हमारे पडोसी देश जापान ने भारत पर क्रूरता की वो इबारत लिखी जिसे पढ़कर इतिहास का क्रूर शासक औरंगजेव भी शरमा जाये। आज तक हमने जापानी सैनिको की क्रूरता की कहानियाँ चीन और अन्य देशों के खिलाफ ही सुनी हैं। लेकिन क्या हम जानते हैं क्रूरता की इसी तरह की एक कहर जापान ने भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप पर भी ढाया था।
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Toggleअंडमान निकोबार के बारे में
अंडमान निकोबार जिसे काला पानी के नाम से भी जाना जाता है। अंडमान निकोबार जिसने 26 दिसंबर 2004 को सुनामी की भयंकर मार को झेला जिसमे निकोबार की लगभग एक चौथाई आबादी काल के ग्रास में समा गई।
अंडमान निकोबार जहां की जेल इस समय एक राष्ट्रीय धरोहर है। अंडमान निकोबार जहाँ की जेल में भारतीय इतिहास की सबसे पहली भूख हड़ताल हुई जो कि 72 दिन तक चली।
अंडमान निकोबार जो कि लगभग 572 द्वीपों का समूह है जिनमे से 36 पर ही लोग रहे हैं। जिनमे से 24 अंडमान तथा 12 निकोबार के पास हैं।
अंडमान निकोबार जहां पर आज भी आदिवासी कबीले बसते हैं जो कि आज भी आधुनिक दुनिया से अछूते हैं आज हम उसी अंडमान निकोबार के काले अध्याय के बारे में बताने जा रहे हैं।
दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ये समझ गए थे कि अंग्रेजो को भारत से निकालने का एक ही तरीका है।
द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन के शत्रुओं का साथ देकर अंग्रेजो की हार को सुनिश्चित करना। इस प्रकार नेता जी ने जापानी सेना की मदद लेना जरुरी समझा।
पोर्ट ब्लेयर पर जापान का अधिकार
इस तरह आजाद हिन्द फ़ौज ने जापानी सेना के साथ मिलकर 23 मार्च 1942 को पोर्ट ब्लेयर पर आक्रमण किया और लगभग 3 से 4 घंटे चले युद्ध में इसको पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया।
हुआ कुछ यूँ था कि कुछ महीने पहले ही जापानी सेना ने रंगून पर हमला कर बर्मा को अपने अधिकार में ले लिया था।
इसके चलते ब्रिटिश सेना ने पोर्ट ब्लेयर से भी अपनी सेना पीछे हटा ली। इस तरह से जापानी सेना को यहाँ पर आसानी से अधिकार कर लिया। कई ब्रिटिश ऑफिसर को कैदी बनाकर सिंगापूर जेल भेज दिया गया।
जैसे ही अंडमान निकोबार के ये द्वीप आजाद हुए नेता जी ने इनका नियंत्रण आजाद हिन्द फ़ौज की स्थानीय सरकार के हाथो में देने के लिए नेताजी ने जापान को मना लिया।
AD लोगनाथन को यहाँ का गवर्नर नियुक्त किया गया। इस प्रकार यहाँ पर अब आजाद हिन्द फ़ौज की सरकार बन चुकी थी परंतु यहाँ का सारा नियंत्रण अभी भी जापानी सेना के हाथ में था।
जापान के कृत्यों की जानकारी के दस्तावेज
इन 3 सालों में जापान ने यहाँ क्या क्या किया उसको क्रमानुशार बताना मुश्किल है क्यूंकि जापान ने जाते जाते अपनी क्रूरता के सारे सबूत मिटा दिए थे। हमारे पास उस समय के केवल कुछ ही स्त्रोत हैं।
1 ) अंडमान निकोबार के स्थानीय निवासी रामकृष्णा की अप्रकाशित रिपोर्ट (Japanese occupation of the Andaman and Nicobar Islands)
2 ) ब्रिटिश ऑफिसर मैक्कार्थी जो अंडमान में उस समय एक सीक्रेट मिशन पर आया था उसकी अप्रकाशित रिपोर्ट (The Andaman Interlude )
इसके अलावा वहाँ के स्थानीय नागरिको के इंटरव्यू और दीवान सिंह जी के बेटे मोहिंदर सिंह के “द ट्रिब्यून” में लिखे लेखों से भी जापान की क्रूरता का पता चलता है।
पहले दिन से ही जापानी सेना सेना की लूटपाट शुरू हो गई
जापानी सेना ने उससे दिन पोर्ट ब्लेयर में लूट पाट मचा दी और औरतों को छेड़ने लगे। जुल्फिकार नाम का लड़का जापानी सैनिको को रोकने के लिए अपनी एयर गन से साथ बाहर आया और उसने हवा में कुछ गोलियां चलाई
परिणामस्वरूप जापानी वहाँ से चले गए परन्तु थोड़ी देर बाद वो वापस आये और उन्होंने लोगो को टॉर्चर करना शुरू कर दिया।
उन्होंने जुल्फिकार को उनके हवाले करने की माँग की और न देने की सूरत में सारे शहर को आग के हवाले करने की धमकी दी।
अगले दिन जुल्फिकार को उनके हवाले कर दिया गया। जापानी सैनिकों ने उसके हाथ पैर तोड़ कर उसे मार दिया। पार्ट ब्लेयर मैं आज भी जुल्फिकार की मज़ार मौजूद है।
जासूसी का आरोप लगा कर अत्याचार
उस समय द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था। तो कई लोगो पर जासूसी के आरोप लगाए गए। जापानी सेना के कर्नल बुचो ने AG Bird नाम के एक अधिकारी का सरेआम सिर काट कर पेड़ पर लटका दिया।
दीवान सिंह जो हिमाचल के सोलन के रहने वाले थे। आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के कारण अंग्रेजो ने उनको रंगून भेज दिया था और वो वहाँ से अंडमान आ गए थे।
दीवान सिंह ने AG Bird के सिर को पेड़ से उतारकर क्रिस्चन बिधि से उसका अंतिम संस्कार किया। इसे जापानियों ने अपनी बेइज्जती समझा।
300 और स्थानीय लोगो को जासूसी के इल्जाम में जेल में डाल दिया गया। SP नारायण राव और DSP इत्तर सिंह सहित सात लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
कर्नल जोकी रेनूसाकाई को कमांडर बना कर भेजना
1943 में जापानी सेना ने एक नए कमांडर को अण्डमान भेजा जिनका नाम था कर्नल जोकी रेनूसाकाई।
रेनुसाकाई उस समय कोरियाई लोगों पर अत्याचार के लिए लोकप्रिय था। उसने यहाँ क्रूरता की एक नई इबारत लिखी।
पोर्ट ब्लेयर में बनाना चाहते थे हवाई पट्टी
जापानी पोर्ट ब्लेयर में हवाई पट्टी बनाना चाहते थे। तो उन्होंने स्थानीय लोगो से कुलियों की तरह काम करवाया। जो काम करने से मना करता, मारा जाता या जेल में ठूस दिया जाता
इसी कड़ी में कई लोगो को जेल में डाला गया जिनमे डाक्टर दीवान सिंह भी शामिल थे।
जापानी स्थानीय लोगो से मजदूरों की तरह काम करवाते और बदले में उनको एक कटोरी चावल और पानी दिया जाता।
इससे बहुत से लोग या तो मर गए या इतने कमजोर जो गए कि हड्डियों का ढांचा मात्र रह गए।
जेल में जापानियों की क्रूरता
झूठा कन्फेशन निकलवाने के लिए लोगों को टॉर्चर किया जाता इसके बाद उनसे खुद अपनी कब्र खुदवा कर उन्हें कमर तक जमीन में गाड़ दिया जाता।
जापानी सैनिक अपनी बन्दूक से उनकी पीठ, आंखों और गर्दन पर वार करते और आखिर में उन्हें गोलियों से भून दिया जाता। टॉर्चर से कई लोगों की मौत जेल में ही हो गयी।
खुद दीवान सिंह 82 दिनों तक टॉर्चर झेलते रहे। जेल में उन्हें बिजली के झटके दिए गए। उल्टा लटककर पीटा जाता। लोगों को उलटा लटकार नीचे से आग जला दी जाती और आग पर बैठने को कहा जाता।
नाखून उखाड़े जाते और उनकी आखें फोड़ दी जाती। इस तरह से 14 जनवरी 1944 को 82 दिनों तक यातनाएं सहते सहते डॉक्टर दीवान सिंह की जेल में ही मौत हो गयी।
औरतो की स्थिति इससे भी ज्यादा ख़राब थी
इस समय भारतीय महिलाओं की स्थिति और भी ख़राब थी। जवान औरतो और लड़कियों को उठा लिया जाता और उन्हें जिस्म फरोसी के लिए इस्तेमाल किया जाता।
इसके अलावा कोरिया से जहाज में भरकर औरतें लाई जाती, जिन्हें कम्फर्ट वूमेन कहा जाता था।
44 लोगों को गोलियों से भून दिया गया
कुछ स्थानीय लोगो ने जापान की इस क्रूरता के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की तो उन पर जासूसी का आरोप लगाकर हम्फ्रीगंज में 44 लोगों को एक साथ खड़ा कर के गोलियों से भून दिया गया।
सैंकड़ो लोगो को समुन्द्र में फेंक दिया गया
1945 आते आते अंडमान की इकॉनमी बुरी तरह से ध्वस्त हो चुकी थी और खाने के लिए अनाज की भरी किल्लत हो गई थी।
जापानी सैनिक लगभग 500 से 1000 लोगो को नाव में बैठाकर ले गए। उनको बताया गया कि उनको दूसरे द्वीप में ले जाया जा रहा है और वो वहां आराम से खेती कर के रह सकते हैं।
लेकिन समुन्द्र के बीच ले जाकर उनको नाव से कूदने के लिए कहा गया। जो नहीं कूदा उसको काट दिया गया। जो कूद गया वो समुंद्री जीवो का शिकार बन गया।
केवल एक आदमी मुहम्मद सौदागर वहां से लौटने में सफल रहा और उसने वहां से आकर अपनी ये सच्चाई सबको सुनाई। 900 लोगों को एक दूसरे द्वीप पर ले जाकर पेड़ से बांध दिया गया।
इन पर गोलियां चलाई गई और बाद में उन पर पेट्रोल छिड़ककर जला डाला गया। जापानी सैनिको ने यहाँ की तीन चौथाई आवादी को लगभग समाप्त कर दिया।
सुचना के सारे उपकरण और लोगो के हथियार उनसे छीन लिए गए
जापानी सैनिको ने लोगों के घरो से उनके रेडियो उठा लिए। इस तरह अंडमान के लोग बाहरी दुनिया से कट गए। बाहरी दुनिया में क्या हो रहा था उनको कुछ पता नहीं था।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार और हिरोशिमा नागाशाकी पर परमाणु बम्ब के इस्तेमाल की जानकारी भी लोगो को नहीं थी। इसके अलावा लोगो से उनके घरो में रखे हथियार भी छीन लिए गए।
द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी सेना की हार
द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ और इसमें जापानी सेना की हार हुई। 15 अगस्त 1945 को HMS सैंडबार नाम का ब्रिटिश जहाज पोर्ट ब्लेयर पहुंचा तो लोगों ने उसका स्वागत किया।
एक स्थानीय जापानी कमांडर ने अन्य कमांडरों की तरह उसका स्वागत नहीं किया। वो अभी भी युद्ध जारी रखना चाहता था।
एक युद्ध बंदी के रूप में उसको रहना मंजूर नहीं था इसलिए उसने आत्महत्या कर ली। कुछ अन्य जापानी सैनिको, जो कव्जे के बाद परीक्षणों का सामना करने का साहस नहीं जुटा पाए, ने भी आत्महत्या कर ली।
इस समय जापानियों के व्यवहार में आस्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिला। सभी बांधियो को मुफ्त कर दिया गया और घर जाने की अनुमति दे दी गई।
भंडार घर के दरवाजे लोगो के लिए खोल दिए गए। रेडियो सेट और बाकि सामान मालिकों को वापस कर दिए गए।
हालाँकि प्रतिशोध के डर से हथियारो को उनके मालिकों को नहीं दिया गया। सभी आधिकारिक रिकार्ड गवर्नर के कार्यालय में लाये गए और राख में मिला दिए गए।
जापानी फ़ौज का आत्मसमर्पण और उनकी सजा
15 अगस्त 1945 को वाइस एडमिरल टीज़ो हारा और मेजर जनरल टमेनोरी साटो ने 1/7 राजपूत राइफल्स के कर्नल नाथू सिंह के सामने हथियार डाल दिए।
और 7 अक्टूबर 1945 को उन्होंने जिमखाना ग्राउंड में जापानी फौज का आत्मसमर्पण स्वीकार किया।
जापानी आर्मी को सिंगापूर भेज दिया गया वहां उन पर 27 केस लगाए। 17 सैनिको को मौत की सजा सुनाई गई और बाकियों को मृत्यु कारावास की सजा सुनाई गई।
नेताजी को इस बात की जानकारी थी या नहीं
इस बात को साबित करने के पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं परन्तु मोहिंदर सिंह अपने लेख लिखते हैं कि स्थानीय लोग नेताजी से नाराज थे। और उन्हें लगता था उनके लीडर ने उनका साथ नहीं दिया
वो सब कुछ जानने के बाद भी उन्होंने इस ओर अधिक ध्यान नहीं दिया। जबकि कुछ लोग ये कहते हैं कि नेताजी को जापानियों ने इस बारे में कुछ पता नहीं चलने दिया था।
जब दीवान सिंह जेल में थे और उन पर टार्चर हो रहा था तो सुभाष चंद्र बोस अंडमान की यात्रा पर आये थे पर उनको दीवान सिंह से नहीं मिलने दिया गया।
अब यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि जापानी सेना ने पुरे भारत से अगर अंग्रेजो को भगा दिया होता या द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार नहीं होती तो जितना नुकसान भारत को 800 सालो की गुलामी में नहीं हुआ था
ये जापानी चंद सालों में कर डालते। और अमेरिका का जापान पर परमाणु बम्ब गिरना कुछ कुछ सही प्रतीत होता है।
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2 responses
Nicely written