हिन्दू समाज में बहुत सी जातियां हैं जो जग जाहिर हैं। पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म की जातियों के बारे में बात होती है। समस्या का पता लगने के बाद ही उसे हल किया जा सकता है। इस प्रकार देखा जाए हिन्दू समाज में दलित बर्गों के उथान पर काम हो रहा है। अभी बहुत काम होना बाकि है पर कार्य प्रगति पर है।

परन्तु उनका क्या जिनमे बीमारी तो है परन्तु उन्हें डॉक्टर के पास जाने नहीं दिया जाता। आज हम बात करने जा रहे हैं मुस्लिम धर्म की जातियों के बारे में जिनकी जड़ें इतनी गहरी है की बाहर से दिखाई भी नहीं देतीं।

इस्लाम धर्म में कुल कितनी जातियां हैं

जातियों के आधार पर मुस्लिम समाज को तीन भागों में बांटा जाता है।

  • अशराफ
  • अजलाफ
  • अरजाल

अशराफ मुसलमान कौन होते हैं

अशराफ मुसलमान वो मुसलमान हैं जो बाहर से आये हैं या हिन्दू उच्च जातियों से धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बने हैं मुसलमानों में इनकी आबादी 15 से 20 प्रतिशत के बीच है। और ये उच्च बर्ग के मुसलमान कहलाते हैं। इनमे आते हैं

सैयद, शेख, पठान, मुगल और मिर्जा

अली इब्र अबू तालिब जो पैगम्बर मोहम्मद के चचेरे भाई थे और पैगम्बर मोहम्मद की बेटी फातिमा से शादी करके उनके दामाद बन गए उनके बच्चे आगे सैयद कहलाये।”

अजलाफ मुसलमान कौन होते हैं

अजलाफ मुसलमान वो होते हैं जो हिन्दुओ के पिछड़े बर्ग से सबंध रखते थे और धर्म परिवर्तन से मुसलमान बन गए। इनमे आते हैं

अंसारी, मंसूरी, राइन, क़ुरैशी

अरजाल मुसलमान कौन होते हैं

ये दलित और अति पिछड़ी हिन्दू जातियों से परिवर्तित होकर मुसलमान बने। मुसलमानों का सबसे कमजोर और अति पिछड़ा बर्ग ही अरजाल कहलाता है इनमे आते हैं

हलालख़ोर, हवारी, रज़्ज़ाक

भारत में पसमांदा मुसलमान कौन हैं

सामाजिक और आर्थिक आधार पर पिछड़ने वाले अजलाफ और अरजाल मुसलमानों को पसमांदा मुसलमान कहा जाता है। और ऐसा कहा जाता है कि चूँकि ये हिन्दुओं से परिवर्तित होकर मुसलमान बने थे इसलिए इनमे जातियाँ भी उसी आधार पर बन गई।

हिन्दू जातिमुस्लिम जाति
जुलाहाअंसारी
कसाईकुरैशी
नाईसलमानी
ग्वालाघोसी
धोबीहाबाराती
मेहतरहलालखोर
दर्जीइदरीसी
धुनियामंसूरी
मनिहारसिद्दीकी
भठियाराफ़ारुकी
गोरकनशाह
पमारियाअब्बासी

ये पसमांदा मुसलमान भारत में मुसलिम आबादी का 80 प्रतिशत के लगभग हैं। लेकिन ये आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा के स्तर पर सबसे पिछड़े लोग हैं।

15% अशराफ 85% पसमांदा का नेतृत्व करते हैं।

फ़ैयाज़ अहमद फ़याज़ी जो कि एक पसमांदा मुसलमान हैं, कहते हैं कि इस देश में मुसलमान होने के जितने फायदे हैं वो अशराफ बर्ग उठाता है और मुसलमान होने के जितने नुक्सान हैं वो पसमांदा मुसलमान उठाते हैं।

मसलन चुनावों में मुस्लिम नेता का चुनाव करने की बारी आती है तो नेता अशराफ बर्ग में से चुना जाता है परन्तु दंगो में जो मरते हैं वो पसमांदा मुसलमान होते हैं।

संबिधान बनने के समय संसद में कोई दलित मुसलमान नहीं था

फ़ैयाज़ अहमद फ़याज़ी कहते हैं कि जिस समय भारत का संबिधान बन रहा था उस समय दलित मुस्लिम बर्ग का कोई प्रतिनिधि संसद में नहीं था इसलिए उनके अधिकारों को संसद में नहीं रखा गया। और अशराफ बर्ग ने मुस्लिम जातिबाद को कभी बाहर आने नहीं दिया।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और वक्फ बोर्ड जैसे मुस्लिम संगठनों में कोई सदस्य पसमांदा मुसलमान नहीं

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुसलिम वक्फ बोर्ड जिसको मुसलमानो का प्रतिनिधि समझा जाता है उसमें एक भी सदस्य पसमांदा मुसलमान नहीं है इसलिए पसमांदा मुसलमान के अधिकारों की हमेसा अनदेखी होती है।

15% अशराफ बर्ग 85% भारतीय मुसलमानों के भविष्य का फैसला करता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के किसी भी फैंसले को सम्पूर्ण मुस्लिम समाज का फैंसला मान लिया जाता है।

दलित मुसलमानो को मस्जिदों में प्रवेश की भी अनुमति नहीं

पसमांदा में जो दलित समुदाय के मुसलमान हैं उनको मस्जिदों में जाने की हिम्मत नहीं पड़ती। भारत में जितनी भी बड़ी-बड़ी मस्जिदें हैं वहाँ पर केवल अशराफ बर्ग ही नमाज़ पढता हैं और दलित पसमांदा मुसलमानो को इसकी इज़ाज़त नहीं होती।

फ़ैयाज़ अहमद फ़याज़ी कहते हैं भारत में ऐसी मस्जिदें बहुत मिल जाएँगी जहाँ 5 बक्त की नमाज़ पसमांदा इमाम पढ़ाता है परन्तु ईद या जुम्मा पढ़ाने के लिए अशराफ इमाम आता है।

लेकिन ऐसी कोई मस्जिद नहीं मिलेगी जिसमे पूरा साल अशराफ इमाम नमाज़ पढ़ाये और ईद और जुम्मे पर पसमांदा मुसलमान नमाज़ पढ़ाये।

अली अनवर अपनी किताब सम्पूर्ण दलित आंदोलन में लिखते हैं कि

पटना के नूर हसन आज़ाद ‘दलित मुस्लिम पमरिया (अब्बासी) संघ’ नाम से एक संगठन चलाते हैं। उनका कहना है कि उनकी बिरादरी के साथ कई गाँवों में बहुत ख़राब सुलूक किया जाता है। मिसाल के तौर पर, लोहरदगा ज़िला, झारखंड के मकाते गाँव में पमरियों के 150 घर हैं। यहाँ जुमा की नमाज़ में इस जाति के लोगों को पीछे धकेल दिया जाता है। मदरसे में भी इनके बच्चों के साथ छुआछूत बरती जाती है। इसके लिए झगड़ा हुआ और एक बार तो गोली चलने की नौबत आ गई थी। इसलिए पमरिया जाति के लोग अलग ही नमाज़ पढ़ते हैं।

मस्जिद और जुम्मा मस्जिद में क्या अंतर् हैं पढ़ने के लिए क्लिक करें

दलित मुसलमानों के लिए कब्रिस्तानों में जगह नहीं

प्रशांत के. त्रिवेदी, श्रीनिवास गोली, फ़ाहिमुद्दीन और सुरेंद्र कुमार ने अक्टूबर, 2014 से अप्रैल, 2015 के बीच उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों के 7,000 से ज़्यादा घरों के सर्वेक्षण के आधार पर एक लेख लिखा– ‘डज अनटचेबिलिटी एक्जिस्ट अमाँग मुस्लिम्स?’

प्रशांत के त्रिवेदी कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार दलित मुसलमानो के लिए उच्च जाति के कब्रिस्तानों में कोई जगह नहीं होती और अगर उनको अपने मृतकों को दफनाना भी होता है तो वो एक कोने में दफनाते हैं।

मध्य प्रदेश और बिहार में तो सब जातियों के अपने अपने कब्रिस्तान हैं। पमाड़िया, मंसूरी, सैयद और धुनिया सबके अपने अपने कब्रिस्तान हैं। और ये अपने मृतकों को अपने अपने कब्रिस्तानों में ही दफनाते हैं।

कब्र दरगाह मजार और मकबरे में क्या अंतर है?

भारत में मुस्लिम साक्षरता दर कितनी है?

2011 की जनगणना के अनुसार मुसलिम में साक्षरता दर 68.54% थी जो भारत के सभी धर्मो में सबसे कम है। अली अनवर ने 100 पसमांदा परिवारों का सर्बेक्षण और अध्ययन किया और पाया कि उनमे अनपढ़ों की सँख्या 370 यानि 62.5% थी

जहाँ तक बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की बात है, इन परिवारों की स्थिति चिन्ताजनक है। सबसे ख़तरनाक बात यह है कि इन लोगों में पढ़-लिखकर कुछ बनने की तमन्ना मर गई है।

पढ़-लिखकर क्या बनना चाहते हैं, यह सवाल इनको सबसे ज़्यादा चिढ़ानेवाला लगता है। इसके जवाब में ये इतना ही कहते हैं, “क्या बनेंगे, ख़ाक!” हिन्दू दलितों के बेटे-बेटियाँ जहाँ आज आई.ए.एस.-आई.पी.एस., डॉक्टर, इंजीनियर विधायक और भारत का सर्बोच्च पद राष्ट्रपति तक बन रहे हैं

बहीं यहाँ पर 100 परिवारों में केवल 7 दसवीं पास , 3 बाहरवीं और एक स्नातक पास पाया गया।

जातिप्रथा पर बुद्धिजीवियों के विचार

चाहे कोई हरिजन नाममात्र को एक ईसाई, मुस्लिम या हिन्दू और अब एक सिख हो जाए वह तब भी एक हरिजन ही रहेगा। वह तथाकथित हिन्दू धर्म से विरासत में प्राप्त धब्बों को नहीं मिटा सकता, चाहे वह अपनी वेश-भूषा बदलकर स्वयं को कैथोलिक हरिजन या मुस्लिम हरिजन या नव मुस्लिम या नव सिख कहला ले, किन्तु उसकी अस्पृश्यता पीढ़ियों तक उसका पीछा नहीं छोड़ेगी।-महात्मा गाँधी

हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है, लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते हुए भी झिझकते हैं… जो निम्नतम काम करके हमारे लिए सुविधाओं को उपलब्ध कराते हैं उन्हें ही दुरदुराते हैं। पशुओं की हम पूजा कर सकते हैं, लेकिन इनसान को पास नहीं बिठा सकते!.-भगत सिंह

यदि सभी पिछड़ी जातियों, हिन्दू और मुसलमानों को जाति-प्रथा का नाश करने और बराबरी लाने की नीयत से प्रोत्साहन दिया जाता और यदि राष्ट्रीय आन्दोलन, कम-से-कम असहयाेग आन्दोलन के समय से इस नीति पर ढंग से अमल होता तो भारत का विभाजन न होता…।राम मनोहर लोहिआ

निष्कर्ष

देश छोड़ा जा सकता है , धर्म छोड़ा जा सकता है, शरीर भी छोड़ा जा सकता है परन्तु जाति मृत्यु के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती।

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