एक बच्चा जब पैदा होता है तो वो एक कोरे कागज की तरह होता है। उसका परिवार, उसका समाज उस कोरे कागज पर जो लिख देता है वो उस बच्चे के जीवन मूल्य बन जाते हैं ।

फिर वो बिना कुछ सोचे समझे, अपने उन जीवन मूल्यों को सच साबित करने के लिए उम्र भर लड़ाई करता है। वो जीवन मूल्य जो उसके अपने कभी थे ही नहीं।

हिन्दू घर में पैदा हुआ बच्चा नमस्ते बोलेगा । मुस्लिम घर में पैदा हुआ बच्चा, सलाम बोलेगा। ईसाई घर में पैदा हुआ बच्चा गुड मॉर्निंग, आफ्टरनून या इवनिंग, बोलेगा तथा जैन धर्म में पैदा हुआ बच्चा जय जिनेंद्र बोलेगा।

उस परिवेश के अनुसार जो उसके दिमाग पर छप गया वो वैसे ही व्यवहार करेगा। तो बात करते हैं तालिबान की।

पश्तो भाषा में, तालिबान का अर्थ होता है “छात्र”तालिबान एक कट्टरपंथी “सुन्नी” इस्लामी संगठन है जिसका जन्म 1990 के दशक की शुरुआत में अफगानिस्तान में हुआ।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा से लगे क्षेत्रों में स्थित मदरसों ने तालिबान नामक संगठन को जन्म दिया । इन मदरसों में छात्रों को कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा की शिक्षा दी जाती थी। सोवियतअफगान युद्ध के दौरान अनाथ हुए कई अफगान बच्चों ने इन मदरसों (धार्मिक स्कूलों) में शरण ली और तालिबान के शुरुआती सदस्य बने।

अफगानिस्तान में सोबियत – अफगान (1979 से 1989 तक ) युद्ध क्यों हुआ था

1978 में अफगानिस्तान में एक कम्युनिस्ट क्रांति हुई, जिसके परिणामस्वरूप पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्तान (PDPA) सत्ता में आई। यह सरकार सोवियत संघ के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई थी।

PDPA सरकार के खिलाफ अफगानिस्तान में इस्लामी मुजाहिदीन समूहों ने विद्रोह शुरू कर दिया। अफगान मुजाहिदीन को संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, सऊदी अरब और अन्य देशों से वित्तीय और सैन्य सहायता मिली

जिसमें हथियार और प्रशिक्षण भी शामिल थे। कई मुस्लिम स्वयंसेवक भी दुनिया भर से अफगानिस्तान आकर मुजाहिदीन में शामिल हुए, जिन्हें “अफगान अरब” कहा जाता था।

सोवियत संघ ने PDPA सरकार को बनाए रखने और क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए अफगानिस्तान में अपनी सेनाएं भेजीं और अफगान सेना के साथ मिलकर मुजाहिदीन के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

यह युद्ध एक लंबा और खूनी संघर्ष था जिसमें लाखों अफगानों की जान गई और देश बुरी तरह से तबाह हो गया। सोवियत संघ को भी इस युद्ध में भारी नुकसान हुआ और 1989 में उन्हें अपनी सेनाएं वापस बुलानी पड़ीं।

1991 में सोवियत संघ का बिघटन हो गया जिसके मुख्य कारणों में ये युद्ध भी शामिल था। इस प्रकार सोवियत – अफगान युद्ध ने ,अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और बाद के संघर्षों की नींव रखी जिससे तालिबान का उदय हुआ ।

नोट :- सोवियत संघ (1922-1991) , रूसी साम्राज्य के विघटन के बाद स्थापित हुआ था ये 15 सोवियत समाजवादी गणराज्यों का एक संघ था । जिसमें सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य (Russian SFSR) था। ये एक एकल-पार्टी राज्य थी जिस पर कम्युनिस्ट पार्टी का शासन था। 1991 में इसके टूटने का एक मुख्य कारण सोवियत – अफगान (1979-1989) संघर्ष भी था।

मुजाहिदीन :– मुजाहिदीन (Mujahideen) एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है “संघर्ष करने वाले” या “जिहाद करने वाले”। “जिहाद” शब्द का भी अर्थ “संघर्ष” या “प्रयास” है। मुजाहिदीन” शब्द का व्यापक उपयोग 1979 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद शुरू हुआ। अफगान इस्लामी लड़ाकों के नेतृत्व वाले गुरिल्ला समूहों ने सोवियत सेना और सोवियत समर्थित अफगान कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें “मुजाहिदीन” कहा गया। जिहाद शब्द का एक लम्बा इतिहास रहा है।

1989 में सोवियत संघ की वापसी- तालिबान का गठन कब और किसने किया था

सोवियत संघ खुद आंतरिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से जूझ रहा था जिससे उसे अफगानिस्तान में युद्ध को जारी रखना मुश्किल हो गया। साथ में सोवियत आक्रमण की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत निंदा हुई और संयुक्त राष्ट्र द्वारा, उनकी अफगानिस्तान से तत्काल वापसी की मांग की गई ।

1989 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं वापस बुला लीं और 1990 में, अफगानिस्तान में, तालिबान नामक एक नया समूह उभरा जिसमें कई पूर्व मुजाहिदीन लड़ाके शामिल थे।

ये समूह उन धार्मिक छात्रों से बना था जिन्होंने अफगानिस्तान-सोवियत युद्ध के दौरान मुजाहिदीन के साथ लड़ाई लड़ी थी। तालिबान ने अधिकांश अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया।

मुजाहिदीन ने 1992 में अफगान कम्युनिस्ट सरकार को उखाड़ फेंका। लेकिन साथ में, विभिन्न मुजाहिदीन गुटों के बीच सत्ता के लिए आपसी संघर्ष शुरू हो गया और अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया।

जिसके परिणामस्वरूप, अफगानिस्तान में अराजकता तथा भ्रष्टाचार फैला और कानून व्यवस्था का पतन हो गया । आम नागरिक त्रस्त थे और शांति एवं स्थिरता की तलाश में थे।

मुल्ला मोहम्मद उमर, जो एक स्थानीय मौलवी और मुजाहिदीन कमांडर थे उन्होंने धार्मिक छात्रों के एक छोटे से समूह को संगठित किया जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामी कानून (शरिया) स्थापित करना और देश को अराजकता से मुक्त करना था और इस प्रकार वो तालिबान के संस्थापक और पहले नेता बने।

तालिबान ने शुरुआती दिनों में स्थानीय आबादी से कुछ समर्थन प्राप्त किया क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार को खत्म करने, कानून व्यवस्था बहाल करने और सड़कों को सुरक्षित बनाने का वादा किया था।

1994 में, तालिबान ने कंधार शहर पर कब्जा कर लिया । इसके बाद, उन्होंने तेजी से अफगानिस्तान के अधिकतर हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया। 1996 में, उन्होंने राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया और “इस्लामी अमीरात ऑफ अफगानिस्तान” की स्थापना की।

अपने शासन के दौरान (1996-2001), तालिबान ने इस्लामी कानून की एक कठोर व्याख्या लागू की। महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से लगभग पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया, लड़कियों के लिए शिक्षा बंद कर दी गई और सख्त ड्रेस कोड लागू किए गए।

संगीत, टेलीविजन और कई अन्य प्रकार के मनोरंजन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। तालिबान ने मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी नीतियों की व्यापक रूप से आलोचना हुई।

अमेरिका पर 9/11 के हमले के बाद तालिबान का पतन

11 सितंबर 2001 को संयुक्त राज्य अमेरिका पर आतंकवादी हमले हुए जिसमें अल-कायदा का हाथ था। तालिबान पर अल-कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन को शरण देने का आरोप लगा। अमेरिका ने तालिबान से बिन लादेन को सौंपने की मांग की जिसे तालिबान ने अस्वीकार कर दिया।

इसके परिणामस्वरूप, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया। 2001 के अंत तक “तालिबान” को सत्ता से बेदखल कर दिया गया।

तालिबान की फिर से सत्ता में वापसी

सत्ता से बेदखल होने के बाद भी, तालिबान ने अफगानिस्तान में एक मजबूत विद्रोह बनाए रखा। उन्होंने अमेरिकी और नाटो बलों और अफगान सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। वर्षों तक चले इस संघर्ष में हजारों लोग मारे गए।

अगस्त 2021 में, अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं की वापसी के बाद, तालिबान ने एक बार फिर तेजी से अफगानिस्तान पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। उन्होंने काबुल पर कब्जा कर लिया और एक बार फिर “इस्लामी अमीरात ऑफ अफगानिस्तान” की घोषणा की।

निष्कर्ष

तालिबान का उदय, अफगानिस्तान के दशकों के युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी हस्तक्षेप का प्रत्यक्ष परिणाम था। धार्मिक छात्रों (जिन्होंने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मदरसों में शिक्षा ग्रहण की थी) के एक छोटे से समूह के रूप में शुरू होकर, तालिबान ने अराजकता और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन के रूप में लोकप्रियता हासिल की।

हालांकि, उनके कठोर शासन और मानवाधिकारों के उल्लंघन ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया। 2021 में सत्ता में उनकी वापसी ने अफगानिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए कई गंभीर चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। तालिबान को आतंकवाद और मानवाधिकारों के उल्लंघन के इतिहास के लिए जाना जाता है।

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तालिबान का वर्तमान नेता कौन है

2016 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मुल्ला मंसूर की हत्या के बाद, तालिबान संगठन की कमान उनके डिप्टी मौलवी हिब्तुल्लाह अख़ुंज़ादा के हाथों में आ गई इस समय वो ही तालिबान का नेतृत्व कर रहे हैं।