इंसान अपने अस्तित्व में आने के साथ ही अपने बिचारों के आधार पर हमेशा से अलग अलग मतों में विभाजित होता रहा है। चार्ल्स डार्बिन की थ्योरी के अनुसार, दुनिया में पहले पानी वाले जीव अमीबा की उत्पति हुई। अमीबा धीरे धीरे बिकसित होते होते एप्स प्रजाति तक पहुंचे और एप्स प्रजाति बंदरो की तरह दिखती थी। एप्स प्रजाति के कुछ बंदर भोजन की तलाश तथा कई अन्य कारणों से पेड़ों से नीचे उतर आये तथा धीरे धीरे जरुरत के अनुसार उनका विकास हुआ और उन्होंने दो पैरों पर चलना शुरू कर दिया। अपनी जरुरत और अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर उन्होंने झुंड में रहना शुरू किया। और फिर विकास की उस प्रक्रिया में आग की खोज हुई। पहिये का अविष्कार हुआ। धीरे धीरे इंसान ने खेती करना सीखा और खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक जगह रहना शुरू कर दिया। खेती की खोज के साथ ही जन्म हुआ ईस्वर का ,क्यूंकि इंसान के इतिहास में पहली बार उसे जरूरत से ज्यादा भोजन मिला। जिसको वो सहेज कर रख सकता था और यहीं से इंसान ने सोचना शुरू किया वो कहाँ से आया है और मृत्यु के बाद कहाँ जायेगा।
खुदाई में मिली खोपड़ियों से पता चलता है कि उस समय इंसान के दिमाग का आकार काफी बड़ा था फिर धीरे धीरे विकास की प्रक्रिया में ये अपने बर्तमान स्वरूप में आया। लेकिन जब से इंसान के दिमाग का विकास हुआ है ये हमेशा अलग-अलग विचारधाराओं में विभाजित रहा है। इंसान की अभी तक की यात्रा को समझना हो तो हमें केवल अलग अलग धर्मो को समझने की जरूरत है।
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Toggleराधा स्वामी मत की स्थापना
राधा स्वामी मत के संस्थापक स्वामी शिव दयाल सिंह सेठ जी थे इनके पिता का नाम सेठ दिलवाली सिंह और माता का नाम महा माया जी था इनका जन्म 25 अगस्त 1818 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। इनका विवाह फरीदाबाद के लाला इज्जत राय की पुत्री नारायणी देवी से हुआ था जिन्हे ये राधा कह कर पुकारते थे।
कई लोगों का ये भी मानना है इसी कारण इस मत का नाम राधा स्वामी पड़ा है। स्वामी शिव दयाल सेठ जी ने 15 फरबरी 1861 को राधा स्वामी मत की शुरुआत की। 15 जून 1878 को इनकी मृत्यु हो गई।
स्वामी शिव दयाल सेठ जी के ही एक शिष्य जयमल सिंह जिनका जन्म पंजाब के गुरुदासपुर में एक सिख परिवार में सन 1839 में हुआ था। ये ब्रिटिश सेना में हवलदार के पद पर थे इन्होने सेना से रिटायर होकर और शिव दयाल जी की मृत्यु के 11 साल बाद 1889 में ब्यास नदी के किनारे एक एकांत स्थान पर सत्संग करना शुरू किया।
इस समय इनके शिष्यों की संख्या में काफी बृद्धि हुई। सन 1839 में इनकी मृत्यु हो गई। ये स्थान इस समय राधा स्वामी सत्संग ब्यास के नाम से जाना जाता है।
इन्होने अपनी मृत्यु से पहले ही शिष्य सावन सिंह जी को अपनी गद्दी सौंप दी थी। 2 अप्रैल 1948 को सावन सिंह जी की मृत्यु हो जाती है।
सावन सिंह जी मृत्यु के बाद राधा स्वामी मत से निकले 3 अलग मत
- सावन सिंह की मृत्यु के बाद राधा स्वामी मत 3 मतों में विभाजित हो गया
- 1925 में सावन सिंह के एक शिष्य तारा चंद ने हरियाणा के भिवानी में राधा स्वामी दिनोद के नाम से एक अलग संस्था की शुरुआत की। जमीन के अवैध कब्जे को लेकर ये अभी कुछ समय चर्चा में आये थे।
- बाबा सावन सिंह के अन्य शिष्य कृपाल सिंह ने 1948 में दिल्ली में सावन कृपाल मिशन की शुरुआत की।
- बाबा सावन सिंह के एक शिष्य बाबा खेमामल(मस्ताना शाह) ने 2 अप्रैल 1949 को हरियाणा के सिरसा में सच्चा सौदा के नाम से सत्संग की सुरुआत की। गुरमीत राम रहीम सिंह जिन पर इस समय हत्या सहित कई केस चल रहे हैं इसी सिरसा सच्चा सौदा के प्रमुख हैं।
इस प्रकार एक राधा स्वामी मत कई मतों में विभाजित हो गया। और इन सबके अपने अपने अनुयायी और समर्थक हैं।
अब बात कुछ अन्य धर्मो की भी कर लेते हैं।
बौद्ध धर्म की उत्पति और उसकी शाखाएं
बौद्ध धर्म जो दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। इसको उत्पति भारत में हुई और इसके संस्थापक सिद्धार्थ गौतम थे जिन्हे गौतम बुद्ध या भगवान बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। गौतम बुध के जीवन काल में कई लोग बौद्ध धर्म में शामिल हुए परन्तु इनकी मृत्यु के उपरांत लोगो ने अपनी समझ के अनुसार बौद्ध धर्म का अलग अलग मतो में विभाजन कर दिया और उनमे से प्रत्येक सम्प्रदाय अपने आपको बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के करीब मानता है। बोध धर्म की शाखाएं इस प्रकार हैं
- हीनयान या थेरवाद बौद्ध धर्म
- महायान
- बज्रयान
- जेन
ये चारों बौद्ध धर्म की अलग अलग शाखाएं हैं। और अलग अलग तरीके से बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करते हैं।
जैन धर्म की शाखाएं
जैन धर्म एक प्राचीन धर्म हैं। इनके पहले तीर्थंकर ऋषभदेव थे। ये धर्म मुख्य रूप से तब अस्तित्व में तब आया जब जैन धर्म के 24बें तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने इस धर्म का प्रचार प्रसार किया। जैन धर्म भी शिक्षा के आधार पर अलग अलग मतो में विभाजित है। जैन धर्म की शाखाएं इस प्रकार हैं।
- दिगंबर
- श्वेतांबर
जैन धर्म की दिगंबर शाखा के संस्थापक भद्रबाहु और श्वेतांबर शाखा के संस्थापक स्थूलभद्र थे। दिगंबर शाखा के पुरुष साधु जो होते हैं वो कपड़े नहीं पहनते हैं और महिलाएं बिना सिलाई की सफ़ेद साड़ी पहनती हैं। जबकि श्वेतांबर शाखा के लोग सफ़ेद कपडे पहनते हैं। इस प्रकार जैन धर्म के लोगो की विचारधारा में भिनता पाई जाती है।
इस्लाम धर्म की उत्पति और उसकी उसकी शाखाएं
इस्लाम धर्म की मान्यता के अनुसार इस्लाम धर्म हजरत इब्राहिम से भी काफी पहले का धर्म है। इस्लाम के अनुसार इनके अंतिम पैगंबर मुहम्मद ने अवतरित किताब कुरान को लोगो तक पहुँचाया और इस्लाम की शिक्षाओं का प्रसार किया।
इस्लाम धर्म की भी बहुत सी शाखाएं हैं जिनमे से 4 प्रमुख हैं
- सुन्नी
- शिया
- सूफ़ी
- अहमदिया
शिया और सुन्नी के आपस में झगड़े होते रहते हैं। पाकिस्तान में सुन्नी समुदाय के द्वारा शिया समुदाय पर हमले बहुत ही आम बात है। और अहमदिया समुदाय को इस्लाम को मानने बाले मुसलमान ही नहीं मानते। इस प्रकार एक ही धर्म कई मतों में विभाजित है। यहाँ तक कि इनकी मस्जिदें भी अलग अलग होती हैं।
ईसाई धर्म की उत्पति और उसकी उसकी शाखाएं
ईसाई धर्म यहूदी परम्परा से निकला एक धर्म है इसके संस्थापक ईसा मसीह थे। ईसाई धर्म की शाखाएं हैं
- रोमन कैथोलिक पंथ
- प्रोटेस्टेंटवाद
- पूर्वी रूढ़िवादी
- प्राच्य रूढ़िवादी
- पुनर्स्थापनवाद
- पूर्व की कलीसिया
हिन्दू धर्म की उत्पति और शाखाएं
हिन्दू धर्म की शुरुआत को लेकर मतभेद है परन्तु ये माना जाता है कि ये ईसा से लगभग 4 या 5000 बर्ष पुराना हो सकता है।। हिन्दू धर्म के मुख्यत: 4 मत माने गए है
- वैष्णव
- शैव
- शाक्त
- स्मार्त
वैष्णव मत को मानने वाले भगवान विष्णु को प्रमुख मानते हैं। शैव मत वाले भगवान् शंकर को, शाक्त मत वाले आदि शक्ति देवी को तथा स्मार्त मत वाले ईस्वर के विभिन्न रूपों को एक ही ईस्वर का रूप मानते हैं। हालाँकि इन सब में कोई मतभेद नहीं होता।
क्या हिन्दू, सिक्ख, जैन तथा बौद्ध सभी सनातन धर्म की शाखाएं हैं?
हिन्दू धर्म से बौद्ध धर्म का जन्म हुआ। क्यूंकि बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध के माता-पिता शुद्धोधन और महामाया हिन्दू संस्कृति से सम्बन्ध रखते थे। जैन धर्म के 24बें तीर्थंकर महाबीर के माता-पिता सिद्धार्थ और त्रिशला थे जो कि हिन्दू संस्कृति (इक्ष्वाकु वंश) से सम्बन्ध रखते थे। सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी के पिता का नाम मेहता कालूचन्द (खत्री ब्राह्मण) और माता का नाम तृप्ता देवी था।
ये भी हिन्दू संस्कृति से सम्बन्ध रखते हैं। आर्य समाज के संस्थापक दयानन्द सरस्वती जी के पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी तथा माता का नाम अमृता बाई (अम्बा बाई) था। ये एक ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखते थे।