हिमाचल प्रदेश महाभारत काल से लेकर अब तक कई राजाओं के प्रभाव में रहा है उनकी संस्कृति और उनकी भाषा भी यहाँ के लोगो में देखने को मिल जाती है। अब तक हिमाचल प्रदेश किन किन रियासतों के प्रभाव में रहा है आइये देखते हैं।
Table of Contents
Toggleत्रिगर्त रियासत बर्तमान में काँगड़ा
त्रिगर्त सतलुज व रावी नदियों के बीच की रियासत थी। मैदानी भाग को जालंधर व पहाड़ी भाग को त्रिगर्त कहा जाता था। त्रिगर्त हिमाचल प्रदेश की सबसे पुरानी रियासत थी, जिसकी स्थापना सुशर्मा चन्द्र ने की जो मुल्तान के निवासी थे। सुशर्मा चन्द्र ने कांगड़ा किला बनाया और नगरकोट को अपनी राजधानी बनाया।
सुशर्मा चन्द्र ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सहायता की थी। त्रिगर्त 6 राज्यों का समूह था-कौरव शक्ति, जलमनी, जानकी, ब्रह्मपुत्र, इन्डकी और कन्दोप्रथा । यह वर्तमान कांगड़ा में स्थित है।
कुल्लूत रियासत बर्तमान में कुल्लू
कुल्लूत वर्तमान कुल्लू का प्राचीन नाम था। यह हिमाचल प्रदेश की दूसरी सबसे पुरानी रियासत थी। कुल्लूत ब्यास नदी के ऊपर का इलाका था। नग्गर कुल्लूत रियासत की पुरानी राजधानी थी। कुल्लूत रियासत के संस्थापक विहंगमणीपाल थे, जो प्रयाग (संगम) से आए थे। कुल्लूत राज्य के सिक्कों पर राजा विर्यास का नाम खुदा हुआ था।
औदुम्बर रियासत बर्तमान का काँगड़ा और पंजाब के कुछ इलाके
औदुम्बर राज्य वर्तमान कांगड़ा के नूरपुर तथा पंजाब के गुरदासपुर तथा होशियारपुर के कुछ भागों को मिलाकर बनता था। अदुम्बर वृक्ष की बहुलता के कारण यह जनपद औदुम्बर कहलाया। पाणिनि के अनुसार ईसा पूर्व पांचवीं सदी में औदुम्बर जालंधर से सम्बद्ध था।
कुलिंद रियासत
कुलिंद जनपद सिरमौर, शिमला, अम्बाला तथा सहारनपुर के क्षेत्रों को मिलाकर बनता था। इसकी राजधानी कुलिंद नगरी अर्थात् वर्तमान राजबन के आस-पास सिरमौरी ताल में मानी जाती है। यमुना नदी का पौराणिक नाम कालिंदी है और इसके साथ-साथ पड़ने वाले क्षेत्र को कुलिंद कहा गया है। कालिंद शब्द का अर्थ ‘बहेड़ा‘ भी है।
बहेड़े के पेड़ों (जो कि यहाँ पर काफी अधिक पाए जाते हैं) की अधिकता के आधार पर भी इस क्षेत्र को कुलिंद कहा जाता है। वर्तमान में यहाँ के निवासियों को कुनैत पुकारा जाता है।
गब्दिका
गब्दिका का संबंध वर्तमान चम्बा जिले के क्षेत्रों से जोड़ा जाता है। कुछ के अनुसार गद्दी शब्द गब्दिका का ही अपभ्रंश(नया) रूप है। पाणिनि के अष्टाध्यायी में भी इसका वर्णन मिलता है।
मौर्य काल का हिमाचल
किरत, कुलिद और खश आदि जातियों के लोगों ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सेना में भर्ती होकर नंद वंश को समाप्त करने में योगदान दिया। जहां जालंधर-त्रिगर्त के राजा पर्वतक ने चन्द्रगुप्त मौर्य की सहायता की, वहीं कुल्लूत के राजा चित्रवर्णन ने चन्द्रगुप्त मौर्य का विरोध किया था।
कुलिंद राज्य को मौर्य राज्य के शीर्ष पर होने के कारण शिरमौर्य कहा गया, जो बाद में सिरमौर बन गया। कालसी (उत्तरांचल) के समीप अशोककालीन शिलालेख पाए गए हैं।
गुप्तकाल का हिमाचल
गुप्तकाल के बाद चंबा के क्षेत्रों में खशों (क्षत्रियों) द्वारा मवाणा रियासतें स्थापित करने का सिलसिला पुनः शुरू हुआ।
हर्षकाल
हर्षवर्धन के समय चीनी यात्री ह्यूनसांग भारत आया। वह 635 ई. में जालंधर व त्रिगर्त आया, बाद में वह लाहौल व कुल्लू भी गया।
चम्बा रियासत
चम्बा रियासत की स्थापना राजा मेरुवर्मन ने ब्रह्मपुर (वर्तमान भरमौर) में 550 ई. में की; जबकि चम्बा शहर की स्थापना 920 ई. में साहिल वर्मन ने की। चम्बा शहर का नाम साहिल वर्मन ने अपनी पुत्री चम्पावती के नाम पर रखा और उसे अपनी राजधानी बनाया।
मुस्लिम काल का हिमाचल
महमूद गजनवी ने 1009 ई. में नगरकोट पर आक्रमण कर उसे लूटा। 1043 ई. में नगरकोट का किला तुर्कों के कब्जे में रहा, जिसे बाद में कटोच राजाओं ने 1060 ई. में छुड़ाया और उस पर 300 वर्षों तक शासन किया। 1337 ई. में मोहम्मद तुगलक ने कांगड़ा किले पर आक्रमण किया।
फिरोजशाह तुगलक ने 1365 ई. में कांगड़ा किले पर आक्रमण किया। वह ज्वालामुखी से 1300 संस्कृत पुस्तकों को फारसी में अनुवाद करवाने के लिए ले गया। तैमूरलंग ने 1398 ई. में शिवालिक पहाड़ियों पर हमला किया। उस समय मेगचंद कांगड़ा का राजा था। 1525 ई. में बाबर ने कांगड़ा के निकट ‘मलौट‘ पर अपनी चौकी स्थापित की।
1620 में कांगड़ा जिले पर जहांगीर ने कब्जा किया। 1622 ई. में जहांगीर धमेरी आया और अपनी पत्नी नूरजहां के नाम पर धमेरी का नाम नूरपुर रखा। 1759 ई. में अहमद शाह दुर्रानी ने घमण्ड चन्द को जालंधर का नाजिम घोषित किया ।
सिरमौर रियासत
‘तारीख-ए-रियासत सिरमौर’ – रंजौर सिंह द्वारा लिखित किताब के अनुसार सिरमौर का प्राचीन नाम सुलेकिना था। इसकी स्थापना 1139 ई. में राजा रसालू ने की थी; जबकि ‘गजेटर ऑफ सिरमौर’ – 1934 के अनुसार सिरमौर रियासत की स्थापना शोभा रावल जिसे शुभंश प्रकाश के नाम से भी जाना जाता था, 1195 ई. में की थी।
उसने अपनी राजधानी राजबन बनाई। बाद में 1217 ई. में राजा उदित प्रकाश ने राजधानी को राजबन से बदल कर कालसी किया। राजा कर्मप्रकाश ने 1621 ई. में राजधानी को कालसी से बदलकर नाहन किया और नाहन शहर की स्थापना की।
संसारचंद काँगड़ा का सबसे शक्तिशाली शासक
कांगड़ा का सबसे शक्तिशाली राजा संसारचन्द था। संसार चन्द 1775 ई. में कांगड़ा का राजा बना। 1783 ई. में संसार चन्द ने कांगड़ा किले पर कब्जा किया। 1786 ई. के ‘नेरटी’ शाहपुर युद्ध में संसार चंद ने चम्बा के शासक को हराया। 1794 ई. में संसारचंद ने बिलासपुर पर आक्रमण किया।
1805 ई. में अमर सिंह थापा ने संसार चन्द को महलमोरियो (हमीरपुर) में हराया। संसारचन्द को पीछे हटना पड़ा और कांगड़ा किले में शरण लेनी पड़ी।
ज्वालामुखी संधि
1809 ई. में संसारचन्द ने महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। दोनों के बीच 20 जुलाई, 1809 में ‘ज्यालामुखी‘ संधि हुई। इस संधि के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखों को हराया और संसारचन्द को मुक्त करवाया। संसारचंद ने महाराजा रणजीत सिंह को कांगड़ा किला व 66 गांव दे दिए।
हिमाचल में सिक्ख प्रभाव
सिक्खों के पहले गुरु गुरुनानक देव जी ने कुल्लू च मण्डी के कई क्षेत्रों का भ्रमण किया। अमृतसर में हरमन्दिर साहिब की स्थापना के समय मण्डी, कुल्लू, सुकेत व चम्बा के राजाओं ने पांचवें सिख गुरु अर्जुन देव की सहायता की।
दसवें गुरु गोविंद सिंह पांच वर्ष तक पौंटा साहिब में रहे। गुरु गोबिंद संह और कहलूर के राजा भीमचंद, उसके रिस्तेदार फतेहशाह (गढ़वाल) और हण्डूर के राजा हरिचन्द के बीच 1686 ई. में ‘भगानी साहिब’ का युद्ध लड़ा गया, जिसमें गुरु गोविंद सिंह विजयी रहे।
गुरु गोविंद सिंह ने 13 अप्रैल, 1699 ई. में बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब (कहलूर) में 80 हजार सैनिकों के साथ खालसा पंथ की स्थापना की। 1809 में महाराजा रणजीत सिंह ने दिशासिंह मजीठिया को कांगड़ा किले का निजाम (गवर्नर) बनाया। 1839 ई. में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु से सिख कमजोर बड़ गए
गोरखों के समय हिमाचल
गोरखों ने अमर सिंह थापा के नेतृत्व में 1805 ई. में हमीरपुर के महल मोरियो के स्थान पर कांगड़ा के राजा संसारचंद को हराया। गोरखों ने 4 वर्ष तक कांगड़ा किले पर घेरा डाला, परंतु 1809 ई. में महाराजा रणजीत सिंह से हार गए। अमर सिंह थापा के पुत्र रंजौर सिंह ने 1809 ई. में सिरमौर के राजा कर्मप्रकाश को हराया।
गोरखों ने 1810 ई. तक हण्डूर व जुब्बल पर कब्जा कर लिया। 1815 ई. में गोरखा ब्रिटिश युद्ध हुआ, जिसमें गोरखों की हार हुई और गोरखे बिलासपुर, बघाट, सिरमौर, जुब्बल बुशहर के क्षेत्र ब्रिटिश को सौंपकर वापस नेपाल चले गए।
ब्रिटिश शासनकाल का हिमाचल
1815 ई. में अमर सिंह थापा और ब्रिटिश जनरल डेबिड औक्टरलोनी के बीच ‘संगोली’ की संधि हुई। गोरखे इस संधि के अनुसार वापस नेपाल चले गए। 1839 ई. के बाद सिक्ख कमजोर पड़ गए और अंग्रेजों से हारते गए। 1846 ई. तक कांगड़ा, नूरपुर, मण्डी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति के क्षेत्रों पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।
गुरु गोबिंद सिंह जी के पंज प्यारे कौन थे और उनका चुनाव कैसे हुआ। अमृत छकने की शुरुआत कैसे हुई।
भारत की अनोखी शादियाँ जहाँ एक लड़की करती है कई कई लड़को से शादियाँ तो कहीं दुल्हन बारात लेकर जाती है
2 responses