एक भाषा को बनने में जितना समय लगता है उससे कहीं अधिक समय एक लिपि को बनने में लगता है। सयुंक्त राष्ट्र ने 2018 में 42 भाषाओं की सूची तयैर की थी जो बिलुप्त होने की ओर अग्रसर हैं। परन्तु आज हम भाषा नहीं बल्कि ऐसी कुछ लिपियों की बात करेंगे जो बिलुप्त होने की तरफ बढ़ रही हैं।
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Toggleभाषा और लिपि में क्या अंतर होता है
भाषा या बोली वो माध्यम होते है जिसके द्वारा हम अपने विचार दूसरों तक पहुंचाते हैं या दूसरों के विचारों को समझते हैं। लोग जब इक्कठे रहना शुरू करते हैं तो अपने विचारों का आदान प्रदान करने के लिए उनको एक माध्यम की ज़रूरत होती है जिससे भाषा जन्म लेती है।
उसी भाषा या बोली को लिख कर दूसरों तक पहुँचाने के लिए एक लिपि की आवश्य्कता होती है इस प्रकार लिपि भाषा का एक लिखित रूप है तथा एक लिपि को बनने में भाषा से कहीं अधिक समय लगता है।
- नोट :- बोली केवल मुख से बोली जाती है परन्तु अगर किसी “बोली” के लिए कोई संतुलित समयोजित लिपि बना ली जाये तो उसे भाषा कहा जाता है
एक ही भाषा को समझाने के लिए अलग अलग संकेतों का इस्तेमाल हो सकता है इसलिए एक ही भाषा की एक या एक से अधिक लिपियाँ हो सकती हैं।
हिंदी अंक गणना बिलुप्ति की राह पर
हिंदी अंक गणना व्यवहार में अधिक उपयोग न होने के कारण विलुप्त होने की राह पर है आजकल की युवा पीढ़ी इसको कम ही समझ पाती है। 1978 के लगभग ये सब स्कूलों में पढाई जाती थी उसके बाद इसको एकाएक बंद कर दिया गया।
आजकल संस्कृत के पाठ्यक्रम में ये पढाई जाती है परन्तु इसके व्यवहारिक तौर पर अधिक उपयोग नहीं होने के कारण इसको सिखाने पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता।
ENG | हिंदी | हिंदी शब्द | रोमन | संस्कृत |
0 | ० | शून्य | NA | शून्य |
1 | १ | एक | 1 | एकः |
2 | २ | दो | 11 | द्वौ |
3 | ३ | तीन | 111 | त्रय: |
4 | ४ | चार | 1V | चत्वार: |
5 | ५ | पाँच | V | पञ्च |
6 | ६ | छः | V1 | षट् |
7 | ७ | सात | V11 | सप्त |
8 | ८ | आठ | V111 | अष्ट |
9 | ९ | नौ | 1X | नव |
10 | १० | दस | X | दश |
अगर भारतवासियों ने अपने धर्म शास्त्रों का अध्ययन करना हो या पंचांग के विषय में जानना हो या अपने किसी भी प्राचीन धर्म ग्रन्थ के बारे में पढ़ना हो तो संस्कृत के साथ साथ हिंदी अंक गणना एक आवश्य्क पहलु है। 1970-80 के दशक में हिंदी अंक गणना को क्यों पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया गया समझ से बाहर है।
रोमन सँख्या में 0 (शून्य) नहीं होता
ऊपर जो संख्यायों की सारणी दी गई है उसमे रोमन सँख्या में 0 नहीं है। क्यूंकि रोमन सँख्या में 0 की अवधारणा ही नहीं है । वास्तव में जीरो सँख्या भारत के आर्य भट्ट की देन है। इससे पहले 0 ( शून्य ) की कोई अवधारणा थी ही नहीं ।
परन्तु फेसबुक या व्हाट्सप्प मैसेज में लोग ये कहते हुए मिल जायेंगे कि अगर जीरो की खोज आर्यभट्ट ने की थी तो रावण के 10 सिर थे ये किसने बताया था।
तो वास्तव में उस समय 10 या 20 जैसे अंको को लिखने के लिए प्रतीक चिन्हों का इस्तेमाल किया जाता था। वैसे भी उस समय की भाषा संस्कृत थी और संस्कृत में 10 को दश लिखा जाता है।
तो जीरो की खोज आर्यभट्ट ने ही की थी। रोमन में बड़ी अंक गणना लिखने के लिए जिन चिन्हों का इस्तेमाल होता है वो इस प्रकार हैं।
संख्या | रोमन | संख्या | रोमन |
10 | X | 60 | LX |
20 | XX | 70 | LXX |
30 | XXX | 80 | LXXX |
40 | XL | 90 | XC |
50 | L | 100 | C |
550 | DL | 1000 | M |
संस्कृत में पुलिंग, स्त्रीलिंग और नपुसकलिंग के लिए अलग- अलग संख्याओं का इस्तेमाल
संस्कृत को दुनिया की सबसे शुद्ध और पुरानी भाषा माना गया है। कई शोधकर्ता इस पर शोध कर रहे हैं और कई लोगो ने संस्कृत में लिखे साहित्यों को पढ़कर कई प्रकार के आविष्कार करके अपने नाम से पेटेंट भी करवा लिए हैं।
संस्कृत में पुलिंग, स्त्रीलिंग और नपुसकलिंग के लिए अलग अलग अंक हैं। इसलिए ऊपर दी गई अंक तालिका में संस्कृत की गिनती कई पुस्तकों में अलग अलग हो सकती हैं।
सँख्या | पुलिङ्गे | स्त्रीलिङ्गे | नपुंसकलिङ्गे |
१ | एक: | एका | एकम् |
२ | द्वौ | द्वे | द्वे |
३ | त्रय: | तिस्र: | त्रीणि |
४ | चत्वार: | चतस्र: | चत्वारि |
चार से आगे संस्कृत की सभी संख्याएं समान होती हैं।
टांकरी लिपि बिलुप्ति की राह पर
टांकरी, ब्राह्मी भाषा परिवार की एक लिपि है जो कश्मीर में इस्तेमाल की जाने वाली शारदा लिपि से निकली है।
टांकरी लिपि जम्मू-कश्मीर की डोगरी, उत्तराखंड की गढ़वाली, और हिमाचल प्रदेश की चंब्याली जैसी भाषाओं में इस्तेमाल होने वाली लिपि थी।
ये पहाड़ी राज्यों में इस्तेमाल होने वाली सबसे प्रसिद्ध लिपि थी।
- भाषा परिवार क्या है – क्षेत्रीय प्रभाव के कारण भाषाओं में कुछ अंतर आ जाते हैं “जैसे कहावत है 7 कोस पर पानी बदले 8 कोस पर बाणी” इस प्रकार जब क्षेत्रीय प्रभाव के कारण एक ही भाषा कई भाषाओं में परिवर्तित हो जाती है तो इस तरह से बनने बाली भाषाओं जिनकी उत्पति एक ही भाषा से होती है को भाषा परिवार कहा जाता है
टांकरी लिपि के ऐतिहासिक प्रमाण
हिमाचल प्रदेश में कई स्थानों की खुदाई के दौरान बहुत सी मोहरें और लेख टांकरी लिपि में मिले हैं। अभी भी हिमाचल प्रदेश में, लोगो के घरों के पुराने बर्तनों पर इस लिपि के अक्षर आम देखने को मिल जायेंगे।
हिमाचल प्रदेश में विवाह शादियों में बनने वाले भोजन को धाम कहा जाता है। जो इस धाम को बनाने के लिए बर्तन इस्तेमाल होते हैं उनको चरोटी या बल्टोई कहा जाता है।
पुराने समय में पुरे गॉंव में केवल कुछ लोगो के घरों में ही ये बर्तन होते थे और गॉंव के बाकि लोग उन्ही बर्तनो का इस्तेमाल अपने घरों की शादियों में भी करते थे। तो इन बर्तनो की पहचान रखने के लिए, बर्तनो का मालिक इन पर अपने नाम उकेर लेता था।
जो कि अधिकतर टांकरी भाषा में लिखे जाते थे। इसके अलावा प्राचीन मंदिरों का इतिहास, तांत्रिक विधियां तथा अन्य कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी टांकरी भाषा में लिखे जाते थे परन्तु अब इस लिपि का इस्तेमाल कहीं नहीं होता और ये बिलुप्त होती जा रही है।
टांकरी लिपि हिमाचल प्रदेश की लिपि कैसे बनी
हिमाचल प्रदेश में लद्दाख, होशियारपुर, लाहौर आदि जगहों से व्यापारी मंडी में आते हैं। जिला मंडी का “मंडी” नाम इन व्यापारियों के आने के कारण ही पड़ा है। उस समय ये मंडी एक व्यापारिक केंद्र हुआ करती थी।
व्यापारी यहाँ पर अपनी चीज़ें बेचते थे और यहाँ से पहाड़ी नमक आदि सामान अपने यहाँ बेचने के लिए ले जाते थे। ये व्यापारी अपने साथ यहाँ इस टांकरी लिपि को लाये।
उस समय बहुत सी चीज़ों का आदान-प्रदान इस टांकरी लिपि के माध्यम से होता था। इस प्रकार टांकरी लिपि को यहाँ के व्यापारियों ने भी सीख लिया। बाद में यहाँ के राजाओं ने इसे व्यवहार में लाना शुरू कर दिया और ये एक पहाड़ी लिपि बन गई।
टांकरी और पंजाबी लिपि के शब्द एक जैसे क्यों है
टांकरी लिपि बहुत हद तक गुरुमुखी लिपि (पंजाबी) से मिलती जुलती है। ऐसा इसलिए है क्यूंकि ये दोनों लिपियाँ कश्मीर की शारदा लिपि से निकली हैं। शारदा लिपि और हिंदी की देवनागरी लिपि दोनों ब्राह्मी लिपि से निकली हैं।
शारदा लिपि से टांकरी लिपि का विकास हुआ और टांकरी लिपि से पंजाब की गुरुमुखी लिपि का विकास हुआ। टांकरी लिपि 1000 ईस्वी के लगभग पूरी तरह से बिकसित हो चुकी थी और 14वीं शताब्दी से लेकर लगभग 19वीं शताब्दी तक के समय को इस लिपि का स्वर्णिम काल कहा जाता है।
गुरुमुखी लिपि, टांकरी लिपि के बाद अस्तित्व में आई। टांकरी लिपि जम्मू कश्मीर से होते हुए पंजाब पहुंची। इस लिपि को पंजाब में “लुंडे” , “मुँडे” भी कहा जाता है। टांकरी लिपि से गुरुमुखी लिपि को ईजाद करने का श्रेय सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद जी को जाता है।
ये लिपि टांकरी लिपि से ही बनी है इसलिए इसके बहुत से शब्द गुरुमुखी लिपि से मिलते जुलते हैं। ये लिपि गुरु के मुख से निकली इसलिए इसका नाम गुरुमुखी रखा गया।
गुरुमुखी लिपि की प्रसिद्धि और टांकरी की बिलुप्ति का कारण
गुरुमुखी लिपि का आविष्कार होने के बाद ये बड़ी शीघ्रता से पुरे पंजाब में फैली इसके तेजी से फैलने और प्रसिद्धि का एक कारण ये भी था कि पुरे पंजाब में एक ही लिपि का मानकीकरण हुआ और ये अपने एक ही स्वरूप में पुरे पंजाब में फैली। साथ में इसे गुरुलिपि का दर्जा मिला जिससे ये और शीघ्रता से पुरे पंजाब में फैली।
जबकि इस लिपि की ही समकालीन लिपि, टांकरी लिपि उस तरह से लोकप्रिय नहीं हो पाई। ये लिपि भी गुरुमुखी लिपि की तरह से फैली परन्तु पुरे हिमाचल प्रदेश में ये एक रूप में नहीं रह पाई और काँगड़ा,कुल्लू , चम्बा और मंडी आदि में इस लिपि के अक्षरों में भिन्नता पाई जाती है।
हिमाचल प्रदेश की टांकरी लिपि को हिमाचलवासी एक ही वर्णमाला के रूप में नहीं लिख पाए और अकेले हिमाचल प्रदेश में ही 12 तरह की टांकरी लिपियाँ पाई जाती हैं।
चल रहा है टांकरी लिपि के सरंक्षण का कार्य
क्यूंकि हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण दस्तावेज टांकरी लिपि में लिखे गए हैं। हिमाचल प्रदेश का इतिहास टांकरी में लिखा गया है इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में खुदाई के दौरान जो चीज़े निकलती हैं उनमे मुख्यत: टांकरी लिपि ही अंकित होती है।
इसलिए अगर इस लिपि का सरंक्षण नहीं किया गया तो हिमाचलवासी अपनी धरोहरों को जानने और समझने में असमर्थ होंगे। इस बात को ध्यान में रखकर हिमाचल सरकार की तरफ से राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन (National Mission for Manuscripts) के तहत 1 लाख 26000 हस्तलिपि को सरंक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है जिसमे टांकरी लिपि भी शामिल है।
इसके आलावा कुल्लू के सुल्तानपुर के यतिन पंडित टांकरी लिपि के सरक्षण पर काम कर रहे हैं। वो अभी तक कई लोगो को ये लिपि सीखा चुके हैं। साथ में ये साम्भ संस्था जो कि धर्मशाला की एक संस्था है के साथ मिलकर टांकरी लिपि का एक कंप्यूटर फ़ॉन्ट तयैर कर चुके हैं।
पंजाबी गुरुमुखी लिपि का संकलन किसने किया
पंजाबी गुरुमुखी लिपि को सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने तयैर किया।
गोगा जाहरवीर कौन हैं ऐतिहासिक तथ्यों और लोकगायनो में अंतर् पढ़ने के लिए क्लिक करें
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