भारत का इतिहास कम्युनिस्टों के द्वारा लिखा गया है इसलिए इसमें बहुत सी बातें छिपा ली गई है परन्तु ये बातें अभी भी जनश्रुतियों में जिन्दा हैं।
भारत में समय समय पर ऐसे योद्धा हुए जिन्होंने बाहर से आने वाले विदेशी लुटेरों का प्रतिकार किया और अपनी वीरता का लोहा मनवाया।
सब धर्मो के अपने अपने ईस्वर होते हैं परन्तु कई बार कोई व्यक्ति इतिहास में ऐसी अमिट छाप छोड़ जाता है कि सब लोग धर्मो के मतभेद को भुलाकर उनको मानते हैं।
इसी तरह की एक शख्सियत थी जेवरराज के पुत्र गोगा चौहान।
हिन्दू जहाँ इन्हे गोगा जाहरबीर के नाम से पूजते हैं बहीं कायम खानी मुस्लिम समाज इनको गोगा जाहरपीर के रूप में जानता है।
इनके ऐतिहासिक तथ्यों और जनश्रुतियों में काफी अंतर् पाया जाता है। क्या है इनका इतिहास और एक योद्धा कैसे जनश्रुतियों में अमर हो गया आइये जानते हैं।
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Toggleगोगा जी के जन्म के बारे में ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं
राजस्थान के पाँच पीरों में से एक गोगाजी का जन्म पश्चिमी राजस्थान के चुरू जिले में स्थित ददरेवा (राजगढ़) नामक स्थान के शासक जेवर चौहान के घर में हुआ था।
इनकी माता का नाम बाछल था। गोगा जी का जन्म प्रसिद्ध नाथ योगी गोरखनाथ के आशीर्वाद से माना जाता है।
गोगा जी के समय के बारे में इतिहासकारों में अनेक मतभेद हैं। कर्नल जेम्स टॉड इन्हें फिरोजशाह तुगलक का समकालीन मानते हैं ।
ऐसा शायद इसलिए हैं क्यूंकि फिरोजशाह तुगलक ने ही गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया था। कुछ लोग इन्हे लोक देवता पाबूजी का समकालीन मानते हैं।
डॉ. भरत ओळा एवं डॉक्टर भवानी सिंह पातावत ने प्रमाणिक शोधों के आधार पर गोगा जी का समय ग्याहरवीं शताब्दी माना है।
श्री चन्द्रदान चारण ने ‘गोगा चौहान “री राजस्थानी गाथा” में गोगा जी की वंशावली के आधार पर इन्हें महमूद गजनवी का समकालीन माना है।
यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि गोरखनाथ और गजनवी का समय भी ग्याहरवीं शताब्दी का ही रहा है।
इस प्रकार शायद बाबा बालक नाथ जी का समय भी ग्याहरवीं सदी के आस पास का ही रहा होगा क्यूंकि गुरु गोरखनाथ बाबा बालक नाथ जी से भी मिले थे।
गोगा जी के जन्म और नाम का इतिहास
गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परम शिष्य थे। उनका जन्म बिक्रम संवत 1003 में राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा(दत्तखेडा) गााँव में एक राजपूत परिवार में हुआ था।
इनके पिता का नाम जेवर चौहान तथा माता का नाम बाछल था। इतिहासकार मानते हैं कि गोगा नाम गोरखनाथ के “गो” और गूगल के सयोंग से बना है।
डॉक्टर भारत ओला लिखते हैं कि ऐतिहासिक पक्ष के अनुसार पिता जेवर चौहान की मृत्यु के बाद गोगा जी ददरेवा के शासक बने थे।
इनका अपने मौसेरे भाइयों अर्जन-सर्जन के साथ भूमि सबंधी विवाद चलता रहता था। उन्होंने गोगा जी को हराने की बहुत कोशिशें की परन्तु कभी सफल नहीं हुए।
फिर उन्होंने गोगा जी को हराने के लिए मुस्लिम शासकों की मदद ली और गोगा जी के ठिकाने पर जाकर उनकी गायें घेर लीं।
इसके बाद हुए युद्ध में गोगा जी के हाथों ये दोनों मोसेरे भाई अर्जन-सर्जन मारे गए। इस युद्ध में गोगा जी भी वीरगति को प्राप्त हुए थे।
मनोहर शर्मा और डॉक्टर सत्यकेतु विद्यालंकार जैसे इतिहासकार मानते हैं कि गोगा जी का युद्ध महमूद गजनवी से हुआ था।
उनके अनुसार सोमनाथ पर हुए हमले के दौरान गोगा जी ने महमूद गजनवी को ललकारा।
उसके साथ हुए युद्ध में गोगा जी अपने पुर्त्रों तथा अनेक सबंधियों सहित वीरगति को प्राप्त हुए थे।
राजस्थानी लोक कथा के अनुसार गोगा जी इस युद्ध में अपने 47 पुत्रो तथा 60 भतीजों के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध की जानकारी रावसाल (रसावला) ग्रन्थ से मिलती है जिसके कवी मेह हैं।
गोगाजी के रणकौशल को देखकर ही महमूद गजनवी ने कहा था ये तो जाहिर पीर‘ है अर्थात साक्षात् देवता है । इसलिए ये मुस्लिम में जाहरपीर’ के नाम से भी प्रसिद्ध हुए।
गोगा जी के मंदिर का निर्माण और शीर्षमेड़ी और धड़मेड़ी का इतिहास
गोगा जी चौहान वंश के एक ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक फैला हुआ था। एक कथा के अनुसार गोगाजी के मंदिर का निर्माण बादशाह फिरोजशाह तुगलक ने कराया था।
संन 1362 में फिरोजशाह तुगलक हिसार(हरियाणा) होते हुए सिंध विजय के उदेस्य से मार्ग में पड़ने वाले स्थान गोगामेडी में ठहरे थे।
रात के समय फिरोजशाह तुगलक और उसकी सेना ने एक अद्भुत दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में भगदड़ मच गई।
तुगलक की सेना के साथ आए पीरों ने बताया कि यहां कोई पीर है जो प्रकट होना चाहता है।
फिरोजशाह तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया। गोगा मेडी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है।
तथा इसकी आकृति मकबरे की तरह है। बाद में मंदिर का जीर्णोद्धार( मरम्मत ) बीकानेर के महाराजा गंगासिंह के काल में 1887 व 1943 में करवाया गया।
ऐसी मान्यता है कि युद्ध भूमि में गजनवी से लड़ते हुए गोगाजी का सिर चूरू जिले के जिस स्थान पर गिरा था वहाँ शीश मेडी‘ तथा युद्ध करते हुए जहाँ बाकि शरीर गिरा था उसे “धड़मेड़ी या गोगामेडी” कहा गया।
इस प्रकार गोगाजी के जन्म स्थल ददरेवा को ‘शीर्ष मेडी’ तथा समाधी स्थल ‘गोगा मेडी’ (नोहर-हनुमानगढ़) को ‘धुरमेडी’ कहते हैं।
गोगा जी के इतिहास के ऐतिहासिक तथ्य
जयपुर से लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित सादुलपुर के पास दत्तखेडा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैंकड़ो बर्ष बीत जाते के बाद भी उनके घोड़े की रकाब अभी भी यहाँ पर विद्यमान हैं।
इनके जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और यहाँ पर गोग्गा जी की घोड़े पर सबार मूर्ति है । भक्तजन जन्म स्थान पर बने मंदिर पर माथा टेकते हैं
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेडी में स्थित गोगाजी का समाधि स्थल, जन्म स्थान से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है,
जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू और एक कायमखानी मुस्लिम पुजारी (चायल जाति) खडे रहते हैं।
आज भी सर्पदंश से मुफ़्ती के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ति उत्कीर्ण की जाती है।
लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभाबित किसी भी व्यक्ति को यहाँ लाया जाता है तो वह व्यक्ति सर्प दंश से मुफ्त हो जाता है ।
गोगा जी की ओल्डी – किलोरियों की ढानी, सांचौर (जालोर):- यहाँ गोगा जी का कच्चा मंदिर है और इस कच्चे मंदिर को ओल्डी कहते हैं इसी स्थान पर गोगा जी की गायों को लूटा गया था। गोगा मेडी में भाद्र पद मास में हिन्दू पुजारी (एक माह) तथा अन्य 11 मास में कायमखानी मुस्लिम पुजारी (चायल जाति) पूजा करते हैं। खेजड़ी के बृक्ष के नीचे गुगा जी का थान माना जाता है।
मुस्लिम गोगा जी को क्यों पूजते हैं
लोकगायनो के अनुसार गोगा जी ने जीवित रहते ही कलमा पढ़ लिया था परन्तु कुछ इतिहासकार बताते हैं कि गोगा जी के ही वंश के एक राजा मोटाराम चौहान के बेटे कर्मचंद चौहान ने इस्लाम स्वीकार कर लिया था।
कर्मचंद से उनका नाम कायम खान हो गया था और उन्ही के वंशज कायमखानी मुस्लिम कहलाये और चौहान से चायल जाति बनी। इसी कायमखानी मुस्लिम समाज की चायल जाति का एक पुजारी गोगा जी की समाधी स्थल में खड़ा होता है।
लोकमान्यताओं व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी की कथा
यह गोगा जी के जीवन से जुड़ा ऐतिहासिक पक्ष था परन्तु लोक जनो में गोगा जी की गाथा का स्वरूप इससे कहीं भिन्न है और ये इस प्रकार है –
कथानुसार ‘राजा परीक्षित अभिमन्यु के पुत्र तथा पांडव अर्जुन के पौत्र थे। एक बार वो जंगल में शिकार खेलने गए थे। और उनको प्यास लगी तो वो पास में ही स्थित ऋषि शमीक के आश्रम में चले गए और उनसे पानी माँगा। ऋषि शमीक उस समय तपस्या में लीन थे। तो वो परीक्षित की बात को सुन नहीं पाए।
इससे क्रोधित होकर राजा परीक्षित ने कलयुग के प्रभाववश ऋषि शमीक के गले में एक मरा हुआ साँप डाल दिया। ऋषि पुत्र श्रृंगी को जब इस बात का पता चला तो उसने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि जिस किसी ने भी उनके पिता के गले में सॉंप डाला है आज से 7बें दिन उसकी तक्षक नाग के डसने से मृत्यु हो जाएगी।
राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने अपने लिए 7 मंजिला भवन वनवाया और किसी भी व्यक्ति का उस महल में आना वर्जित कर दिया। इन सबके वावजूद तक्षक नाग ने उस महल में प्रवेश करके राजा परीक्षित को डस लिया।
कुछ समय बाद परीक्षित के पुत्र जन्मेजय को जब इस बात का पता चला की तक्षक नाग ने उसके पिता को डसा है तो उसने सर्पदमन यघ करवाया जिससे सब नाग उसमे जलकर मरने लगे । कहते हैं कि माता मनसा देवी के पुत्र आस्तिक की वजह से सांपों की रक्षा हो पाई थी।
किवदंती है कि जब राजा जन्मेजय की मृत्यु हुई तब नागों ने राजा जन्मेजय की आत्मा को पातळ लोक में बंदी बना लिया था। कलयुग में ददरेवा शासक राणा अमरा के पुत्र जेवर चौहान का विवाह बाछल नामक स्त्री से हुआ था और बाछल की बहन काछल का विवाह भी जेवर के ही घर के किसी अन्य पुरुष के साथ हुआ था।
लम्बे समय तक बाछल और काछल की कोई संतान नहीं हुई। राजा जेवर ने किसी महात्मा के कहने पर ददरेवा में नौलखा बाग़ लगवाया और कुआँ भी खुदवाया। परन्तु राजा के बाग़ में प्रवेश करते ही वो बाग़ सुख गया और कुएं का पानी खारा हो गया।
इसके बाद किसी ज्योतिष के कहने पर रानी बाछल ने गुरु गोरखनाथ की आराधना शुरू कर दी। गोरखनाथ को योगबल से बाछल की आराधना का पता चला। इसके बाद वो 1400 शिष्यों के साथ साथ ददरेवा आये।
उनके आते ही ददरेवा का नौलखा बाग हरा हो गया और कुएं का पानी भी मीठा हो गया। जेवर और उनकी पत्नी ने गोरखनाथ की बहुत सेवा की। इससे प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने रानी बाछल को वर मांगने को कहा।
रानी बाछल ने पुत्र प्राप्ति का बरदान माँगा। गुरु गोरखनाथ ने उसे नीयत समय पर उनके थान पर बुलाया। वर के समय बाछल की बहन काछल, बाछल के कपडे पहनकर गोरखनाथ के पास चली गई और उसने 2 सन्तानो का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया।
इसके बाद गोरखनाथ बहाँ से किसी दूसरे स्थान पर चले गए। बाछल को जब हकीकत का पता चला तो वो उनके पीछे गई। इस पर गोरखनाथ ने कहा अब कुछ नहीं हो सकता।
परन्तु बाछल का विलाप देखकर गोरखनाथ को दया आ गई और गुरु गोरखनाथ उनको तेजस्वी पुत्र का बरदान देने के लिए पातळ लोक की तरफ गए। बहाँ से बे राजा जन्मेजय की आत्मा को गूगल में छिपा कर जाने लगे।
कहते हैं तब नाग भी उनका पीछा कर रहे थे। जब गोरखनाथ जी धरती पर आये तब भी तक्षक नाग उनका पीछा कर रहा था और उसने गोरखनाथ जी के हाथ से गूगल छीन कर निंगल लिया।
भाग्यवश वहां पर कोई पुरुष साफ सफाई कर रहा था जिसका नाम प्रक्षालन था। उसने जब देखा कि नाग ने साधु के हाथ की कोई चीज़ छीन के निंगल ली है तो उसने तक्षक नाग पर डंडे से प्रहार किया। जिसके परिणामस्वरूप गूगल नाग के मुख से निकल गई।
गोरखनाथ ने गूगल उठाई और पुरुष को धन्यवाद् देकर उसे बरदान दिया कि इस गूगल से उत्प्न्न व्यक्ति बड़ा सिद्ध होगा और तुम सब लोग उसकी पूजा करोगे। ऐसा कहकर गुरु गोरखनाथ बलीन हो गए। तक्षक नाग भी पाताललोक लौट गया। इस प्रकार राजा जन्मेजय ही गोगा जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।
गोरखनाथ ने बाछल को संतान प्राप्ति के प्रतीक के रूप में गूगल हवन सामग्री दी और कहा तुम्हारा पुत्र अंत्यंत प्रतापी होगा। रानी बाछल इस पर गूगल लेकर अपने घर आईं।
कुछ गूगल की सामग्री निसंतान पुरोहतिनि को दे दी जिससे उसे नरसिंह पांडेय नामक पुत्र उत्प्न्न हुआ। कुछ भाग दासी को दिया जिससे भज्जू कोतवाल पैदा हुआ। बाछल ने कुछ गूगल स्वयं स्वीकार करने के बाद कुछ हिस्सा घोड़ी को दे दिया। जिससे गोगा जी की प्रसिद्ध नीली घोड़ी पैदा हुई।
युवा होने के बाद गुगा जी का विवाह राजा छिन्जिये की पुत्री रानी सुलियर से हुआ। अपने पिता के देहांत के बाद गुगा जी ददरेवा के शासक बने। शासक बनने के बाद उनका अपने मौसेरे जुड़वाँ भाइयों अर्जन सर्जन के साथ विवाद चलने लगा।
एक दिन उन्होंने गोगा जी की पत्नी रानी सुलियर का अपमान किया। रानी सुलियर ने ये बात अपनी सास बाछल को बताई। इसके बाद गोगा जी का अपने मोसेरे भाइयों के साथ युद्ध हुआ और गोगा जी ने उन्हें मार डाला।
दोनों की मृत्युं के प्रतीक के रूप में उनके सिर झोले में डालकर महल में प्रविष्ट हो रहे थे कि माता बाछल ने उनको देख लिया और अर्जन सर्जन का हाल पूछा। उनकी मृत्यु का समाचार सुनने के बाद माता बिलाप करने लगी और क्रोध में गोगा जी को 12 बर्षों के लिए देश निकाला दे दिया।
इसके बाद गोगा जी ददरेवा छोड़कर अपने गुरु गोरखनाथ की तपोभूमि गोरखटीला में आ गए। समय बीतने के उपरांत गोगा जी चोरी छिपे पत्नी से मिलने ददरेवा के महलों में भी आने लगे।
एक पर्व के अवसर पर गोगा जी की पत्नी ने श्रृंगार कर रखा था जिसे देखकर गोगा जी की माता ने उनको टोका। तब गोगा जी की पत्नी ने गोगा जी के आते रहने का खुलासा कर दिया।
इसके बाद अगले दिन जब गोगा जी पत्नी से मिलकर वापस जा रहे थे तो माता ने गोगा जी के घोड़े की लगाम पकड़ ली और उनसे बहीं पर रहने का आग्रह किया। गोगा जी ने माता से लगाम छोड़ने का निवेदन किया क्यूंकि उनको समय पर गोरखटीला पहुंचना था परन्तु बाछल ने लगाम नहीं छोड़ी।
गोगा जी अनेक प्रयत्नो के बाद माता से घोड़े की लगाम छुड़वा कर गोरखटीला वापस आ गए। यहाँ पहुंचकर उन्होंने गुरु गोरखनाथ का आह्वान किया और बचनभंग होने के कारण धरती में समा जाने की इच्छा जाहिर की।
इस पर गोरखनाथ प्रकट हुए और उन्होंने 12 मील भूमि को इसके लिए पवित्र और उपयुक्त माना। इसके बाद गोगा जी अपने घोड़े सहित धरती में समा गए और उनकी पत्नी धरती पर उनके बचे कपड़ो के साथ सती हो गईं।
गोगा जी की गाथा लोकश्रुतियों में इस तरह से गाई जाती है
काछल बाछल सकियाँ जे बेहना
पृथीपाले दियाँ जाइयाँ बे लोको माइये नी बाछले।
जेवर राजे बाछल बिहाई, मारु तां लिया है बसाई वे लोको माइये नी बाछले।
गंगाधरे ने काछल बियाही जेवरराजे दे बाछल लोको माइये नी बाछले।
बाछला रानिया गुगमल जाया, काछला जाये ने जोड़े वो लोको माइये नी बाछले।
बाछला रानियों चिठियाँ जे आइयां, कि काछल गई है समाई वे लोको माइये नी बाछले।
गर्भे रहन्दे बाबल खादा, जामदेयाँ खा लेई है माई वे लोको माइये नी बाछले।
बाछला रानिया बन्दा जे भेजया, जोड़े तां ले ने मंगाई वे लोको माइये नी बाछले।
दाहिने अंगे गुगमल पलैया, बाहिने तां पले ने जोड़े वे लोको माइये नी बाछले।
मंदी किति, चंगी नी किति घर बिच पाले ने बैरी हो माता, माता नी मेरिये।
बड़े हुन्दे इना अध् जे मंगना , मैं तां देने ने मुकाई वे माता, माता नी मेरिये।
अज छुटेरे कल बडेरे परसों नू नौकर तेरे हो बेटा, बेटा वो राणेया।
अध् तां हुँदा सकैयां जे भाइयाँ, एह तां हैं मासिया दे मसोरे हो बेटा, बेटा वो राणेया।
शेर तां पिंजरे, सप पटरिया, घर बिच पाले ने बैरी हो माता , माता नी मेरिये।
अज छुटेरे कल बडेरे परसों नू नौकर तेरे हो बेटा, बेटा वो राणेया।
इस प्रकार अर्जन सर्जन और गुगा जी के लालन पालन के बारे में कथा सुनाई जाती है।
गोगा जी और अर्जन सर्जन की लड़ाई की कथा
दखन देश कैंदे फौजां जे चलियाँ ओ जोड़े भाइयाँ दियां।
कि मेरा राम जाने गरजां तां चड़ियाँ समान (आसमान)
सुतिया ते सेजा कैंदे सपना जे होया राणी सुलियार जो
कि मेरा राम जाने होइजा लड़ाईया जो तयैर हो।
उठके तां राणी कैंदे ननदा नू आखे, ननंदे मेरिये
कि मेरा राम जाने वीरे तू अपने लेयां वो जगाई वे।
वीरे तां आपने केंदे, कदे ना जगावा भाबो लाड़लिये
कि मेरा राम जाने आपे तू लेयां वे जगाई वे।
उठके तां रानी केंदे, सासु नू आखे सासू नी मेरिये
कि मेरा राम जाने पुत्रे तू अपने लेयां वो जगाई वे।
पुत्रे तां अपने केंदे कदे नी जगावां, नुहे नी लाड़लिये
कि मेरा राम जाने आपे तू लेयां वे जगाई वे।
सुत्या तां कैंदे ओ जरद बछोना गुगे राणे दा।
कि मेरा राम जाने निंदरा तां पियाँ बेसुमार हो।
हथां भी झसे ओ पैरां भी झस्से राणी सुलियर
कि मेरा राम जाने गुगे नू जाग ना आई वे हां।
गड़वड़ करदा कैंदे उठाया जे राणा गुगा हो
कि मेरा राम जाणे हथ ते पांदा तलवारा जो वे हाँ।
बारह तां रोज बयाहिया नू होये राणी सुलियार जो
कि मेरा राम जाने अज क्यों आई रंगले महल वो।
सुतिया ते सेजा कैंदे सपना जे होया राणी सुलियर जो
की मेरा राम जाने होइजा लड़ाईया जो तयैर वो।
हुकुमा जे करदा लखुए लोहारे, लोहरे लखुए जो।
कि मेरा राम जाने, खण्ड़ेया न करेयां वो तयैर हो।
खण्डे तां साने कैंदे अवला तां चढ़गे गुगे राणे जो।
कि मेरा राम जाणे ,खण्डे ता हो गए तयैर हाँ।
इस तरह की और बहुत सारी गाथाएं, गोगा नवमी के समय कथा बाचकों के द्वारा सुनाई जाती हैं।
निष्कर्ष
लोकसाहित्य आदिकाल से ही भारत में आम जनमानस के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। ये वो माध्यम है जिसमे ग्राम्य जीवन अपने आपको प्रकट कर सका है।
भारतबर्ष में शुरू से ही लिखित साहित्य के अलावा मौखिक साहित्य की भी विशेष परम्परा रही है। इस प्रकार बहुत सी कथाएं विभिन्न भाषाओँ में लोकगीतों, लोककथाओं और लोकगाथाओं में लोगो के कंठों में रची बसी है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गोगा जी की कथा में कई काल्पनिक प्रसंग जुड़ गए हैं जो कि किसी भी लोकप्रिय व्यक्ति के साथ जुड़ जाया करते हैं। लोगो ने जनश्रुतियों और इन कथाओं के माध्यम से गोगा जी की कथा को अभी भी जीवित रखा है।
गोगा जी की जाति क्या है?
गोगा जी चौहान वंस के शासक थे ये राजपूत जाति से सम्बन्ध रखते थे।
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