हमारे देश में ऐसे बहुत से मंदिर, मस्जिद, मकबरे और गुरूद्वारे हैं जिनकी छतें एक जैसी होती हैं। उदाहरण के लिए ज्वाला जी मंदिर की छत , चिंतपूर्णी मंदिर की छत, आगरा के ताजमहल की छत, दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब की छत, अमृतसर के हरमंदिर साहिब की छत, यहाँ तक कि येरुसलम की अल-अक्सा मस्जिद की छत भी गुम्बदाकार ही है।
वास्तुकला की दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के मंदिरों को छतों के आकार के आधार पर 6 शैलियों में बांटा जा सकता है-
- गुंबदाकार शैली
- शिखर शैली
- समतलं-छत शैली
- बन्द छत शैली
- स्तूपाकार और पैगोड़ा शैली
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Toggleगुम्बदाकार शैली
कांगड़ा के मंदिर जैसे ब्रजेश्वरी देवी मंदिर , जिला काँगड़ा का जवालामुखी मंदिर , जिला ऊना का चिन्तापूर्णी मंदिर, जिला बिलासपुर का श्री नैनादेवी , जिला सिरमौर का नैना देवी मंदिर इस शैली के कुछ उदाहरण हैं। इस तरह की शैली के मंदिरों पर सिक्ख शैली और मुगल शैली का प्रभाव साफ़ तौर पर देखने को मिल जाता है। 1813 में सिखों के सबसे प्रसिद्ध राजा, महाराजा रणजीत सिंह ने ज्वालाजी मंदिर पर सोने के पानी का गुम्बद बनवाया था।
सिखों के गुरूद्वारे और मुगलों के बहुत से मकबरे इसी शैली में बनाये गए हैं। इस शैली की एक और खास बात ये होती है कि इसमें मंदिर के अंदर की प्रतिमा मंदिर के ठीक बीचोंबीच बनाई जाती है। और इस तरह के मंदिरों में दरवाजे कम से कम दो तरफ से बनाये गए हैं।
शिखर शैली
इस शैली के मंदिरों में छत के ऊपर का हिस्सा पर्वत चोटीनुमा होता है। इस तरह के मंदिर एक चबूतरे पर बनाये जाते हैं और इनमे मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं।
इस तरह के मंदिरों में मंदिर के बाहर चबूतरे पर प्रदक्षिणा पथ बनाया जाता है क्यूंकि इन मंदिरो में प्रतिमा मंदिर के बीच में न होकर मंदिर की दिवार के साथ होती है। और इस तरह के अधिकतर मंदिरों में दरवाजे भी एक तरफ ही होते हैं। बैजनाथ शिव मंदिर इस शैली का उदाहरण है बहीं डाडा सिबा के राधा कृष्ण मंदिर में भी कुछ कुछ ये शैली देखने को मिलती है लेकिन ये मंदिर वास्तव में हिमाचली और राजस्थानी शैली का मिला जुला रूप है।
डाडा सिबा मंदिर का निर्माण राजा राम सिंह ने 1831 में करवाया था। जबकि बैजनाथ मंदिर को मयूक और आहुक नाम के दो व्यापारियों ने बनबाया था
समतल छत शैली
इस तरह के मंदिरों की छत समतल होती है और इनकी दीवारों पर काँगड़ा शैली की चित्रकारी की होती है । समतल शैली के मंदिर भगवान राम और भगवान कृष्ण को समर्पित हैं। लाहौल स्पीति के ताबों और बौद्ध मठ इसी शैली के उदाहरण हैं । इसके अतिरिक्त चनौर का ठाकुरद्वारा भी इसी शैली का एक उदाहरण है।
स्तूपाकार शैली
इनकी बनाबट पिरामिन्ड की तरह होती है जुब्बल के हाटेश्वरी और शिव मंदिर को इसी शैली में रखा जा सकता है। इस शैली के ज्यादातर मंदिर जुब्बल क्षेत्र में हैं।
बन्द-छत शैली
यह शैली हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी शैलियों में सुमार है। भरमौर का लक्षणा देवी मंदिर और छतराड़ी के शक्ति देवी के मंदिरों के नाम इस शैली में लिए जा सकते हैं।
पैगोड़ा शैली
कुल्लू- मनाली के हिडिम्बा देवी और मण्डी का पराशर मंदिर इस शैली से बने हुए हैं।
हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध 47 मंदिर और उनका इतिहास
हिमाचल प्रदेश की रियासतें महाभारत काल से लेकर ब्रिटिश काल तक
हिमाचल प्रदेश का बैदिक काल, महाभारत काल और रामायण काल से सम्बन्ध
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