मध्य काल में भारत पर कई विदेशी आक्रमण हुए। ये आक्रमण धन अर्जित करने के लिए, सीमा विस्तार के लिए और कई युद्ध धर्म को आधार बना कर हुए। परन्तु ये सवाल हमेशा बना रहता है कि युद्ध के समय बाहरी आक्रमणकारी अपनी इतनी बड़ी सेना के लिए भोजन की व्यवस्था कैसे करते थे।
ये सेना इतनी दूर से आती थी और उसमे पैदल सैनिको की संख्या भी काफी होती थी, साथ में ये लोग अपने हथियार, गोला बारूद, तोपखाना भी साथ में ले के चलते थे। परन्तु भारत की भौगोलिक परिस्थितियां उस समय ऐसी नहीं थी कि इतने सारे सामान के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा की जा सके।
तो इनके भोजन की व्यवस्था कैसे होती थी। भारत देश में ऐसे बहुत से कबीले थे जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपने पालतू जानवरो के साथ घूमते थे जिन्हे धुमन्तु या खानाबदोश कहा जाता था इन लोगो ने राजाओं और मुगलों की युद्ध के समय या भारत में रहने के दौरान काफी सहायता की है।
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Toggleघुमन्तु या खानाबदोश (Nomads) लोग कौन होते हैं
घुमन्तु लोग घूमने वाले लोग होते थे जो गॉव गॉव जाकर अपने शहर का खाने पीने का तथा अन्य जरुरी सामान बेचते थे। उनमे से कई भोजन के लिए पशुओं पर निर्भर रहने वाले लोग होते थे जो अपने पालतू पशुओं के साथ एक चरागाह से दूसरी चरागाह का सफर करते थे।
इसी तरह फेरी वाले, दस्तकार, गाना बजाने वाले और तमासा करने वाले समूह अपना काम करते करते एक जगह से दूसरी जगह घुमा करते थे। ये घुमन्तु लोग अक्सर उस जगह लौट कर आते हैं जहाँ पर उन्होंने पिछले साल दौरा किया था।
इन घुमन्तु लोगो में सुल्तानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण बंजारे हुआ करते थे। इनका कारवां टांडा कहलाता था। सुल्तान अलाउदीन खिलजी बंजारों की ही सहायता से नगर तक अनाज की धुलाई करवाया करता था ।
बादशाह जहांगीर ने भी अपने संस्मरणों में लिखा है कि बंजारे अलग अलग इलाकों से अपने बैलों पर अनाज ले जाकर शहरों में बेचते थे। सेना के अभियानों के समय भी यही लोग अपने बैलों पर सेना के लिए खाने पीने के सामान की ढुलाई करते थे। ऐसा माना जाता है कि किसी भी सेना के लिए 1 लाख बैल अनाज ढोते होंगे। ये जानकारी हमें पीटर मुंडी के लेखो से प्राप्त हुई है।
पीटर मुंडी(1597-1667) कौन था
पीटर मुंडी एक ब्रिटिश यात्री था। वो एक व्यापारी और लेखक भी था। पीटर मुंडी 1628 में इंग्लैंड से सूरत पहुंचा उसके बाद के बर्षों में उसने आगरा और पटना की यात्रा की। उसने आगरा में शाहजहाँ के 2 बेटों की शादियाँ देखीं जिनका वर्णन पीटर मुंडी ने अपने संस्मरणों में किया है।
इसके अलावा उसने भारत की बहुत सी परम्पराओं के बर्णन अपने संस्मरणों में किया है। उसने अपनी यात्रा में बंजारों या टांडो से हुई मुलाकातों के बारे में लिखा है।
बंजारा या टांडा क्या है
पीटर मुंडी अपने एक लेख में लिखते हैं। आज सुबह-सुबह हमारी मुलाकात बैलों के एक टांडा या बंजारे से हुई। 1 टांडा लगभग 14,000 बैलों के साथ चल रहा था। सभी बैल गेहूं, चावल आदि अनाजों की बोरियों से लदे हुए थे ।
हमने पहले भी कई बंजारे या टांडा से मुलाकात की है जो अपने इलाकों से आते हैं, सभी आगरा जाते हैं, जहाँ से अनाज फिर अन्य स्थानों पर ले जाया जाता है।
ये बंजारे अपने साथ अपनी सारी संपत्ति, पत्नियाँ और बच्चे लेकर चलते हैं। एक टांडा में कई परिवार होते हैं। उनका जीवन कुछ हद उन लोगो जैसा है जो लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं ।
गाय बैल उनकी अपनी सम्पति भी होते हैं और कई बार वो सौदागरों के द्वारा भाड़े पर लिए जाते हैं लेकिन जयादातर वो उनके अपने होते हैं।
अनाज जहाँ सस्ता मिलता है वो वहां से खरीदते हैं इसे उन जगहों पर ले जाते हैं जहाँ यह महंगा होता है और साथ में वहाँ से फिर से अपने लिए कोई भी ऐसी चीज़ ले आते हैं जो दूसरे स्थानों पर मुनाफे के साथ बेचीं जा सकती हो जैसे नमक, चीनी, मक्खन, आदि। ऐसे एक टांडा में 600 या 700 लोग हो सकते हैं, जिनमें पुरुष, महिलाएँ और बच्चे शामिल हैं। ये लोग अपने लदे हुए बैलों को अपने आगे आगे चलाते हैं
उनकी यात्रा दिन में ज़्यादा से ज़्यादा 6 या 7 मील से ज़्यादा नहीं होती यहाँ तक की ठण्ड में भी नहीं । जब वे अपने बैलों से बोझ उतार लेते हैं, तो वे उन्हें चरने के लिए मोड़ देते हैं, क्योंकि यहाँ काफी ज़मीन होती है और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होता।