मस्जिद मुसलमानो का प्रार्थना स्थल होता है। यहाँ पर नमाज़ पढ़ी जाती है। नमाज का अर्थ होता है सजदा करना या भक्ति भाव से झुकना। पूरी दुनिया में इस समय लगभग 38 लाख 50 हजार के लगभग मस्जिद हैं

इस्लाम में ईस्वर को निराकार माना गया है। निराकार मतलब जिसका कोई आकार नहीं होता है इसलिए मस्जिद के अंदर न तो कोई मूर्ति लगाई जाती है न ही कोई तस्वीर स्थापित की जाती है। मस्जिद में नमाज पढ़ी जाती है, कुरान पढ़ी जाती है और इस्लाम के बारे में जानकारी हासिल की जाती है।

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मस्जिद किस जगह पर बनाई जा सकती है

मस्जिद बनाने की जगह का पूरी तरह से अविवादित होना आवश्यक है अर्थात किसी भी गैर क़ानूनी या विवादित जगह पर मस्जिद का निर्माण नहीं किया जा सकता और एक बार अगर किसी जगह पर मस्जिद बन गई तो वो स्थान पूरी तरह से मस्जिद का हो जाता है।

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मस्जिद में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति

आमतौर पर मस्जिद में पुरुष ही सजदा करते या नमाज़ पढ़ते देखे जा सकते हैं परन्तु मस्जिद में एक हिस्सा महिलाओं के लिए भी आवंटित किया जा सकता है जहाँ वो भी नमाज़ पढ़ सकती हैं परन्तु उनके आने जाने का रास्ता, बुजु की जगह और नमाज पढ़ने की जगह पुरुषों से अलग होनी चाहिए।

कुछ मस्जिदों जैसे दिल्ली की जामा मस्जिद और भोपाल की ताज-उल-मस्जिद जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में सुमार हैं इन मस्जिदों में ये सुविधाएं उपलब्ध हैं।

अजान क्यों दी जाती है

अजान एक अरबी शब्द है जिसका मतलब होता है बुलाना, पुकारना या एलान करना। मस्जिद में ये शब्द नमाज के लिए लोगों को बुलाने के लिए उपयोग होता है। अजान देने वाले को मुअज्जिन कहा जाता है। नमाज पढ़ने से पहले अजान दी जाती है।

अजान देने वाला मुअज्जिन अरबी में जो कहता है उसका हिंदी अनुवाद है – अल्लाह सबसे बड़ा है ! अल्लाह के अलाबा कोई पूजनीय नहीं है ! मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं ! आओ नमाज़ की तरफ ! आओ नमाज़ की तरफ !

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बुजु कैसे किया जाता है

नमाज़ पढ़ने से पहले इंसान का साफ़ होना आवश्य्क हैं इसलिए मुसलमान मस्जिद में प्रवेश से पहले बुजु करते हैं। बुजु करने वाला साफ़ पानी लेता है फिर 3 बार दोनों हाथ कलाइयों तक धोता है और साथ में हाथों की उँगलियों को भी धोता है।

उसके बाद दाएं हाथ के अंगूठे के साथ वाली उंगली से दाँत साफ़ करता है फिर 3 बार कुल्ली करता है। फिर नाक में पानी डाल कर बाएं हाथ की छोटी ऊँगली से नाक साफ़ करता है। फिर 3 बार चेहरा धोता है।

फिर 3 बार पहले दायाँ हाथ और फिर बायाँ हाथ कोहनियों तक धोता है। फिर दोनों हाथ भिगो कर सिर, गर्दन और कानो को मलता है। फिर पहले दायाँ पैर और बाद में बायाँ पैर टखनों समेत धोया जाता है। साथ में पैरों की उँगलियों को भी अच्छे से साफ किया जाता है।

बुजु करता एक नमाजी

नमाज किस तरह पढ़ी जाती है।

बुजु करने के बाद नमाज़ पढ़ी जाती है। मस्जिद में सभी नमाजी नमाज पढ़ने हैं। चाहे वो अमीर हो या गरीव। पहली लाइन पूरी तरह से भर जाने के बाद ही अगली लाइन में बैठना होता है। नमाज़ पढ़ते समय कावा की तरफ मुँह करना होता है और नीयत करनी होती है नीयत दिल के इरादे का नाम है।

नमाज अदा करता एक नमाजी

नमाज़ पढ़ते समय जो कहा जाता है उसके कुछ अंश का हिंदी अनुवाद

हे परमेश्वर ! तू महिमावान है। सारी प्रशंसा तेरे ही लिए है। तेरा नाम शुभ और मंगलकारी है। तेरी शान सर्बोच्च है। तेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। मैं सैतान से बचने के लिए ईस्वर की शरण में आता हूँ।

स्तुति एवं प्रसंशा ईस्वर के लिए ही है जो सारे जहानो का स्वामी, पालनहार और शासक है। अंत्यंत कृपाशील बड़ा ही दयावान है। फैंसले के दिन का बही स्वामी है। हे प्रभु हम तेरी ही उपासना करते हैं और तुझी से सहायता चाहते हैं। हमें सत्मार्ग दिखा।

उन लोगो का मार्ग हमें दिखा जिन पर तेरी अनुकम्पा रही है। जिन पर तेरा प्रकोप नहीं हुआ और जो पथभ्र्ष्ट नहीं हुए।

दरगाह क्या होती है

दरगाह एक ऐसी जगह है जहाँ पर किसी पूज्य सूफी संत, पीर या बलि को दफनाया जाता है और उनकी कब्र के ऊपर सुंदर इमारत बना दी जाती है उसे दरगाह कहा जाता है। बास्तव में दरगाह और मजार एक ही जगह के दो नाम हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि दरगाह एक फ़ारसी शब्द है जबकि मजार एक अरबी शब्द है।

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भारत की प्रसिद्ध और मुख्य दरगाह कौन सी हैं

अजमेर शरीफ दरगाह

भारत के अजमेर राजस्थान में प्रसिद्ध सूफी संत मोइउद्दीन चिस्ती की दरगाह है। इसे 1236 ईस्वी में बनाया गया था।

यहाँ पर जिस कढाहे में चावल बनाये जाते हैं उनमे से बड़ा कड़ाहा अकबर ने दान दिया था और छोटा कड़ाहा जहांगीर ने भेंट किया था इसके बाबजूद भी कुछ मुस्लिम दरगाह में आना पसंद नहीं करते क्यूंकि उनके अनुसार दरगाह मूर्ति पूजा का ही एक रूप है।

यहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं क्यूंकि यहाँ अजमेर के पास में ही पुष्कर में ब्रह्मा मंदिर, दौलत बाग, आना सागर झील, अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद , मेयो कॉलेज, नारेली का जैन मंदिर और तारागढ़ का किला भी है।

ajmer-shreef-dargah
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हाजी अली दरगाह

हाजी अली दरगाह जिसे सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में सन 1431 में बनवाया गया था। ये एक मस्जिद और दरगाह दोनों हैं इसलिए ये मुसलमानो के आकर्षण का मुख्य केंद्र भी है।

पीर हाजी अली शाह बुखारी अपने समय के प्रसिद्ध संतों में से एक थे। मक्का की यात्रा के दौरान इनकी मृत्यु हो गई थी परन्तु उनका ताबूत चमत्कारी रूप से यहाँ पर वापस आ गया था।

दरगाह को बनाने में मकराना नामक संगमरमर का इस्तेमाल किया गया था, जिसका इस्तेमाल ताजमहल बनाने में भी हुआ है। दरगाह में महिलाओं और पुरुषों की प्रार्थना के लिए अलग-अलग कमरे भी बने हुए हैं।

हजरत निज़ामुद्दीन दरगाह

ये हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है जो दिल्ली में स्थित हैं और 1562 ईस्वी में बनाई गई थी। यहाँ पर हर समुदाय के लोग माथा टेकने आते हैं।

पीर बाबा दरगाह

पीर बूढ़न अली शाह की दरगाह जिसे पीर बाबा की दरगाह के नाम से भी जाना जाता हैं। ये दरगाह जम्मू कश्मीर में स्थित है इसे 1683 ईस्वी में बनाया गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार पीर बाबा गुरु गोबिंद सिंह जी के मित्र थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन दूध पीकर ही व्यतीत किया था।

दरगाह गरीब शाह

ये जम्मू का एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है जो एक मुस्लिम संत गरीब शाह को समर्पित है उन्हें भाईचारे और एकता की मिसाल के लिए जाना जाता था। स्थानीय लोगो का मानना है कि संत गरीब दास में चमत्कारी शक्तियां थीं। इस दरगाह का निर्माण 1579 ईस्वी में करवाया गया था।