टीवी पर एक विज्ञापन आता है संडे हो या मंडे रोज खाएं अंडे। अंडा हमारे शरीर में प्रोटीन, विटामिन और मिनरल की कमी को पूरा करता है। लेकिन जब हम इन अंडो को खाते हैं या उस मांस को खाते हैं जो किसी मुर्गी को काटकर परोसा जाता है।

तो क्या हम उस मुर्गी के बारे में सोचते हैं जिसने अंडा दिया या अपनी जीभ के स्वाद के लिए हमने जिसकी जान ले ली। किसी की जान लेना तो फिर भी ठीक है पर जिस तरह की अमानवीय यातनाओं से मुर्गी गुजरती है –
पॉल मक्कार्टनी (Paul McCartney) ने तो यहाँ तक लिखा है कि “अगर बूचड़खाने काँच की दीवारों से बने होते, तो हर कोई शाकाहारी होता।”
बास्तव में धरती पर अगर नर्क देखना हो तो एक बार उन फार्म का दौरा जरूर करना चाहिए जहाँ पर जानवर, मांस के लिए , दूध या दूध से बने किसी भी प्रोडक्ट के लिए या अंडो के लिए पाले जाते हैं। इस प्रकार हर वो इंसान जो पैकेट वाला दूध ही क्यों न पीता हो वो मांसाहारी की श्रेणी में ही आता है।
मतलब साफ़ है “फैक्ट्री फार्मिंग से बुरा कुछ नहीं — यहां तक कि युद्ध भी नहीं।” Leo Tolstoy के अनुसार -“जब तक बूचड़खाने हैं, तब तक युद्धभूमियाँ भी रहेंगी।“
Battery Cages (बैटरी पिंजरे) वो जगह है जहाँ अंडा देने वाली मुर्गियाँ (Layer Hens) 24 घंटे बंद रखी जाती हैं — इतनी तंग जगह में कि वे अपने पंख तक नहीं फैला सकतीं। उन्हें ज़बरदस्ती प्रकाश/अंधकार में रखा जाता है ताकि वे तेज़ी से अंडे दें।
पिंजरों में रगड़ते-रगड़ते उनके पंख झड़ जाते हैं, पंजे कट जाते हैं और कई बार वे अपने ही मल-मूत्र में जीती हैं। उनकी मौत तब होती है जब अंडा देने की क्षमता कम हो जाती है — तब वे या तो मार दी जाती हैं या सस्ते मांस के लिए बेच दी जाती हैं।
आज का पोल्ट्री फार्म एक ऐसा “मास प्रोडक्शन यूनिट” बन चुका है, जहाँ मुर्गियाँ सिर्फ प्रोडक्ट हैं, प्राणी नहीं। मुर्गियों को स्टेरॉयड और हार्मोन दिए जाते हैं ताकि वे जल्दी बड़ी हों और मोटा मांस दें। वो इतनी मोटी हो जाती हैं कि अपने वजन से खड़ी नहीं रह पातीं।
उनकी चोंच को गर्म ब्लेड से काट दिया जाता है ताकि वे एक-दूसरे को चोंच न मारें – क्योंकि वे तनाव में एक-दूसरे को घायल कर देती हैं। मुर्गियों की पॉल्ट्री फार्म में क्या हालत होती है ये जानने से पहले हम ये जान लेते हैं कि जो मुर्गियाँ जंगल में पलती हैं उनकी दैनिक दिनचर्या कैसी रहती है।
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Toggleएक आम मुर्गी जो जंगल में पलती है उसकी दैनिक गतिविधियाँ क्या होती हैं
मुर्गी को घड़ी के समतुल्य माना जाता है क्यूंकि ये हर काम समय के अनुसार करती है जो मुर्गी जंगल में पलती हैं उनकी दैनिक दिनचर्या इस प्रकार होती है।

5:00–6:00 AM | सूरज के साथ उठना, बांग देना ( मुर्गे का काम ), झुंड के साथ बाहर आना |
6:30–9:00 AM | जमीन में चुगना: कीड़े, दाने, घास, छोटी चीजें ढूंढना |
9:00–11:00 AM | घूमना, मिट्टी में लोटना (Dust Bath)(इससे इनके पंख मजबूत होते है ), एक-दूसरे से खेलना |
11:00 AM–1:00 PM | अंडा देना (अधिकतर मुर्गियाँ इसी समय अंडे देती हैं) |
1:00–2:00 PM | आराम करना, छांव में बैठना या आंखें मूंदना |
2:00–4:00 PM | फिर से चुगना, मिट्टी खोदना, कीड़े ढूंढना |
5:00–6:30 PM | दिन का आख़िरी चुगना, |
6:30–7:00 PM | सोने की तैयारी |
7:00 PM के बाद | पूरी तरह चुप, आराम और नींद |
पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों पर अत्याचार
पोल्ट्री फार्म में 2 तरह की मुर्गियों को पाला जाता है।
- ब्रॉयलर – इनको मांस के लिए पाला जाता है।
- लेयर – इनको अंडो के लिए पाला जाता है।
पहले बात करते हैं उन मुर्गियों की जिनको अंडो के लिए पाला जाता है। मुर्गियां 2 तरह से अंडे देती हैं एक मुर्गे के साथ मेटिंग करके और दूसरा, मुर्गे के बिना। मुर्गियों की ये खास प्रकृति ही उनके इस शोषण का कारण बनती है। बाजार में जो अंडे मिलते हैं वो बिना मुर्गे के तैयार हुए अंडे होते हैं। और ये अंडे जल्दी ख़राब भी नहीं होते।
नोट :- अनिषेचित अंडे (Infertile Eggs) वो अंडे होते हैं जिन्हे मुर्गी बिना मुर्गे के साथ मेटिंग के देती है। इनमें कोई भ्रूण (embryo) नहीं होता, इसलिए इसको जिस मर्जी प्रोसेस से गुजार लिया जाये इनसे चूजा तयैर नहीं हो सकता। यह एक तरह से मुर्गी के शरीर की नियमित प्रक्रिया है — जैसे महिलाओं में मासिक चक्र। अंडा हर 24–26 घंटे में बनता है, चाहे मेटिंग हो या न हो। मतलब पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों को अंडो के लिए बार बार मासिक चक्र से गुजारा जाता है।
निषेचित अंडे (Fertile Eggs) वो अंडे होते हैं जो अंडे मादा मुर्गी तब देती है जब उसका नर मुर्गे के साथ मेटिंग (संयोग) होता है। इनमें भ्रूण (embryo) होता है। इन्हें अगर सेटने (incubate) के लिए सही तापमान और नमी मिले तो 21 दिन में चूजा निकल सकता है।
दोनों तरह के अंडे खाने में एक जैसे ही होते हैं बस अनिषेचित अंडे ज्यादातर ख़राब नहीं होते जबकि निषेचित अंडे कुछ समय के बाद ख़राब होने लग जाते हैं क्यूंकि उनका भ्रूण बिकसित होने लग जाता है।
पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों पर अंडों के लिए किए जाने वाले अत्याचार
1 बैटरी पिंजरे (Battery Cages)
व्यावसायिक अंडा उत्पादन में मुर्गियों को छोटे-छोटे पिंजरों में बंद कर दिया जाता है जिन्हें “बैटरी केज” कहा जाता है। एक पिंजरे में कई मुर्गियाँ होती हैं और हर मुर्गी को मुश्किल से A4 साइज के कागज जितनी जगह मिलती है।
वहाँ वे न तो अपने पंख फैला सकती हैं, न ही सीधी खड़ी हो सकती हैं। इनके पंख पिंजरे से टकराकर लगभग टूट जाते हैं और इनका मांस सामने नज़र आता है। यह उनकी हड्डियों में दर्द, जख्म और मानसिक तनाव का कारण बनता है। जो मुर्गियाँ कमजोर होती हैं वो कोने में पड़ी रहती है और दूसरी मुर्गियां उन पर चढ़ जाती है क्यूंकि केज में जगह कम होती है।
Jonathan Safran Foer ने अपनी किताब Eating Animals में लिखा: (“हमने जानवरों को मशीन और फार्म्स को नर्क में बदल दिया है।”)

मजबूरी में भूखा रखना (Forced Molting)
मुर्गियां हर साल एक विशेष प्रक्रिया से गुजरती हैं जिसे विज्ञान की भाषा में मोल्टिंग कहा जाता है इसमें इनके शरीर के पंख झड़ने लगते हैं (विशेषकर गर्दन, पूँछ, और पीठ से)। मुर्गी अपने पुराने पंखो को गिराकर नए पंख बिकसित करती है।
इस दौरान मुर्गी का शरीर अंडा देना बंद कर देता है या कम कर देता है, क्योंकि सारी ऊर्जा नए पंख बनाने में जाती है। ये प्रक्रिया अक्सर सर्दियों से पहले हर साल होती है। इसमें इनका शरीर पुनर्जनन की प्रक्रिया से गुजरता है और मोल्टिंग के बाद मुर्गियां फिर से अंडे देना शुरू कर देती हैं।
जब पोल्ट्री फार्म में मुर्गियों द्वारा अंडो का उत्पादन कम हो जाता है तो वहां पर इनको जबरन मोल्टिंग (Forced Molting) करवाई जाती है ताकि वो अंडे देने के लिए फिर से तयैर हो सकें।
जब मुर्गी अंडे देना कम कर देती है तो उसे 1-2 हफ्तों तक भूखा रखा जाता है इस दौरान मुर्गियाँ कमज़ोर हो जाती हैं, उनके पंख झड़ जाते हैं और वे गंभीर तनाव में चली जाती हैं। इससे उनके शरीर को लगता है कि मोल्टिंग का प्रोसेस चल रहा है इस प्रकार उनका शरीर एक बार फिर अंडे देने की प्रक्रिया में आ जाता है ।
3 जबरन अँधेरे और रोशनी के चक्र में रखा जाता है
उद्योग में जो मुर्गियाँ सोलह से बीस सप्ताह की होती हैं – उन्हें अलग से रखा जाता है और उनकी रोशनी कम कर दी जाती है – कभी-कभी (24*7 ) पूरी तरह से अंधेरा कर दिया जाता है। और फिर उन्हें बहुत कम प्रोटीन वाले आहार पर रखा जाता है, लगभग भुखमरी वाला आहार।
यह दो या तीन सप्ताह तक चलेगा। फिर वे एकदम से रोशनी को सोलह से बीस घंटे के लिए लगातार जला देते हैं मुर्गियाँ सोचती है कि वसंत आ गया है और फार्म वाले उन्हें उच्च प्रोटीन वाला भोजन देते हैं। वह तुरंत अंडे देना शुरू कर देती है। उनके पास ऐसी क्षमता होती है कि वे इसे रोक भी सकती हैं, इसे शुरू भी कर सकती हैं।
जब जंगल में, वसंत आता है, कीड़े और घास उगने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं – यही वो समय है जब पक्षी अंडे देना शुरू करते हैं क्यूंकि वसंत आ रहा है।” इसलिए ही भारतीय सभ्यता में बसंत के समय मांस नहीं खाया जाता है क्यूंकि हर जीव – मुर्गियां, मछलियां और सभी प्रजातियां प्रजनन कर रही होती हैं।
तो इंसान ने उस चीज़ का फायदा उठाया है जो पहले से ही मौजूद है। और रोशनी, भोजन और वे जो खाते हैं उसे नियंत्रित करके, उद्योग पक्षियों को साल भर अंडे देने के लिए मजबूर कर सकता है। उद्योगों की मुर्गियां अब साल में 300 से अधिक अंडे देती हैं। यह साधारण प्रकृति से दो या तीन गुना अधिक है।
पहले वर्ष के बाद, उन्हें मार दिया जाता है क्योंकि वे दूसरे वर्ष में उतने अंडे नहीं देंगी – उद्योग ने यह पता लगाया कि उन्हें उस वर्ष वध करना सस्ता है बजाय इसके कि उन्हें खिलाया जाए । ये प्रथाएं आज पोल्ट्री मांस के इतना सस्ता होने का एक बड़ा कारण हैं लेकिन पक्षियों को इसके लिए भुगतना पड़ता है।
4 . चोंच काटना
जब मुर्गियाँ छोटी होती हैं, तब उनकी चोंच का ऊपरी हिस्सा गरम ब्लेड या लेज़र से काट दिया जाता है। यह बहुत पीड़ादायक प्रक्रिया होती है और इसे बिना किसी बेहोशी या दर्द निवारक के किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि मुर्गियाँ एक-दूसरे को चोट न पहुँचाएँ क्योंकि संकरी जगह और तनाव के कारण वे आक्रामक हो जाती हैं।
Philip Wollen कहते हैं – “जब हम पीड़ा झेलते हैं, तो सभी बराबर होते हैं। पीड़ा झेलने की क्षमता में कुत्ता, सूअर, भालू… या बच्चा – सभी एक जैसे होते हैं
5 . प्राकृतिक व्यवहार से वंचित करना
जैसे की हमने ऊपर बताया है कि मुर्गियाँ स्वभावतः मिट्टी में खुरचना, गड्डा बनाना, धूप सेंकना और पंख फैलाकर आराम करना चाहती हैं। लेकिन पोल्ट्री फार्मों में इन्हें जीवन भर पिंजरे में बंद रखा जाता है और इनकी स्वाभाविक इच्छाओं का दमन किया जाता है।
करेन डेविस (Karen Davis) कहते हैं कि – “अब तक हम मुर्गियों के साथ जो व्यवहार करते हैं, वह हमारी ज़िम्मेदारी से भागने का एक तरीका बन चुका है। जब एक मुर्गी बैटरी केज में बंद होती है, तो वह पीड़ा में होती है—यह बात कोई भी समझ सकता है।“

6 . नर चूजों की निर्मम हत्या
पोल्ट्री उद्योग को सिर्फ मादा मुर्गियाँ चाहिए होती हैं जो अंडे दें। नर चूजों को जन्म के कुछ ही घंटों बाद पीसकर मार दिया जाता है या प्लास्टिक की बोरियों में घुटन से मार दिया जाता है क्योंकि वे अंडे नहीं दे सकते। अधिकांश नर लेयर्स को एक श्रृंखला के माध्यम से रखा जाता है और एक विद्युतीकृत प्लेट पर नष्ट कर दिया जाता है।
कुछ को बड़े प्लास्टिक कंटेनरों में फेंक दिया जाता है। कमजोर को नीचे कुचल दिया जाता है, जहाँ वे धीरे-धीरे दम घुटने से मर जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदा होने वाले सभी लेयर चूजों के आधे से अधिक – हर साल लगभग 250 मिलियन से अधिक नर चूजों को नष्ट कर दिया जाता है।
इंसानो में अगर 4 लोग किसी युद्ध या आपदा में मर जाएं तो वो हो हल्ला काटने लग जाता है। यहाँ बात 250 मिलियन की हो रही है वो भी सिर्फ एक देश में और वो भी प्रति बर्ष।
George Bernard Shaw के अनुसार – “जब हमारा पेट खुद मारे गए जानवरों की चलती-फिरती कब्र हैं, तब हम पृथ्वी पर आदर्श परिस्थितियों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?“
मांस के लिए मुर्गियों पर अमानवीय अत्याचार
मांस के लिए पाली जाने वाली मुर्गियां ब्रॉयलर होती हैं। ब्रॉयलर मुर्गियों को इस तरह की नस्लों से बनाया जाता है जिनका शरीर बहुत तेज़ी से बढ़ता है, लेकिन हड्डियाँ और अंग उतनी तेज़ नहीं बढ़ते। उन्हें बार-बार एंटीबायोटिक, ग्रोथ हार्मोन या स्टेरॉयड जैसे तत्वों से भरे फ़ीड दिए जाते हैं।
जिससे वे 5–6 हफ्ते में ही 2–3 किलो की हो जाती हैं। वो चल भी नहीं पातीं, अक्सर दिल और पैर फेल हो जाते हैं। हजारों मुर्गियों को एक ही शेड या हॉल में भीड़ में बंद कर दिया जाता है, जहाँ चलने की जगह नहीं होती। ताज़ी हवा या धूप नहीं मिलती। अपनी ही बीट और बदबू में रहना पड़ता है। इससे उनमें तनाव, आक्रामकता और बीमारियाँ फैलती हैं।
(कल्पना कीजिए एक शेड जिसमें तीस हजार मुर्गियां एक छोटे से दरवाजे के साथ हों जो एक पांच-बाई-पांच गंदगी वाले रास्ते पर खुलता है और दरवाजा हमेशा बंद रहता है, सिवाय कभी-कभी।)
Alice Walker के अनुसार – “इस दुनिया के जानवर अपने लिए अस्तित्व में हैं। उन्हें इंसानों के लिए नहीं बनाया गया, जैसे काले लोगों को गोरे लोगों के लिए या औरतों को मर्दों के लिए नहीं बनाया गया।”
बाकि हर वो समस्या जो अंडे देने के लिए पाली गई मुर्गियों को होती है वो इनको भी होती है।
छोटे पोल्ट्री फार्म से लेकर बड़ी बड़ी कंपनियां इसके लिए जिम्मेदार
Peter Singer की प्रसिद्ध पुस्तक Animal Liberation में लिखते हैं कि KFC सालाना लगभग एक अरब मुर्गियां खरीदता है। KFC जोर देता है कि वह “मुर्गियों के कल्याण और मानवीय व्यवहार के प्रति प्रतिबद्ध है।” ये शब्द कितने विश्वसनीय हैं?
वेस्ट वर्जीनिया में एक बूचड़खाने में जो KFC को आपूर्ति करता है, कर्मचारियों को जीवित मुर्गियों के सिर फाड़ते, उनकी आँखों में तम्बाकू थूकते, उनके चेहरों पर स्प्रे-पेंटिंग करते, और उन पर हिंसक रूप से रौंदते हुए दिखाया गया था। इन कृत्यों को दर्जनों बार देखा गया।
हालाँकि KFC की वेबसाइट पर, कंपनी दावा करती है, “हम अपने आपूर्तिकर्ताओं की निगरानी कर रहे हैं ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि हमारे आपूर्तिकर्ता हमें आपूर्ति करने वाले जानवरों की देखभाल और प्रबंधन के लिए मानवीय प्रक्रियाओं का उपयोग कर रहे हैं।
परिणामस्वरूप, हमारा लक्ष्य केवल उन आपूर्तिकर्ताओं के साथ काम करना है जो पशु कल्याण के लिए हमारे उच्च मानकों और साझा प्रतिबद्धता को बनाए रखने का वादा करते हैं।”
लेकिन यह आधा सच है। KFC आपको यह नहीं बताता है कि आपूर्तिकर्ता की प्रथाओं को आवश्यक रूप से कल्याणकारी नहीं माना जाता है । एक समान आधा सच यह दावा है कि KFC अपने आपूर्तिकर्ताओं के बूचड़खानों की सुविधाओं का वेलफेयर ऑडिट करता है।
KFC की Animal Welfare Advisory Council (AWAC) से उसके पांच सदस्यों ने मई 2005 में अस्तीफा दे दिया । ये हताशा में दिया गया इस्तीफा था। उनमें से एक, एडेले डगलस ने शिकागो ट्रिब्यून को बताया कि KFC “ने कभी कोई बैठक नहीं की।
इन पांच बोर्ड सदस्यों को कैसे बदला गया? KFC की पशु कल्याण परिषद में अब पिलग्रिम्स प्राइड के उपाध्यक्ष शामिल हैं, जो “सप्लायर ऑफ द ईयर” प्लांट चलाने वाली कंपनी है, जहां कुछ कर्मचारियों को पक्षियों के साथ क्रूरतापूर्वक दुर्व्यवहार करते हुए दिखाया गया था।
टायसन फूड्स के एक निदेशक, जो सालाना 2.2 बिलियन मुर्गियों का वध करते हैं और जहां कई जांचों के दौरान कुछ कर्मचारियों को जीवित पक्षियों को विकृत करते हुए भी पाया गया था (एक में, कर्मचारियों ने सीधे वध लाइन पर भी पेशाब किया था)
कई देशों ने इन अमुक जीवो पर अत्याचार रोकने की पहल की है।
फार्म जानवरों के लिए पहली सफलता यूरोप में मिली। स्विट्जरलैंड में अंडे का उत्पादन करने वाली बैटरी केज प्रणाली को 1991 के अंत में अवैध कर दिया गया था।
अपने मुर्गियों को छोटे तार के पिंजरों में ठूंसने के बजाय, जो पक्षियों के लिए अपने पंख फैलाने के लिए बहुत छोटे थे, स्विस अंडा उत्पादकों ने मुर्गियों को शेड में ले जाया जहाँ वे एक फर्श पर खरोंच सकते थे जो पुआल (पुराल) या अन्य जैविक सामग्री से ढका हुआ था और एक आश्रय, नरम-फर्श वाले घोंसले के बक्से में अपने अंडे दे सकते थे।
अब 2012 तक मानक नंगे तार पिंजरे को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमति व्यक्त की है जिससे मुर्गियों को अधिक जगह मिल सके, एक पर्च और अंडे देने के लिए एक घोंसले का डिब्बा मिल सके।
वोल्फगैंग पक, क्रेट्स में रखी गई मादा सुअर (sow) के मांस के साथ-साथ पिंजरों में रखी गई मुर्गियों के अंडों का उपयोग करना बंद कर रहे हैं। बर्गर किंग, हार्डीज़ और कार्ल जूनियर जैसी प्रमुख सप्लाई चेन ने उन उत्पादकों से सूअर का मांस और अंडे खरीदना शुरू कर दिया है जो मादा सुअर के लिए क्रेट्स और बैटरी पिंजरों का उपयोग नहीं करते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका के सैकड़ों परिसरों में अब पिंजरों में रखी गई मुर्गियों के अंडे से बचा जा रहा है और 2007 में, दुनिया की सबसे बड़ी खाद्य सेवा प्रदाता, कंपास ग्रुप ने घोषणा की कि भविष्य में उसके सभी अंडे ऐसे उत्पादकों से आएंगे जो पिंजरों का उपयोग नहीं करते हैं।
हालांकि, इन सब में सबसे महत्वपूर्ण जीत 4 नवंबर, 2008 को हुई थी, एक ऐसा दिन जो न केवल सीनेटर बराक ओबामा के संयुक्त राज्य अमेरिका के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में चुनाव के लिए यादगार है
बल्कि इसलिए भी कि कैलिफ़ोर्नियावासियों ने 63-37 के भारी बहुमत से, एक मतपत्र पहल को मंजूरी दी जिसमें सभी फार्म जानवरों को अपने अंगों को फैलाने और बिना किसी अन्य जानवर या उनके बाड़ों के किनारों को छुए मुड़ने के लिए कमरे दिए गए थे।
2015 में, न केवल वील (veal) और मादा सुअर के लिए क्रेट्स बल्कि मानक बैटरी पिंजरा भी कैलिफ़ोर्निया में अवैध हो गया और उन्नीस मिलियन मुर्गियों को घूमने और अपने पंख फैलाने के लिए अधिक जगह मिली।
अंडा उद्योग ने इस पहल का विरोध करने के लिए $9 मिलियन खर्च किए, लेकिन उसने खुद को पशु संगठनों के एक गठबंधन द्वारा बराबर पाया जिसका नेतृत्व द ह्यूम सोसाइटी ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स द्वारा किया गया।
क्या स्वाद के लिए किसी की ज़िंदगी कुर्बान करना नैतिक है?
दुनिया में लगभग 70% लोग ईस्वर के अस्तित्व में यकीन रखते हैं अगर सच में ईस्वर है तो हम सबसे यह सवाल जरूर पूछा जाएगा — जब तुम्हें जानवरों को खाने की सच्चाई का पता चला, तब तुमने क्या किया?”
Peter Singer की किताब Animal Liberation बताती है कि कैसे हम केवल अपने स्वाद जैसे दूध, दही अंडो और मांस के लिए जानवरों को भयंकर पीड़ा देते हैं – और इसे समाज सामान्य मान लेता है।
मांस का विकल्प क्या हैं?
Cruelty-Free अंडे: आजकल कुछ फार्म्स “Free Range” या “Cage-Free” अंडे बेचते हैं – हालाँकि इन पर भी सवाल उठते हैं, फिर भी यह बेहतर विकल्प है।
Plant-Based Food: अब बाज़ार में ऐसे कई विकल्प हैं जो अंडे या चिकन जैसे स्वाद के साथ पौधों से बनाए जाते हैं।
हम ये नहीं कह रहे कि आज ही मांस या अंडा खाना छोड़ दें — लेकिन इतना ज़रूर कह रहे हैं कि आँखें मूंदकर न खाएं। जो हम खा रहे हैं, उसमें किसी की चुप्पी की चीखें तो नहीं हैं, ये जानना ज़रूरी है। हर बार जब हम स्वाद को प्राथमिकता देते हैं, तो इंसानियत को गिरवी रख देते हैं।
अंत में, Paul McCartney के शब्दों को फिर से दोहराना चाहूंगा “अगर बूचड़खाने कांच की दीवारों से बने होते, तो शायद दुनिया शाकाहारी होती।