आजकल लोग रोजमर्रा की भागदौड़ से परेशान होकर सोशल मीडिया का रुख करते हैं। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, लिंकेडिन, पिंटरेस्ट, स्नेपचैट आदि कितने ही ऐसे तरीके हैं जिससे लोग अपना मनोरंजन करते हैं।

एक बार किसी सोशल मीडिया के साथ जुड़ने के बाद टाइम कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। लेकिन ये सब चीज़ें तो कुछ समय पहले तक नहीं थी। बल्कि दो सदी पहले की ही बात की जाये तो टेलीविज़न और रेडियो भी नहीं थे तो उस समय लोग किस तरह से अपना मनोरंजन करते होंगे।

आज हम ऐसे ही एक मनोरंजन की बात करने जा रहे हैं जिसके लिए उस समय के लोग पागलों की तरह दीवाने थे। हम बात करने जा रहे हैं रोमन साम्राज्य की शान एम्फीथियटर के बारे में और उन सबमे सबसे प्रसिद्ध कोलोसियम के बारे में। जो इस समय दुनिया के 7 अजूबों में सुमार है।

क्या थे एम्फीथियटर

एम्फीथियटर प्राचीन रोमन साम्राज्य में पाए जाने वाले विशाल, अंडाकार खुले मैदान होते थे आजकल के क्रिकेट या फूटबाल स्टेडियम की तरह । ये विशेष रूप से सार्वजनिक मनोरंजन के लिए बनाए गए थे।

इन इमारतों के बीच में एक केंद्रीय अखाड़ा होता था, जिसके चारों ओर सीढ़ीदार सीटें होती थीं जहाँ हजारों दर्शक बैठकर प्रदर्शन देख सकते थे। दुनिया का सबसे प्रसिद्ध एम्फीथियटर रोम में स्थित कोलोसियम है

कोलोसियम क्यों और कैसे बनाया गया था।

कोलोसियम – इस नाम का भी अपना इतिहास है। ये लैटिन भाषा से लिया गया है, जिसका मतलब होता है – जाइगैंटिक (Gigantic) यानि विशाल। इसका एक और पॉपुलर नाम है – फ्लेवियन एम्फीथियेटर। क्योंकि, फ़्लेवियन किंग वेस्पेसियन ने इसे बनवाया था, तो इसे फ्लेवियन एम्फीथियेटर कहा जाने लगा।

70 CE में रोमन और यहूदियों के बीच जो लड़ाई हुई थी, उसमें रोमन सेना ने येरुसलम को घेर लिया था। इस घेराबंदी के दौरान येरुसलम में जमकर लूट-मार की गई, जिससे काफी सारे पैसे मिले।

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लूट के इन्हीं पैसों का इस्तेमाल इस एम्फीथियेटर को बनाने के लिए किया गया था। इसके अलावा युद्ध में हारे यहूदियों को जब बंदी बना कर रोम लाया गया, तो उन्हीं कैदियों से इस एम्फीथियेटर को बनवाने के लिए मज़दूरी करवाई गई।

इस एम्फीथियेटर को बनाने के लिए चूना, लकड़ी, पत्थर, टाइल्स, सीमेंट और मोर्टार का इस्तेमाल किया गया था। भले ही सम्राट वेस्पेसियन इसे बनवाने का काम शुरू किया था, पर जब साल 79 CE वेस्पेसियन की मृत्यु हो गई, तो तीसरी मंज़िल तक बन चुकी इस सरंचना को उनके बेटे टाइटस ने, 80 ईसवी में पूरा करवाया था। 80 ईसवी में जब ये एम्फीथियेटर पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया, तो साल 81 में यहां पर खेलों का उद्घाटन समारोह करवाए गए थे।

कहा जाता है कि जब यहां पर पहली बार खेलों का उद्घाटन समारोह करवाए गए, तो करीब 9 हज़ार जानवरों को मार दिया गया था। इस एम्फीथियेटर का जश्न मनाने के लिए रोमन साम्राज्य में कोलोसियम छपे स्मारक सिक्के जारी किए गए थे। बाद में इस इमारत को वेस्पेसियन के छोटे बेटे और रोम के नए सम्राट डोमिटीयन ने मॉडिफाई करवाया था और इसकी बैठने की क्षमता बढ़वा दी थी।

इससे पहले भी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में एम्फीथियेटर का निर्माण किया गया था। पर कोलोसियम उन सब में अलग था। क्योंकि, इससे पहले पूरी दुनिया में मौजूद एम्फीथियेटर शहर के बाहर बनाए गए थे। पर, ये पहला ऐसा एम्फीथियेटर था, जिसे शहर के बिल्कुल बीचो-बीच बनवाया गया था। इसीलिए आते-जाते लोगों के लिए ये एक चर्चा का विषय बना रहा।

हालांकि, आज तक ये साफ़ नहीं हो पाया है कि सन 80 में जब ये बनकर तैयार हुआ था, तब इस पर कितना ख़र्च आया था। कई विद्वानों का मानना है कि कोलोसियम को बनाने में जो पैसे लगे थे, उसका कुछ हिस्सा पहले रोमन-यहूदी युद्ध से आया था।

रोमन सोल्जर्स ने सन 70 ईसवी में जब इस वॉर को जीता था, तब मंदिरों से लूटी गई चीज़ों को बेच कर जो पैसे आए थे, उन्हीं से कोलोसियम के निर्माण का पैसा एकत्रित हुआ था । कोलोसियम में लिखा हुआ है: सम्राट टाइटस सीजर वेस्पासियन ऑगस्टस ने ये आदेश जारी किया है कि – नए एम्फीथिएटर को लूट से आए पैसों से बनाया जाए।

इतिहासकार एल्किंस मानते हैं कि ये कोलोसियम रोमन यहूदी युद्ध में घायल रोमन सेना के लिए उनके ज़ख्मों पर मरहम की तरह था। इसीलिए रोमन सेना की भावनाओं को देखते हुए वेस्पेसियन ने ऐसा हुक्म दिया होगा।

कोलोसियम की सरंचना कैसी थी

रोमन साम्राज्य की ताक़त, प्रतिष्ठा और क्रूरता के प्रतीक के रूप में आज इटली का कोलोसियम खड़ा है। इसका आकार अंडाकार है। कोलोसियम को ऐसा इसीलिए बनाया गया था, ताकि आप इस एम्फीथियटर के चाहें किसी भी कोने में क्यों ना बैठे हों, आप को वहां से सबसे अच्छा दृश्य ही देखने को मिलता था। कोलोसियम का जो Minor Axis था, वो देखने के लिहाज़ से सब से अच्छी जगह थी।

Minor Axis (माइनर एक्सिस):- एक अंडे को हाथ में लीजिये और उसकी चौड़ाई का जो छोर होता है, उसे Minor Axis कहते हैं।

माइनर एक्सिस पर राजा और उसका परिवार बैठता था, उनके ज़रा पीछे वेस्टल वर्जिन्स (vestal virgins) बैठती थीं, जो महिला पुजारी होती थीं। इनके पीछे सीनेटर्स बैठते थे , फिर घुड़ सवार योद्धा और सब से आख़िर में लकड़ी की सीट पर औरतें और ग़ुलाम बैठते थे।

बैठने की जगह पहले से तय थी और ऐसा वहां की संरचना से पता चलता है, जहाँ ये पहले से लिखा हुआ था कि किसे, कहाँ बैठना है। ये बैठने की व्यवस्था ऐसी थी, जो नीचे से ऊपर जाते हुए कोलोसियम की संरचना को सपोर्ट करती थी।

इसे जान बूझ कर ऐसा बनाया गया था , ताकि आपातकाल के समय पहले राजा और राजपरिवार के साथ-साथ देश चलाने वाले लोग कोलोसियम से बाहर निकल सकें। उच्च बर्ग के लिए बाहर निकलने के रास्ते भले ही कम थे, पर वो इतने बड़े थे कि एक साथ ढेर सारे लोग बाहर जा सकते थे।

यही नहीं कोलोसियम का डिज़ाइन कुछ ऐसा था कि भगदड़ मचने की गुंजाईश बहुत कम थी। आज के आर्किटेक्ट जब इसकी बनावट की बारीकी देखते हैं, तो तब के इंजीनियरिंग की तारीफ़ करते नहीं थकते। भले ही आज लाख-डेढ़ लाख लोगों को मैनेज करना कोई बड़ी बात नहीं लगती, पर सोचिए आज से लगभग दो हज़ार पहले जब 50 हज़ार लोगों की भीड़ जब एक साथ चीयर करती होगी, तो क्या ही नज़ारा होता होगा।

कोलोसियम अपने वक़्त में विश्व में इतना प्रसिद्ध हो गया था कि – जॉर्ज गॉर्डोन बायरन जो एक अंग्रेज कवि थे, उन्होंने अपनी कविता “Childe Harold’s Pilgrimage,में लिखा था

While stands the Coliseum, Rome shall stand;
When falls the Coliseum, Rome shall fall;
And when Rome falls—the World.'”

ग्लैडिएटर की लड़ाई कोलोसियम का सबसे बड़ा आकर्षण

कोलोसियम का सबसे आकर्षण का केंद्र था ग्लैडिएटर की लड़ाई। साथ ही योद्धा जब खुले मैदान में जंगली जानवरों का शिकार करते, तो तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा कोलोसियम गूंज उठता। रथ पर सवार योद्धा भी एक दूसरे से मुक़ाबला करते थे।

वार्म-अप मुकाबले भी यहाँ होते थे । जब भी मैच होते, तो बीच में उच्च बर्ग के लोग लंच करने भी जाते थे। साथ ही लोगो का मनोरंजन करने के लिए और हुकूमत का दबदबा बनाए रखने के लिए यहाँ कैदियों को फांसी भी दी जाती थी।

ऐसा कहा जाता है की रोमन लोग मौत को लेकर बहुत रुचिवान थे। साथ ही ग्लैडिएटर परंपरा को लेकर भी बहुत सारी मान्यताएं थीं। ऐसा माना जाता है कि योद्धा ख़ुद को देवताओं को समर्पित करने के लिए मौत कुबूल कर लेते थे।

साथ ही सज़ा काट रहे लोगों को सीधे फांसी ना देकर उन्हें अखाड़े में उतार दिया जाता और उन्हें आख़री साँस तक लड़ना होता था। जो ये ग्लैडिएटर या रणभूमि के योद्धा होते थे, वो ज़्यादातर युद्ध अपराधी होते थे और उनमें से भी कुछ वैसे थे जिन्हें मशहूर होना था।

कोलोसियम से जुड़ी एक बहुत बड़ी पहेली ये है कि कोलोसियम में बाढ़ लायी जा सकती थी, ताकि अंदर आए पानी में नौसैनिक युद्ध किए जा सकें। इतिहासकार मार्शल ने ऐसी ही एक लड़ाई का ज़िक्र किया था,जो इसके उद्घाटन में हुई थी।

कोलोसियम के नीचे एक अंडरग्राउंड क्षेत्र था, जो 5 से 7 फ़ीट गहरा था। ऊपर जो लकड़ियां बिछी हुई थीं, उन्हें हटा कर अंडरग्राउंड क्षेत्र में पानी भेज दिया जाता। हाल के दिनों में जो रिसर्च हुई हैं, उससे ऐसे सबूत मिले हैं, जो पानी पर हुए युद्धों के सबूत देते हैं।

उस वक़्त वाटरप्रूफ मोर्टार इस्तेमाल नहीं होते थे और जो भी पानी कोलोसियम के अंदर आया होगा, उसे आस-पास की नदी या झील से यहाँ लाया गया था। नौसैनिक युद्ध करने वाले लोग भी क़ैदी हुआ करते थे। जो डूब जाते, उन्हें वैसे भी सज़ा मिल जाती थी और जो बच जाते थे, उन्हें माफ़ी दे दी जाती थी।

रोमन इतिहास में ग्लेडिएटरों का बर्णन

रोमन इतिहास में इस खुनी खेल को बढ़ा-चढ़ा कर बताया गया है, पर आमतौर पर एक दिन में एक या दो योद्धा ही मारे जाते थे। ग्लेडियेटर्स ख़ुद को ज़्यादा आक्रामक और शक्तिशाली दिखाने के लिए मुँह पर मुखौटा और सिर पर हेलमेट पहनते थे। और ऐसी लड़ाई में जो योद्धा वीरगति पाते थे, उन्हें आर्क ऑफ़ लिबिताना से बाहर ले जाया जाता था।रोमन कल्चर में लिबिताना मौत की देवी थीं।

कोलोसियम का जो एरीना था यानी अखाड़ा, जहाँ ये खुनी खेल खेले जाते थे , उस पर रेत की 15 सेंटीमीटर मोटी परत चढ़ी हुई थी। इस रेत को रोमन लैंग्वेज में हरेना कहते थे। इस रेत को कई बार लाल रंग से रंगा जाता था, जो योद्धाओं के खून और वीरता का प्रतीक था। इसे डायरेक्टर रिडली स्कॉट ने अपनी फ़िल्म ग्लैडिएटर में भी दिखाया है।

कोलोसियम में यूँ तो ढेर सारे अलग-अलग ग्लैडिएटर लड़ते थे, पर उनमें भी सबसे प्रसिद्ध रेटियारियस, जो भारी कवच पहने ग्लैडिएटर से लड़ता था। ये एक अंडरडॉग योद्धा था, पर लोग इसे ही लड़ते हुए देखना चाहते थे।

रोमन इतिहास में इसका भी ज़िक्र है कि – टेलीमेकस नाम के एक क्रिस्चियन मोंक ने जब दो ग्लेडियेटर्स को लड़ाई करने से रोका था, तो कोलोसियम में मौजूद भीड़ ने उस मोंक को पत्थर फेंक कर मार डाला था। इस घटना का ऐसा असर हुआ कि – शाही फ़रमान जारी कर के ग्लैडिएटर के युद्ध पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि जानवरों का शिकार और लोगों के मनोरंजन के लिए होने वाली दूसरी लड़ाइयां होती रहीं।

कोलोसियम – पेलेटाइन, केलियन और एस्क्विलिन हिल्स के बीचो- बीच बसा हुआ है। ये इस एरिया की सबसे समतल जगहों में से थी, जो एक घनी आबादी वाला एरिया हुआ करता था।

कोलोसियम सिर्फ़ एक स्टेडियम या अखाड़ा नहीं था, ये रोम के लिए एक सामाजिक स्थिति बन चूका था। लेकिन इसके आर्टिटेक्ट कौन थे ये अभी भी कोई नहीं जानता। शायद उन्हें ये क्रेडिट ही ना दिया गया हो।

मुग़ल सुल्तान शाहजहान की सोच जैसे ताजमहल में झलकती है, उसी तरह कोलोसियम रोमन आर्किटेक्चर और उनके शक्ति को दर्शाता है। अपने बनने के बाद से कोलोसियम लगभग चार सदियों तक अच्छी तरह से इस्तेमाल होता रहा।

कोलोसियम ने रोम में कब अपना आकर्षण खोया

जब पश्चिमी रोमन साम्राज्य अपने दिन गिनने लगा था, तब तक मनोरंजन के लिए लोगों की धारणा बदल चुकी था। कुछ भी कितना भी रोचक क्यों न हो कुछ समय के बाद वो अपनी रोचकता खो देता है।

6th सेंचुरी आते-आते ग्लैडिएटर की लड़ाई में जनता अपनी दिलचस्पी खो चुकी थी। प्राकृतिक आपदाएँ, आकाशीय बिजली, भूकंप और लोगों का इस इमारत से मुंह फेर लेना, इसे बदहाली के उस उम्र में ला चूका था कि ये खंडहर में तब्दील हो चला था।

जैसे-जैसे कोलोसियम वीरान होता गया, वहां की मज़बूत पत्थरों को दूसरे भवन निर्माण में इस्तेमाल के लिए ले जाया जाता रहा। St. Peter और St. John Lateran कैथेड्रल के लिए भी यहाँ से कंक्रीट के टुकड़े ले जाए गए।

18बी सदी तक बहुत से पोप आए, जिन्होने इसके संरक्षण पर ध्यान दिया, क्योंकि ये एक पवित्र स्थल माना जाता था, जहाँ बहुत से लोग शहीद भी हुए थे। पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ती इसकी प्रसिद्धि के चलते 1990 के दशक में, जब इटली की सरकार ने इस पर ध्यान दिया, तब तक इसका दो-तिहाई हिस्सा नष्ट हो चूका था। बैठने वाली पंक्तियों में लोगों के बैठने वाले मार्बल सीट और दूसरी चीज़ें लगभग ग़ायब हो चुकी थी ।

कोलोसियम रोम के लिए भले ही एक स्मारक था, पर रोमन एम्पायर के लिए ये उसकी गाथा थी। यहाँ से निकली गूंज दुनिया भर में फैले रोमन साम्राज्य के लिए एक शाही फ़रमान थी, जो हर गुज़रते दिन के साथ बताती का रोम से टकराने वाले ख़ाक में मिल जाते हैं। रोम में ऐसे ढेरों कोलोसियम थे, जो रोम के अमीर लोगों की फंडिंग पर चलते थे। पर फ्लेवियन एम्फीथियेटर को सीधे रोमन सम्राट की सरपरस्ती (support) हासिल थी।