प्राचीन समय में प्रकृर्ति के कुछ सामान्य नियमो के लिए उस समय के विद्वानों ने कुछ कहानियाँ बनाई हैं। जिस तरह से पढाई के दौरान अगर कोई चीज़ समझ में नहीं आ रही हो तो विद्यार्थी एक कहानी बना कर उसे याद करते हैं जैसे गणित के BODMAS को बदमास बोल कर याद रखा जाता है।
अब ये कहानियाँ उन नियमो को याद रखने के लिए थीं या लोगों को समझाने के लिए थी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। इसी तरह की एक कहानी है चन्द्रमा और उनकी 27 पत्नियों की कहानी
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Toggleचन्द्रमा और उनकी 27 पत्नियों की पौराणिक कहानी
ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से हुआ था। चन्द्रमा अपनी 27 पत्नियों में से रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते थे और उन्ही के साथ अपना समय व्यतीत करते थे।
चन्द्रमा की बाकि 26 पत्नियों के लिए ये असहनीय था इसलिए चन्द्रमा की बाकि पत्नियों ने चन्द्रमा के इस व्यवहार की शिकायत अपने पिता दक्ष प्रजापति से की। दक्ष प्रजापति जो कि पहले से जानते थे कि चन्द्रमा चंचल स्वभाव का है फिर भी उन्होंने चन्द्रमा को समझाने का प्रयत्न किया और अपनी सभी पुत्रियों से एक जैसा व्यवहार करने को कहा।
चन्द्रमा ने दक्ष प्रजापति की बात स्वीकार कर ली और उनकी 27 पुत्रियों से समान व्यवहार करने का अश्वासन दिया। परन्तु चन्द्रमा के व्यवहार में उसके बाद भी कोई परिवर्तन नहीं आया और वो रोहिणी से ही अधिक प्रेम करते रहे और रोहिणी के साथ ही समय बिताते रहे।
चन्द्रमा की बाकि पत्नियों ने एक बार फिर से दक्ष प्रजापति से चंद्रमा की शिकायत की और इस बार क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने चन्द्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया।
इस प्रकार चन्द्रमा दक्ष प्रजापति के श्राप के प्रभाव से क्षय रोग से पीड़ित हो गए और उनकी चमक सदा के लिए खो गई। चन्द्रमा की इस बिमारी का पता जब बाकि देवताओं को लगा तो वो सब मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए और चन्द्रमा को फिर से स्वस्थ करने की प्रार्थना की।
ब्रह्मा जी ने चन्द्रमा को भगवान शिव के महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने की सलाह दी। चन्द्रमा ने ऐसा ही किया। चन्द्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर जब शिवजी प्रकट हुए तो चन्द्रमा ने क्षय रोग से निदान की प्रार्थना शिवजी से की।
इस पर शिवजी कहते हैं कि श्राप के प्रभाव को पूर्णत: ख़तम नहीं किया जा सकता परन्तु उन्होंने चन्द्रमा को महीने में एक दिन पूरी तरह से अपने रूप में आने का बरदान दिया। भगवान शिव के उसी बरदान स्वरूप चन्द्रमा अपनी कलाएं बदलता है। यानि 15 दिन बढ़ता है और अगले 15 दिन घटता है। और पूर्णिमा और अमावस्या आती है।
चद्र्मा के घटने बढ़ने का वैज्ञानिक कारण
चन्द्रमा के घटने बढ़ने का कारण समझने के लिए हमें कुछ चीज़ों को समझना होगा
चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और ये पृथ्वी का चक्र लगाता है। पृथ्वी चन्द्रमा से लगभग 4 गुणा बड़ी है इस प्रकार चन्द्रमा को धरती का एक चक्र लगाने में 27.3 दिन का समय लगता है। जिससे भारतीय पंचांग का एक महीना तय होता है।
पृथ्वी सूर्य का चक्र लगाती है। सूर्य पृथ्वी से लगभग 109 गुणा बड़ा है इसलिए पृथ्वी को पूरे सूर्य का चक्र लगाने में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट और 46 सेकंड का समय लगता है। जिससे पूरा एक बर्ष बनता है।
चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता वो अपना प्रकाश सूर्य से लेता है।
हम कभी भी पूरा चन्द्रमा नहीं देख पाते और चन्द्रमा का पीछे वाला भाग हमेशा हमसे छुपा रहता है।
पृथ्वी अपने अक्ष पर भी घूमती है जिससे दिन और रात बनते हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर एक चक्र पूरा करने में 23 घंटे, 56 मिनट और 4.09053 सेकंड का समय लेती है।
नोट :- पृथ्वी के अपने अक्ष पर घूमने का पता हमें इसलिए नहीं चल पाता क्यूंकि पृथ्वी के वायुमंडल और गुरुत्वाकर्षण के कारण सब चीज़ें स्थिर हैं और पृथ्वी के इस घूर्णन का पता केवल वायुमंडल के बाहर की किसी चीज़ से लगाया जा सकता है तो सूर्य जब पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता हुआ प्रतीत होता है केवल तभी पृथ्वी के घूर्णन का आभास होता है।
दूसरी बात पृथ्वी एक स्थिर गति से घूम रही है इसके घूमने की गति 100 साल पहले भी इतनी ही थी जितनी आज है। इस प्रकार पृथ्वी के साथ उसके वायुमंडल की प्रत्येक बस्तु गतिमान है। जैसे अगर हम किसी ट्रेन में ऊपर वाली वर्थ में बैठे हैं और ट्रेन एक निरंतर गति से चल रही है तो ट्रेन की गति जितनी मर्जी हो हम अगर ऊपर से जम्प लगाते हैं तो हम वहीँ पर गिरेंगे जहाँ पर हमें गिरना था परन्तु अगर ट्रेन में एकाएक बस की ब्रेक की तरह ब्रेक लग जाये या हम ट्रेन के बाहर की तरफ जम्प करें तो परिणाम अलग हो सकते हैं।
हमें कोई चीज़ तब नज़र आती है जब प्रकाश उस बस्तु पर पड़ने के बाद हमारी आँखों पर पड़ता है। इस प्रकार जब सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर पड़ने के बाद धरती पर पड़ता है तो हमें चन्द्रमा दिखाई देता है।
अब क्यूंकि चन्द्रमा धरती का चक्र लगाता है इसलिए सूर्य की रोशनी चन्द्रमा के जिस हिस्से पर पड़ती है हमें केवल उतना ही चन्द्रमा दिखाई देता है और चन्द्रमा के बाकि हिस्से पर प्रकाश नहीं पड़ने के कारण वो हमें दिखाई नहीं देता।
अमावस्या कैसे होती है। New Moon
पृथ्वी की परिक्रमा करते करते चन्द्रमा जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है उस समय चन्द्रमा के सूर्य की तरफ वाले हिस्से पर तो प्रकाश पड़ता है परन्तु जो हिस्सा पृथ्वी की तरफ होता है उस पर प्रकाश नहीं पड़ता इसलिए हमें चन्द्रमा दिखाई नहीं देता और उसे अमावस्या कहते हैं।
पूर्णिमा कैसे होती है। Full Moon
चन्द्रमा की परिक्रमा के दौरान जब पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है और चन्द्रमा पृथ्वी और सूर्य होते तो एक लाइन में हैं परन्तु चन्द्रमा हल्का सा ऊपर उठा हुआ होता है। तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा के जिस हिस्से पर पड़ता है वो पूरा हिस्सा हमें पृथ्वी से दिखाई देता है और उसी को पूर्णिमा कहते हैं।
सूर्य और चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन किया। जब मंथन से अमृत निकला तो उसको प्राप्त करने के लिए देवताओं और राक्षसों में लड़ाई शुरू हो गई क्यंकि राक्षस देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली थे तो उन्होंने वो अमृत देवताओं से छीन लिया। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी नामक लड़की का रूप लिया।
राक्षस मोहिनी को देखकर उन पर मोहित हो गए और अृमत को बाँटने की जिम्मेबारी मोहिनी को दे दी। इस प्रकार भगवान विष्णु सबको अमृत पिलाने लगे। वो बारी बारी से एक देवता फिर एक राक्षस को अमृत पिलाते थे परन्तु वो देवताओं को तो अमृत ही पिलाते थे लेकिन राक्षसों को अमृत पिलाने के समय अमृत के बर्तन को बदल देते थे।
एक राक्षस जिसका नाम राहुकेतु था उसने ये सब देख लिया और चुपचाप भेष बदलकर देवताओं के बीच में बैठ गया। इस प्रकार जब राहुकेतु अपनी बारी आने पर अमृत पी रहा था तो सूर्य और चन्द्रमा ने उसे देख लिया और उसका सारा भेद भगवान विष्णु को बता दिया।
तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहुकेतु का सिर काट दिया। परन्तु क्यूंकि अमृत की कुछ बुँदे उसने पी ली थी इसलिए उसका सिर और धड़ अलग होने के बावजूद वो दोनों रूपों में जीवित रहा और इस प्रकार सिर को राहु और धड़ को केतु कहा था
क्यूंकि सूर्य और चन्द्रमा ने राहुकेतु का भेद बताया था इसलिए ये दोनों सूर्य और चन्द्रमा को ग्रसने के लिए आते हैं। और सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन तथा चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक कारण
सूर्य ग्रहण कब लगता है
सूर्य ग्रहण तब लगता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है। सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा पर तो पड़ता है परन्तु पृथ्वी पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है। पृथ्वी के जिस हिस्से पर चन्द्रमा की छाया पड़ती है वहीं पर सूर्य ग्रहण देखा जाता है। सूर्य ग्रहण हमेसा अमावस्या वाले दिन होता है।
सूर्य ग्रहण तीन तरह के होते हैं:
- पूर्ण सूर्य ग्रहण
- आंशिक सूर्य ग्रहण
- वलयाकार सूर्य ग्रहण
चंद्र ग्रहण कब लगता है
जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमा के बीच में आ जाती है और सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुंच पाता बल्कि पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है। इस कारण चन्द्रमा आंशिक रूप से या पूरी तरह से अंधकारमय हो जाता है उसी को चंद्रग्रहण कहते हैं। चंद्र ग्रहण पूर्णिमा वाले दिन ही होता है जब तीनो सूर्य चंद्र और पृथ्वी पूरी तरह से एक सीधी रेखा में आ जाते हैं
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