरोस्ट्रियन) लोगो का धर्म स्थल है जिसे आतिश बेहराम कहा जाता है। इसे ईरान शाह भी कहा जाता है। जिसका मतलब होता है ईरान का राजा। इसको फारसी में दार-ए मेहर, गुजराती में अगियारी और अंग्रेज़ी में इसे फ़ायर टेम्पल (fire temple) कहा जाता है।
पारसी समाज में अग्नि का एक बिशेष स्थान हैं और आग की पूजा एक बिशेष तरीके से की जाती है। भारत के कई शहरों में कई सालों से पारसियों की अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है। बेहराम पश्चिमी शब्द वारहरन से बना है। जिसका मतलब है विजयी और आतश का मतलब होता है अग्नि। इस प्रकार आतिश बेहराम का मतलब होता है विजयी अग्नि।
आतिश बेहराम की अग्नि में बिजली,लकड़ी और मुर्दो की आग के अलावा 8 और जगहों से आग ली जाती है । इस जोत को रखने के लिए एक बिशेष कमरा होता है। जिनमे पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की तथा दक्षिण में दीवार होती है।
पारसी धर्म का धार्मिक स्थल क्या है?
अग्नि मंदिर पारसी( ज़ोरोस्ट्रियन) लोगो का धर्म स्थल है जिसे आतिश बेहराम कहा जाता है। इसे ईरान शाह भी कहा जाता है। जिसका मतलब होता है ईरान का राजा। इसको फारसी में दार-ए मेहर, गुजराती में अगियारी और अंग्रेज़ी में इसे फ़ायर टेम्पल (fire temple) कहा जाता है।
पारसी किसकी पूजा करते हैं
पारसी धर्म के लोग अहुरा मजदा की पूजा करते हैं। पारसी लोगो का मानना है कि इस संसार की प्रत्येक चीज़ अहुरा मजदा ने ही बनाई है
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proud to be ‘Parsi’