आजकल यूनिफार्म सिविल कोड का मुद्दा चर्चा में हैं। कुछ लोग इसे अपने धर्म पर आघात मान रहे हैं।
ऐसा ही कुछ माहौल 1950-1960 के दशक में था जब हिन्दू कोड बिल संबिधान में लाया गया था। इसे हिन्दू पक्ष ने अपने धर्म विरुद्ध बताया था।
खासकर पुरुष समुदाय ने जिन्हे पहले एक से अधिक विवाह करने की आजादी थी
वो अपनी किसी भी पत्नी का त्याग कर सकते थे और उनको छोड़ी हुई पत्नी को मैंटेनस(गुजारा-भत्ता) भी नहीं देना पड़ता था।
और न ही स्त्रियों को सम्पति में कोई अधिकार मिलता था। इसलिए इस बिल के विरोध में मार्च तक निकाले गए और आने वाले चुनावों की सवेंदनशीलता को देखते हुए इसे स्थगित भी कर देना पड़ा।
बिल लागु न हो पाने के कारण डॉक्टर भीम राव आंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से अस्तीफा भी दे दिया।
लेकिन सब विरोधाभासों के वाबजूद ये बिल लागु हुआ और एक सभ्य समाज की स्थापना हुई। उस समय इस बिल को लेकर किस तरह का माहौल था
ये समझने के लिए हमें उस समय में चलना होगा जब इस बिल के बनने की शुरुआत हुई थी।
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Toggleहिन्दू कोड बिल की अवस्य्क्ता क्यों पड़ी
ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब मुगलों से भारत का शासन अपने हाथों में लिया तब भारत का मूलभूत कानून इस्लामिक कानून था।
हत्या और सार्बजनिक मामले उसी के अनुसार सुलझाए जाते थे। उस समय लोगो के निजी मामलों की सुनवाई उनके समुदाय की पंचायत या फिर उनकी जाति परिषद में ही होती थी।
और जो हिन्दू और मराठा राज्य थे वहाँ के शासक कई मामलों में पंडितों से क़ानूनी सलाह लिया करते थे।
लेकिन जब अंग्रेजो ने भारत का शासन संभाला तो उनको भारत का नियंत्रण अपने हाथों में लेने के लिए एक यूनिफार्म कोड की जरुरत महसूस हुई
लेकिन इंग्लैंड की रानी ने उन्हें भारतियों के धर्म, विश्वास और व्यक्तिगत मामलों के बीच हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। उन्हें डर था कि उनके ऐसा करने से यहाँ के लोग उनके विरुद्ध खड़े हो जायेंगे।
वैसे भी अंग्रेज फुट डालो और शासन करो की नीति पर काम कर रहे थे। इसलिए वो कोई भी सामान्य नियम लाकर यहाँ के धर्मो और समुदाओं के बीच मेल जोल नहीं बढ़ाना चाहते थे।
तब 1772 में वारेन हेस्टिंग्स जो ब्रिटिस इंडिया के पहले गवर्नर जरनल थे उन्होंने भारतियों के निजी मामलों को वैधता देने के लिए एक योजना बनाई।
उन्होंने हिन्दुओं के निजी मामलों के लिए उनके धर्म ग्रथों के आधार पर कानून बनाये और मुस्लिम के निजी मामलों के लिए उनके धर्म ग्रंथ कुरान के हिसाब से।
जिससे उनके मामलों में फैंसला सुनते समय न्यायाधीश को एक आईडिया रहे की फैंसला किस आधार पर करना है।
और वारेन हेस्टिंग्स के इस कदम के कारण मिताक्षरा और दयाभाग कानून अभ्यास में आये।
वैसे तो हिन्दू पर्सनल लॉ में स्त्रियों के पास अपनी अलग पहचान बनाये रखने का कोई अधिकार नहीं था।
लेकिन सती प्रथा और बाल विवाह को लेकर अंग्रेज बहुत ज्यादा सहज नहीं थे। इसलिए उन्होंने हिन्दू लॉ के कुछ नियमो में सुधार करने के बारे में सोचना शुरू किया।
मृत्यु दर में बृद्धि के कारण विलियम बैंटिक ने सती अबोलिशन एक्ट किया पारित
तब 1817 और 1818 में हैजा फैला तो मृत्यु के मामलो में अचानक वृद्धि हो गई और जिसके फलस्वरूप सती प्रथा के मामलों में भी वृद्धि हो गई।
लेकिन इस पर रोक तब लगी जब 1828 में विलियम बैंटिक भारत के गवर्नर जरनल बने।
और उन्होंने दिसंबर 1829 में विलियम बैंटिक ने सती अबोलिशन एक्ट पारित किया और इसे ब्रिटिश इंडिया की हर स्टेट में लागु कर दिया।
उसके बाद ईस्वर चंद्र विद्या सागर की पेटिशन पर 1856 में विधवा विवाह का कानून भी पारित हो गया।
ये दोनों एक्ट हिन्दू पर्सनल लॉ को सीधे तौर पर चुनौती देते थे और इनके द्वारा हिन्दू पर्सनल लॉ में सुधार की शुरुआत भी हुई थी।
जिसका हिन्दू सोसाइटी ने खुल कर विरोध किया। लेकिन ब्रिटिश इंडिया गवर्नमेंट इस पर कुछ भी सुनने को तयैर नहीं थी।
उनकी इस पहल ने भारत में स्त्रियों के अधिकारों की लड़ाई के लिए एक जमीन तयैर कर दी थी।
1927 में तय की गई लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु
इसके बाद 1927 में AIWC (All India Women Conference) नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने स्त्रियों के विकास और अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया।
वैसे तो इंडियन पीनल कोड 1860 में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 10 बर्ष थी जिसे 1891 में बढाकर 12 बर्ष कर दिया था।
लेकिन चूँकि ये उम्र भी विवाह जैसे रिश्ते को निभाने और उसे समझने के लिए नाकाफी थी इसलिए उन्होंने इस संस्था ने 12 बर्ष की उम्र को भी बढ़ाने के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट से अनुरोध किया।
इसी बीच ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट के सामने 1921 का एक डाटा आया जो ये कहता था कि उस साल हुई विधवाओं में से एक बड़ा हिस्सा जवान लड़कियों का है
और हिन्दू लॉ के हिसाब से उन्हें दोवारा शादी करने की भी इजाजत नहीं थी इसलिए सरकार ने बाल निरोधक विवाह अधिनियम(child restraint marriage act) पास करके लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र 14 बर्ष कर दी।
1919 में ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट ने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पास किया
1919 में ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट ने गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पास किया था इसके अनुसार इंडिया की अपनी एक गवर्नमेंट यूनिट बनाई गई थी
जिसको ब्रिटिश इंडिया के नीचे रहकर काम करना था। 1937 में जब इंडिया की पहली केंद्रीय विधानसभा हुई उसमे संघ के एक उदार सदस्य डॉक्टर गोपालरो देशमुख ने एक बिल पेश किया।
ये बिल था hindu women’s right to property जिसके अनुसार जिस राज्य में मिताक्षरा लॉ लागु होता था वहाँ की स्त्रियों को बिना बसीयत भी सम्पति में हिस्सा मिलना शुरू हो गया।
और अपने पति द्वारा खरीदी गई सम्पति में भी अपने बेटे के बराबर हिस्सा मिलना शुरू हो गया।
परन्तु इस बिल में अभी भी बहुत कमियाँ थीं जैसे इस में अभी भी बेटियों को सम्पति का हिस्सेदार नहीं बनाया गया था
और इस बिल में पति के दूसरा विवाह करने पर पहली पत्नी के लिए अलग निवास स्थान की मांग नहीं की गई थी।
और जो हिस्सा उनके हिस्से में आया भी था उस पर उनका अधिकार तभी तक होता था जब तक वे जीवित होती थीं
जिसका मतलब वो अपनी मर्जी से अपनी सम्पति को बेच नहीं सकती थीं केवल अपने जीवित रहते ही उसका उपयोग कर सकती थीं।
इन कारणों से इस बिल के पास होने के बाद भी इस पर बहस होती रही जिसके परिणामस्वरूप सरकार को हिन्दू लॉ कमेटी की स्थापना करनी पड़ी।
हिन्दू लॉ कमेटी या बी एन राव कमेटी की स्थापना क्यों हुई
Hindu women’s right to property act पास होने के बाद भी मद्रास और कलकत्ता उच्च न्यायालय ने दो विधवाओं को अपवित्रता के धरातल पर बिरासत में कोई हिस्सा नहीं दिया।
इस बात ने इस बिल पर पहले से हो रहे विवादों को और हवा दे दी।
तब ब्रिटिश इंडियन गवर्नमेंट ने इस बिल पर विचार करने के लिए भारतीय बकीलों, उदारवादियों, राजनीतज्ञों की एक सभा बुलाई।
और उस सभा ने ये फैसला लिया कि औरतों के अधिकारों को लेकर ये सब लोग मिलकर एक कमेटी बनाएंगे और उस कमेटी का काम hindu women’s right to property एक्ट के हर बिल का अच्छे से अध्ययन करेगी।
ताकि कोई ऐसा कानून लाया जा सके जिसके आधार पर विधवाओं के साथ साथ बेटिओं को भी जायदात में हिस्सा दिया जा सके
और पति के दूसरे शादी करने पर उसकी पहली पत्नी को अलग निवास और खर्चा देकर उसके जीवन को सुरक्षित किया जा सके।
और इस काम के लिए कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को चुना गया जिनका नाम था बी एन राव
इनके सहयोग के लिए 3 और सदस्यों को भी चुना गया जिनके नाम थे
- कलकत्ता उच्च न्यायालय के भूतपूर्व न्यायाधीश द्वारका नाथ मित्र
- पूना लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल श्री आ घरपुरे
- बड़ोदा के एक बकील बिनायक जोशी
और इन लोगो के द्वारा बनाई कमेटी का नाम हिन्दू लॉ कमेटी रखा गया। इस कमेटी को बी एन राव कमेटी के नाम से भी जाना जाता था।
हिन्दू कोड बिल की बनने की शुरुआत
अगले कुछ महीनों तक बी एन राव कमेटी के सब लोगो ने मिलकर मिताक्षरा लॉ का अच्छे से अध्यन किया
और इसके सबंधित प्रश्न बनाकर, सरकारी बकीलों, महिला संगठनों और धार्मिक नेताओं के पास उनके सुझाब लेने के लिए भेजा गया।
सबके बिचार सुनकर बी एन राव ने अपनी पहली रिपोर्ट जून 1941 को पेश की।
उसके बाद बी एन राव ने कमेटी के साथ मिलकर एक प्रगतिशील हिन्दू कोड बिल पर काम करना शुरू कर दिया।
और जो बिल केवल स्त्रियों के व्यक्तिगत मामलों से जुड़ा था अब पुरे हिन्दू समाज के लिए बनने जा रहा था।
और 2 सालों के बाद 2 अप्रैल 1943 को हिन्दू कोड बिल का पहला ड्राफ्ट उस समय की विधानसभा में पेश किया गया।
पहले हिस्से में सम्पति और बिरासत में स्त्रियों का बर्णन है। जिसके मुख्य बिंदु थे
- बेटियों को बेटों के बराबर सम्पति में हिस्सा देना।
- स्त्रियों को मिली सम्पति पर इनका पूर्ण अधिकार होगा।
- बिरासत की सम्पति पर भी स्त्रियों का पूर्ण अधिकार होगा।
दूसरे हिस्से में स्त्रियों के विवाह से सबंधित मामलो का बर्णन था जिसके मुख्य बिंदु थे
- स्त्रियों को अपनी मर्जी से विवाह करने और तलाक़ लेने का पूरा अधिकार दिया गया।
- बहुविवाह यानि एक से अधिक विवाह करने पर रोक लगाई गई।
हिन्दू कोड बिल की आलोचना
हिन्दू कोड बिल को विधानसभा में बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ा
विपक्षी दल के नेता बैजनाथ बजोरिया ने कहा।
स्त्रियां सम्पति के मामले में मैनेज नहीं कर सकती। उन्हें समाज ने एक पत्नी और माँ के रूप में तयैर किया है इसलिए इसे स्थगित कर देना चाहिए।
भाई परमानन्द ने कहा
ये बिल हिन्दू समाज के मूल को ही नष्ट कर देगा। इस बिल का आना लोगो की इच्छा नहीं है।
इस बिल से हिन्दू परिवारों की व्यवस्था विखर जाएगी। बेटियों और बहुओं को सम्पति में हिस्सा देने से सम्पति के टुकड़े टुकड़े हो जायेंगे।
बहन का विवाह करना और उससे जीवन भर सम्बन्ध निभाना एक भाई की नैतिक जिम्मेबारी होती है
अगर ये बिल पास बिल पास हुआ तो भाई अपनी नैतिक जिम्मेबारी से मुफ्त हो जायेगा।
बंगाल के बकील KC नेओगी ने कहा
बंगाल में पहले से ही दयाभागा लॉ लागु है इसलिए वहाँ पर पहले से ही स्त्रयों की सम्पति में हिस्सेदारी होती है।
लेकिन हिन्दू कोड बिल ने हिन्दू धर्म के मूल को ही बदल दिया है इसलिए बंगाल इस बिल को स्वीकार नहीं कर सकता।
लाल चंद नवलारी ने कहा
हम धीरे धीरे पश्चिमी सभ्यता के तौर तरीके अपनाते जा रहे हैं अगर हम ये बिल ले आएंगे तो हम पूरी तरह से अपनी सभ्यता से दूर हो जायेंगे।
और अगर हम बेटी को भी सम्पति में हिस्सा देते हैं तो शादी के बाद उसके पास दो हिस्से हो जायेंगे जबकि पुरुष के पास एक ही हिस्सा रह जायेगा। तो ये बराबरी कैसे हुई।
हिन्दू कोड बिल का समर्थन करने वाले लोगो के मत
रेणुका रे का कहना था
रेणुका रे विधानसभा की एक सदस्य थीं उन्होंने कहा कि हिन्दू शास्त्र मनुस्मृति में भी स्त्रियों को पति की सम्पति में हिस्सा मिलने की बात कही गई है
लेकिन किसी ने भी उनको हिस्सा दिया नहीं। और सम्पति में हिस्सा देना एक स्त्री के भविष्य को सुरक्षित करेगा।
अभी जो स्त्रियों की स्थिति है उसमे यदि उसका पति उसे छोड़ देता है तो वो कहाँ जाएगी, क्या करेगी।
ऐसे में अगर पिता की सम्पति में उसका हिस्सा होगा तो वो गुजारा तो कर पायेगी। बहु विवाह वैसे भी एक अनैतिक कृत्य है और सती प्रथा की तरह इस पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए।
डॉ GV देशमुख का कहना था
डॉ GV देशमुख ने ही हिन्दू कोड बिल ड्राफ्ट किया था इनका कहना था कि समाज एक जीवित प्राणी की तरह होता है
जो भी परिस्थियाँ होगी वो उनके अनुसार खुद को ढाल लेगा इसलिए समाज नष्ट होने की चिंता करना ही व्यर्थ है।
हिन्दू कोड बिल का पक्ष विपक्ष जानने के लिए बी एन राव का भारत दौरा
हिन्दू कोड बिल की इतनी आलोचना होने के बाद भी इसकी प्रक्रिया आगे बढ़ी। बी एन राव ने इस बिल पर विभिन्न लोगो की राय जानने के लिए अलग अलग राज्यों का दौरा किया।
उन्होंने देखा कि इस समय हिन्दू समाज दो हिस्सों में बंट गया था। और अधिकतर लोग इससे असहमत थे।
साथ ही जो लोग इस बिल के विरोध में थे वो लोग इस बिल के विरोध में अभियान चला रहे थे। इस बिल के समर्थन में उदारवादियों और महिला संगठनों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने लोगो के बीच जा जाकर लोगो को इस बिल के फायदे बताये। स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
बी एन राव कमेटी के ही एक सदस्य ने किया बिल का विरोध
कई राज्यों का दौरा करने के बाद जब बी एन राव कमेटी के सदस्यों के साथ मिलकर रिपोर्ट बनाने लगे तो उनकी कमेटी के एक मेंबर द्वारका नाथ मित्तर इस बिल को लेकर अपना विरोध जताने लगे।
उन्होंने कहा कि इस बिल को लाने का सही समय नहीं है क्यूंकि अधिकतर लोग इसके विरोध में हैं।
परन्तु द्वारका नाथ के अलावा कमेटी के सभी सदस्य इस बिल के समर्थन में थे। 17 नवंबर 1946 को बी एन राव ने इस बिल पर अपनी रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंप दी।
इस रिपोर्ट में इन्होने लिखा कि हालाँकि अधिकतर लोग इस बिल के विरोध में हैं परन्तु हमें फिर भी अपने उदेश्य को नहीं भूलना चाहिए।
जब हम भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए समान संबैधानिक अधिकारों की बात कर रहे हैं तो इस हिन्दू कोड बिल को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए।
हमारे देश की युवा पीढ़ी इस बिल के सपोर्ट में है। उनके लिए हमें इस बिल को पास करना चाहिए। क्यूंकि वही भारत का भविष्य हैं और वही इस बिल के कानूनों से प्रभावित होंगे।
परन्तु आलोचना अधिक होने के कारण या फिर उस समय भारत की स्वतंत्रता के लिए चल रहे आंदोलनों के कारण ये बिल ठन्डे बस्ते में ही पड़ा रहा
1947 में डॉक्टर भीम राव आंबेडकर ने यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर बात की
15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ और डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर जो उस समय कानून मंत्री थे उन्होंने इस बिल के मुद्दे को फिर से उठाया
परन्तु उन्होंने जब ये बिल संबिधान सभा में पेश किया तो उन्हें सभी सदस्यों की भरी आलोचना का सामना करना पड़ा।
डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर ने भारत में यूनिफार्म कोड बिल लाने की बात कही जो सभी धर्म और सम्प्रदायों पर एक समान लागु हो।
जिससे कानून के सामने सभी एक हों और जिससे लिंग और जाति भेदभाव में असमानता भी ख़तम हो। इसके साथ साथ यूनिफार्म कोड बिल सभी जाति और धर्म से ऊपर भारत की एक अलग पहचान बनाएगा।
परन्तु कुछ लोग इसके विरोध में भी थे उनका कहना था ये बिल अल्पसख्यंकों की सांस्कृतिक पहचान पर एक प्रहार के जैसा होगा और वो खुद को भारत में असुरक्षित महसूस करेंगे।
अभी हाल ही के समय में बंटवारे के समय जो साम्प्रदायिक दंगे हुए हैं उनसे लोग वैसे ही लोग डरे हुए हैं और भारत की जनता उनसे अभी उबर नहीं पाई थी।
अगर इस समय यूनिफार्म सिविल कोड बिल लागु होता है तो साम्प्रदायिक दंगे फिर से होने का खतरा हो सकता है।
डाक्टर भीम राव आंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल का नया ड्राफ्ट तयैर किया
देश में आजादी के बाद पनपे माहौल और फ़िलहाल में हुए दंगो को देखते हुए केवल हिन्दू कोड बिल बनाने पर विचार किया गया।
जिसका एक ड्राफ्ट बी एन राव की कमेटी तैयार कर चुकी थी। इस जिम्मेबारी के लिए बाबा भीम राव आंबेडकर एक उपयुक्त व्यक्ति थे उन्हें कानून की अच्छी समझ थी और वो भारत के कानून मंत्री थे
इसके अलावा वो भारत में फैले जातिवाद की बुराइयों को भी अच्छी तरह से समझते थे।
उन्होंने हिन्दू कोड बिल में और आवश्य्क बदलाब किये और फिर उन्होंने नया ड्राफ्ट संबिधान सभा में 9 अप्रैल 1948 को पेश किया।
इस बिल से असहमत उत्तर प्रदेश सरकार के एक सदस्य आर बी धुलेकर ने कहा
हिन्दुओं में ही सुधार की आवस्यक्ता है क्या दूसरे धर्मो का समाज हिन्दुओं से जयादा सभ्य और आधुनिक है
अगर कोई कोड लाना ही है तो यूनिफार्म बिल कोड लाया जाना चाहिए। आप भारत में समानता लाने की बात कर रहे हैं तो फिर सुधार कार्य सिर्फ एक बर्ग के लोगो के लिए ही क्यों दूसरे धर्म के लोगो के साथ ये भेदभाव क्यों।
बी पताभी सीतारमैया ने कहा
भारत को कब से इस तरह क़ानूनी विधान की आवस्य्क्ता थी। पिछले लगभग 1000 सालों से भारत विदेशियों के शासन में रहा है
जिस वजह से हिन्दू बिल समय में स्थिर होकर रह गया। जहाँ पूरी दुनिया समय के साथ बदल रही थी वही हम पुरानी रूढीबादी परम्पराओ को निभाते आ रहे थे।
अब समय आ गया है बर्तमान समय के अनुसार उन रूढ़ियों में बदलाब करने का।
पश्चिमी बंगाल के विधायक नज़ीरूदीन अहमद बोले
पुरे बंगाल का इस बिल को लेकर एक ही विचार है और सारा बंगाल इस बिल के बिरुद्ध है और मुंबई के अलावा इसे कही भी इस बिल पर लोगों का बहुमत नहीं मिला है।
मैं संबिधान सभा को यही सुझाव देना चाहूंगा कि वो इसे चयन समिति को सौंपने से पहले इस पर अच्छे से विचार कर लें।
बॉम्बे की प्रतिनिधि हंसा मेहता ने इस बिल के सपोर्ट में कहा
हमारे देश का संबिधान बनने के रास्ते में है। हमारा नया भारत एक लोकतान्त्रिक देश होगा और लोकतंत्र में हर व्यक्ति एक समान होता है।
हमें इसी दृश्टिकोण के साथ विवाह, सम्पति आदि कानून बनाने हैं हालाँकि इस बिल का पहला ड्राफ्ट उतना भी प्रोग्रेसिव नहीं है जितना हमने सोचा था लेकिन फिर भी इस बिल का आना भारत के लिए ऐतिहासिक जीत के समान होगा।
और उस समय 1940 से लेकर 1950 के बीच में 4 तरह की सोच सामने आईं
धार्मिक लोगो का नैरेटिव
धार्मिक लोग इस बिल के बिलकुल विरोध में थे। सदियों से हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म एक दूसरे के परस्पर सहयोगी रहे थे ।
एक हिन्दू परिवार में या एक हिन्दू समाज में स्त्रियों की क्या भूमिका होगी ये सब तय करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।
और समाज तो चलता भी धार्मिक ग्रंथो के अनुसार था। बकील संघ ने भी इनका पूर्ण सहयोग किया
अहमदाबाद लॉ एसोसिएशन ने कहा
हिन्दू कानून, अंग्रेजी कानून या किसी भी व्यक्तिगत कानून की किसी भी तरह की सामाजिक और स्वामित्व के दावे पर आधारित नहीं है ये मुख्य रूप से हिन्दू धर्म के मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित है
और अनादि काल से ये एक हिन्दू परिवार में जन्मे व्यक्ति के आचरण का आधार रहे हैं। इनमे बदलाब लाना अपनी नीव को हिलाने जैसा है।
सीतापुर बार एसोसिएशन ने कहा
दुर्भाग्यपूर्ण रूप से इस बिल में ऐसी कई विशेषताएं हैं जो न केवल हमारे हिन्दू कानून के मूल सिद्धान्तों पर चोट पहुँचाते हैं
वल्कि हमारे सामाजिक हितों और भावनाओं के साथ भी इनका सीधा विरोध दिखाई देता है।
दरभंगा बार एसोसिएशन का कहना था
ये कोड बिल हिन्दू शास्त्रों के विज्ञाता द्वारा नहीं बनाया गया है इसलिए ये हिन्दू धर्म के विरुद्ध है
इस बिल ने हिन्दू समाज के मूल ढांचे को छूआ है जिसने लोगो के धर्म, विस्वास और पारम्परिक तौर तरीकों को हिलाकर रख दिया है
बार एसोसिएशन के अलावा धार्मिक नेताओं, धार्मिक गुरुओं और धार्मिक संगठनों ने भी इस बिल की खुल कर निंदा की।
श्री जगतगुरु और शंकराचार्य जैसे कई धार्मिक गुरुओं ने हिन्दू लॉ कमेटी को पत्र लिखकर इस बिल की खूब आलोचना की।
हिन्दू महासभा के विचार
धार्मिक संगठनों जैसे हिन्दू महासभा का कहना था बहु विवाह करके उन हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करवा के जो एक से अधिक विवाह करने की इच्छा रखते हैं
ये मुस्लिम सँख्या में दिन प्रतिदिन बढ़ते जायेंगे और एक दिन ऐसा आएगा कि इनकी आबादी हिन्दुओं से अधिक हो जाएगी और उस दिन भारत एक बड़े पाकिस्तान का रूप ले लेगा और हिन्दू अपनी ही मातृभूमि पर खुद को पराया महसूस करेंगे।
राजनतिक नेताओं में बिहार के एक विधायक राम नारायण सिंह ने कहा
जिस तेजी से हिन्दू कोड बिल पर विचार चल रहा है उससे तो यही लगता है कि हिन्दू समाज को ख़तम करने की साजिस की जा रही है
लक्ष्मी कान्ता मोइत्रा ने कहा
जो व्यक्ति खुद को एक हिन्दू मानता है और विवाह को एक संस्कार मानता है उसके लिए तलाक़ एक अनजानी अबधारणा है
केवल हिन्दू शास्त्रों द्वारा किया गया विवाह ही पवित्र और अटूट है। इसलिए इस बिल का हमारे हिन्दू समाज में कोई स्थान नहीं।
इनकी तरह और भी बहुत सारे राजनेता थे जो हिन्दू कोड बिल के खिलाफ बोल रहे थे। इस बिल को लेकर कांग्रेस सरकार ही दो मतों में बंटी हुई थी।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति भी इस बिल के खिलाफ थे। इस मुद्दे को लेकर नेहरू जी के साथ उनका बहुत’लम्बा पत्र व्यवहार चला था।
डाक्टर राजेंद्र प्रसाद का कहना था
विदेशियों और खुद को प्रगतिशील कहने वालों को नज़रअंदाज करके हमें ये देखना होगा कि हमारे हिन्दू समाज के अधिकतर लोग क्या चाहते हैं।
हमें ये सही लगता है इसलिए हम हमारे देश के एक बड़े हिस्से की भावनाओं को कुचल रहे हैं वो भी उन्हें बिना बताए।
इस तरह के कानून के लिए देश में सबसे पहले जनमत तयैर किया जाना चाहिए। हिन्दू धर्म के मूल और कानून को बदलने से हिन्दू समाज की प्रगति नहीं होगी।
बल्कि इसकी पूरी व्यवस्था तित्तर वित्तर हो जाएगी।
इस तरह से धार्मिक नैरेटिव के सभी लोग इस बिल के खिलाफ थे।
दूसरा था लिबरल नैरेटिव या उदारवादी नैरेटिव
इस नैरेटिव में गाँधी जी नेहरू जी और डॉक्टर भीम राव आंबेडकर जैसे लोग शामिल थे जो इस बिल को समाज के विकास के रूप में देख रहे थे
इसे मानने वाले स्त्री और पुरुष के बीच समानता के पक्षधर थे। इस बिल का बहुत बड़ा समर्थक महाराष्ट्र का धर्म निर्णय मंडल भी था।
तीसरा था जेंडर नैरेटिव
इस नैरेटिव के पक्ष में अधिकतर स्त्रियां थीं क्यूंकि ये बिल उन्हें पुरे समाज में जीने के लिए पुरुषों के बराबर पूर्ण अधिकार दे रहा था।
अखिल भारतीय महिला संगठन की तरह और भी बहुत से संगठन थे जो व्यक्तिगत मामलो से जुड़े हर पहलु में पुरषों के बराबर अधिकार चाहती थीं और उसके लिए अपनी आवाज भी उठा रही थीं।
इनके अलावा कई स्त्रियां सांसद जैसे हंसा मेहता,रेणुका रे, जी दुर्गाभाई और सुचेता कृपलानी इन सबने विधानसभा में होने वाली डिबेट में सभी स्त्रियों की तरफ से हिन्दू कोड बिल का सपोर्ट करते हुए उसमे जरुरी सुधार के सुझाव भी दिए।
चौथा नैरेटिव था अल्पसंख्यंक नैरेटिव
इसे मानने वालों में से एक बाबा भीम राव आंबेडकर भी थे। हिन्दू कोड बिल अंतर्जातीय विवाह का पक्षधर था किसी भी जाति से बच्चा गोद लिया जा सकता था।
और ये उच्च और नीची दोनों जाति पर एक समान रूप से लागु होता था इसलिए कोई भी उच्च कुल का व्यक्ति नीच जाति के लिए अलग से कानून बनाकर उनका शोषण नहीं कर सकता था।
चयन समिति द्वारा इस बिल में सुधार किये जाने के बाद उसे फिर से संबिधान सभा में पेश किया गया मगर तब भी इसकी खूब आलोचना हुई। देश भर में इस बिल के खिलाफ मोर्चे निकाले जाने लगे। आलोचना करने वालों में से एक करपात्री महाराज भी थे।
बिल लागु न हो पाने के विरोध में डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर का अस्तीफा
हिन्दू कोड बिल पर विधायकों, विपक्ष, धार्मिक गुरुओं और जनता के जबरदस्त विरोध को देखकर 17 सितम्बर 1951 को नेहरू जी ने संबिधान सभा में इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने की घोषणा कर दी
उनके इस निर्णय से बाबा भीम राव आंबेडकर बिलकुल भी खुश नहीं थे उन्होंने इस प्रक्रिया में कानून मंत्री के पद से अस्तीफा दे दिया।
बाबा भीम राव आंबेडकर का कहना था
मैंने इस बिल को लागु करने की प्रक्रिया के दौरान क्या कुछ नहीं सहा। मेरा अपमान हुआ, मेरी जाति को लेकर मुझ पर कटाक्ष किये गए लेकिन मैं फिर प्रयास करता रहा
क्यूंकि ये देश हित का मामला था। मैं अब भी यही मानता हूँ कि ये बिल भारत की जनता के लिए भारत के संबिधान से ज्यादा लाभदायक सिद्ध होगा लेकिन इसके प्रति लोगों का विरोध देखकर मुझे घोर निराशा हुई।
ये वो आजाद भारत नहीं है जिसका सपना हम सबने देखा था। हालाँकि माननीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी इसे लेकर उत्साहित थे
मगर उन्होंने इसे लाने की कोशिश में उतना उत्साह नहीं दिखाया जितना उनसे उम्मीद थी।
कानून के मामले में एक कानून मंत्री की सलाह लिए बिना उन्होंने इससे स्थगित करने का निर्णय ले लिया इसलिए मैं अपने पद से अस्तीफा दे रहा हूँ
और भविष्य में हिन्दू कोड बिल के संबंध में मेरी कोई सहभागिता नहीं रहेगी।
पंडित जवाहर लाल नेहरू को हिन्दू कोड बिल को स्थगित करने का फैंसला क्यों करना पड़ा
चयन समिति से पास होकर जब ये बिल फिर से 19 दिसंबर 1949 को विधानसभा में पेश हुआ तब भी इस पर बहुत बहस हुई
लेकिन इससे कुछ दिन पहले हिन्दू महासभा के पाँच सौ कार्यकर्ताओं ने जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का ही एक चेहरा था और जो भारत को एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे
उन्होंने संसद के बाहर खड़े होकर नारे लगाने शुरू कर दिए और संसद के बीच भी इस बिल को लेकर बहुत हंगामा हुआ। कई लोग तो यहाँ तक बोल रहे थे कि आंबेडकर हिन्दू कोड बिल लाकर हिन्दू स्वर्ण समाज से बदला ले रहे हैं।
इस तरह अगले 2 सालों तक ये बिल बहस का विषय बना रहा। इस बिल के विरोध में स्वामी करपात्री जी भी स्पष्ट रूप से बोल रहे थे
2 साल बाद जब चुनाव का दौर आया तो हर जगह बिल का विरोध देखकर नेहरू जी ये समझ गए कि इस बिल का असर आने वाले चुनाव पर पड़ने वाला है
इसलिए उन्होंने विधानसभा में ये प्रस्ताव रखा कि इस बिल को एक साथ लाने की जगह उसे हिस्सों में लाया जाये लेकिन बाबा आंबेडकर ऐसा नहीं चाहते थे
उस समय हिन्दू कोड बिल को लागु न कर पाने का एक कारण ये भी था कि लोकसभा में इसके सभी खंडो पर चर्चा नहीं हुई थी। कुछ सालो तक इसे टाला जाता रहा।
1955 में नए कानून मंत्री चारु चंद्र विश्वास ने हिन्दू कोड बिल को संसद में फिर से पेश किया
साल 1955 में नए कानून मंत्री चारु चंद्र विश्वास ने इस बिल को संसद में पेश किया। इस बिल को पेश करते हुए उन्होंने इस बिल के पक्ष में कहा
2000 साल पहले लिखी मनुस्मृति में जो भी लिखा था वो उस समय के हिसाब ठीक था। सदियों पहले जो नियम बनाये गए थे वो बर्तमान समय में लागु नहीं होते
और 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम (हिन्दू मैरिज एक्ट) पास हुआ। उसके बाद हिन्दू सक्सेशन एक्ट (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956) पास हुआ