भारतीय पंचाग को कुछ पंडित पुरोहितों की ही भाषा समझा जाता है आम जनमानस इसे नहीं समझ पाता परन्तु भारतीय पंचाग की उत्पति कैसे हुई अगर इसको समझ लिया जाये तो भारतीय पंचाग को बड़ी ही आसानी से समझा जा सकता है।
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Toggleपंचाग को किसने लिखा था
उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट राजा विक्रमाद्वित्य ने शकों को पराजित करके विकर्मी सम्वत की शुरुआत की थी। 12 मास का एक बर्ष और सप्ताह में 7 दिन इसी कैलेंडर की देन हैं। इसका उपयोग भारत के कई हिस्सों के साथ साथ पूरे के पूरे नेपाल में किया जाता है।
भारत के अधिकतर राज्यों में तीज, त्योहारों, विवाह-शादियों तथा शुभ मुहर्त के लिए इस्तेमाल होने वाला कैलेंडर विक्रम संवत है। इसकी शुरुआत ईसा से 57 बर्ष पूर्व हुई थी इस प्रकार ये ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 बर्ष आगे चलता है।
पंचांग का मतलब क्या होता है
पंचाग का मतलब होता है वो जो पांच अंगो से मिलकर बना है और ये पांच अंग हैं।
- वार
- तिथि
- नक्षत्र
- करण
- योग
गणना के आधार पर हिन्दू पंचाग को 3 भागों में बांटा गया है
- नक्षत्र पर आधारित
- चंद्र पर आधारित
- सूर्य पर आधारित
नक्षत्र का निर्माण कैसे हुआ
राशि और नक्षत्र हिन्दू कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है इसलिए पंचाग को अच्छी तरह से समझने के लिए पहले हमें ये समझना होगा कि राशि और नक्षत्रों का निर्माण कैसे हुआ।
तारो के समूह या तारामंडल को संस्कृत में नक्षत्र कहते हैं। वैदिक काल में समय जानने के लिए घड़ियाँ नहीं थी इसलिए दिन को प्रहरों में बांटा जाता था उसी प्रकार ऋतुओं आदि को जानने के लिए आकाश में तारो के समूह का सहारा लिया गया।
मनुष्य के पूर्वज “एप्स प्रजाति के बंदर” जब पेड़ों से उतरकर धरती पर आये तो क्यूंकि वो अधिक दूर नहीं देख सकते थे और बाकि जानवरों के लिए एक आसान शिकार थे
इसलिए उन्होंने धीरे धीरे खड़े होना सीखा। बाकि जानवरों से कमजोर थे तो समूहों में रहना सीखा। और इसी तरह धीरे धीरे अलग अलग सभ्यताएं विकसित हुई।
धीरे धीरे सभ्यता के आस पास अपने अनुभवों और अध्ययन से इंसान ने बहुत सारी चीज़ों का निर्माण किया परन्तु काल खंड को इंसान अभी भी नहीं समझ पाए थे।
जैसे ऋतुएं कैसे बनती है ! मौसम कैसे बदलते हैं ! काली रातें कैसे होती हैं ! चांदनी रातें कैसे होती है ! कैसे चन्द्रमा कभी कभी पूरा ढक जाता है (चंद्र ग्रहण) ! कैसे सूरज कभी कभी पूरा ढक जाता है (सूर्य ग्रहण) ! आदि।
क्यूंकि तारे आकाश में हमेशा से विद्यमान हैं ये पृथ्वी के पहले से विद्यमान थे। इसलिए लोगो ने लम्बे समय तक तारों के समूहों का अध्य्यन किया और इन तारा समूहों को अलग अलग नाम दे दिए गए।
तारो के समूह की अच्छी तरह से पहचान करने के लिए जो चीज़ें इंसान ने धरती पर देख रखीं थी उसी आधार पर तारों के समूह का नामकरण किया गया।
किसी तारा समूह की आकृति जानवर की तरह थी, किसी की किसी जीव की तरह और किसी की किसी पक्षी की तरह।
वैदिक लोग इन तारों के समूह को देखने पर ये अंदाजा लगाते थे कि कौन से तारा समूह के दिखने पर कौन सा मौसम आता है या कौन सी ऋतू आती है। इन्ही तारो के समूह को नक्षत्र कहा गया और इनके नाम हैं
- अश्विनी
- भरणी
- कृत्तिका
- रोहिणी
- मृगशिरा
- आर्द्रा
- पुनर्वसु
- पुष्य
- आश्लेषा
- मघा
- पूर्वाफ़ाल्गुनी
- उत्तराफ़ाल्गुनी
- हस्त
- चित्रा
- स्वाति
- विशाखा
- अनुराधा
- ज्येष्ठा
- मूल
- पूर्वाषाढ़ा
- उत्तराषाढ़ा
- श्रवण
- घनिष्ठा
- शतभिषा
- पूर्वाभाद्रपद
- उत्तराभाद्रपद
- रेवती।
वैसे तो नक्षत्र 88 हैं परन्तु चन्द्रमा की धरती की परिक्रमा करने के रास्ते में 27 ही आते हैं। चन्द्रमा इन सब 27 नक्षत्रों में भर्मण करता है। अभिजीत को 28 नक्षत्र माना गया है। पौराणिक कथाओं में इन्ही 27 नक्षत्रों को चन्द्रमा की 27 पत्नियां माना गया।
राशियाँ की उत्पति कैसे हुई
वैदिक काल में राशि और राशि चक्र के निर्धारण के लिए 360 डिग्री का एक काल्पनिक पथ निर्धारित किया गया और इस पथ पर आने वाले सारे तारा समूहों को 27 भागों में विभाजित किया गया। और वो प्रत्येक तारा समूह नक्षत्र कहलाया।
27 नक्षत्रों को 360 डिग्री के काल्पनिक पथ में विभाजित करने पर प्रत्येक भाग 13 डिग्री 20 मिनट का होता है। इसलिए प्रत्येक नक्षत्र 13 डिग्री 20 मिनट का माना गया है।
बैदिक काल में राशियों में 360 डिग्री को 12 भागो में विभाजित किया गया जिसे भौचकृ कहा गया और इस प्रकार 12 राशियाँ तय हुई। और प्रत्येक राशि का एक स्वामी भी तय किया गया।
हमारे जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में होता है वो हमारी राशि कहलाती है।
12 राशियों के नाम
सँख्या | राशियों के नाम | स्वामी ग्रह |
1 | मेष | मंगल |
2 | वृषभ | शुक्र |
3 | मिथुन | बुध |
4 | कर्क | चंद्रमा |
5 | सिंह | सूर्य |
6 | कन्या | बुध |
7 | तुला | शुक्र |
8 | वृश्चिक | मंगल |
9 | धनु | बृहस्पति |
10 | मकर | बृहस्पति |
11 | कुंभ | शनि |
12 | मीन | बृहस्पति |
चंद्र मास क्या होता है Lunar month in hindi
आमतौर पर पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर उस मास का नाम तय होता है
महीनों के नाम | पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा का नक्षत्र | ग्रेगोरियन कैलेंडर के महीने के नाम |
चैत्र | चित्रा, स्वाति | मार्च-अप्रैल |
वैशाख | विशाखा, अनुराधा | अप्रैल-मई |
ज्येष्ठ | ज्येष्ठा, मूल | मई-जून |
आषाढ़ | पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ | जून-जुलाई |
श्रावण | श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा | जुलाई-अगस्त |
भाद्रपद | पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र | अगस्त-सितम्बर |
आश्विन | रेवती, अश्विनी, भरणी | सितम्बर-अक्टूबर |
कार्तिक | कृतिका, रोहिणी | अक्टूबर-नवम्बर |
मार्गशीर्ष | मृगशिरा, आर्द्रा | नवम्बर-दिसम्बर |
पौष | पुनवर्सु, पुष्य | दिसम्बर-जनवरी |
माघ | अश्लेषा, मघा | जनवरी-फरवरी |
फाल्गुन | पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हस्त | फरवरी-मार्च |
इस प्रकार चैत्र हिन्दू बर्ष का पहला महीना होता है और फाल्गुन अंतिम महीना होता है। क्यूंकि चन्द्रमा धरती की परिक्रमा बृताकर परिधि में नहीं लगाता बल्कि एक अंडाकार परिधि में लगता है
इसलिए चन्द्रमा का हर नक्षत्र में रहने का समय भी अलग अलग होता है इस प्रकार चंद्र मास 27 से 30 दिन तक का होता है।
शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष क्या होते हैं
चंद्र मास को 2 भागों में विभाजित किया गया है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। प्रत्येक पक्ष 15-15 दिन का होता है। कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा पूर्णिमा से अमावस्या की तरफ जाता है अर्थात चन्द्रमा का आकार घटता जाता है और अमावस्या पर कृष्ण पक्ष खत्म हो जाता है।
अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक के समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं इस पक्ष में चन्द्रमा का आकार बढ़ता जाता है। इसलिए कृष्ण पक्ष को शुभ नहीं माना जाता और अधिकतर शुभ काम शुक्ल पक्ष में किये जाते हैं
क्योंकि वैदिक लोगो के अनुसार शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा शक्तिशाली हो रहा होता है और कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा कमजोर हो रहा होता है।
इस प्रकार जो महीना शुक्ल प्रतिपदा यानि अमावस्या के अगले दिन से शुरू होकर अमावस्या पर जाकर ख़त्म होता है उसको अमावस्यांत’ या अमांत मास कहते हैं और जो महीना कृष्ण प्रतिपदा यानि पूर्णिमा के अगले दिन से पूर्णिमां पर ख़त्म होता है उसको गौण चंद्रमास कहते है।
एक चंद्र बर्ष में 354 दिन होते हैं जबकि एक सौर बर्ष में 365 दिन होते हैं इस प्रकार एक चंद्र बर्ष सौर बर्ष से 11 दिन छोटा होता है।
इस अबधि को बराबर करने के लिए है हर तीसरे बर्ष एक चंद्र बर्ष मे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास या परुषोतम मास कहा जाता है।
सौर मास क्या होता है Solar month in hindi
वैदिक समय में लोगो ने अपने आभास के अनुसार सौर बर्ष बनाया उन्होंने पृथ्वी को केंद्र में रखकर सूर्य को उसके चारों और चक्र लगाने का अनुमान किया।
इस प्रकार एक संक्राति से दूसरी सक्रांति तक के समय को सौर मास कहते हैं जिस दिन सूर्य अगली राशि में प्रवेश करता है उसी से अलग महीना शुरू हो जाता है।
ये 28 से लेकर 31 दिन का होता है। इस प्रकार एक सौर बर्ष मुलत: 365 दिन का होता है। 12 राशियों को 12 सौर मास माना जाता है।
सौर मास को 2 भागों में विभाजित किया गया है।
- उत्तरायण
- दक्षिणायन
दोनों ही 6-6 मास के होते हैं। मकर संक्राति के दिन सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है इस समय सूर्य उत्तरायण में होता है और ये समय भारत में तीर्थ यात्रा और उतस्वों का समय होता है।
जबकि जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है उस समय सूर्य दक्षिणायन होता है और ये समय होता है ब्रत और उपवास का।
सौर मास के नाम
12 राशियों के जो नाम हैं वही सौर मास के नाम हैं
- मेष
- वृषभ
- मिथुन
- कर्क
- सिंह
- कन्या
- तुला
- वृश्चिक
- धनु
- मकर
- कुंभ
- मीन
तिथि क्या होती है
एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के अनुसार ये 19 से 26 घंटे तक की होती है। मुलत: चंद्र मास में 30 तिथियाँ मानी गई हैं जो दो पक्षों शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में बंटी हैं । तिथियों के नाम हैं-
- पूर्णिमा
- प्रतिपदा
- द्वितीया
- तृतीया
- चतुर्थी
- पंचमी
- षष्ठी
- सप्तमी
- अष्टमी
- नवमी
- दशमी
- एकादशी
- द्वादशी
- त्रयोदशी
- चतुर्दशी
- अमावस्या
अमावस्या से लेकर पूर्णिमा तक भी इसी प्रकार की तिथियां होती हैं। तिथि लिखने के लिए पहले महीना फिर पक्ष और फिर तिथि लिखी जाती है जैसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानि चैत्र मास शुक्ल पक्ष और पहली तारीक।
वार क्या होते हैं
एक सप्ताह में 7 दिन होते हैं जिन्हे 7 बार कहा गया है ये हैं
- सोमवार
- मंगलवार
- बुधवार
- गुरुवार
- शुक्रवार
- शनिवार
- रविवार
निष्कर्ष
हिंदी फिल्म पूर्व और पश्चिम का एक गाना है महेंद्र कपूर ने गाया है उसके कुछ बोल हैं –
तारों की भाषा भारत ने दुनिया को पहले सिखलाई।
देता न दशमलव भारत तो यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था।
धरती और चाँद की दुरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था।
सभ्यता जहाँ पहले आई पहले जन्मी है जहाँ पे कला।
पंचाग की कुछ त्रुटियों को अगर नज़रअंदाज कर दिया जाये तो ये शानदार है ये उस लहजे में भी शानदार है क्यूंकि उस समय मनुष्य के ज्ञान की अधिकतम सीमा धरती थी और धरती के बाहर आकाश में कुछ भी जानना संभव नहीं था तो भी अपने अध्ययन से लोगो ने इस प्रकार का शानदार कैलेंडर बनाया।
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