भारत के गाँवों में ऊंचाई पर किसी एकांत जगह पर सिद्धों के मंदिर देखने को मिल जायेंगे। हर साल ऐसी जगहों पर कई श्रद्धालु माथा टेकने आते हैं पर शायद ही कोई जनता होगा कि ये जगह कब भक्तों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गई।

इसी प्रकार नाथ सम्प्रदाय का भी भारत के साथ काफी पुराना नाता रहा है। नेपाल के गोरखा जिले में गोरखनाथ की चरणपादुका और एक मूर्ति है यहाँ पर हर साल बुद्धपूर्णिमा के दिन एक बड़ा उत्सव मनाया जाता है जिसे रोट महोत्सव कहते हैं।

नाथों का सबसे प्रसिद्ध मंदिर गोरखनाथ मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश में है इसे गोरखनाथ पीठ भी कहा जाता है इसके बर्तमान महंत योगी आदित्यनाथ जी हैं ये उनका निवास स्थान भी है और इस समय वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी है।

मकर सक्रांति के अवसर पर यहाँ बहुत प्रसिद्ध मेला लगता है जो खिचड़ी मेला के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का नाम गुरु गोरखनाथ के नाम पर पड़ा और ये मंदिर वहीं पर है जहाँ पर गुरु गोरखनाथ तपस्या करते थे।

अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) द्वारा 14वीं शताब्दी में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और फिर औरंगज़ेब (1658-1707) ने 18वीं शताब्दी में इसे नष्ट किया। बुद्ध नाथ जी ने औरंगजेव की मृत्यु के बाद इस मंदिर का जीर्णोद्वार (मरम्मत) करवाया था।

अभी तक इस मदिर के जो महंत रहे हैं वो इस प्रकार हैं

  • वरनाथ
  • परमेश्वर नाथ
  • बुद्ध नाथ (इन्होने मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया)
  • बाबा राम नाथ
  • महंत पियरनाथ
  • बाबा बालक नाथ
  • योगी मनसा नाथ
  • संतोष नाथ
  • मेहरनाथ
  • दिलावर नाथ
  • बाबा सूंदर नाथ
  • सिद्ध योगी गंभीर नाथ
  • बाबा ब्रह्म नाथ
  • दिग्विजय नाथ
  • अवैद्यनाथ महाराज
  • और बर्तमान में श्री योगी आदित्यनाथ जी

नाथ जोगी और सिद्ध कौन होते हैं

प्राचीन नाथ सम्प्रदाय को गुरु गोरखनाथ और उनके गुरु मछेन्द्र नाथ ने संगठित किया। गुरु मछेन्द्र नाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ जी को बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रूप में माना जाता है।

मछेन्द्रनाथ को बौद्ध ग्रंथो में मिनपा तथा गोरखनाथ को बौद्ध ग्रंथों में गोरक्षपा कहा गया है। नाथ साधु घुमक्क्ड़ साधु होते हैं जो पूरी दुनिया में भर्मण करते हैं ये गले में काली ऊन का जनेऊ धारण करते हैं जिसे सिले कहा जाता है।

गले में एक सींग की नादी पहनते हैं जिसे सिंगी कहा जाता है। ये कानो में मोटे मोटे कुण्डल पहनते है जिसके कारण इनको कनफटे साधु भी कहा जाता है। इनके हाथ में चिमटा रहता है।

ये बिना सिले कपडे पहनते हैं। पहले इनको जोगी कहा जाता था जो समय के साथ साथ योगी में परिवर्तित हो गया है। राजस्थान और पंजाब के कई गांवों में इन्हे अभी भी जोगी ही कहा जाता है।

कुण्डलधारी एक नाथ योगी

अपने जीवन के अंतिम चरण में ये किसी ऊँचे एकांत स्थान पर रूककर अखंड धूनी लगाते हैं । और तब उन नाथ योगियों को अवधूत या सिद्ध कहा जाता है।

लेकिन कुछ सूचियों के अनुसार सिद्ध भोग विलास की योग साधना में लिप्त रहते थे वो शराब, मांस तंत्र तथा स्त्री संबंधी अचारों के कारण बदनाम हो गए ।

जिसकी प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप सिद्ध सम्प्रदाय में से ही नाथ सम्प्रदाय शुरू हुआ। नाथ साधु हठ योग पर बल देते थे और निराकार निर्गुण ईस्वर को मानते थे।

नाथों की उपस्थिति के ऐतिहासिक प्रमाण

13वीं शताब्दी में हरिहर “कन्नड़ रागले” में रेवानाथ ने गोरखनाथ को एक जादुई प्रतियोगिता में हराया था।

सारंगधरपद्धति जिसे 1363 ईस्वी में जयपुर में संकलित किया गया।

चीनी यात्री मुहआन ने 1415 में कोचीन में विवाहित योगियों को देखा।

कर्नाटक में 1279 ईस्वी का कलेश्वर शिलालेख और 1287 ईस्वी का सोमनाथ शिलालेख गुरु गोरखनाथ को 5 देवताओं की सूचि में शामिल करता है।

दो मराठी कृतियों 1278 ईस्वी लचरित्र और 1290 ईस्वी ज्ञानेश्वरी में गोरखनाथ का उल्लेख मिलता है।

15 शताब्दी में लिखी गई “निजामी डाकानी” में अघोरनाथ नामक जोगी का बर्णन है जो आकार बदलने और दूसरों के शरीर में प्रवेश करने में माहिर था।

हठ योग पर नाथों के द्वारा लिखे प्रसिद्ध ग्रन्थ विवेकामार्ट और गोरखटक़ हैं।

कर्नाटक में मालाबार तट पर मैंगलोर के बाहरी इलाके में एक पहाड़ी पर सबसे पुराना नाथ मठ अभी भी वैसे ही चल रहा है।

आर ईटन के उल्लेख के अनुसार 13बीं शताब्दी में उत्तरी बंगाल और असम का क्षेत्र एक रहस्यमय जगह के रूप में प्रसिद्ध था। जिसमे जादू टोना और योग आदि करने वाले विशेषज्ञ रहते थे।

14बीं शताब्दी की दो मैथिली कृतियां बारसत्नकार और गोरखविजय सिद्ध परम्परा को दर्शाती हैं।

काठमांडू के 15वीं शताब्दी के एक शिलालेख के अनुसार एक नाथ योगी गोड़ देश से आया था।

गोरखनाथ ने योग संबंधी अनेक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे हैं जिनमे से बहुत से प्रकाशित हो चुके हैं और कई जो अप्रकाशित हैं वो योगियों के आश्रमो में सुरक्षित हैं।

नाथ कौन सा धर्म है। 9 नाथ और 84 सिद्ध कौन हैं

नाथ सम्प्रदाय भारत के हिन्दू धर्म का ही एक पन्थ है। नाथों को योगी, जोगी, गोस्वामी, गिरी, दसनामी आदि नामों से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्म मुख्यत: 4 मतों में विभाजित है।

  • शैव:- इस मत का अनुसरण करने वाले भगवान शिव को ईश्वर मानते हैं।
  • वैष्णव:- इस मत का अनुसरण करने वाले भगवान् विष्णु को ईश्वर मानते हैं।
  • शाक्त :- इस मत का अनुसरण करने वाले देवी को परमशक्ति मानते हैं।
  • स्मार्त :- इस मत का अनुसरण करने वाले ईस्वर के कई रूपों को एक समान ही समझते हैं।

हिन्दू धर्म के इस विभाजन का पता नहीं चल पाता क्युकी हिन्दू धर्म में कट्टरवाद नहीं है। एक ही परिवार के 6 लोग 6 अलग अलग ईस्वर का अनुसरण कर सकते हैं। एक नास्तिक होकर भी हिन्दू हुआ जा सकता है ।

किसी भी अन्य धर्म के अनुयायी एक किताब विशेष का अनुशरण करते हैं किसी व्यक्ति विशेष का अनुशरण करते हैं परन्तु हिन्दुओ ने कई ऋषिओं कई ग्रंथों को अपनाया हुआ है। वेदो, पुराणों, उपनिषदों को अपनाया है।

नाथ हिन्दू धर्म के शैव मत का अनुसरण करते हैं। इनकी साधना पद्धति हठयोग है। शिव इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरु एवं आराध्य माने गए हैं। नाथ सम्प्रदाय समस्त भारत में फैला हुआ था।

नाथ सम्प्रदाय के कुछ सदस्यों का मानना है की आदिगुरु (भगवान शिव) इस सम्प्रदाय के पहले गुरु थे। कुछ परम्पराओं में माना जाता है की गुरु मछेन्द्रनाथ को शिक्षा सीधे भगवान शिव से मिली है जबकि कुछ परम्पराओं में गुरु गोरखनाथ को भगवान शिव का अवतार माना जाता है।

नाथ सम्प्रदाय में नवनाथ बहुत प्रचलित हैं। नवनाथों के सम्बन्ध में कई सूचियां उपलब्ध हैं जिनमे कई सूचियों में नवनाथों के अलग अलग नाम देखने को मिलते हैं। इसलिए ये नव नाथ बाकि कई ग्रंथो में अलग अलग हो सकते हैं।

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कुछ सूचियों के अनुसार आदिनाथ को पहला नाथ माना गया है जो कि स्वयं भगवान शिव हैं और वो सूची इस प्रकार है

संख्यानामसंख्यानाम
1आदिनाथ6गजबेली कंथडनाथ
2उदयनाथ7चौरंगीनाथ
3सत्यनाथ8मत्स्येन्द्रनाथ
4संतोषनाथ9गोरखनाथ
5अचलअचम्भनाथ
नवनाथों की एक सूची

और भी अलग अलग सूचियों में नाथों के नामो के बारे में अलग अलग जानकारी दी गई है। मौरिस फ्राइडमैन और के. मुल्लारपट्टन के अनुसार नवनाथों की सबसे प्रसिद्ध सूची इस प्रकार है

संख्यानामसंख्यानाम
1मछिन्द्रनाथ या मत्स्येन्द्रनाथ6भर्तृनाथ या भर्तृहरि
2गोरक्षनाथ या गोरखनाथ7रेवननाथ या रावलनाथ
3जालंधरनाथ8चर्पटीनाथ या चर्पटक्षनाथ
4कनिफनाथ या कान्होबा9नागनाथ
5गहिनीनाथ या गेहिनीनाथ
नाथों की एक अन्य सूची

नाथों में कुछ प्रसिद्ध नाथ इस प्रकार हैं

मछंदरनाथ – ये गोरखनाथ जी के गुरु थे इसलिए इनको दादा गुरु कहा जाता है। इनको माया सवरूप भी कहा जाता है।

गोरखनाथ – इनको भगवान् शिव का अवतार माना जाता है। ये नवनाथों में सबसे अधिक प्रसिद्ध थे।

जालंधरनाथ – इनका सम्बन्ध पंजाब के जालंधर से था और कई ग्रंथो के अनुसार इन्होने 13वीं शताब्दी में बंगाल की यात्रा की।

कान्हापाद – इनका सम्बन्ध बंगाल से बताया जाता है। 14वीं शताब्दी में नाथ सम्प्रदाय के भीतर ही इन्होने उप- परम्परा की शुरुआत की।

गणिनाथ – विक्रम संबत 1060 में ये राजा बने थे और यवनो को हराया था । भारत सरकार ने 2018 में इनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया था।

भतृहरि – ये नाथ सम्प्रदाय से जुड़ने से पूर्व उज्जैन के सम्राट और प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादितीय जिनके नाम से विक्रम संबत चलता है उनके भाई थे।

चौरंगीनाथ – बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र थे, इनकी सौतेली माता लूना से अनबन के कारण इनके पिता देवपाल ने इनके हाथ पैर कटवाकर जंगल में छोड़कर दंडित किया। उन्हें गोरखनाथ ने बचाया था और उन्होंने इनको योग विद्या सिखाई थी जिससे इन्होने अपने कटे हुए अंगो को फिर से बिकसित कर लिया था।

चरपटीनाथ – हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में हिमालय की गुफाओं में रहते थे।

नागनाथ (महार्षि पंतजलि) – आदिनाथ दृस्टि से ये दावा किया जाता है कि महर्षि पतंजलि भी नाथों से संबंध रखते थे

गोपीचंद – बंगाल की रानी मायावती के पुत्र थे तथा इनके गुरु जालंधरनाथ माने गए हैं।

रतननाथ – ये नाथ और सूफी सम्प्रदाय दोनों में प्रसिद्ध हैं।

धर्मनाथी – इन्होने एकनाथ मठ की स्थापना की जो 20वीं शताब्दी तक महत्वपूर्ण बना रहा।

नवनाथों के नामों को लेकर सब सूचियाँ और ग्रन्थ अलग अलग क्यों बताते हैं

सब ग्रंथों में नाथों और सिद्धों की संख्या बराबर है। सब ग्रन्थ 9 नाथों तथा 84 सिद्धों का उल्लेख करते हैं। परन्तु वास्तव में ये 9 नाथ और 84 सिद्ध कौन थे इसको लेकर कोई भी एकमत नहीं है।

चूँकि ये सांसारिक जीवन से दूर रहते थे इसलिए इनको लेकर काफी कहानियाँ प्रचलित हैं जिससे इनके बारे सटीक जानकारी पाना एक मुश्किल कार्य बना हुआ है।

इसके साथ साथ इन्होने जाति प्रथा का खंडन किया जिससे बहुत सी निम्न जातियों के लोग भी इस सम्प्रदाय में शामिल हो गए जो अधिकतर अनपढ़ थे और वो इस सम्प्रदाय का अच्छे से प्रचार प्रसार नहीं कर पाए।

इसके अतिरिक्त इस सम्प्रदाय में शामिल होने के बाद इसकी गोपनीयता की शर्तों का भी पालन किया जाता था। इसलिए नाथ सम्प्रदाय आम लोगो के लिए एक पहेली ही रहा है।

क्या नाथ विवाह करते हैं

नाथ साधु सन्यासी जीवन के साथ साथ गृहस्थ जीवन भी जीते हैं। सांसारिक जीवन जीने वाले मुख्यत: दसनामी होते हैं।

गुरु गोरखनाथ का समयकाल क्या था

गोरखनाथ के समयकाल को लेकर कोई भी इतिहासकार एकमत नहीं है क्यूंकि हर कालखंड में गोरखनाथ का बर्णन मिलता है।

जैसे गोरक्षनाथ रहस्य नामक पुस्तक में एक अन्य कथा अनुसार रावण वध के पश्चात अयोध्या लौटकर अपनी तीनों माताओं सहित अपने गुरू वशिष्ठजी के पास जाकर ब्राह्राण हत्या के दोष से मुक्त होने का उपाय पूछते हैं। पुस्तक में बताया गया है कि गुरू वशिष्ठ श्रीराम को योगी गोरक्षनाथजी से योग की दीक्षा लेने का उपाय बताते हैं।

कनिंघम नामक अंग्रेज इतिहासकार का मत है कि, जेहलम जिले में बालनाथजी का टिल्ला सिकन्दर के भारत आने से भी पहले का है। ये सिद्ध करता है कि नाथ सम्प्रदाय का अस्तित्व कम से कम 326 ईसा पूर्व से है।

इस आधार पर योगी गोरक्षनाथ का समय ईसा से कम से कम पांच सौ वर्ष पूर्व का होना चाहिये। इसके अलावा योगी भर्तिहरी सम्राट विक्रमादित्य का बड़ा भाई था। जिन विक्रमादितीय के नाम से विक्रम सम्बत चलता है।

भारतीय विद्वानों में डा. रांगेय राघव ने अपनी पुस्तक ‘गुरु गोरक्षनाथ’ और उनका युग में गोरक्षनाथ का समय आठवीं शताब्दी का प्रारंभ माना है तो डा. श्यामसुन्दर दास ने भाषा के आधार पर गोरक्षनाथ का समय जगदगुरु शंकराचार्य के अद्वैतवाद के 150 वर्ष बाद का बताया है।

डा. बड़थ्वाल ने गोरक्षनाथ का समय विक्रम संवत 1050ई0 के आस पास मानते हुए उन्हें शंकराचार्य से पूर्व गुप्तवंश के राजाओं से जोड़ा है। मत्स्येन्द्रनाथ से उनके गुरु-शिष्य संबन्ध के आधार पर इतिहासकार उन्हें नौवीं शताब्दी का होना बताते हैं।

कबीर, दादूदयाल, और नानक से उनका संवाद उन्हें तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी में होना सिद्ध करता है तो दिगम्बर जैन सन्त बनारसीदास से शास्त्रार्थ सत्रहवीं शताब्दी में भी उनकी उपस्थिति बताता है। गोगा जाहरवीर का गुरु होने के कारण इतिहासकार उन्हें 11बीं शताब्दी का होना बताते हैं।

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मार्कोपोलो जो 13बीं शताब्दी में बेनिस के एक खोजकर्ता थे उन्होंने एशिया की यात्राओं का बर्णन अपनी किताबों में किया है।

मार्को पोलो ने टिपणी की कि कैसे उन्होंने जिन योगियों का सामना किया, वो पारा और सल्फर के अमृत के कारण दो सौ बर्षों तक जीवित रहे।

परन्तु क्या सच में लाखों बर्षों तक जीवित रहा जा सकता है या गुरु गोरखनाथ की आयु हमेशा एक रहस्य ही बनी रहेगी।

सिद्ध कितने हैं?

सिद्धों की संख्या 84 मानी गई है परन्तु इनके नामो में भी भेद है। जोधपुर, चीन इत्यादि के चौरासी सिद्धों में भिन्नता है। योगिक साहित्य के अनुसार 84 सिद्ध इस प्रकार हैं।

संख्यानामसंख्यानाम
1सिद्ध चर्पटनाथ43भावनाथ
2कपिलनाथ44पाणिनाथ
3गंगानाथ45वीरनाथ
4विचारनाथ46सवाइनाथ
5जालंधरनाथ47तुकनाथ
6श्रंगारिपाद48ब्रहमनाथ
7लोहिपाद49शीलनाथ
8पुण्यपाद50शिवनाथ
9कनकाई51ज्वालानाथ
10तुष्काई52नागनाथ
11कृष्णपाद53गम्भीरनाथ
12गोविन्द नाथ54सुन्दरनाथ
13बालगुंदाई55अमृतनाथ
14वीरवंकनाथ56चिडियानाथ
15सारंगनाथ57गेलारावल
16बुद्धनाथ58जोगरावल
17विभाण्डनाथ59जगमरावल
18वनखंडिनाथ60पूर्णमल्लनाथ
19मण्डपनाथ61विमलनाथ
20भग्नभांडनाथ62मल्लिकानाथ
21धूर्मनाथ63मल्लिनाथ
22गिरिवरनाथ64रामनाथ
23सरस्वती नाथ65आम्रनाथ
24प्रभुनाथ66गहिनीनाथ
25पिप्पनाथ67ज्ञाननाथ
26रत्ननाथ68मुक्तानाथ
27संसारनाथ69विरूपाक्षनाथ
28भगवन्त नाथ70रेबांणनाथ
29उपन्तनाथ71अडबंगनाथ
30चन्दननाथ72धीरजनाथ
31तारानाथ73घोड़ीचोली
32खार्पूनाथ74पृथ्वीनाथ
33खोचरनाथ75हंसनाथ
34छायानाथ76गैबीनाथ
35शरभनाथ77मंजूनाथ
36नागार्जुननाथ78सनकनाथ
37सिद्ध गोरिया79सनन्दननाथ
38मनोमहेशनाथ80सनातननाथ
39श्रवणनाथ81सनत्कुमारनाथ
40बालकनाथ82नारदनाथ
41शुद्धनाथ83नचिकेता
42कायानाथ84कूर्मनाथ
84 सिद्धों के नाम

तिब्बती परम्परा के अनुसार 84 सिद्धो के नाम

तिब्बती परम्परा में सिद्धों के नाम के पीछे “पा” लगा है। राहुलजी सांस्कृतायन के अनुसार तिब्बत के 84 सिद्धों की परम्परा ‘सरहपा’ से आरंभ हुई और नरोपा पर पूरी हुई। लेकिन तिब्बती मान्यता अनुसार सरहपा से पहले भी पांच सिद्ध हुए हैं।

संख्यानामसंख्यानाम
1लूहिपा43मेकोपा
2लोल्लप44कुड़ालिया
3विरूपा45कमरिपा
4डोम्भीपा46जालंधरपा
5शबरीपा47राहुलपा
6सरहपा48धर्मरिया
7कंकालीपा49धोकरिया
8मीनपा50मेदीनीपा
9गोरक्षपा51पंकजपा
10चोरंगीपा52घटापा
11वीणापा53जोगीपा
12शांतिपा54चेलुकपा
13तंतिपा55गुंडरिया
14चमरिपा56लुचिकपा
15खंडपा57निर्गुणपा
16नागार्जुन58जयानंत
17कराहपा59चर्पटीपा
18कर्णरिया60चंपकपा
19थगनपा61भिखनपा
20नारोपा62भलिपा
21शलिपा63कुमरिया
22तिलोपा64जबरिया
23छत्रपा65मणिभद्रा
24भद्रपा66मेखला
25दोखंधिपा67कनखलपा
26अजोगिपा68कलकलपा
27कालपा69कंतलिया
28घोम्भिपा70धहुलिपा
29कंकणपा71उधलिपा
30कमरिपा72कपालपा
31डेंगिपा73किलपा
32भदेपा74सागरपा
33तंघेपा75सर्वभक्षपा
34कुकरिपा76नागोबोधिपा
35कुसूलिपा77दारिकपा
36धर्मपा78पुतलिपा
37महीपा79पनहपा
38अचिंतिपा80कोकलिपा
39भलहपा81अनंगपा
40नलिनपा०82लक्ष्मीकरा
41भुसुकपा83समुदपा
42इंद्रभूति84भलिपा
तिब्बती मान्यताओं के अनुसार सिद्ध इस प्रकार हैं

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