भारतीय खाना क्या है ? प्रतिदिन जो भी खाद्य पदार्थ खाते हैं उसके पीछे इतिहास और भूगोल वनस्पति विज्ञान और आनुवंशिकी छिपि हुई है ।
भोजन की सामग्री दुनिया के कई हिस्सों से स्वयं हमारे पास आई है। उनमें से कुछ भोजन सामग्री महाद्वीपों और महासागरों की यात्रा के द्वारा हमारे पास आई है। हम अभी भी अपना भोजन अपने पूर्वजों द्वारा बनाये हुए तरीकों से पकाते हैं। ये भोजन हमारे साथ पिछले तीन हजार सालों से है। पिछले 800 सालों में मुस्लिम शासकों ने हमारे देश में प्रवेश किया और वो यहाँ पर अपने कुछ व्यंजन भी लेकर आये।
फ्राइंग पैन, कढ़ाई और तंदूरी भट्टी हजारों सालों से हमारे साथ हैं । पिछले पाँच सौ वर्षों में तुर्को ,मेक्सिको और दक्षिण अमेरिका से ऐसी खाद्य सामग्रियाँ आईं जिन्हें हम अब हल्के में लेते हैं जैसे मूंगफली और काजू, आलू, टमाटर और मिर्च।
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Toggleमनुष्य का उत्पति और विकास कैसे हुआ
बंदर और मनुष्य एक दूसरे से मिलते जुलते हैं। लाखों साल पहले हमारे पूर्वज बन्दर थे। फिर धीरे धीरे उनका विकास हुआ। मनुष्य ने धीरे धीरे सीधे खड़े होना और चलना सीखा फिर उसके मस्तिष्क का विकास हुआ। लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व मनुष्य अपने आधुनिक आकार-प्रकार में उभरा जिसे होमो सेपियन्स कहा गया। संभवतः यह अफ़्रीका में हुआ और बाद में यहाँ से उसने अन्य स्थानों और दिशाओं की तरफ प्रस्थान किया। यह बात खुदाई में मिलने बाली हड्डियों से पता चली है।
मनुष्य का शुरुआती आहार
शुरुआत में मनुष्य शाकाहारी था परन्तु जल्द ही उसने औजार बना कर जानवरो कर शिकार करना सीख लिया। और उसने मांस खाना शुरू कर दिया। फिर अग्नि की खोज हुई और मनुष्य ने भोजन उगाना भी शुरू कर दिया। भारत में अब तक जितने भी पुरातात्विक स्थलों की खुदाई हुई है उनमें जानवरों की हड्डियाँ पाई गई हैं
लेकिन बाद में जैसे-जैसे मनुष्य ने प्रगति की, मांस खाने के साथ साथ कृषि का उपयोग भी किया जाने लगा । सबसे प्रारंभिक भारतीय संस्कृति सिंधु घाटी सभ्यता थी जिसके शहर 2500 ईसा पूर्व से लगभग एक हजार वर्षों तक पंजाब, गुजरात और राजस्थान में कई नदियों के किनारे फले-फूले।
इन स्थलों पर पाई गई हड्डियों के शोध से पता चला कि गेहूं और जौ जैसे खाद्य पदार्थों के अलावा उस समय गाय का माँस , बकरी, भेड़, कछुए, घड़ियाल और समुद्री मछलियाँ भी खाई जाती थीं। हालाँकि इन स्थलों पर घरेलू मुर्गी की हड्डियाँ पाई गई हैं। आज की दुनिया में हर मुर्गी भारतीय जंगली मुर्गे की संतान है जो उनका मूल पूर्वज था।
मध्य प्रदेश में भोपाल से लगभग 40 किमी दूर भीमबेटका नामक स्थान पर विंध्य पहाड़ियों पर ऐसे शैल आश्रयों की एक श्रृंखला की खोज की गई है। उन चित्रों को देखकर ये अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि भारतीय उस समय किस तरह का भोजन करते थे।
गुफाओं की दीवारें चित्रों से ढकी हुई हैं जिनके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि इन्हें 20,000 साल पहले बनाया गया था। यह बात काफी आश्चर्यजनक है कि हमारे किसी पूर्वज द्वारा बहुत समय पहले चित्रित कोई चीज अभी भी इन गुफाओं की दीवारों पर देखी जा सकती है।
चित्रों में पुरुषों और महिलाओं को नृत्य करते और शिकार करते हुए दिखाया गया है। कई जानवरों का शिकार करते हुए दिखाया गया है। इनमें हाथी, जंगली सूअर, बाघ और गैंडा शामिल हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जिराफ और शुतुरमुर्ग को भी बहुत स्पष्ट रूप से दिखाया गया है परन्तु ये दोनों प्रजातियाँ भारत में बिल्कुल भी मौजूद नहीं हैं। इसलिए हम अपने देश में जानवरों के इतिहास के बारे में भीमबेटका की पेंटिंग्स से भी सीखते हैं।
शिकार के द्रिश्य और शिकारियों को कांटेदार भाले, नुकीली छड़ें, धनुष और तीर का उपयोग करते हुए दिखाया गया है । इस तरह कई प्रकार का मांस खाया जाता था। खाने में जंगली फल और सब्जियाँ भी शामिल होती थीं जिन्हें पड़ोसी जंगलों से इक्कठा किया जा सकता था।
दरअसल आज भी हमारे कई आदिवासी समुदाय बिल्कुल उसी तरह रहते हैं। वे कई खाद्य फलों, पत्तियों और जड़ों की पूर्ति के लिए सभी प्रकार के जानवरों, यहां तक कि छोटे चूहों, छिपकलियों, मगरमच्छों और सांपों को भी पकड़ते हैं। जिन्हें वे जंगल के पेड़ों और पौधों के पास से इकट्ठा करते हैं। हमारे पूर्वजों द्वारा बनाए गए चित्र और उनके द्वारा छोड़े गए औजार ही हमें उस प्रकार के भोजन के बारे में काफी कुछ बताते हैं जो बहुत पहले खाया जाता था।
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प्राचीन भारत की सब्जिओं और फलों के नाम भी मिलते जुलते हैं।
हमारे पास अपने पूर्वजों के भोजन का पता लगाने का एक और स्रोत है। आज हम जिन शब्दों का उपयोग करते हैं उनमें से कुछ हजारों साल पुराने हैं और जब इस तरह का कोई पुराना शब्द उपस्थित होता है तो हम यह जान सकते हैं कि वह वस्तु हजारों साल पहले अस्तित्व में थी।
भारत के प्रारंभिक निवासियों को आम तौर पर मुंडा कहा जाता है। वे पूरे देश में फैले हुए थे और कई भाषाएँ बोलते थे।
भारत में खुदाई होने पर हिन्दू घाटी सभ्यता की खोज हुई। यह सभ्यता का समय लगभग 3500 से 1700 ईसा पूर्व बताया जाता है। इस सभ्यता द्वारा लिखी गई भाषा को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। भारत की अगली प्रमुख भाषा आर्यों द्वारा लाई गई भाषा थी जो लगभग 2,000 ईसा पूर्व से देश में बड़ी संख्या में आए थे।
उनकी भाषा संस्कृत थी इसलिए यह भारत की सबसे पुरानी ज्ञात भाषा है और हमारे पास लगभग 1,500 ईसा पूर्व से इसमें लिखी गई रचनाएँ हैं। भारत के दक्षिण में सबसे पुरानी बोली जाने वाली भाषा तमिल थी लेकिन जो साहित्य बचा है वह लगभग 200 ईसा पूर्व का ही है।
आइए अब भोजन से संबधित कुछ शब्दों पर नजर डालें जो इन दो भाषाओं में आते हैं।
आर्य लोग मुंडाओं को विभिन्न अज्ञात नामों से पुकारते थे जिनमें से एक “निषाद” था। यह दो शब्दों से बना है, “निसा” जिसका अर्थ है हल्दी और “अद” जिसका अर्थ है खाना। इससे पता चलता है कि हल्दी आर्यों के भारत आने से बहुत पहले से मौजूद थी। जिसे अब हम हिंदी में हल्दी कहते हैं उसको संस्कृत में हरिद्रा कहा जाता था और यह स्वयं संस्कृत में अपनाया गया एक पुराना मुंडा शब्द है। नींबू, जो पहले नुंबका था फिर निंबका हुआ इससे हमें पता चलता है कि नीम्बू हमारे भारत में काफी समय से है।
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पान का पत्ता (थंबुला) और सुपारी (गुवाका) दोनों मुंडा शब्द थे इसलिए पान चबाना हमारे देश में बहुत पुराना होना चाहिए। इमली को संस्कृत में चिंचपाला कहा जाता था यह भी एक बहुत पुराना मुंडा शब्द है।
बैंगन वृन्तक था जो एक मुंडा शब्द था। चावल के लिए चावल शब्द चोम-ला से आया है जो स्वयं मुंडा शब्द जोम से बना है जिसका अर्थ है ‘खाना’। चावल के लिए संस्कृत शब्द वृही या वारिसी है। वारिसी से तमिल शब्द अरिसी आया, जो चावल के साथ ही दक्षिण भारत से यूरोप में Rice के रूप में चला गया।
अंग्रेजी शब्द ‘कड़ी ‘ भी तमिल शब्द कारी के अलावा और कुछ नहीं है जिसका अर्थ है काली मिर्च के साथ पकाया गया व्यंजन इसलिए करी और चावल दोनों पुराने (तमिल) भारतीय शब्द हैं। आपको शायद यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह बात शुगर के लिए भी सच है। चीनी एक भारतीय भोजन है जिसे सबसे पहले इसी देश में विकसित किया गया था और इसका मूल नाम शर्करा था जो बाद में शक़्कर बन गया।
आम भारतीय है जो कि संस्कृत शब्द आम्र से निकला है
तिल या गिंगेली के लिए संस्कृत शब्द तिल है। तिल के तेल को तेल कहा जाता था और धीरे-धीरे यह उत्तर भारत के सभी तेलों के लिए एक सामान्य शब्द बन गया। इसी तरह तमिल में, नाइ शब्द का मूल अर्थ नारियल तेल था। आज तमिल में सभी वनस्पति तेलों के लिए एन्नाई का उपयोग किया जाता है।
दो अन्य उदाहरण: शहद संस्कृत में मूल रूप से मधु था लेकिन अब किसी भी मीठी चीज़ को उसी शब्द से बुलाया जाता है। इसी तरह भोजन की एक पुरानी वस्तु इमली के लिए तमिल शब्द पुली है तमिल में पुली अब किसी भी खट्टी चीज़ पर लगाया जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता और हड़प्पा सभ्यता कहा स्थित है
1931 में, पंजाब क्षेत्र, जो अब पाकिस्तान में है, में मिट्टी के कुछ बड़े टीलों की खुदाई से नीचे छिपे शहर देखे गए । इस तरह से खुदाई में लगभग चालीस शहर देखे गए जो पूरे पंजाब और गुजरात और राजस्थान तक फैले हुए थे। चूंकि कई शहर सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों की घाटी में पाए जाते हैं इसलिए इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा है। कभी-कभी हड़प्पा नामक प्रमुख नगर के नाम पर हड़प्पा सभ्यता शब्द का भी प्रयोग किया जाता है।
लोथल में खुदाई के समय एक गोदाम मिला है। गोदाम का आकार बहुत बड़ा था। मोहनजोदड़ो में भंडारण भंडारों के पास बड़ी संख्या में ईंटों से बने गोलाकार पीसने वाले चबूतरे पाए गए हैं जो किनारे पर रखे गए थे। प्रत्येक के केंद्र में एक छेद था जिसमें अनाज को लकड़ी के मूसलों का उपयोग करके कूटा जाता था। जले हुए गेहूँ के दाने और जौ की भूसी वास्तव में इन चबूतरों की दरारों में पड़ी हुई पाई गईं। वही अनाज थे जो वास्तव में लगभग 4,000 साल पहले लोगों द्वारा खाए जाते थे।
हड़प्पावासियों का भोजन किस तरह का था
भारत में अनाज पीसने के लिए हम अभी भी ग्रेनाइट से बने बड़े गोलाकार पीसने वाले पत्थरों का उपयोग करते हैं। जिसमें ऊपर वाला हिस्सा ,निचले हिस्से के ऊपर घूमता है। बिल्कुल इसी तरह की कुछ चीज़ें मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में पाए गई हैं। जिससे पता चलता है कि हमारी भोजन प्रणालियाँ कितनी पुरानी हैं। मोहनजोदड़ो और लोथल दोनों में तंदूरी भट्टियाँ पाई गई हैं जिनका उपयोग बेकिंग के लिए किया जाता था। और कालीबंगन नामक स्थान पर खुदाई से बुआई के लिए तैयार जुताई वाला खेत मिला है।
उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं और जौ प्रमुख थीं और ऐसा प्रतीत होता है कि ये सिंधु घाटी संस्कृति के पूरे क्षेत्र में आम भोजन रहे हैं। चावल केवल गुजरात के लोथल और रंगपुर जैसे अधिक दक्षिणी शहरों में उगाया जाता था। साथ ही ज्वार और बाजरा जैसी फसलें भी पाई गई हैं। सिंधु घाटी स्थलों पर बड़ी संख्या में ढालों की खुदाई की गई है जिनसे हम अब परिचित हैं। इनमें मसूर दाल, उड़द दाल, मूंग दाल, कुलथी दाल आदि शामिल हैं
खाना पकाने वाले तेल के बारे में जानकारी
मारे गए जानवरों के मांस में पाए जाने वाले तेल का उपयोग सिंधु घाटी में खाना पकाने के लिए किया गया होगा क्योंकि वे दुनिया में हर जगह थे। इनमें मटन और बीफ से प्राप्त वसा, सूअर की चर्बी और मछली का तेल शामिल हैं। यह भी संभावना है कि दूध से घी का उपयोग किया गया हो।
हड़प्पा की पुरातात्विक खुदाई में जले हुए तिलों का एक ढेर मिला था। सिंधु घाटी शहर के अन्य स्थलों पर भी सरसों के बीज और अलसी पाए गए हैं। संभावना है कि लोगों को इन बीजों से निकलने वाले तेल के बारे में भी पता था। तिल का तेल और सरसों का तेल दोनों आज भी भारत में खाना पकाने के महत्वपूर्ण तेल हैं।
कौन कौन से फलों को खाया जाता था
इस बात के बहुत से प्रमाण हैं कि सिंधु घाटी के शहरों में रहने वालों को उस समय बहुत से फल उपलब्ध थे। नींबू और खरबूजे दोनों ही उपलब्ध थे। खजूर, अनार, नारियल और केले भी खाए जाते थे ।
चावल का इतिहास
यह जानकर आश्चर्य होता है कि अकेले भारत में चावल की 100,000 किस्में हैं और पूरी दुनिया में इसकी संख्या दोगुनी है। चावल दक्षिण भारत का पसंदीदा मुख्य भोजन है जबकि गेहूं आज उत्तर में पसंद किया जाता है। हालाँकि इसका मतलब यह नहीं है कि चावल का विकास दक्षिण भारत में हुआ। वास्तव में पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि चावल उत्तर और पूर्व में विकसित हुआ था और कुछ देर बाद दक्षिण भारत में आया।
तिल का इतिहास
मोहनजोदड़ो की खुदाई में तिल के जले हुए टुकड़े मिले थे। जो कि बहुत समय से वहाँ पर थे। वनस्पतिशास्त्रियों के बीच इस बात को लेकर बहुत अटकलें हैं कि तिल का पौधा भारत का मूल निवासी था या नहीं। आज अधिकांश संदेह दूर हो गए हैं और निश्चित रूप से ज्ञात है कि तिल का पौधा भारत में विकसित किया गया था। यह एक जंगली पूर्वज से उत्पन्न हुआ है जो अब भी देश के विभिन्न हिस्सों में आम तौर पर उगता है। तिल का वानस्पतिक नाम सेसमम इंडिकम लगभग 200 वर्ष पूर्व महान स्वीडिश वनस्पतिशास्त्री लिनिअस ने दिया था।
सरसो का इतिहास
इसके अलावा काली सरसों भी बहुत पुरानी है जिसे हम हर दिन अपने खाना पकाने में उपयोग करते हैं। सिंधु घाटी के चन्हुदड़ो शहर में लगभग 1,500 ईसा पूर्व के जले हुए बीज पाए गए हैं। यह राई नामक एक तीखी किस्म है और पिछले कुछ वर्षों में संस्कृत साहित्य में इसके कई संदर्भ मिलते हैं। राई के अलावा हमारे भारत में दो अन्य बीज भी हैं जिन्हें सरसों और तोरिया कहा जाता है।
नारियल का इतिहास
हमारे यहां एक बहुत पुराना पौधा है जिसके बारे में माना जाता है कि यह 15 मिलियन साल पहले भी पूरी तरह से विकसित हो चूका था क्योंकि इन बहुत पुराने स्तरों की खुदाई में नारियल के टुकड़े पाए गए हैं। सभी साक्ष्य निश्चित रूप से नारियल की उत्पत्ति पापुआ न्यू गिनी के निकट कहीं होने की ओर इशारा करते हैं।
अखरोट समुद्र के पास उगता है। आधुनिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि महीनों तक समुद्र के पानी में तैरने के बाद भी जैसे ही नारियल समुद्र के किनारे पर आएगा उसमें अंकुर फूटने लगेंगे और उससे एक पेड़ उग आएगा। यह संभव है कि ये इस तरह से भारत में आया हो।
नारियल को लंबे समय से एक भारतीय पौधा माना जाता था क्योंकि इसका संस्कृत नाम नारिकेला था जिसे अब हिंदी में नारियाल कहा जाता है।
नारीकेला नाम एक पूर्व-संस्कृत मुंडा शब्द है जो स्वयं दो दक्षिण पूर्व एशियाई शब्दों से लिया गया है। इनमें से एक है नियोर यानी नारियल का तेल और दूसरा है कोलाई यानी अखरोट। और जब नियोर शब्द दक्षिण भारत में आया तो यह नाई शब्द में बदल गया और बाद में एन्नाई में बदल गया जिसे अब तमिल में किसी भी तेल के अर्थ में उपयोग किया जाता है। भाषा के साक्ष्य से यह संभावना बनती है कि नारियल का तेल दक्षिण भारत में खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला पहला वनस्पति तेल था।
आलू का इतिहास
आलू जिसे हम शिवरात्रि के दिन ठूस ठूस कर खाते हैं उसके बारे में इतिहासकार बताते हैं कि आलू भारत में तुर्को के द्वारा लाया गया। तुर्क जब 1450 से 1500 ले बीच भारत आये तो वो अपने साथ आलू लेकर आये। इस प्रकार आलू की खेती भारत में पहली बार 1500 ईस्वी के आस पास की गई।
उपसंहार
आज हमारे द्वारा जो खाना बनाया जाता है उसमे से काफी खाना पिछले हजारों सालो से हमारे साथ हैं। ये खाना हमारे रोम रोम में बस चूका है और हम इस खाने के इतने आदि हो चुके हैं। कि दक्षिण भारत के लोग ज्यादा समय तक उत्तर भारत का भोजन नहीं खा सकते और उत्तर भारत के लोग अधिक समय तक दक्षिण भारत का भोजन नहीं खा सकते।
आज हम भले ही एक सभ्य समाज के नाते शाकाहारी भोजन को प्राथमिकता देते हों परन्तु हमने भोजन की शुरुआत मांस खाने से ही की थी। और उस समय कृषि की खोज भी नहीं हुई थी। कृषि की खोज हमें मांसाहारी के साथ साथ शाकाहारी होने का बिकल्प भी देती है।
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