जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय देश के उन विश्विद्यालयों में से एक है जिसने भारत सहित अन्य देशो जैसे रूस, नेपाल और नीबिया को भी बड़े बड़े नेता दिए हैं।
यह देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्विद्यालयों में से एक है। JNU, नई दिल्ली के दक्षिणी भाग में लगभग 1020 एकड़ भूमि पर बना हुआ है। National Assessment and Accreditation Council (NACC) ने 2012 में किये गए सर्वे में JNU को भारत का सबसे बढ़िया विश्वविद्यालय माना है।
जेएनयू को 2017 में राष्ट्रपति की ओर से सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय का पुरस्कार मिला था । यह A++ ग्रेड के साथ NAAC रैंकिंग में सबसे ऊपर है।
इन सबके बावजूद JNU की प्रसिद्धि का कारण उसका हमेशा विवादों में रहना है। इसके विवादों को समझने से पहले हम विश्विद्यालय के इतिहास पर नजर डालते हैं।
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ToggleJNU की स्थापना कब हुई थी। जेएनयू कहां है।
1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो उस समय देश में केवल 18% पढ़े लिखे लोग थे। दशक 1950 से 1960 के बीच दिल्ली विश्वद्यालय में इतने सारे विद्यार्थियों ने दाखिला लिया कि दिल्ली विश्विद्यालय के प्रशासन के लिए उनको संभालना मुश्किल हो गया।
1963 में यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) ने सरकार को दिल्ली में एक नया विश्विद्यालय खोलने का प्रस्ताव भेजा। उस समय देश के शिक्षा मंत्री M. C. Chagla थे।
24 दिसंबर 1964 को इस विश्विद्यालय को लेकर संसद में बिल पास किया गया। 1966 में विश्विद्यालय का निर्माण शुरू हुआ और इस विश्विद्यालय को बनने में 3 साल लग गए। 1969 में JNU को विद्यार्थियों के लिए शुरू कर दिया गया।
QS की 2022 की World university ranking में JNU 561वें नंबर पर थी और भारत के सर्वश्रेष्ठ विश्विद्यालयों की सूचि में यह दूसरे स्थान पर है जिससे पता चलता है कि करियर के मामले में यहाँ पर पढाई करना कितना सुरक्षित है।
JNU में फंडिंग कैसे होती है।
दूसरे विश्विद्यालयों की तरह JNU को फंडिंग केंद्र सरकार करती है। JNU को हर वर्ष केंद्र सरकार की तरफ से लगभग 450 करोड़ की फंडिंग होती है।
फंडिंग के अलावा विद्यार्थियों की फीस JNU की आय का मुख्य स्त्रोत है। जो विद्यार्थी फीस नहीं भर पाते उनको JNU छात्रवृत्ति भी मुहैया करवाती है।
यहाँ पर दाखिला लेना सबसे मुश्किल काम है जिसका कारण है यहाँ की लिमिटेड सीट और कठिन प्रवेश परीक्षा (Entrance Exam) है जिसको हर कोई पास नहीं कर पाता।
देश विदेश के बड़े बड़े नौकरशाहों (Bureaucrats) और मंत्रियों ने यहाँ से पढाई की है।
- देश की बित मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी यहीं से पढाई की है उन्होंने अर्थशास्त्र (Economics) में M. A. और MPhil किया है। ये वित्त मंत्री से पहले देश की रक्षा मंत्री रह चुकी हैं। अरुण जेटली की मृत्र्यु के बाद इनको वित्त मंत्रालय दिया गया था।
- सुब्रह्मण्यम जयशंकर(एस जयशंकर) जो कि बर्तमान में भारत के विदेश मंत्री हैं उन्होंने JNU से अंतरास्ट्रीय संबंधो (international relations) में PhD की है। 1977 में वो बिदेश सेवा में शामिल हुए और 40 साल तक अपनी सेवाएं दीं।
- 2019 में अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता अभिजीत विनायक बनर्जी ने JNU से अर्थशास्त्र में एमए किया था।
- सिर्फ भारत ही नहीं विदेशो के लोग, जिन्होंने दुनिया के मंच पर अपनी छाप छोड़ी है, उन्होंने JNU से शिक्षा प्राप्त की है।नेपाल के 35वें प्रधानमन्त्री डॉ॰ बाबुराम भट्टराई और लीबिया के प्रधानमंत्री रह चुके अली जेदान ने भी यहीं से पढाई की है।
- साईनाथ उन कुछ भारतीयों में से है जिन्होंने पत्रकारिता, साहित्य और रचनात्मक संचार की श्रेणी में “रेमन मैगसेसे अवार्ड” पुरस्कार प्राप्त किया। इन्होने JNU से इतिहास में M. A. किया है।
- विनीत नारायण जिन्होंने 1993 में कई आतंकवादियों और राजनेताओं के हवाला नेटवर्क का पर्दाफाश किया उन्होंने JNU से Mphil की है।
- दिमित्री मेदवेदेव जो कि 2012 से 2020 तक रूस के प्रधानमंत्री थे उन्होंने JNU से फिलोसोफी में डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल की है।
- पूर्व सांसद मेनका गाँधी , जावेद हवीव , भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी दीपक रावत , प्रांजल पाटिल जिनकी 6 साल की उम्र में आखों की रोशनी चली गई थी और 2017 में उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में 124 वीं रैंक हासिल की वो भी JNU से शिक्षित हुए हैं।
- अंजली गोपालन जिन्होंने 1994 में Naz Foundation Trust की स्थापना की थी। 1996 में अंजली गोपालन की मदद से ही दिल्ली का पहला HIV क्लीनिक खुल पाया था। अंजली गोपालन का नाम टाइम मैग्जीन की 100 most influential people in the world की लिस्ट में भी शामिल हो चूका है। इन्होने भी JNU से पढाई की है।
JNU विवादों की कहानी || JNU के बनने के साथ ही इसका विवादों से नाता रहा है।
1977 में JNU के विद्यार्थियों ने इंदिरा गांधी के घर तक मार्च किया
1975 में इंदिरा गाँधी ने देश में इमरजेंसी की घोषणा की। जिसको लेकर देश की बहुत सी यूनिवर्सिटी के बिद्यार्थियों ने प्रोटेस्ट किये जिनमे JNU भी शामिल थी।
उस समय इंदिरा गाँधी की बहू मेनका गाँधी भी इसी यूनिवर्सिटी में पढ़ रही थी। इमरजेंसी हटने के बाद जब चुनाव हुए तो उसमे इंदिरा गाँधी को हार मिली। परन्तु वो अभी भी यूनिवर्सिटी की चांसलर थीं।
इसी दौरान यूनिवर्सिटी में चुनाव हुए और सीताराम येचुरी प्रेजिडेंट बने और उन्होंने इमरजेंसी के लिए इंदिरा गाँधी को जिम्मेबार मानकर यूनिवर्सिटी से इंदिरा आवास तक मार्च किया।
1980-1981 में JNU को 45 दिनों तक बंद किया गया
1980 में जब यूनिवर्सिटी को बने अभी 11 साल ही हुए थे तो विश्विद्यालय के दो राजनीतिक दलों (वामपंथी संगठन और राइट विंग) के बीच झगड़ा हो गया
बामपंथी और दक्षिण पंथी विचारधारा में क्या अंतर है पढ़ने के लिए क्लिक करें
और झगड़ा इस कदर बढ़ गया कि बात खून खराबे तक पहुँच गई कई छात्रों को गंभीर चोटें आईं। ये झगड़ा इतना बढ़ चूका था कि यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट के लिए इसे संभालना मुश्किल हो चूका था। इसलिए इंदिरा गाँधी ने इस यूनिवर्सिटी को 45 दिन तक बंद करने का एलान किया।
और जेएनयू स्टूडेंट यूनियन प्रेसीडेंट राजन जी को हिरासत में ले लिया। इस प्रकार JNU को 16 नवंबर 1980 से लेकर 3 जनवरी 1981 तक बंद कर दिया गया।
JNU विवाद साल 2000 : भारत पाकिस्तान मुशायरा
जेएनयू में साल 2000 में एक मुशायरे का आयोजन हुआ। इसमें कई गजलें पढ़ी गईं। तब वहां मौजूद सेना के दो जवानों ने इसका विरोध किया।
ये जवान पाकिस्तान के समर्थन में पढ़ी जाने वाली (एंटी वॉर)गजलों से नाराज थे । तब यहाँ पर मौजूद बिद्यार्थियों ने सेना के जवानो पर ही हमला कर दिया।
JNU विवाद साल 2005: अमेरिका का समर्थन करने पर विवाद
2005 में ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा को लेकर विवाद चल रहा था जिसके बाद IAEA (International Atomic Energy Agency) ने दोनों देशो के बीच वोटिंग करवाई।
भारत उस समय अमेरिका से रिश्ते सुधारना चाहता था इसलिए भारत ने अमेरिका के पक्ष में वोटिंग की और ईरान को प्रतिबंधित करने का समर्थन किया । उस समय UPA की सरकार थी और मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी जब पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रतिमा का उद्घाटन करने विश्विद्यालय पहुंचे तो जेएनयू कैंपस में छात्रों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी।
और उनका स्वागत काले झंडे दिखाकर किया। क्यूंकि ये लोग चाहते थे कि प्रधानमंत्री ईरान के पक्ष में वोटिंग करें।
2010 : JNU Forum Against War on People
2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमला हुआ था जिसमे सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे। जिस पर पुरे देश ने शोक व्यक्त किया था।
कांग्रेस के छात्र संगठन (एनएसयूआई) के जनरल सेक्रेटरी शेख सहनवाज के मुताबिक डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन(DSU) और AISA (All Inida Student Association) ने छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद 76 जवानो को मौत को सेलिब्रेट करने के लिए JNU Forum Against War on People का इवेंट आयोजित किया था। उन्होंने यह भी दावा किया कि इस दौरान बिद्यार्थी भारत विरोधी नारे लगा रहे थे।
2014 : महिषासुर शहादत दिवस
JNU के ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टुडेंट्स फोरम (AIBSF) ने 2014 में दुर्गा पूजा के दौरान एक इवेंट आयोजित किया जिसका नाम था महिषासुर शहादत दिवस।
जिसके पीछे स्टूडेंट का कहना था कि दुर्गा पूजा की कहानी गलत बताई जाती है। कहानी में बताया जाता है कि दुर्गा माता ने एक राक्षस जिसका नाम महिषासुर था उसका वध किया था परन्तु इन विद्यार्थियों के अनुसार ये कहानी भगवान और राक्षसों के बीच की नहीं बल्कि आर्यन और नॉन आर्यन की है।
जिसमे महिषासुर एक आदिवासी दलित था जिसे आर्यों ने मारा था। इसमें एक प्रोफेसर ने भी स्टूडेंट का समर्थन किया था और इस मुद्दे पर एक लम्बा भाषण दिया था।
9 फरवरी 2016 : JNU के इतिहास का काला दिन
9 फरवरी 2016 को जेएनयू इतिहास के सबसे बड़े विवाद ने जन्म लिया। और इस दिन को यूनिवर्सिटी के इतिहास का कभी न भूल पाने वाला दिन बना दिया।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 9 फरवरी को हुए सांस्कृतिक इवेंट को 10 स्टूडेंट ने आयोजित किया था जिसमे उमर खालिद भी शामिल थे। इस इवेंट को 2001 में संसद हमले के आरोपी अफजल गुरु और मकबूल भट्ट को मिली सजा के मुद्दे पर चर्चा के लिए रखा गया था।
इसमें भाग लेने के लिए कश्मीर से भी स्टूडेंट आये थे। इस इवेंट को आयोजित करने वाले स्टूडेंट का कहना था कि अफजल को मिली सजा एक न्यायिक अपराध था क्यूंकि उसके खिलाफ कोई भी पुख्ता सबूत नहीं मिले थे।
अफजल गुरु को मिली सजा एक नेशनल इशू था इसलिए ABVP ने इससे रद्द करने की मांग की। लेकिन इसके वावजूद भी स्टूडेंट ने फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के तहत सावरमती ढावा के पास इस इवेंट का आयोजन किया।
ABVP ने इसे अनैतिक बताया और वो इसका विरोध करने लगे। जिससे दोनों दलों में विवाद छिड़ गया। और स्टूडेंट्स जोर जोर से देश विरोधी नारे लगाने लगे।
भारत तेरे टुकड़े होंगे इनसाहल्लाह इनसाहल्लाह। अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिन्दा हैं। कश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी। विवाद इतना बढ़ गया कि बीच बचाव के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।
12 फरवरी को दिल्ली पुलिस ने यूनिवर्सिटी प्रेजिडेंट कन्हैया कुमार को इंडियन पीनल कोड की धारा 124 देशद्रोह के तहत गिरफ्तार कर लिया गया ।
उन पर देशद्रोह के आरोप लगे। लेकिन उमर खालिद,अनिर्वाण भट्टाचार्य, रामानागा, आनंत प्रकाश और आशुतोष कुमार अंडरग्राउंड हो गए।
हालाँकि बाद में उमर खालिद,अनिर्वाण भट्टाचार्य ने 10 दिन बाद खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। बाकि लोगों ने आत्मसमर्पण तो नहीं किया परन्तु पुलिस जाँच में सहयोग की बात कही।
दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्वाण भट्टाचार्य समेत कुल 10 लोगों को आरोपी बनाया गया। हालांकि कन्हैया कुमार अपने ऊपर लगे आरोपों को कई बार खारिज कर चुके हैं।
5 जनवरी 2020 :- JNU पर हमला
5 जनवरी 2020 को शाम के लगभग 7 बजे 10-12 लोग मुँह पर मास्क लगाए हाथ में रॉड ,ईंटे और स्टिक लिए JNU हॉस्टल में घुस गए और स्टूडेंट पर हमला कर दिया।
यह हमला लगभग 3 घंटे चला और इसमें 39 विद्यार्थी और अध्यापक जख्मी हो गए। जब हमले के बाद एम्बुलेंस हॉस्टल पहुंची तो स्टूडेंट ने उसमे बैठने से इंकार कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनको मदद की कोई जरुरत नहीं है। विद्यार्थियों ने इल्जाम लगाया कि पुलिस गेट के बाहर से तमासा देख रही थी और पुलिस ने स्टूडेंट की कोई मदद नहीं की।
JNU में होने वाले विवादों के क्या कारण हैं। JNU (जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय ) क्यों हैं देश का सबसे विवादास्पद विश्विद्यालय।
- JNU के विवादों में रहने की सबसे बड़ी वजह यहाँ का प्रशासन है जिनकी वजह से ऐसे विवादास्पद इवेंट आयोजित होते है
- JNU के स्टूडेंट को राजनितिक दलों का भी पूरा सहयोग मिलता है और वो मामले को ठंडा करने के स्थान पर और गर्मा देते है और उस पर अपनी चुनावी रोटियां सेंकते हैं।
- ज्यादातर विवादों में राजनीतिक पार्टियां या कोई बाहरी संगठन शामिल होता है।
- यूनिवर्सिटी के विवादों में रहने की एक वजह JNU का सिक्योरिटी फेलियर भी है जो बाहर से आने वाले संगठनों या दलों के अंदर प्रवेश को नहीं रोक पाते।
- मीडिया भी बहुत हद तक यहाँ पर होने वाले विवादों के लिए जिम्मेदार है मीडिया चैनल अपनी TRP बढ़ाने के लिए नकली विडिओ जिनमे एडिटिंग की होती है उनको भी अपने न्यूज़ चैनल पर दिखाते रहते हैं।
लेकिन इन सारे इवेंट से ये भी पता चलता है कि JNU स्टूडेंट देश में चल रहे मुद्दों को लेकर कितने जागरूक हैं। और इनकी जागरूकता का स्तर क्या है। लेकिन साथ में बुद्धिजीवियों का यह भी मानना है कि क्या फ्रीडम ऑफ़ स्पीच की भी एक सीमा तय की जा सकती है। या फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के तहत कुछ भी बोलने की आजादी मिल सकती है
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thx. for your kindly info