कैसे एक अफवाह जंगल की आग की तरह फ़ैल सकती है इसका प्रमाण है 1857 की क्रांति। हालांकि ये अफवाहें लोगों के दिलों में जो पहले से ही होता है उनको भड़काने का काम करतीं हैं।
1857 की क्रांति के बहुत से कारण थे मसलन लार्ड डलहौजी की हड़प नीति, नाना साहिब और झाँसी की रानी की पेंशन बंद करना, भारतीय सेनिको यूरोपीय सैनकों के मुकाबले कम बेतन, भारतीय शिक्षा प्रणाली का अंत, भारतियों को ईसाई बनाने का प्रयास आदि परन्तु इसके कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी थे जिसने 1857 की क्रांति को भड़काने का काम किया।
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Toggle1857 की क्रांति के मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Reasons of 1857 revolt )
जिस प्रकार 1990 के आस पास लोगों में ये विश्वास हो चला था कि 2000 में दुनिया ख़तम हो जाएगी उसी प्रकार 1857 की क्रांति के समय एक भविष्यवाणी का प्रचार बहुत जोरो शोरों से हुआ।
इसने लोगों को मनौवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत अधिक प्रभावित किया। इसके अनुसार भारत अपने गुलामी के 100 वर्षों के पश्चात् स्वतंत्र हो जायेगा।
1757 ई. में प्लासी युद्ध में अंग्रेजों ने भारत में अपने साम्राज्य की स्थापना की। अतः लोगों को यह विश्वास हो गया कि 1857 ई. तक भारत अवश्य स्वतंत्र हो जायेगा।
अनेक देशभक्तों ने अंग्रेजों के विरुद्ध इस भविष्यवाणी का प्रचार किया। नाना साहब, झांसी की रानी, जीनत महल आदि विद्रोह का प्रचार गुप्त रूप से कर रहे थे।
भविष्यवाणी तथा गुप्त प्रचार ने मिलकर विद्रोह के लिये मनोवैज्ञानिक आधार तैयार किया।
1857 की दमदम की घटना
जनवरी 1857 ई. में दमदम के सैनिक छावनी में एक दिन कुछ सैनिक इधर-उधर जा रहे थे। उन्हीं में से एक सैनिक ब्राह्मण था तथा उसके हाथ में एक लोटा भी था।
कुछ सैनिकों ने उससे लोटा मांगा। उसने यह कहकर मना कर दिया कि वह ब्राह्मण है, लोटा दूसरों को देने से अपवित्र हो जायेगा।
इस पर उनमें से एक ने यह कह दिया कि अब किसी प्रकार की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।
शीघ्र ही कम्पनी सरकार ऐसे कारतूस देगी जिसमें गाय तथा सुजर की चर्बी लगी रहेगी। उसका प्रयोग करते ही सभी एक जाति के हो जायेंगे तब किसी को अपने ऊपर गर्व करने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी।
इस प्रकार की बातों को सुनकर हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही जाति के सैनिकों में खलबली मच गई।
लोग सरकार की इस नीति से असंतुष्ट हो गये। जब अंग्रेजों को इस बात की सूचना मिली तो उन्होंने सैनिकों को समझाना आरम्भ कर दिया
परन्तु इसका कोई प्रभाव उन पर नहीं पड़ा। धीरे-धीरे यह असंतोष बढ़ता ही चला गया।
कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी बाली अफवाह
नवीन कारतूस
जिस समय भारत में चारों ओर अंग्रेजों के प्रति असंतोष फैला हुआ था, सरकार ने सैनिकों को एक नये तरह का कारतूस प्रयोग करने के लिये दिए ।
इस कारतूस को प्रयोग करने से पहले दांत से काटना पड़ता था। इस प्रकार के कारतूस थोड़ी ही मात्रा में आये थे, अतः थोड़े से रेजीमेंटों में उसे प्रयोग करने के लिये दिया गया।
इसी समय इन सैनिकों के बीच किसी ने एक अफवाह यह फैला दी कि इनमें सुअर तथा गाय की चर्बी लगी हुई है।
जैसे ही इसकी सूचना इन सैनिकों को मिली वे क्रुद्ध हो उठे। हिन्दुओं के लिये गाय माता के समान पूज्य है, अतः उसकी चर्बी का प्रयोग करना धर्म विरुद्ध था।
स्पष्ट है कि इस कारतूस ने दोनों ही जातियों के धर्म पर आघात पहुंचाया और दोनों ही अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये।
अंग्रेजों तथा अंग्रेजी शासन के विरुद्ध देश में चारों ओर अशांति तथा असंतोष फैला हुआ था। जनता के इस असंतोष से अन्य नेताओं ने लाभ उठाना चाहा।
शीघ्र ही इन लोगों ने मिलकर एक सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई। यह निश्चय किया गया कि 31 मई 1857 ई. को सूर्य की प्रथम किरण के साथ-साथ भारत में क्राति का प्रारम्भ होगा।
यह भारत का केवल दुर्भाग्य था जो समय से पहले ही देश में क्रांति आरम्भ हो गई। दमदम बाली घटना की सूचना धीरे-धीरे सभी सैनिक शिवरों में फैल गई ।
इससे सैनिकों का धैर्य जाता रहा तथा उन लोगों ने अंग्रेजों को इसके लिये दोषी माना। ऐसी सरकार को समाप्त कर देने का भी उन्होंन निश्चय किया।
मंगलापाण्डे नामक एक सैनिक ने 29 मार्च को विद्रोह का झण्डा उठाया।
सेना से बाहर आकर उसने अपने साथियों को विद्रोह करने के लिये ललकारा। उस सैनिक टुकड़ी के अंग्रेज अफसर ने उसे बन्दी बनाने का आदेश सेना को दिया
परन्तु सैनिकों ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसी बीच मंगलपाण्डे ने अपने सेना नायक सार्जेंट मेजर हसन (Major Husson) तथा एक दूसरे अंग्रेज अफसर को गोली मार दी।
कर्नल व्हीलर ने इसकी सूचना तुरन्त जनरल हिर्सी को दी जो कुछ अंग्रेज सैनिकों के साथ परेड के मैदान में अब तक पहुंच चुका था। सैनिक अभी विद्रोह करने से झिझक रहे थे।
इस पर मंगलपाण्डे ने अपने आपको घायल कर लिया। अंग्रेजों ने उसे बन्दी बना लिया तथा आठ अप्रैल को फांसी देने का निश्चय किया। उन्होंने दो रेजीमेंटों को भी भंग कर दिया।
शीघ्र ही मंगलपाण्डे की कहानी सारे भारत में फैल गई। चारों और गुप्त सभायें की जाने लगीं।
अब यह निश्चय किया जाना था कि क्या 31 मई तक रुका जाये अथवा नहीं। अन्त में यही निश्वव किया गया कि जब चिंगारी बारूद पर गिर चुकी है तो विस्फोट को रोकना उचित नहीं होगा।
शीघ्र ही लखनऊ, अम्बाला तथा मेरठ में क्रांति का बिगुल बज उठा और देखते ही देखते सारे देश में क्रांति आरम्भ हो गई।
1857 के विद्रोह के सामाजिक तथा धार्मिक कारण (Social and Religious Causes of 1857 revolt)
धर्म किसी भी समाज में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और किसी के धर्म के साथ छेड़छाड़ होती है तो ये लोगो में एकता बढ़ाने का काम करता है।
धर्म को आधार बनाकर आज भी बहुत से चुनाव जीते जाते हैं। धर्म को आधार बनाकर ही अडोल्फ हिटलर इतना सफल हो गया था।
1857 की क्रांति के समय अंग्रेजो का भारतियों के धर्म में हस्तक्षेप भी इस क्रांति का कारण बना।
1. सती प्रथा का अन्त (Abolition of Sati System)
लार्ड विलियम बैंटिंग ने सती प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी और हत्या के समान अपराध घोषित किया।
इस कार्य को प्रोत्साहन देने वाले व्यक्ति को हत्या के समान अपराध का दण्ड किया जाना निश्चित हुआ। विधवाओं को पुनः विवाह की आज्ञा मिल गयी।
कट्टरपंथी लोगों ने गवर्नर जनरल के इस कार्य को अपने धर्म में अनुचित हस्तक्षेप स्वीकार कर लिया।
वे क्रोधित हो गये तथा अंग्रेजी शासन को उलट देने का अवसर आते ही उसको सहयोग देने को तैयार हो गये।
2. गोदपुत्र लेने की अस्वीकृति (Abolishing the Policy of Adoptation of Lapse)
हिन्दू शासन में गोदपुत्र लेने की स्वीकृति दी गयी है। प्रत्येक निःसन्तान हिन्दू के लिये गोदपुत्र लेना अनिवार्य था।
डलहौजी ने इस पर प्रतिबन्ध लगाकर भारतीयों को विद्रोह के लिए भड़का दिया।
3. अंग्रेजों की जाति-विभेद की नीति (Policy of Racial Discrimination)
अंग्रेजों ने भारत में जातिगत भेदभाव को बढ़ावा दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से प्रशासकों के बीच की खाई को चौड़ी करने का प्रयास किया।
कम्पनी की नौकरी के अनुभवी मेलकम ल्युइन (Malcom Lawin) ने इस संबंध में स्पष्ट रूप से लिखा है-
“समाज के सदस्य की हैसियत से हम दोनों अर्थात् अंग्रेज और हिन्दुस्तानी एक दूसरे से अपरिचित हैं
हमारा एक दूसरे से वैसा ही संबंध रहा है जो मालिकों और गुलामों से होता है।
हमने प्रत्येक ऐसी वस्तु पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया है जिससे देशवासियों का जीवन सुखमय हो सकता था। प्रत्येक ऐसी वस्तु जो कि देशवासियों को समाज में उभार सकती थी अथवा मनुष्य की हैसियत से ऊंचा कर सकती थी, हमने छीन ली।”
मेलकम ल्युइन (Malcom Lawin
4. भारतीय शिक्षा प्रणाली की समाप्ति (Abolition of Indian Educational System)
अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा की अवहेलना की तथा अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार की नींव डाली। अंग्रेजी पढ़ना, अंग्रेजी रहन-सहन, व्यवहार तथा अंग्रेजी सभ्यता को महान समझना भारतीय शिक्षा का अंग बन गया।
इस प्रकार उन्होंने भारतीय शिक्षा का विनाश कर दिया। अतः लोगों के मन में कांति की भावना आना स्वाभाविक था।
5. भारतीयों को ईसाई बनाने का प्रयास (To christianise the Indians)
अंग्रेजों के अनेक कार्यों से हिन्दू और मुसलमान तंग आ चुके थे।
इसके साथ ही उन्होंने लोगों को ईसाई बनाने का भी प्रयास किया। इसके प्रचार के लिए हिन्दू उत्तराधिकार कानून में परिवर्तन कर दिया
अब नए कानून के अनुसार धर्म परिवर्तन करने वाला भी पिता की सम्पति का अधिकारी था।
1857 की क्रांति के राजनैतिक कारण (Political Causes of 1857 revolt)
1. लार्ड डलहौजी की हड़प नीति (Policy of Annexation)
1857 के विद्रोह को भड़काने में डलहौजी की हड़प नीति भी विशेष रूप से उत्तरदायी थी।
वह साम्राज्यवादी गर्वनर जनरल था। ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार उसका मुख्य उद्देश्य था।
साम्राज्य विस्तार के लिये उसने भारतीय राजाओं के पुत्र गोद लेने के अधिकार को समाप्त कर दिया तथा हड़प नीति के तहत उनके राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया।
सतारा, नागपुर, झांसी, जौनपुर, संभलपुर आदि राज्य समाप्त कर दिये गये। अनेक शासकों पर कुशासन का आरोप लगाकर उनके राज्य को हड़प लिया गया।
डलहौजी की इस नीति के कारण भारतीय शासकों में विद्रोह की भावना फैल गयी। उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने का निर्णय किया।
2. मुगल सम्राट का अनादर (Mibehaviour with Mughal Emperor)
यद्यपि मुग़ल साम्राज्य का पतन हो चुका था, फिर भी इसकी एकता 1857-58 तक कायम थी।
अंग्रेज शक्तिशाली हो गये थे। फिर भी मुगल सम्राट की सत्ता की छाया अभी तक भारतीयों के लिए एकता का सूत्र बनी हुई थी। अंग्रेजों ने मुगल सम्राट का आदर करना बन्द कर दिया।
उन्होंने सम्राट को यह धमकी दी कि उनके पुत्र सम्राट नहीं कहलायेंगे।
उनसे यह कहा गया कि शीघ्र ही उसे लाल किला खाली करना होगा। इससे भारतीयों में भय तथा असंतोष की भावना फैल गयी।
3. नाना साहब तथा झांसी की रानी के साथ अन्याय (Unjustice with Nana Sahib and Rani of Jhansi)
पेशवा बाजीराव द्वितीय ने नाना साहब को गोदपुत्र के रूप में अपनाया था। पेशवा ने अपने जीवन का अन्तिम भाग कानपुर के निकट बिठूर में बिताया था।
लाई डलहौजी ने लैप्स सिद्धान्त के अन्तर्गत नाना साहब को पिता की उपाधि तथा वार्षिक पेंशन से वचित कर दिया।
इससे हिन्दुओं की भावनाओं को बहुत अधिक ठेस पहुंची। इसी प्रकार झांसी की रानी के साथ भी अनुचित व्यवहार किया गया।
उनके पति द्वारा लिये गये पुत्र को उत्तराधिकारी नहीं माना गया और झांसी को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। इससे भारतीयों में उत्तेजना फैल गयी।
4. प्रशासन में भारतीयों के सहयोग की उपेक्षा (Negligence of Indian’s Cooperation in Administration)
प्रशासनिक कार्यों में भारतीयों के सहयोग की उपेक्षा की जाती थी। प्रशासन में उनको बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। भारतीयों के इन असंतोषों ने विद्रोह को जन्म दिया।
5. कीमिया और अफगान युद्धों का प्रभाव (Effect of Cremean and Afghan’s War)
1841-42 ई. के युद्ध में अफगानों ने अंग्रेजी सेना को करारी हार दी। क्रीमिया के युद्ध में भी उनकी बुरी दशा हुई।
इससे भारतीयों को विशेषकर भारतीय सैनिकों को यह उत्साह प्राप्त हुआ कि ब्रिटिश शक्ति अजेय नहीं है।
1857 की क्रांति के आर्थिक कारण(Economic Causes of 1857 revolt)
अंग्रेजों ने भारतीय साधनों का प्रयोग इंग्लैण्ड के लिए किया। किसी न किसी का भारतीय सम्पत्ति का इंग्लैण्ड ले जाने का प्रयास किया।
भारत से सस्ता कच्चा माल इंग्लैंड ले जाया जाता था और वहां से तैयार माल बेचने के लिये भारत आता था। इस प्रकार भारतीय उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ जिसके कारण यहां अनेक लोग निर्धन हो गये
2. अंग्रेजों ने धार्मिक भूमि (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों आदि ) पर कर लगाने का प्रयास किया।
प्राचीन काल से यह प्रथा से कि धार्मिक भूमि पर कर नहीं लगाया जाता था ।
यही नहीं, बिना प्रमाण बाली धार्मिक भूमि पर अधिकार भी कर लिया गया। लोगों में इसके कारण रोष फैल गया।
3. स्थायी बन्दोबस्त करते समय अनेक जमींदारों और किसानों की भूमि हड़प ली गई।
4. अंग्रेजों के कारण भारत में बड़े पैमाने पर बेकारी फैल गयी। जब देशी राज्य अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिये गये तो उनके यहां काम करने वाले सैनिक कर्मचारी और अधिकारी बेकार हो गए।
अंग्रेज भारतीयों को बहुत कम नौकरियां देते थे। इन बेकारों ने संगठन बनाया और विद्रोह करने का निर्णय किया।
1857 की क्रांति के सैनिक कारण (Military Causes of 1857 revolt)
ऊपर लिखे सभी कारण 1857 के विद्रोह के लिये पर्याप्त थे परन्तु इनको व्यवहार में लाने के लिये इसमें सैनिकों का शामिल होना आवश्यक था।
सौभाग्यवश उसी समय सेना में भी असंतोष फैल गया। उस असंतोष के मुख्य कारण इस प्रकार थे
अंग्रेजी सेना का गौरव समाप्त हो चुका था। अफगानों के साथ युद्ध में अंग्रेजों की बड़ी दुर्दशा हुई।
भारतीय सैनिकों पर इसका बुरा असर पड़ा और वे अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में शामिल हो गये।
2. अंग्रेजों के प्रति भारतीय सैनिकों का कभी लगाव नहीं था। अत: भारतीय सैनिकों के साथ बहुत अधिक दुर्व्यवहार किया जाता था।
उन्हें कम वेतन दिया जाता था। लार्ड केनिंग द्वारा लागू किये गये नियमों ने भारतीय सैनिकों को और अधिक कुद्ध कर दिया। अब उन्हें डाक खर्च नहीं दिया गया।
विदेशी सेवा से निकाले गये सैनिकों को पेंशन नहीं दी जाती थी। इन सबके फलस्वरूप सैनिक भी विद्रोही हो गये।
3. अंग्रेजी सेना में भारतीय सैनिकों की संख्या बहुत अधिक थी परन्तु धीरे-धीरे उन्हें सेना से निकाल दिया गया। वे सभी बेरोजगार हो गए और सैनिक विद्रोह में शामिल हो गये।
4. अनेक स्थानों पर सेना की सम्पूर्ण शक्ति भारतीयों के हाथ में थी। इन परिस्थितियों ने भारतीय सैनिकों को विद्रोह करने के लिये प्रोत्साहित किया। वे भी विद्रोह में तेजी लाने को तैयार हो गये।
संक्षेपण
क्रांति केवल एक दिन या एक घटना का परिणाम नहीं होती। ये बहुत समय से चले आ रहे शोषण का परिणाम होती है।
1857 की क्रांति में भी कुछ ऐसा ही हुआ। ये भारतियों के मन में बैठा हुआ गुसा ही था जिसे कुछ तात्कालिक कारणों ने क्रांति का रूप दे दिया।
हालाँकि ये क्रांति सफल नहीं रही परन्तु इसमें अंग्रेजी साम्राज्य के मन में भय जरूर पैदा कर दिया। जिसके बाद भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन के हाथों में चला गया।