इंडिया गेट और गेटवे ऑफ़ इंडिया दोनों ही भारत के ऐतिहासिक स्मारक हैं। इंडिया गेट जहाँ दिल्ली में है वहीँ गेट वे ऑफ़ इंडिया मुंबई में स्थित है परन्तु अक्सर लोग इन दोनों इमारतों को एक ही समझने की भूल कर जाते हैं क्यूंकि गेट और इंडिया दोनों ही स्मारकों के नाम के साथ जुड़ा हुआ है।
ये दोनों स्मारक किस उदेस्य को ध्यान में रखकर बनाये गए थे अगर इस बात की जानकारी हो तो दोनों में अंतर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है। पहले बात करते हैं इंडिया गेट की।
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Toggleइंडिया गेट क्यों बनाया गया था
ये बात प्रथम विश्व युद्ध की है जो 28 जुलाई 1914 से लेकर 11 नवंबर 1918 के बीच में लड़ा गया था। उस समय भारत, ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा था। ये ब्रिटेन का उपनिवेश (Colony) था।
भारत ने ब्रिटिश उपनिवेश के रूप में प्रथम विश्व युद्ध में भाग लिया। भारत के लगभग 13 लाख सैनिक, अंग्रेजो की तरफ से फ्रांस, बेल्जियम, मेसोपोटामिया ( आज का ईराक), मिस्र, फिलस्तीन, तुर्की, पूर्वी अफ्रीका तथा चीन आदि देशों में जाकर लड़े थे।
इस युद्ध में भारतीय सैनिको को 11 रूपये मासिक बेतन दिया जाता था जो ब्रिटेन के सैनिकों के मुकाबले काफी कम था। इस बेतन को प्रथम विश्व युद्ध ख़तम होते होते बढाकर 20 रूपये प्रति मासिक कर दिया गया था।

इस युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से लड़ते हुए भारत के लगभग 70,000 सैनिक मारे गए थे। 67000 के लगभग घायल हुए थे जिनमे से बहुत स्थाई रूप से अपंग हो गए थे
और 10000 के लगभग लापता हो गए थे जिनमे से काफी युद्ध बंधकों के रूप में लापता हुए थे । ये जानकारी दिल्ली सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है।
उसके बाद जब सन 1919 में तीसरा एंग्लो – अफगान (ब्रिटिश-अफगानिस्तान) युद्ध हुआ जो मई 1919 से लेकर अगस्त 1919 तक चला था।
इस युद्ध में भी भारतीय सैनिक, ब्रिटेन की तरफ से लड़े थे। ये युद्ध रावलपिंडी की संधि के साथ समाप्त हुआ था और इस युद्ध में अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से पूर्ण सवतंत्रता मिल गई थी।
दिल्ली में स्थित इंडिया गेट, प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए 70,000 भारतीय सैनिकों तथा एंग्लो- अफगान (ब्रिटिश-अफगानिस्तान) युद्ध में शहीद हुए भारतीय तथा ब्रिटिश सैनिको की याद में बनाया गया है।
इंडिया गेट की दीवारों पर लगभग 13,300 सैनिकों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी।
ये शिलालेख उन बहादुर पुरुषों के लिए एक मार्मिक श्रद्धांजलि हैं, जिन्होंने देश की सेवा की। इनमे ब्रिटिश और भारतीय दोनों ही सैनिक शामिल हैं।
इंडिया गेट कब बनाया गया था।
इंडिया गेट जिसका निर्माण सन 1931 में पूरा हुआ था। इसकी आधारशिला ( नीव ) 10 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ़ कनॉट जो कि क़्वीन विक्टोरिया के तीसरे बेटे थे, उन्होंने रखी थी।
इसको बनाने का सुझाव बिर्टिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस ने दिया था इन्होने पहले भी कई युद्ध स्मारकों का निर्माण करवाया था। इंडिया गेट का डिज़ाइन पेरिस के आर्क डी ट्रायम्फ से प्रेरित है।
42 मीटर (138 फीट) की ऊँचाई पर स्थित यह मुख्य रूप से लाल और हल्के बलुआ पत्थर से बना है। मेहराब पर फूलों के पैटर्न की बारीक नक्काशी की गई है जबकि शीर्ष पर भारत का शाही मुकुट है। दीवारों पर उन सैनिकों के नाम अंकित हैं जिन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया।
इंडिया गेट पर “अमर जवान ज्योति” को कब स्थापित किया गया था
अमर जवान ज्योति को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में स्थापित किया गया था। 1971 का भारत- पाकिस्तान युद्ध 3 दिसंबर 1971 से 16 दिसंबर 1971 तक चला था ये वही युद्ध था जिससे बांग्लादेश, पाकिस्तान से अलग होकर अस्तित्व में आया था ।
इस युद्ध में भारत के लगभग 3,843 जवान शहीद हुए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन सब वीरों के बलिदान को सम्मान देने और उनकी याद को अमर रखने के लिए इंडिया गेट के नीचे एक शाश्वत लौ स्थापित करने का निर्णय लिया था। 26 जनवरी 1972 को गणतंत्र दिवस के दिन इसकी स्थापना की गई।

अमर जवान ज्योति एक काले संगमरमर का चबूतरा है जिस पर “अमर जवान” लिखा हुआ है। इस पर एक उलटी राइफल रखी है और उस पर एक सैनिक का हेलमेट रखा गया है।
अमर जवान ज्योति को अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में बिलय कर दिया है
अमर जवान ज्योति 2022 तक इंडिया गेट के नीचे जलती रही, 2022 में इसे पास के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक (National War Memorial) में विलय कर दिया गया। दोनों के बीच की दुरी लगभग 1 किलोमीटर है।

राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, जिसका उद्घाटन 25 फरवरी 2019 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था और यह उन सभी 26000 भारतीय शहीदों को समर्पित किया था जो भारत की आजादी (1947) के बाद हुए विभिन्न युद्धों में शहीद हुए हैं।
राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की अमर जवान ज्योति लगातार कैसे जलती रहती है
राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जो अमर जवान ज्योति है यह लौ पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) से जलती है। पहले जब अमर ज्योति इंडिया गेट के नीचे जलती थी तो इसको जलाने के लिए LPG सिलेंडरों का इस्तेमाल किया जाता था । जिसे 2006 में पाइपलाइन से बदल दिया गया।
इंडिया गेट के पास से ही पीएनजी की पाइपलाइन बिछाई गई है। इस प्रकार गैस को पाइपलाइन के द्वारा अमर ज्योति तक पहुँचाया जाता है और निरन्तर सप्लाई मिलने के कारण ये लगातार जलती रहती है।
गेटवे ऑफ़ इंडिया क्यों बनाया गया था
होटल ताज, गेटवे ऑफ इंडिया के ठीक बगल में स्थित है। यही कारण है कि 26/11 के मुंबई हमलों को गेटवे ऑफ इंडिया ने बहुत करीब से देखा था।
दूसरे देशों से आने वाले जहाज़ सबसे पहले मुंबई पोर्ट ट्रस्ट पर पहुँचते हैं।। गेटवे ऑफ इंडिया, मुंबई पोर्ट ट्रस्ट से लगभग 3.5 किलोमीटर दूर है, और इस दूरी को तय करने में करीब 10 मिनट लगते हैं।

1924 में बनकर तैयार हुआ गेटवे ऑफ इंडिया एक मेहराब के आकार का स्मारक है, जो बॉम्बे (अब मुंबई) में अरब सागर के किनारे बना है। इसका निर्माण 1911 में रानी मैरी और किंग जॉर्ज पंचम के भारत दौरे के दौरान उनके आगमन की याद में किया गया था।
गेट वे ऑफ़ इंडिया को बनाने का उदेश्य
गेटवे ऑफ़ इंडिया को बनाने का उदेस्य, 1911 में क्वीन मैरी और किंग जॉर्ज पंचम की बॉम्बे यात्रा का सम्मान करना था। हालाँकि, उनकी यात्रा के समय संरचना तैयार नहीं थी और उन्हें केवल संरचना का एक कार्डबोर्ड मॉडल देखने को मिला। वास्तविक संरचना 1924 में पूरी हुई।
नोट :- किंग जॉर्ज पंचम वही व्यक्ति हैं जिनके बारे में कुछ इतिहासकार मानते हैं कि भारत का राष्ट्रीय गान जन-गण-मन उनके सम्मान में 1911 में गाया गया था।
26 मीटर (85 फीट) ऊंची इस मेहराबदार संरचना का इस्तेमाल भारत में प्रवेश के लिए प्रतीकात्मक “प्रवेश द्वार” के रूप में किया जाता था जिसका इस्तेमाल भारत में शासन करने वाले ब्रिटिश साम्राज्य के वायसराय और गवर्नर करते थे।
इसलिए इसका नाम “गेटवे ऑफ इंडिया” पड़ा। मूल योजनाओं के अनुसार, गेटवे ऑफ़ इंडिया वह पहली संरचना होती जिसे कोई भी व्यक्ति नाव से मुंबई आने पर देखता।
गेटवे ऑफ़ इंडिया का निर्माण कब किया गया
पत्थर की संरचना की आधारशिला 31 मार्च, 1913 को रखी गई थी। जॉर्ज विटेट द्वारा अंतिम डिजाइन को मंजूरी दिए जाने के बाद, स्मारक का निर्माण 1914 में शुरू हुआ और इमारत 1924 में पूरी हुई।
4 दिसंबर, 1924 को भारत के तत्कालीन वायसराय, रुफस डैनियल इस्साक (द अर्ल ऑफ़ रीडिंग) द्वारा इसका उद्घाटन किया गया। मेहराब को स्कॉटिश वास्तुकार जॉर्ज विटेट ने डिजाइन किया था।
गेटवे ऑफ़ इंडिया के निर्माण में कितना खर्च हुआ था
स्मारकीय मेहराब और पूरे प्रोजेक्ट के निर्माण में उस समय लगभग 2 मिलियन भारतीय रुपये खर्च हुए थे। (जो लगभग 31,000 डॉलर था।) लागत का बड़ा हिस्सा भारत की शाही सरकार द्वारा वहन किया गया था।
ऐसा कहा जाता है कि सीमित धन के कारण, गेटवे तक पहुँचने के लिए सड़क कभी नहीं बनाई गई और स्मारक सड़क से एक विषम कोण पर खड़ा है। 15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद, अंतिम ब्रिटिश सैनिकों ने इसी स्थान से देश छोड़ा था।
गेटवे ऑफ़ इंडिया की महत्ता
मूल रूप से किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के भारत में उतरने की याद में बनाया गया यह गेटवे औपनिवेशिक ब्रिटिश साम्राज्य के लिए “शक्ति और महिमा” का प्रतीक था। मुंबई में औपनिवेशिक युग की कई महान संरचनाओं में से एक, आज यह भारत पर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की याद के रूप में खड़ा है।

चूँकि मुंबई का इतिहास समृद्ध नहीं रहा है इसलिए इसकी छवि बनाने के लिए पर्याप्त ऐतिहासिक स्मारक नहीं हैं। ऐसे में गेटवे ऑफ़ इंडिया हमेशा से मुंबई शहर का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व करता रहा है।
निष्कर्ष
चाहे इंडिया गेट हो या गेटवे ऑफ़ इंडिया, दोनों ही अंग्रेजो के समय और अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई सरंचनाएं हैं। ये भारत में ब्रिटिश शासन की याद दिलाती हैं इसलिए इनके साथ भारत का इतिहास जुड़ा हुआ है।
जो लोग इन स्थानों पर घूमे हैं उनको तो इन दोनों इमारतों में अंतर पता होता है परन्तु जिन लोगो ने इन इमारतों को देखा तक नहीं है वो इंडिया गेट और गेटवे ऑफ़ इंडिया को एक मानने की भूल कर जाते हैं। आशा है कि इनमे अंतर पढ़ने के बाद आप लोग ऐसा करने की भूल नहीं करेंगे।
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