पंजाबी भाषा की एक महत्वपूर्ण कहावत है जो सुख छज्जू दे चौबारे वो बल्ख ना बुखारे अर्थात जो सुख हमें अपने चौबारे अर्थात जहाँ प्रतिदिन हम सोते, उठते, बैठते हैं वहाँ मिलता है। वो न बल्ख में मिलता है हैं न बुखारे में मिलता है।

इस कहावत ने बचपन में सबको तंग किया है क्यूंकि किसी को बल्ख या बुखारे का मतलब पता नहीं होता था। हिमाचल में तो लोग बुखारे का मतलब फल समझ लेते थे जो अक्सर हिमाचल प्रदेश में उगता है और खाने में खट्टा मीठा होता है।

लेकिन बल्ख और बुखारा प्राचीन शहरों के नाम हैं जो प्राचीन रेशमी मार्ग (Silk Route) पर स्थित थे। बालख़ शहर उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में स्थित है। प्राचीन काल में, बालख़ को बैक्ट्रिया के रूप में भी जाना जाता था तब यह बैक्ट्रिया सभ्यता का केंद्र तथा एक महत्वपूर्ण व्यापार और सांस्कृतिक केंद्र था, जो सिल्क रोड पर स्थित था।

बुखारा शहर मध्य एशियाई देश उज़्बेकिस्तान में स्थित है। यह कभी सिल्क रोड पर एक प्रमुख पड़ाव हुआ करता था और मध्ययुगीन काल में इस्लामी धर्मशास्त्र और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था।

उज़्बेकिस्तान वही जगह है जहाँ की राजधानी ताशकंद में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का 11 जनवरी 1966 को निधन हुआ था। ये उस समय सोबियत संघ का हिस्सा हुआ करता था और लाल बहादुर शास्त्री जी, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ शांति समझौते के लिए वहां गए थे।

सोवियत संघ का विघटन 25 दिसंबर, 1991 को हुआ था उसके टूटने के बाद 15 स्वतंत्र देश बने थे।

  • आर्मेनिया
  • अज़रबैजान
  • बेलारूस
  • एस्टोनिया
  • जॉर्जिया
  • कजाकिस्तान
  • किर्गिस्तान
  • लातविया
  • लिथुआनिया
  • मोल्दोवा
  • रूस
  • ताजिकिस्तान
  • तुर्कमेनिस्तान
  • यूक्रेन
  • उज़्बेकिस्तान

बल्ख और बुखारा के बारे में जानने से पहले थोड़ा रेशम के मार्ग के बारे में जान लेते हैं।

रेशम मार्ग (Silk Road) क्या था

रेशम मार्ग पूर्व और पश्चिम को जोड़ने वाला एक प्राचीन मार्ग था। इस रास्ते से प्राचीन समय में केवल सामान का आदान प्रदान नहीं हुआ बल्कि विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और ज्ञान का भी आदान प्रदान हुआ जिसने सदियों तक पूर्व और पश्चिम के भाग्य को आकार दिया।

रेशम मार्ग कोई एक सीधा रास्ता नहीं था, बल्कि आपस में जुड़े हुए व्यापारिक रास्तों का एक विशाल मार्ग था जो पूर्वी एशिया को भूमध्य सागर से जोड़ता था। हालांकि, रेशम के अलावा, इस मार्ग से चाय, मसाले, सोना, चांदी, हाथी दांत, कांच, पत्थर आदि बस्तुओं का व्यापार भी होता था।

Silk-ruote
Silk-ruote

परन्तु इसका नाम रेशम मार्ग, चीन से पश्चिम की ओर ले जाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक वस्तुओं में से एक, रेशम के कारण पड़ा। या हो सकता है कि इस रास्ते पर सबसे पहले रेशम का व्यापार ही शुरू हुआ हो।

यह मार्ग हजारों किलोमीटर तक फैला हुआ था, जिसमें रेगिस्तान, पहाड़, और घास के मैदान शामिल थे। इसके रास्ते मध्य एशिया, भारतीय उपमहाद्वीप, फारस, और अरब जैसे कई क्षेत्रों से होकर गुजरते थे।

सिल्क रुट से होता था विचारों और संस्कृतियों का आदान-प्रदान

इस मार्ग से चलते हुए ही बौद्ध धर्म, भारत से निकलकर, मध्य एशिया और फिर चीन, कोरिया और जापान तक पहुँचा। इस मार्ग पर कई बौद्ध मठ और स्तूप स्थापित हुए जो न केवल धार्मिक केंद्र थे, बल्कि शिक्षा और संस्कृति के भी केंद्र थे।

इसी मार्ग से चलते हुए ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म भी दूर-दूर के क्षेत्रों तक फैले। कृषि तकनीक, कागज बनाने की कला, और खगोल विज्ञान जैसे क्षेत्रों में भी ज्ञान का आदान प्रदान पूर्व और पश्चिम में हुआ।

भारत से रेशम मार्ग के द्वारा किन किन चीज़ों का आदान प्रदान होता था

भारत से रेशम मार्ग के द्वारा जो वस्तुएं दूसरे देशों या क्षेत्रों में भेजी जाती थीं उनमे मसाले जैसे काली मिर्च, इलायची, अदरक, दालचीनी आदि शामिल थे। इनकी पश्चिम में बहुत मांग थी।

भारत में बने हुए कपड़े, पश्चिम एशिया और यूरोप में काफी पसंद किए जाते थे। हाथी दांत से बनी वस्तुएं भी भारत से रेशम मार्ग के जरिए जाती थीं। कीमती पत्थर, हीरे, मोती भी व्यापार का हिस्सा थे।

रेशम मार्ग के द्वारा जो वस्तुएं भारत में आती थीं

मध्य एशिया से अच्छी नस्ल के घोड़े, रोम से सोना और चांदी, रोमन साम्राज्य में बने कांच के बर्तन और अन्य शीशे की वस्तुएं, पश्चिमी देशों से शराब, फारस और अन्य क्षेत्रों से उत्तम कालीन और गहने भारत आते थे।

रेशम मार्ग का पतन

15वीं शताब्दी के आसपास समुद्री व्यापार मार्गों के विकास के साथ रेशम मार्ग का महत्व धीरे-धीरे कम होने लगा। समुद्री मार्ग अधिक कुशल और कम खर्चीले साबित हुए, जिससे जमीनी व्यापार अधिक खर्चीला नज़र आने लगा।

इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में राजनीतिक अस्थिरता और युद्धों ने भी रेशम मार्ग के व्यापार को बाधित किया। कई देश अब इस ऐतिहासिक मार्ग को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रहे हैं।

बल्ख और बुखारा – वैभव और विद्वता के प्राचीन केंद्र

बल्ख को प्राप्त था नगरों की माँ का दर्जा

बल्ख, जिसे कभी बैक्ट्रिया के नाम से जाना जाता था ये रेशमी मार्ग का एक महत्वपूर्ण शहर था । इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे अक्सर ‘नगरों की माँ’ (Mother of Cities) कहा जाता है। यह वर्तमान अफगानिस्तान के उत्तरी भाग में स्थित है।

कैसा था बल्ख

प्राचीन काल में बल्ख एक समृद्ध और शक्तिशाली क्षेत्र था। इसकी भूमि बहुत उपजाऊ थी इसके अलावा क्यूंकि ये रेशमी मार्ग पर स्थित था इसलिए अपनी लोकेशन के कारण ये व्यापार और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। यहाँ भव्य मंदिर, शानदार महल और बाज़ार हुआ करते थे।

बौद्ध धर्म के प्रसार में भी बल्ख की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यहाँ कई बड़े बौद्ध मठ और स्तूप स्थापित थे, जो दूर-दूर से विद्वानों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते थे।

बल्ख की स्थापना

लोककथाओं के अनुसार, इसकी स्थापना पौराणिक राजा जमशेद ने की थी। हालाँकि, ऐतिहासिक रूप से इसकी प्राचीनता तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक जाती है, जब यह बैक्ट्रिया सभ्यता का केंद्र था।

बैक्टीरिया सभ्यता (Bactria Civilization) मध्य एशिया की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो मुख्य रूप से आधुनिक अफगानिस्तान के उत्तरी भाग, उज़्बेकिस्तान के दक्षिणी भाग और ताजिकिस्तान के कुछ हिस्सों में ऑक्सस नदी (आधुनिक अमू दरिया) के आसपास केंद्रित थी।

बुखारा शहर कहाँ है।

बुखारा, जो वर्तमान उज़्बेकिस्तान में स्थित है, भी रेशम मार्ग का एक महत्वपूर्ण शहर था और अपनी इस्लामी वास्तुकला और व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। यह शहर सदियों तक मध्य एशिया का एक प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र बना रहा।

कैसा था बुखारा

बुखारा अपनी शानदार मस्जिदों, मदरसों और मीनारों के लिए जाना जाता था। यहाँ की गलियाँ संकरी और घुमावदार हैं, जिनके किनारे सदियों पुरानी इमारतें आज भी खड़ी हैं। बुखारा इस्लामी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहाँ दूर-दूर से छात्र ज्ञान प्राप्त करने आते थे।

बुखारा की स्थापना

बुखारा की स्थापना के पुरातात्विक साक्ष्य लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास के मिलते हैं। यह भी माना जाता है कि यह पहले ये एक छोटी सी व्यापारिक बस्ती थी जो धीरे-धीरे रेशम मार्ग के साथ विकसित होते होते एक बड़ा शहर बन गया।

9वीं और 10वीं शताब्दी में, सामानी साम्राज्य के तहत बुखारा ने अपने स्वर्ण युग का अनुभव किया। इस दौरान यह न केवल एक समृद्ध व्यापारिक केंद्र बना, बल्कि कला, विज्ञान और साहित्य का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

जो सुख छज्जू दे चौबारे वो बल्ख ना बुखारे ये कहावत किसने लिखी

जो सुख छाजू के चौबारे ना बलख ना बुखारे” यह पंक्ति आनंदघन द्वारा लिखी गई है। आनंदघन 17वीं शताब्दी के एक श्वेतांबर जैन साधु, रहस्यवादी कवि और भजनकार थे।

आनंदघन को आनंदघन चौबीसी नामक एक दार्शनिक कृति का श्रेय दिया जाता है। जैन समाज में 24 तीर्थंकर माने गए हैं तो इस चौबीसी में प्रत्येक तीर्थंकर के लिए एक भजन होने की उम्मीद थी परन्तु उसमे 22 भजन ही पाए गए थे इसलिए चौबीसी में दूसरों के द्वारा 2 भजन और जोड़े गए थे।

तालिबान और सोबियत संघ के युद्ध ने सोबियत संघ के विघटन में क्या भूमिका निभाई पढ़ने के लिए क्लिक करें

1 कोरिया से दक्षिण कोरिया और उत्तरी कोरिया कैसे बने पढ़ने के लिए क्लिक करें