18वीं सदी के प्रारम्भ से पहले पुरे विश्व में स्त्रियों की स्थिति सोचनीय थी। दुनिया भर के कानून केवल स्त्रियों के खिलाफ ही बनते थे। 18वीं सदी का प्रारम्भ महिलाओं के लिए एक स्वर्णिम युग साबित हुआ।
भारत में धर्म और समाज एक-दूसरे के अभिन्न अंग होने के साथ ही एक-दूसरे के पूरक भी हैं। इसी कारण आरंभ में धर्म-सुधारकों ने ही समाज-सुधार का कार्य प्रारंभ किया।
प्राचीन काल में बौद्ध धर्म सुधारकों ने समाज सुधार का कार्य किया। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी आदि ने सामाजिक अव्यवस्था के दूर करने में सहयोग दिया है।
18वीं सदी के प्रारंभ से ही स्त्रियों की सामाजिक दशा सुधारने के लिए महत्वपूर्ण सुधार किये गए।
Table of Contents
Toggleकन्या शिशु हत्या का अन्त
बंगाल तथा राजस्थान के अधिकांश भागों में एक अत्यंत घृणित तथा अमानवीय प्रथा यह प्रचलित थी कि कन्या का जन्म होते ही उसकी गला घोंटकर अथवा नदी में फेंक कर मार दिया जाता था इसका कारण यह था कि मुसलमान प्रायः लड़कियों को बलात् उठा ले जाते थे।
इस अपमान से बचने के लिये हिन्दू पिता अपनी पुत्री को जन्म लेते ही हत्या कर देना ही श्रेयस्कर समझते थे। ब्रिटिश सरकार ने सन् 1870 में बंगाल रेग्यूलेशन एक्ट (Bengal Regulation Act) तथा सन् 1892 में पुनः रेग्यूलेशन एक्ट द्वारा इस प्रथा पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया।
सती प्रथा का अन्त | सती प्रथा इन हिंदी
भारतीय समाज की एक अन्य कलंकपूर्ण व्यवस्था थी- सती प्रथा। हिन्दू समाज में पति के शव के साथ ही स्त्री को जीवित ही जला दिया जाता था।
इस प्रथा का अत्यधिक प्रचलन बंगाल में ही था। सर्वप्रथम बंगाल के प्रमुख समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने इस प्रथा का विरोध किया। अंग्रेज भी इस प्रथा का अंत करना चाहते थे परन्तु वे हिन्दू धर्म में हस्तक्षेप करने से डरते थे।
राजा राममोहन राय का सहयोग पाकर तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने एक नियम बनाकर सन् 1829 ई. में इस कुप्रया का अन्त कर दिया।
बाल-विवाह तथा बहु-विवाह का अन्त | बाल विवाह इन हिंदी | child marriage
भारत में बहु-विवाह की कुप्रथा का भी प्रचलन था। अनेक अमीर वृद्ध छोटी-छोटी आयु की कुमारियों के साथ विवाह कर लेते थे।
एक पुरुष की अनेक पत्नियां होती थीं। इसके साथ ही भारत में बाल-विवाह की कुप्रथा भी प्रचलित थी। एक कन्या का विवाह अत्यन्त छोटी आयु में कर दिया जाता था
जिसके कारण लड़कियों को शिक्षा देना संभव नहीं रहता था तथा अनेक लड़कियां वाल्यकाल में ही विधवा हो जाती थीं। विधवा विवाह की प्रथा न होने के कारण उन्हें अपने जीवन पर्यंत अपार दुःखों का सामना करना पड़ता था।
केशवचन्द्र सेन ने सर्वप्रथम इस ओर ध्यान दिया और उन्हीं के प्रयासों के परिणामस्वरूप सन् 1872 में ‘नैटिव मैरिज एक्ट’ (Native Marriage Act) पारित करके बाल विवाह को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया तथा बहु-विवाह का भी विरोध किया गया। इस कानून के अंतर्गत अंतर्जातीय विवाहों को भी वैधता प्राप्त हो गई।
बी. एम. मालवारी नामक एक पारसी सुधारक के प्रयासों के परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने सन् 1884 में ‘ऐज आफ कन्सेंट एक्ट’ (Age of Consent Act) पारित किया।
इसके अंतर्गत विवाह के समय लड़की की आयु कम से कम दस वर्ष तथा लड़के की आयु कम से कम बारह वर्ष होना अनिवार्य था।
सन् 1930 में केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा ने ‘चाइल्ड मैरिज विल’ (Child Marriage Bill) पारित किया। इस बिल का संचालन प्रमुख रूप से हरि विलास शारदा ने किया।
अतः यह बिल शारदा एक्ट (Sharda Act) के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस एक्ट के अंतर्गम विवाह के समय लड़की की आयु 14 वर्ष तथा लड़के की आयु 18 वर्ष होनी अनिवार्य थी।
विधवा विवाह को वैधता | विधवा विवाह किसने शुरू किया
अठारहवीं शताब्दी के मध्य में विधवा विवाह के लिये आंदोलन प्रारंभ किया गया। इसके लिए सर्वाधिक प्रयास ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने किया।
उनके अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप सन् 1856 ई. में एक कानून पारित किया गया जिसके अंतर्गत विधवा विवाह की मान्यता प्रदान कर दी गई।
ब्रह्म समाज तथा आर्य समाज ने विधवा विवाह के समर्थन में आंदोलन चलाया था। विधवाओं को पुनः विवाह के लिये प्रोत्साहित किया गया। बाल्यवस्था में विधवा हो जाने वाली कन्याओं को पुनः विवाह करने की अनुमति मिल गई।
भारतीय नारी संघ” (Indian Women’s Association) की स्थापना
उन्नीसवीं शताब्दी के पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप स्त्रियो में भी जागृति आनी आरंभ हुई। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज तथा आर्य समाज ने स्त्रियों की शिक्षा के लिये प्रयास किये।
1857 की क्रांति के उपरांत सन् 1907 में स्त्रियों की एक महत्वपूर्ण संस्था ‘भारतीय नारी संघ” (Indian Women’s Association) की स्थापना की गई।
इस संस्था ने स्त्री शिक्षा के प्रसार कार्य के साथ-साथ स्त्रियों की दशा सुधारने का कार्य किया। नर्सों को ट्रेनिंग के लिये पूना सेवा सदन, मालाबारी द्वारा स्थापित सेवा सदन सोसायटी तथा वूमेन्स मेडिकल सोसायटी आदि अनेक संस्थाओं का जन्म हुआ।
सन् 1916 में दिल्ली में लेडी हार्डिंग कालेज की स्थापना की गई। रेडक्रास सोसायटी द्वारा स्थापित मैटरनिटी तथा वेल्फेयर सोसायटी ने भी महिलाओं के लिए कल्याणकारी कार्य किया।
हिन्दू कोड बिल( Hindu marriage act 1955)
ये नियम हिन्दू, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के मानने वालो पर लागु होता है। इस नियम के आने से पहले हिन्दू पुरुष जितनी चाहे उतनी महिलाओं के साथ विवाह कर सकता था। और महिलाओं को पुरुष की दया पर आश्रित रहना पड़ता था। महलाओं के अधिकार भी सुरक्षित नहीं थे।
1955 में इस एक्ट के लागु होने के बाद क़ानूनी तौर पर केवल एक ही विवाह को स्वीकृति दी गई और दूसरी शादी को अपराध माना गया। इस नियम के आने के बाद महिलाओं की स्थिति में बेहतरीन सुधार हुआ।
संयुक्त परिवार की प्रथा में शिथिलता
वैदिक काल से ही संयुक्त परिवार प्रथा भारतीय समाज का आधार रही है, परन्तु इस प्रथा से लाभ कम और हानि ही अधिक हुई।
इस प्रथा की अधिक हानि महिलाओं को उठानी पड़ी है। वो अपने एक छोटे से जीवनकाल में पुरे सयुंक्त परिवार की जिम्मेबारी उठाती है
जिसके लिए उसे संस्कारों का हवाला दिया जाता है। इस काल में इस प्रथा का भी धीरे-धीरे अंत हो रहा है। एक परिवार के सदस्यों को विभिन्न नौकरियों तथा व्यवसाय के कारण पृथक-पृथक नगरों में कार्य करना पड़ता है। अतः संयुक्त परिवार प्रथा समाप्त होती जा रही है।
आजकल परिवार के सदस्यों की आय में अंतर होने के कारण संयुक्त परिवार का पारस्परिक प्रेम, सहयोग, सहायता की भावना एवं उदारता का अंत हो चुका है तथा व्यक्तिवाद पर आधारित पाश्चात्य विचारधारा से प्रभावित आधुनिक भारतीय सभ्यता में संयुक्त परिवार प्रथा का प्रायः लोप होता जा रहा है।
संक्षेपण
इस तरह से इन सब नियमो की वजह से महिलाओं को अधिकार को सम्मान के साथ जीने का अधिकार मिला। इसके बाद और भी कई वीमेन राइट्स आ चुके हैं जिससे महिलाओं की जिंदगी में आश्चर्यजनक बदलाब हुए हैं।
आजकल तो महिलाओं को इतने अधिकार दे दिए गए हैं कि पुरुषो के अधिकार ही सुरक्षित नहीं हैं। क्यूंकि महिलाएं लम्बे समय से भेदभाव को सहती आयीं हैं इसलिए इस समय हर जगह महिलाओं की ही सुनी जाती है। जो भी हो भारतीय यहाँ तक बहुत सारी रूढ़ियों को तोड़ते हुए पहुंचे हैं और एक सभ्य समाज बनने की तरफ अग्रसर हैं
भारत में फैले कई अंधविश्वासों के पीछे का वैज्ञानिक कारण पढ़ने के लिए क्लिक करें
2 responses
Woow
Good