भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर बसे 2 देश इजराइल और फिलिस्तीन जो पिछले 74 सालों से लड़ रहे हैं। ये लड़ाई जमीन और पहचान पाने की लड़ाई है जिसे कभी कभी एक धार्मिक रूप दे दिया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय यहुदिओं को फिलिस्तीन में एक जगह देकर बसाया गया था। जगह को नाम दिया गया था इजराइल।

परन्तु क्या सच में इनको यहाँ बसाया गया था या इन्होने अपनी पुरानी जमीन हासिल की है। यहूदी समुदाय एक ऐसा समुदाय है जिसने अपनी शुरुआत से लेकर 1948 तक अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी हैं।

इन लड़ाइयों ने इस समुदाय को इतना ताकतवर बना दिया है कि 1948 के बाद कई अरव देशों ने इजराइल पर एक साथ आक्रमण किया और केवल एक बार नहीं कई बार। परन्तु अकेले इजराइल ने 8-8 अरब देशों को युद्ध में हरा दिया।

इजराइल चारों तरफ से लगभग 13 अरब इस्लामिक देशों से घिरा हुआ है। ये देश सेना, पैसे और हथियारों के मामले में इजराइल से कहीं आगे हैं परन्तु इजराइल को हराना इनके लिए टेडी खीर साबित हुआ है।

35 बर्ग एकड़ जगह के लिए लड़ रहे हैं यहूदी, ईसाई और मुसलमान

जेरुसलम एक पवित्र स्थान होने के साथ साथ विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा है यहाँ से ईसाईयों के ईसा मसीह और मुसलमानों के पैगम्बर मोहम्मद ने अपने पहले कदम दुनिया की तरफ बढ़ाये थे।

यहूदियों की बात की जाये तो इनकी शुरुआत ही जेरुसलम से हुई है। कार्ल मार्क्स के अनुसार धर्म मनुष्यों के लिए एक अफीम के नशे की तरह है जिसके ऊपर चलते हुए मनुष्य कुछ करने को तयैर रहते हैं। धर्म को मुद्दा बना कर इस दुनिया में बहुत सी लड़ाइयों लड़ी गई हैं।

टेम्पल माउंट की 35 बर्ग एकड़ भूमि

ऐसी ही एक लड़ाई है पलेस्टाइन और इजराइल की। इन दोनों की लड़ाई मुख्य तौर पर इस 35 बर्ग एकड़ की जगह के लिए है जिसे जेरुसलम कहा जाता है।

ये एक बहुत ही पवित्र जगह है और इसके महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दुनिया के 3 बड़े धर्म यहूदी, ईसाई और मुस्लिम इस 35 बर्ग एकड़ जगह के लिए लड़ रहे हैं।

कहाँ पर स्थित है टेम्पल माउंट

जेरुसलम शहर के बहुत ही पुराने हिस्से में एक पहाड़ी के ऊपर एक त्रिकोणीय चबूतरा है। ये जगह कुल मिला कर 35 बर्ग एकड़ है।

इसी जमीन पर तीनो धर्म अपना दावा करते हैं। ये टेम्पल माउंट के नाम से जानी जाती है और मुसलमान इसे हरम अल शरीफ कहते हैं।

जेरुसलम को लेकर ईसाईयों, मुसलमानो और यहुदिओं की मान्यताएं

यहूदियों का कहना है कि यहीं पर उनके ईश्वर ने पवित्र मिट्टी से दुनिया के पहले इंसान एडम को बनाया था। वो एडम को इस दुनिया का सबसे पहला आदमी मानते हैं।

और साथ में हजरत इब्राहिम ने यहीं पर अपने बेटे इसहाक को बलि के लिए चुना था और बाद में ईस्वर के एक फरिस्ते ने उन्हें मेमने की बलि देने को कहा था।

इतिहासकारों का मानना है कि यहूदियों के सोलोमन ने 1000 ईशा पूर्व यहाँ पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे यहूदी पहला मंदिर कहते हैं।

आगे चलकर बेबीलोन संस्कृति के लोगो ने इस मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया बाद में 516 ईसा पूर्व में दोवारा यहुदिओं के राजा हेरोड ने इस मंदिर का निर्माण करवाया जिसे यहूदी हेरोड टेम्पल के नाम से जानते हैं इस मंदिर के सबसे अंदरूनी हिस्से को यहूदी होलि ऑफ़ द होलिस कहते हैं।

Western wall या पश्चिमी दीवार पर प्रार्थना क्यों करते हैं यहूदी

होलि ऑफ़ द होलिस की जगह इतनी पवित्र थी कि यहाँ पर आम यहूदियों का जाना बर्जित था इस मंदिर में केवल कुछ खास पुजारी ही जा सकते थे।

ये मंदिर 600 सालों तक बना रहा। उसके बाद 70 ईस्वी में रोमन साम्राज्य ने जेरुसलम पर आक्रमण कर दिया और हेरोड मंदिर को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।

लेकिन इसके बाद भी इसकी एक दिवार बच गई जो आज भी मौजूद है जिसे वेस्टेन वाल के नाम से जाना जाता है। यहूदी मानते हैं कि ये दिवार हेरोड मंदिर की बाहरी इमारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

Western-Wall
Western-Wall

लेकिन यहुदिओं को ये नहीं पता था कि उनका यहूदी होलि ऑफ़ द होलिस कहाँ पर था क्यूंकि आम लोगो को कभी भी मंदिर के उस हिस्से में जाने नहीं दिया जाता था।

यहूदी लोग इस पवित्र जगह पर पैर नहीं रख सकते थे। इसलिए आज भी यहूदी ऊपरी हिस्से में अपने पैर नहीं रखते और यहूदी केवल वेस्टन वाल के बाहरी हिस्से में प्रार्थना करते हैं। क्यूंकि वो नहीं जानते कि होलि ऑफ़ द होलिस कहाँ है।

मुस्लमान टेम्पल माउंट को क्या कहते हैं मुसलमानो का टेम्पल माउंट पर अधिकार

मुसलमानों की बात की जाये तो इस 35 बर्ग एकड़ की भूमि को मुसलमान हरम अल शरीफ के नाम से पुकारते हैं और इसी भूमि के अंदर मुसलमानो की अल अक्सा मस्जिद है।

मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थान है मक्का इसके बाद नंबर आता है मदीना का और तीसरे नंबर पर नंबर आता है हरम अल शरीफ का।

कुरान में लिखा हुआ है कि सन 621 में एक रात पैगम्बर मोहम्मद एक उड़ने वाले घोड़े जिसका नाम बुराक था के ऊपर बैठकर मक्का से हरम अल शरीफ आये। यहीं से उन्हें जन्नत का रास्ता दिखा और वो जन्नत में चले गए।

अल-अक्सा-मस्जिद
अल-अक्सा-मस्जिद

वहाँ पर अल्लाह ने उन्हें कुछ हुक्कम दिए जिनमे इस्लाम के कुछ नियम शामिल थे जैसे दिन में 5 बार नमाज पढ़ना इत्यादि। 632 ईस्वी में पैगम्बर मोहम्मद की मृत्यु हो गई।

उसके 4 साल बाद मुसलमानो ने उनके बताये गए निर्देशों के अनुसार जेरुसलम पर आक्रमण कर दिया। उस समय जेरुसलम में वीजान्टिन साम्राज्य का शासन था जिसे ईस्टन रोमन साम्राज्य भी कहा जाता है। इस लड़ाई में यहूदी हार गए और मुसलमानो ने जेरुसलम को जीत लिया

इसके बाद आगे उमय्यद खलीफाओं ने 8वी शताब्दी में इस जगह पर अल अक्सा मस्जिद का निर्माण करवाया। अक्सा एक अरेबिक शव्द है जिसका मतलब होता है सबसे दूर।

अल अक्सा मस्जिद के सामने एक सुन्दर ईमारत है जिसका सुनहरा गुम्बद है इसी ईमारत को डोम ऑफ़ द रॉक कहा जाता है।

मुसलमान मानते हैं कि सन 621 में जब मोहम्मद पैगम्बर ने जेरुसलम में जहाँ पर अपना सबसे पहला पैर रखा वो पवित्र स्थान अल अक्सा मस्जिद है और जिस जगह से होते हुए वो जन्नत चले गए वो जगह है डोम ऑफ़ द रॉक्स।

डोम ऑफ़ द रॉक्स के साथ में ही डोम ऑफ़ द चेन है। जहाँ पर एक चेन बंधी हुई है मुसलमानों की ये मान्यता है कि क़यामत के दिन जब मुर्दे अपनी कब्र से उठ खड़े होंगे उस दिन जिन्होंने अच्छे कर्म किये होंगे वो जन्नत में जायेंगे परन्तु जिन्होंने अच्छे कर्म नहीं किये होंगे वो इसी चेन से वापस हो जायेंगे।

ये अल अक्सा मस्जिद और डोम ऑफ़ दा रॉक्स और डोम ऑफ़ द चेन उसी त्रिकोणीय 35 बर्ग एकड़ भूमि पर है जिसको यहूदी अपने पुराने मंदिर की जगह मानते हैं।

जेरुसलम को लेकर ईसाई समाज की मान्यता

ईसाई लोग मानते हैं की जेरुसलम ही वो जगह है जहाँ पर ईसा मसीह ने अपना पहला उपदेश दिया था। यहीं पर उनको शूली पर चढ़ाया गया था।

और यही वो जगह है जहाँ पर वो दोवारा जी उठे थे। ईसाई ये मानते हैं कि ईसा मसीह एक दिन दुनिया में फिर से वापस आएंगे और उनकी इस दूसरी यात्रा में जेरुसलम का एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।

इस प्रकार जेरुसलम सबसे पहले यहूदियों की जमीन थी क्यूंकि उनका इतिहास ईसाई और मुसलमान दोनों से ही पुराना है। इन यहूदियों पर पहले आक्रमण किया रोमन साम्राज्य ने और काफी समय तक इनका जेरुसलम पर शासन रहा।

इसके बाद आये मुस्लिम, इन्होने रोमन को हराकर जेरुसलम पर अधिकार किया। इसके बाद दौर आया क्रूसेड का।

क्रूसेड युद्ध किसे कहते हैं ।कैसे हुई बक्फ बोर्ड सस्था की स्थापना

ईसाईयों ने इस पवित्र जगह को प्राप्त करने के लिए 8 लड़ाइयाँ लड़ी उनको ही क्रूसेड युद्ध के नाम से जाना जाता है। पहला युद्ध जुलाई 1096-1099 में लड़ा गया जिसमे ईसाईयों की विजय हुई और उन्होंने जेरुसलम पर अपना कब्जा हासिल कर लिया।

फिर कुछ समय बाद दूसरा युद्ध 1147-1149 में लड़ा गया। जिसमे मुस्लिम ने जेरुसलम पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। इस समय मुस्लिम ने हरम अल शरीफ को नियंत्रित करने के लिए वक़्फ़ बोर्ड के नाम से एक इस्लामिक संस्था बनाई। ये संस्था आज भी वहाँ पर काम कर रही है

अब जेरुसलम में पूरी तरह से मुस्लिम का कब्ज़ा था और उन्होंने यहाँ पर गैर मुसलमानो के आने पर रोक लगा दी। इजराइल के गठन से पहले तक यहाँ पर केवल मुस्लिम का ही कव्जा था।

इजराइल के गठन के बाद गैर मुसलमानो को थोड़ी राहत मिली है और वो एक दरवाजे से निश्चित नियमो के तहत अंदर जा सकते हैं।

इस मंदिर की भूमि के अंदर जाने के 11 दरवाजे हैं जिनमे से 10 दरवाजो से केवल मुसलमान ही अंदर जा सकते हैं। केवल एक दरवाजे से बाकि धर्म के लोग कुछ निश्चित नियमो के तहत अंदर जा सकते हैं।

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